Saturday, October 5, 2019

सुन्दर और असुंदर

प्रणाम।
प्रधान, सहयोगी संपादक और मंच संचालक़ और संयोजक सब को वणक्कम।
नीलाकाश, सूर्य का तेज, श्वेत बादल।
अति सुंदर, सुंदरता खुखा देता है
अवनी तल को।
काले बादल, बिजली की चमक,मेघ गर्जन
चाहिए तभी होगी भूमि हरीभरी।
श्वेत बिंदु लाल रक्त बिन न सृष्टि।
पीले मकरंद बिन न वनस्पति जगत।
पंच तत्वों में वायु निराकार. वर्णहीन।
जीने चाहिए रूप कुरूप निराकार तत्व।
प्रकृति अति सुंदर, अति कुरूप,अति भयंकर।
प्राकृतिक आपदा से बचने
पेड लगाना चाहिए।
धुआँ उडाना नहीं चाहिए।
बाहरी भीतरी सुंदरता,
सफाई पर ही निर्भर।
स्वरचित, स्वच़िंतक।
यस।अनंतकृष्णन।

सरस्वती से प्रार्थना

 प्रणाम।
विषय मुक्त /विधा मुक्त रचनाएँ
आज सरस्वती पूजा शामको और कल।
विद्या की देवी ,वीणावादिनी !
विश्व की प्रगति तेरे अनुग्रह से।
प्रकृति की विजय !
रोग की मुक्ति !
अंतरिक्ष की यात्रा।
आसमान का उड़ान !
आवागमन की तेज़ी।
वातानुकूल सुविधा ,
चाहते तो गरम हवा !
चाहते तो ठण्ड हवा।
आयु की वृद्धि।
हे सरस्वती देवी !तेरी कृपा!
विनम्र प्रार्थना !ज्ञान दो
जगत कल्याण का.
सद्बुद्धि दो ,
जगत में भ्रष्टाचार न हो !
हत्या,आत्महत्या ,काम ,क्रोध ,लोभ
घृणा आदि दुर्भाव न हो।
दान -धर्म ,परोपकार ,सहानुभूति आदि
सद्भावों भरकर मनुष्यता निभाने की
सद्बुद्धि दो !
माँ सरस्वती !आतंकवाद न रहें !
शासकों के दिल से स्वार्थता दूर करो.
दोस्ती बढ़ाने दुश्मनी दूर करने
आत्मसंयम जितेंद्र बनने की दृढ़ ज्ञान दो.
स्वरचित ,स्वचिंतक
यस। अनंतकृष्णन ,तमिलनाडु।
वणक्कम

उपासना -भक्ति -साधना

नमस्ते।
वणक्कम।
राम।राम।
उपासना साधना भक्ति
मार्ग का पहला सोपान है।
वह आंतरिक प्रेरणा का
बाह्य
आडंबर रूप।
जैसे बत्ती जलाना,
धूप, दीप और कर्पूर जलाना।
आराधना सामूहिक भजन,
यशोगान, संगीत आदि।
इन दोनों सोपान
बाह्याडंबर से युक्त है।
मन लगाकर केवल
भगवान के प्रति
ध्यान मग्नता ही साधना है।
मानव मन संसार के प्रति
अनासक्त हो जाता है।
काम,क्रोध,मद,लोभ मन में नहीं बसते।
केवल ईश्वर।ईश्वर के नाम।
लौकिकता के लिए स्थान नहीं।
ब्रह्मानंद में आनंद।
कबीर के अनुसार
लाली मेरे लाल की ,
जित देखो तित लाल।
लाली देखन मैं गयी,
मैं भी हो गयी लाल।
ईश्वर बनने साधना मार्ग
सिद्धार्थ, महावीर, आदी शंकर,
रामानुज, राघवेंद्र ,शीरडी साईबाबा
जैसे ईश्वर तुल्य बनना है।
आश्रम दलाल
पैसे माँगते।
तब भ्रष्टाचार बढता है।
बाह्याडंबर रहित
भक्ति
साधना है।
मन चंगा तो कटौती में गंगा।
स्वरचित।स्वचिंतक।
यस.अनंतकृष्णन।

Tuesday, October 1, 2019

काशीयात्रा

पवित्र शहर काशी.
स्वच्छ काशी है नहीं.
मुझे तो वह नगरी
व्यापार प्रधान,
निकम्मों
दूसरों को पैसे को
लूटकर भीख के बल के
निठल्लों काअड्डा ही लगा.
मंदिरों मैं चैन नहीं .
नदी नें चैन से नहाने नहीं देते.
सडक पर गंदगी गोबर
तंग गलियाँ
फिर भी आध्यात्मिक असर.
जादू भरी दिव्य नगर.
सरकार को सफाई पर विशेष ध्यान देना चाहिए.
भक्त भय रहित दूकानदारों केठग रहित
चलने का प्रबंध आवश्यक है.
गया से काशी .विष्णु पाद ..
मंगल गौरी जरा विस्तार बनाना आवश्यक है.
ऊँ नमः शिवाय.

काशी में दूसरा दिन।
विश्वनाथ मन्दिर दर्शन।
प्रधान रास्ता से गेट 1
द्वारा हर दूकान दार का व्यापार के लिए रोकना
आगे जाना कहीं भक्तों को आराम के लिए रुकने की जगह नहीं ।कदम कदम पर दूकान ।
दूकानदार थके
लोगोंं को खडे
रहने नहीं देता।
व्यस्त नगर।
तंग गलियाँ।
आटो शेर आटो
पर पैदल चलना
जरूरी है।
24-9-19 के दर्शन
काशी विश्वनाथ मन्दिर।
अन्नपूर्णा मन्दिर।


प्रयागराज का अनुभव ।
गये बेनी माधव मन्दिर।
मह्सूस हुआ
करोडों मोदी आये
स्वच्छ भारत असाध्य।
सडक तक पानी
श्रद्धालुओं को
खडे रहने को भी
स्थान नहीं।
पर फुटपाथ बिक्रेता
फोटो खींचेवाल्रे
पानी सम दूध पानी में अंजलि भर देने
कितनी बिखारियाँ
कितने साधू फकीर।
कूडे कचरौं का संगम या
त्रिवेणी संगम पता नहीं।
गंदे पानी में डुबकियाँ
पर कितना ब्रह्मानंद
वर्णनातीत सागर सम ।
स्वरचित स्वचिंतक यस अनंत कृष्णन

खुदखुशी। काशी। तन्हाई

n मैं काशी आया,
बहार नहीं,
बाढ आ गया।
चेन्नै पहुँचा।
कमर भर पानी में
विशालाक्षी के दर्शन।
तिल पांडेश्वर के दर्शन।
वर्षा में भीगकर
गंगा में डुबकियाँ लगाने मेँ.


खुद खुशी

शराबखाने में
तंबाकू खाने मैं
धूम्रपान नें
वेश्यावृत्ति में
वेश्या गमन में
वेदना में
आतंकवादियों के जादू मैं
अनावृष्टि में
कर्जा न चुकाने मैं
प्यार में
क्रांति में
कायरता में
सांसारिक संकटों से बचने
सदा खुद खुसशी रहने
खुदखुशी.
स्वरचित स्व चिंतक
यस.अनंत कृष्णन.


नमस्ते।
शीर्षक :-
चाँद तन्हा रात तन्हा रास्ता तन्हा।
कमरा तन्हा करते प्रबंध
सुहाग रात का।
द्विजनों का प्रथम मिलन।
वंश वृद्धि का मानव प्रबंध।
तन्हाई में पैगाम।
तन्हाई में ईश्वर मिलन।
तन्हाई में तपस्या।
साक्षात्कार अखिलेश से।
वरदान अखिलेश से।
तन्हाई में.ज्ञान ।
तन्हा रास्ता नयी खोज।
अमेरिका की खोज।
अकेले तन्हाई में
नये नये आविष्कार।
तन्हाई का महत्व अद्भुत।
स्वरचित स्वच़िंतक
यस.अनंतकृष्णन

दादाजी

नमस्कार। प्रणाम।
दादाजी मेरे।
पुत्रों से तिरस्कृत।
अकेले खुद पकाकर खाते।
अंत तक सुदृढ़ रहे।
मरने के चार दिन पहले
अपने पास जो कुछ थे
अपने तीनों पुत्रों
और इकलोती पुत्री में बाँटा।
अचरज की बात थी कि
मरने के दो दिन के पहले ही
सब को बुलाया और कहा ...
भगवान ने बुलाया है,
कल बारह बजे मेरे प्राण पखेरु उड जाएँगे।
और आशीषें दीं।
ठीक ग्यारह बजे
स्वर्ग सिधारे।
चिर स्मरणीय दुख भरी याद है मेरी।
स्वरचित

त्रिदेवियों का माहात्म्य

त्रि देवियों का महत्व
दुर्गा= अग्नि का आभा,
जोशीला नजर।
वीरों की देवी,शिव प्रिया
इच्छा शक्ति,
लक्ष्मी=सुमन की शोभा'
कृपादृष्टि, धनसंपत्ति देवि,
विष्णु प्रिया,क्रिया शक्ति
कांचनदेही, कमलासनी,
सदा चार गज स्नान कराते रहते।
सरस्वती=हीरों की चमक,शांतिपूर्ण दृष्टि, श्वेत कमलासनी।
विद्या देवी, ब
ब्रह्म देव प्रिया।ज्ञान शक्ति, ज्ञान दायिनी,
स्वच़िंतक यस।अनंतकृष्णन
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