Sunday, September 13, 2020

नारी 


 एक जमाना था,

केवल खाना ,

अरद्धनग्न कपड़ा

सोना काफ़ी मानव मानते।

शिक्षा के विकास,

वैज्ञानिक सुख सुविधाएं

मानव को धन प्रधान बना दिया

नर नारी को कमाना हो

 गया जरूरी।

सेना, विमान चालक और

अन्यान्य क्षेत्रों में

नारी  भी चमकने लगी।

राजनीति में न अधिक।।

नारी के उत्थान में

नर भी साथ देता जहां

धोबी की बात पर

राम ने सीता को भेजा था जंगल।।

वहां पर्दा घूंघट निकालकर 

गाड़ी चलाना सोच विचार परिवर्तन भारत समाज की प्रगति।

स्वरचित स्वचिंतक एस.अनंतकृष्णन।चेन्नै।

 म🤫😀🤭🤔 हास्य 

मैं हूं रंगीला ,

मैं हूं अपने को

हरा तमिलवाला कहता हूं।

अजब हममें वैज्ञानिक

 तमिल वाले  हैं,गैर वैज्ञानिक।

भ्रष्टाचार में भी वैज्ञानिक , अवैज्ञानिक।

हम हिंदी से चिढ़ते नहीं,

हिंदी से न घृणा।

भगवान नहीं कहा करते,पर

विवश मानना पड़ा।

हम मंदिर जाया नहीं करते।

पर अर्द्धांगिनी जाया करती

हमारे पापों को भी प्रायश्चित करती, मन में भय पर कहते

नारी स्वतंत्रता में धकल नहीं करते।

अब एक मात्र नारा 

हिंदी- संस्कृत को आने नहीं देंगे

पर मत वोट मांगने 

उदय सूर्य चिन्ह कहेंगे।

 हिंदी पढ़ने को रोका नहीं करते।

अतः दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा जिंदा है

चुनाव के सिद्धांत में

हिंदी विरोध नारा मात्र है।

कैसे छोड़ सकते?

हिंदी वालों से हम 

हिंदी में ही वोट के लिए

अनुनय विनय करते हैं।

हिंदी से चिढ़ते नहीं,पर

अवैध संबंध ही रखते।

चुनाव में मजबूर हम।

अपने लाभ के लिए

सत्यता के लिए विरोध करना पड़ता है,पर लोगों में जागरूकता आ गई,पर आशा है "|

हरा तमिल नारा काम आएगा।

स्वरचित स्वचिंतक

अनंत कृष्णन एस।

 वाह !असर!

नौकरी मिलीबढिया,

संपत्ति की कमी नहीं,

शांति नहीं मिली अब,

एलकेजी आरक्षण,

अभी से चैन नहीं मिली!

पति पत्नी दोनों की कमाई,

क्रेडिट कार्ड से दब गई

बेचैनी की सीमा नहीं,

पाँच प्रतिशत भरते रहे

बैंक तो संतोष

मूल धन  तो जैसे के वैसे!

यही आधुनिक जिंदगी!

स्वरचित एस.अनंतकृष्णन

 नमस्ते। 

नव विचार ,नव चिंतन ,नव आशा 

नव भारत का निर्माण।

सुविचार सुख देता है तो बाद विचार बेचैनी। 

सुखप्रद कर्म कर सुफल जरूर।

सिरों रेखा लिखकर जन्म ,बदलना ईश्वर ही जान.

गुरु भक्ति से ईश्वर मिलान ,पर सद्गुरु की खोज कर.

धन प्रधान आश्रम आचार्य सही ,

पर फुटपाथ पर भी अर्द्धनग्न सिद्ध पुरुष।

मुफ़्त में देते सलाह ,सत्यता बताते।

धन प्रधान ही ईश्वर अनुग्रह नहीं ,

मन पवित्र तन पवित्र। 

दान धर्म ध्यान काफी। 

हज़ारों साधू भारत में 

बचाते हैं अपने ध्यान से। 

अत्याचार बढ़ते तो देखते हैं प्राकृतिक कोप.

धन से बढ़कर ईश्वरी तांडव शक्ति जान.

शान्ति संतोष ईश्वरीय सूक्ष्म शक्ति 

न माया मोह स्वार्थ विचार।

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ  ध्यान प्राणायाम 

मनो अभिलाषा पूरी होने का मूल.

स्वचिंतक  अनंतकृष्णन


मित्रचिन्तन 



40.धर्म मार्ग पर कमाओ धन।

 वही तेरी होशियारी।

 वही  यारी  बिना भूले

करेगा तेरी सुरक्षा।।

39.कुचला कड़ुआ,

कभी न होता मीठा।

प्यार हीन है तो बदला दुख ही जान।।

 38.नाडी नसों को सही सलामत रखें तो शारीरिक-मानसिक कमजोरी न होगी जान।।

27.प्राप्त मानव जीवन को

सुचारू रूप से चलाएंगे तो

अड़चनें जीवन में नहीं जान।।

37.मनुष्य में मनुष्यता होने पर 

 अंग जंग में दुख नहीं जान।

36.परायों को निंदा कर जीने पर

     कभी पीड़ा नहीं जान।।

    सानंद ऊंचे जीवन जीने गहरे सोच विचार की जरूरत जान।।

35.सूखे पत्ते कभी न होंगे हरे।

सत्य के न पालकों का जीवन भी वही।।

34.त्यागमय जीवन ही है जीवन।

बाकी सब सूखे पेड़ समान जान।।33. இல்லை

32. आध्यात्मिक जीवन में नाच-गान भी साथ जान।।

31.न्याय के सामने  हिलने डुलने पर भी  स्तरीय पर्यटक होगा जान।।

30.अंधेरे में प्रकाश लाभ -सुखप्रद।

अड़चनें आने पर  दुखप्रद।।


१. नारियल के पेड़ के सिर गया तो

 फिर न उगेगा जान।

वैसे ही मानव अपने का 

न पहचानता तो प्रगति बाधक जान।

2.अनचाहा रोग को   चाहकर ,

   अपने शरीर में बसाना 

कांटे में फंसी मीन समान जान।।

3.पंचभूत से बने शरीर के पंचेंद्रियों को तत्काल के कल्याण में अर्पण करना है श्रेयस्कर।।

4.मरण तो अपने आप हमें बिना भूले आलिंगन कर लेगा ही।

अतः हमें उनकी चिंता न कर 

वि स्मरण कर  जीना  ही

 श्रेयस्कर  जान मान।।

5.पंचेंद्रिय  नियंत्रण रहित  जीना,

 आग जग नारियों के लिए अमंगल ही जान।

6.मन मोहक ईश्वर को अपने

में गुप्त रखना उचित नहीं जान।।

7.तन मन बिगड़कर जीने पर

ईश्वर की खोज में भटकना ही जीवन जान।।

8.छाया की खोज में चलने से 

 माया छोड़ अलौकिक तलाश ही श्रेष्ठ जान।

9. मन पार के भगवान को छिपाकर जीना जीवन नहीं जान।

10.नास्तिक विचार ईश्वर का अवहेलना अहंकार भावना जान।।

11.अनासक्त ईश्वर पर आसक्ति होना ही संत जीवन जान।।

 : कवि सम्मेलन 

कविता लिखने से

सुनने सुनाने में आनंद।।

भारत में  महाकाव्य श्रवण द्वारा ही अधिकांश लोग जानते हैं।

 संत तिरुवल्लुवर कहते हैैं--

संपत्तियों में श्रवण  ही श्रेष्ठ संपत्ति है ,वही सभी संपत्ति यों  के सिर मौर है।

सेल्वत्तुल सेल्वम चेविच्चेल्वम,अच्चेल्वम चेल्वत्तुल  एल्लाम तलै।।

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 ईश्वर वंदना

श्रीगणेश करता हूं,

श्री गणेश के नाम से

ज्ञान श्री चाहिए।

श्रीनिधि चाहिए।

तन,मन,धन स्वस्वस्थ रहें।

अगजग में शांति,संतोष रहें।

मतांधता मिट जाएं।

मानव मानव में 

धर्म ज्योति , मानवता  जगजाएं।।

स्वरचित स्वचिंतक अनंत कृष्णन।

 हिंदी दिवस ,

हिंदी तर लोगों को

 महात्मा की देन।

अखंड भारत की 

एकता का प्रतीक।

स्वार्थ भले ही करें विरोध।

देश भारत हम करते प्रचार।।

जनता आज हिंदी के पक्ष।।

मंच पर विरोध,पर हिंदी वर्ग में

रोज हाजिरी।

ऐसे हिंदी सिखाते,

पाठ हिंदी,पाठम तमिल जान।

कवि, कविता ,कथा,वाक्य ,आर्य

तमिल हिंदी बराबर जान।

अंग हिंदी तो अंगम तमिल 

प्रयत्न प्रयत्नम,परिवर्तन परिवर्तनै। बस तमिल हिंदी एक मान।

मान=मानम गौरव =गौरवम 

सरल -सरलम।कठिन कठिनम।

बस हमारे नाम सब संस्कृत।

तमिल अर्थ जान लो।

कमल,सरोजा,पद्मा,पंकजा नीरजा,जलता सब तामरै जान।

हम है दक्षिण के,हिंदी का प्रचार

करते हैं तन मन से।

स्वचिंतक =सुयचिंतनैयाळर

अनंत कृष्णन,चेन्नै।हिंदी प्रेमी प्रचारक।
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 खड़ी बोली हिन्दी,

 कैसी हुई प्रगति।

 अंग्रेज़ी समान न 

जीविकोपार्जन की भाषा।

डाक्टरि इंजीनियरिंग में

न हिंदी का प्रयोग।

ऐ।टि। 

नौकरी में न

 हिंदी का स्थान।

खासकर तमिलनाडु में तो

केवल जनता पसंद।

तमिलनाडु केशासक दल ,

विपक्षी दल करते हैं विरोध।

आजकल नया नारा--"हम न करते हैं हिंदी विरोध।

हिंदी का जबरदस्त थोपने का विरोध।।

वास्तव में सत्तर साल की

 आजादी के बाद

अंग्रेज़ी गांव गांव शहर शहर।

पीछे पीछे हिंदी का विकास।

अपने आप।

अहिंदी प्रांतों में हिंदीवाले

हिंदी बोलते ही नहीं।

मजदूर भी बोलता शुद्ध तमिऴ।


कहते हैं अंग्रेजी से सर्वांगीण विकास।।

न आदर,न अनुशासन न विनम्रता,नशिष्टाचार।न संयम।

न संस्कृति।न जितेन्द्रियता।

शिक्षा महंगी, शिक्षा लय बंद।

मधुशाला खुली है।

 संस्कृत शब्द भंडार

 बना रहे हैैं

हिंदी विकास।।

भारतीय एकता मूल।

मोहनदास करमचंद गांधी

दूरदर्शी नेता गुजराती भाषी

आ सेतु हिमाचल की एकता की भाषा हिन्दी मानी।

धन्य है महात्मा, जिन्होंने

दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा की स्थापना की।

न तो दक्षिण में न हिंदी विकास।।

आज तीर्थ यात्रा के लिए जो 

उत्तर भारत जाते,खुलकर कहते

हिंदी सीखना अत्यंत  अनिवार्य।

यह अनुभव काफी, हिंदी का भविष्य तमिलनाडु में उज्ज्वल।।

अनंत कृष्णन चेन्नै।