Friday, December 4, 2020

युवक निर्दोष।

 नमस्ते। वणक्कम।

विधा --अपनी भाषा।अपनी शैली, अपने छंद।

शीर्षक :किस डगर पर चल पड़े युवा।।


 युवा अच्छे ,

शैतानियां शक्ति बड़ी।

भ्रष्टाचार ,रिश्वत, मतदाता के अंधविश्वास।

पैसे के बल पर शासक,

पैसे के बल पर  पदाधिकारी।

सिफारिश के बल पर,

दान धन के बल पर 

 कालेज की भर्ती।।

अंक  लेने रिश्वत।।

खबर पढ़ी अंग लेकर 

डाक्टरेट  । स्नातक। स्नातकोत्तर।

पुनः अंक गिनती कितने उत्तीर्ण।।

 समाचार पत्र  के भ्रष्टाचार खबर।।

आज तक किसी को दंड नहीं।

युवकों पर कोई   दोष नहीं।।

 सद्य: फल  ही प्रधान। प्राथमिकता।।

अतः ज्ञान चक्षु प्राप्त  मनुष्य,

कुकर्म कर रहे हैं।।

भगवान भी अति अदभुत ,

जवानी, बुढ़ापा, असाध्य रोग,

मच्छर रोग फैलाने तैयार।।

कोराना आतंकित करने तैयार।

बाढ , तूफान,आंधी, सुनामी, निस्संतान।।

   युवकों पर दोष नहीं

स्वार्थ समाज का दोष।।

स्वरचित स्वचिंतक एस.अनंतकृष्णन चेन्नै























 













जीवन साथी

 आयोजन ४

४-१२-२०२०

जीवन साथी।

 नमस्ते। वणक्कम।।

मैं हूं तेरा जीवन साथी,

जितने कहे,वे सब तीस साल तक।

१९९० के बाद नौकरी की तलाश में

मेरे साथी विश्व भर बिखर गये ‌‌।

मिलने मिलाने  कोई नहीं।।

बेटे बेटी सब अमेरिका,

आस्ट्रेलिया,कनाडा चले आते।

 मेरा गांव सूना पड़ा है।।

गांव में नये लोग,श्री पीढ़ी।।

मेरे जीवन साथी मोबाइल।।

  अंतर्जाल मिलन।।

 यही निर्णय पर पहुंचा,

नश्वर दुनिया में साथी घट रहे हैं।

शाश्र्वत साथी भगवान।।

ज्ञान के विस्फोट जमाने में

भगवद्गीता वेद शास्त्र बाइबिल कुरान

 गहराई से पढ़ने समय नहीं।

किस भगवान किस मंदिर जाऊं?

एक एक चेनल कई प्रवचन करता।

शिव महिमा,शीरडि पुट् टबर्ति साईं महिमा

राम महिमा कृष्ण महिमा,

मेरे जीवन साथी भगवान हैं,

बाकी साथी  पूर्णकालीन नहीं।

अंश कालीन भी नहीं।

आठवीं कक्षा तक के साथी  बारहवीं में नहीं।

बारहवीं के साथी कालेज में नहीं।

कालेज के साथी  नौकरी, शादी बिखर गये।।

मेरे जीवन साथी भगवान भजन।।

राम,कृष्ण, गीता, शिव विष्णु  भजन।

लौकिक  साथी कम होते जा रहे हैं,

सत्तर साल का बूढ़ा हूं,

मुख पुस्तिका में मुख न देखा,

स्पर्श न किया , आवाज न सुना साथी।

उनके भी साथी राम कृष्ण शिव गणेश 

दुर्गा लक्ष्मी सरस्वती सुंदर सुंदर तस्वीर।।

 वे भी फारवेड मैं भी फारवेड।।

अब जीवन साथी भगवान।।

स्वरचित स्वचिंतक अनंतकृष्णन चेन्नै।

Thursday, December 3, 2020

कागज

 नमस्ते। वणक्कम।।

शीर्षक : कलम कागज।

दिनांक --३-१२-२०२०-३.

  विचार अभिव्यक्ति बोली,

 बोली से चित्रलेखन।।

 चित्र लेखन से ताड़ के पत्ते।

ताड़ के पत्ते से शिलालेख।।

ताम्रपत्र लेख।। फिर कपड़ों पर।

कागज के आविष्कार,

कलम का आविष्कार दोनों

लिखित साहित्य की अति प्रगति।।

भूले बिसरे  लापता साहित्यों  की खोज।

प्रकाशन कलम कागज 

छापाखाने का आविष्कार।

ज्ञान के विकास के क्षेत्र में बड़ी क्रांति।।

भलाई में बुराई भी साथ साथ।।

कोरा कागज का है मन मेरा।

लिख लिया नाम तेरा,तेरा।

प्रेम पत्र ,बेनाम पत्र  प्रेम की कविताएं।

अश्लीलता,  चित्र, यूवकों को बिगाड़ने वाले।।

कलम द्वारा लिखित  विषय शाश्र्वत कैसे?

पत्थर पर के लेख भी घिस जाते हैैं।

कागज पर लिखने कलम ।।

आज तो संगणक  और

 कागज का महत्त्व।

कलम केवल हस्ताक्षर करने।।

A4Sheetaaका महत्त्व अधिक।।

स्वरचित स्वचिंतक अनंतकृष्णन चेन्नै

वक्त का खेल।

 नमस्ते। वणक्कम।।

"वक्त  की लाठी होती  बेआवाज।"

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विधि की विडंबना ही वक्त का खेल।।

साज़िश इंदिरा  गांधी की ,

पर अनुमान नहीं, अंगरक्षक ही ।

शिवाजी छत्रपति अफजल खां की साजीशें पता नहीं बघनखा।

महात्मा गांधीजी की सत्यता ,

भारी भीड़, नमस्कार की मुद्रा।।

 वक्त की लाठी होती बेआवाज।।

समुद्र तट पर कुतूहल खेल।।

न पता सुनामी का बदनामी करतूत।।

वक्त की लाठी होती  बेआवाज।।

 दस रुपए का लाटरी,

बनाया लखपति।

  शकुंतला दुश्यंत अंगूठी को जाना।

वक्त की लाठी होती बेआवाज।।

राम के पार स्पर्श अहल्या मुक्ति।

 हर जोतना सीता का मिलना,

महाराज जनक के जीवन में,

वक्त की लाठी होती बेआवाज।।

 कारण के जीवन में

 दुर्योधन का आना।

वक्त की लाठी होती बेआवाज।।

स्वरचित स्वचिंतक अनंतकृष्णन चेन्नै

Wednesday, December 2, 2020

भगवान याद आते हैं

 नमस्ते नमस्ते वणक्कम।

 तब भगवान याद आते हैं,

जब डाक्टर ऊपर हाथ दिखाकर

 प्राण बचाने की आशा  निराशा कर देते हैं।

करोड़ों की पूंजी  रात दिन  मेहनत 

वह चित्रपट की असफलता 

  याद दिलाती है  भगवान  की।।

सैकड़ों हजारों के खर्च,

गली गली घूम ना, हर मनुष्य के सामने हाथ जोड़ना,

चुनाव में हार जीत याद दिलाती है भगवान।

कम पूंजी करोड़ों लाभ भुला देती भगवान की याद।।

 भक्ति काल के राधाकृष्णन,

भव बाधा दूर करो राधा  

रीतिकालीन कवियों को

श्रृंगार अश्लीलता तब भूल जाते हैं भगवान को।

वीरगाथाकाल,रीतिकाल  दोनों

बना दिया भारत को गुलाम।

 वीरगाथाकाल में मुगल आगमन।

हिंदू गुलाम।

रीतिकाल में अंग्रेजों के आगमन

फ्रांसीसी आगमन दोनोें गुलाम।

आजादी के बाद  

नौ करोड़ की काली विघ्नेश्वर की मूर्त्तियां 

बनाकर विसर्जन के नाम अपमान।

गिरिजा घर, मस्जिद की संख्या अधिक।

 ईश्वर का सम्मान नहीं,ईश्वर के विसर्जन ,

पैर से धक्का देता, नहीं समझता ईश्वर का शाप

अपनाते हैं हिंदु।

तभी एक शैतानियां शक्ति ओवैसी का नारा

पंद्रह मिनट का समय भारत मुगल देश।।

तब याद आती है भगवान की।

 स्वरचित स्वचिंतक अनंतकृष्णन चेन्नै।।

 कबीर 

दुख में सुमिरन सब करें सुख में करै न कोय।

सुख में सुमिरन सब करें तो दुख काहे को होय।।

मंदिर साधु समाधी

 विषय  गद्य --भारत ज्ञान

विधा --गद्य पल्रय अपनी निजी शैली।

दिनांक --२.१२.२०२०.

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 वह जा रहा था,वह लेखक था।  गंभीर चिंतक।।

जाते जाते सोचते सोचते बहुत दूर चला गया।

प्रधान सड़क पर  थोड़ी दूर चला, फिर वापस आने मुंडा तो सड़क के उस पार एक पगडंडी दीख पड़ी।। लेखक  ह्रुदय में पगडंडी  देखने की जिज्ञासा हुई।।

वह तो निर्जन जंगली पगडंडी। विषैली जंतु ,सांप आदि की याद आती।फिर भी धीरज बांधकर आगे बढ़े।

न जाने उसकी गति में तेजी। सांप विषैली जंतुओं का डर 

भूल गया। आधा घंटा चला होगा,जड़ी बूटियों से ढका हुआ एक गोपुर लीग पड़ा। एक ऐसी तेज गति उसको

 द्वार के सामने ले गयी। दरवाजा नहीं था। और कोई व्यक्ति नहीं था। विस्मय के साथ देखा तो 

दीप जल रहा था। वह चारों ओर मुड़ मुड़कर

देखने लगा। कोई नहीं था।साहस के साथ अंदर गया तो

देवी की अति सुन्दर मूर्ति।

आंखों में तेज,ओंटों मे मुस्कान।

वह भौंचक्का हो गया।। 

 दिव्य रूप देखते देखते  उसके मन की चंचलता दूर हो गई। एक ही विचार देवी के सामने सदा ही रहे।।

चंद मिनटों में उसको लगा कोई नई शक्ति घुस गई है।

वह सब कुछ भूल गया। वही आंखें बंद कर बैठ गया।।

न खाने की चिंता,न पीने की चिंता, न सोने की चिंता।।

दो -तीन घंटे के बाद उठा , मंदिर को परिक्रमा करने लगा। एक कोने  में एक नाम लिखा हुआ था।

उसे पढ़ा तो  पता चला देवी बृह्मनायकी।।

एक ऐसी अटल चेतना। मंदिर बनवाओ।।

निर्धन हिंदी लेखक अपने लेख प्रकाशित करने अपने 

पैसे खर्च करके अपनी ज़रूरतों को कम करनेवाले कैसै

मंदिर बनवाते। चिंतित नहीं बैठ गये।।

धीरे धीरे अंधेरा। जंगल सा क्षेत्र। वह बस से मसन होकर बैठ रहा थी। आधी रात के समय चार पांच लोग एक बोरे उठाकर वहां आ पहुंचे।। आंखें मूंद बैठे लेखक कैसे देवी के पीछे आये, पता नहीं।।

 जो आए थे वे  बोल रहे थे,

बोरे में लड़का है। सेठ को फोन करो कि

दस लाख न देंगे तो लड़के  का शव ही मिलेगा।

तभी लेखक अपनी पुरानी अवस्था पर पहुंचे।।

अंधेरे में चार पांच  लोगों की आवाज।

इत्तिफाकन लेखक मिमिक्री जानते थे।

न जाने साहस से देवी की आवाज़ में बोले,

मैं बृहननायकी। मेरे सामने ! इतना साहस।

तभी एक आदमी की चीख-पुकार।

दूसरे ने सिंगार जलाया। त्रीशूल में एक आदमी का सिर।लटक रहा था। बाकी तीन बोरे को छोड़कर भाग गये।

सिंगार जल रहा था। बोरे खोलकर देखा तो

 शहर का प्रसिद्ध अमीर सौदागर का बेटा।

जिसे वह खूब जानता था। उसे लेकर  सौदागर के यहां गया। सारा विवरण बताया, मंदिर बनवाने की अपनी इच्छा प्रकट की। बृहद नामकी वन रक्षिका बृहद नायकी के नाम से भव्य मंदिर में प्रसिद्ध तीर्थ स्थल  में है।

भारत की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती रही।।

लेखक  मौन साधु बन गये। देवि स्मरण मात्र,न विभिन्न विचारों की लहरें। अंत तक वन रक्षिका बृहद नायकी मंदिर में ही रहे। भारत देवी के साथ  देवी  दास के नाम बनवायी समाधी की भी आराधना करते हैं।

सौदागर की ओर से हर साल मेला, अन्नदान।

धूलधूसरित वह देवी की मूर्ति स्वर्ण कवच और

हीरे-जवाहरात से सजकर भक्तों की

अभिलाषा की पूर्ति में।

आज अखबार में ताज़ा समाचार आया कि

वन रक्षिका बृहद नायकी  के आलम की हुंडी में

अनजान भक्त ने दो लाख रुपये का बंडल डाला है।

सबहिं नचावत राम गोसाईं।।

स्वरचित स्वचिंतक अनंतकृष्णन चेन्नै हिंदी प्रेमी।














ंं

गुरु नानक

 नमस्ते। वणक्कम।

शीर्षक -

गुरुनानक आदर्श समाज  सुधारक

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विधा --गद्य।

 गुरु नानक समाज में सत्य,धर्म, ईमानदारी, परोपकार, सहानुभूति,

आदि मनुष्यता के गुणों के प्रचार 

करने गांव गांव जाया करते थे।

  एक गांव में प्रवचन करते समय

एक भयंकर डाकू उनसे मिला।

उसने गुरु महोदय से कहा कि मैं बड़ा पापी हूं। डकैती करना, चोरी करना,खून करना मेरा धंधा है। मैं दुखी हूं।

मैं अपना धंधा छोड़ भी नहीं सकता।

ऐसा उपाय बताइए, मैं अपना धंधा करूं और आनंद से जी सकूं।।

 गुरु नानक ने डाकू से कहा -

कल भी मैं यहां प्रवचन करूंगा।

तुम आज रात से कर शाम तक जो भी करते हो, उन्हें सविस्तार लिखो।

तुम को अपने धंधा छोड़ने की जरूरत नहीं है।पर अवश्य तुम अपने किये कार्यों को लिखा करो।और रोज प्रवचन के समय आम लोगों के सामने पढ़ा करो।

डाकू गुरु वंदना करके चला गया।।

  गुरुनानक अपने कार्याधिक्य कारण भूल गये ।

  एक महीने के बाद डाकू आया।

भरी सभा में सब के सामने गुरु के पैरों पर गिरा और क्षमा मांगी।।

 गुरु नानक ने पूछा --कयों इतने दिन नहीं आये।

 डाकू ने कहा कि मैं  अपने बद कामों को पढ़कर  खुद शर्मिंदा हूं। कैसे मैं सार्वजनिक लोगों के सामने पढूं?

मैं अब अपने डकैती,चोरी के काम छोड़ दिया।

 गुरुनानक महान थे।

उनकी सीख है कि सोने के पहले

दिन भर के हमारे कार्यों को 

पढ़कर आत्म परीक्षण द्वारा

अपने बुरे

काम तजकर

अच्छे काम करेंगे तो 

अपनी मानसिक संतोष,आनंद,शांति

पूर्ण जिंदगी बिता सकते हैं।


स्वरचित स्वचिंतक अनंतकृष्णन चेन्नै।