Friday, January 19, 2024

- भक्ति के रंग।

 जम्मु-कश्मीर  इकाई को

नमस्ते वणक्कम।।

18-1-24.

विषय-- भक्ति के रंग।

विधा -अपनी हिंदी अपनी भाषा अपनी शैली भावाभिव्यक्ति।

-------

भक्ति के रंग अनेक,

भगवान तो एक।

सनातन धर्म की बात यही।

पर अपने अपने विश्वास

अपने अपने देश काल वातावरण

भगवान के रूप अनेक।

 देवेन मनुष्य रूपेन।

अजनबी आदमी भी समय पर

 हमारी मदद करता तो

 हम यही कहते कि

 आपने भगवान सम मदद की है।

कई राजनीतिज्ञ  नेता के लिए

मंदिर भी बनवाते हैं,

अपने मालिक की तस्वीर की भी

हाथ जोड़ वंदना करते हैं।

 आदी काल में गुरु वंदना।

माता-पिता, गुरु ईश्वर।

कबीर का ज्ञान मार्ग,

जायसी का प्रेम मार्ग

सूरदास का कृष्ण मार्ग

तुलसीदास का राम मार्ग

भक्ति के मार्ग  अनेक,

 भगवान तो एक।

मानव मन की शांति के लिए,

 मानव जगत के कल्याण के लिए

मानव की एकता के लिए,

 प्रकृति ही भगवान।

मजहब तो मानव मानव में

 संप्रदाय का भेद बढ़ाते।

 पर जय जगत,

 सर्वे जना सुखिनो भवंतु

 वसुधैव कुटुंबकम्

 सनातन धर्म की देन।

 संप्रदाय मानव को 

संकुचित भक्ति दिखाता।

गेरुआ कपड़ा,

हरे कपड़े,

श्वेत कपड़े

तिलकों में फर्क

पूजा पाठ में फर्क

 आकार में फर्क

 पर पंच तत्व

 आकाश,हवा,आग,जल, भूमि

 ये समदर्शी जान।

 न हवा किसी मजहब के नाम।

न प्राकृतिक कोप मजहब के नाम।

 प्राकृतिक प्रदूषण न देखता

 मजहबी, संप्रदाय, 

देश काल वातावरण।

 सोचो समझो प्राकृतिक भक्ति 

 प्राकृतिक आराधना

भूमि प्रदूषण से

जल प्रदूषण से

हवा प्रदूषण से

 विचार प्रदूषण से

 प्रपंच को बचाता,

 एकता का संदेश देता।

 सनातन धर्म के अनुसार

 अद्वैत भावना,

अहं ब्रह्मास्मी,

हर एक में एक शक्ति,

 बद्बू सहने की शक्ति

 शौचालय की सफाई

 करनेवाले को।

 खुशबू में भगवान पुजारी पंडित मौलवी।

 मज़दूर नहीं तो

 बोझ उठाने की शक्ति

 स्नातकोत्तर में नहीं।

 सोचो समझो

 वक्त की मदद करनेवाला भगवान।

 सद्यःफल देनेवाला डाक्टर भी भगवान।

  भक्ति के रंग अनेक।

 भक्ति की धाराएँ अनेक

मूल रूप में भगवान एक।

एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक

8610128658

हम हैं भारतवासी

 नमस्ते वणक्कम।

हम हैं भारतवासी।

 भारत हमारा देशोन्नति।

 जिन में बल है,

वही    देश के आधार।

 शारीरिक बल है कुछ में।

 बुद्धि बल है कुछ में।

 आध्यात्मिक बल है कुछ में।

 राजनैतिक बल है कुछ में।

 धार्मिक बल है कुछ में।

एकता बनाने के बल कुछ में।

एकता तोड़ने का बल कुछ में।

 भाषाएँ अनेक, हर भाषा कौशल में

कुछ लोग सदुपदेश देते हैं कुछ लोग।

स्वार्थवश अश्लील गाना गाते हैं कुछ लोग।

धन के लोभी है कुछ लोग।

दान के प्रिय है कुछ लोग।

कंजूसी है कुछ लोग।

 त्यागी है कुछ लोग।

भोगी है कुछ लोग।

समदर्शी है कौन?

सब के समान हितैषी है,

पंचतत्व आग हवा पानी भूमि आकाश।।

जान समझकर पंच तत्वों को 

 प्रदूषण से बचाना।

 इनमें धन के लिए

 अश्लील गाना,चित्र,कहानियाँ, चित्रपट

खींचना ही बड़ा पाप।।

ईश्वरीय सूक्ष्म दंड मानव के पाप का दंड।

पुण्यातमा कहाँ? 

पापात्मा से भरी  दुनिया

 यह भी ईश्वर की सूक्ष्म लीला।

भगवान के अवतार लीला में भी

 न सौ प्रतिशत धर्म।

अधर्म की प्रासंगिक कहानियाँ।

 प्रपंच की बातें जानना समझना 

 असंभव है मानव को।


 एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई।

तमिलनाडु का हिंदी प्रेमी प्रचारक

द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति।

Wednesday, January 3, 2024

ज्ञान नहीं

 नमस्ते वणक्कम।

 ज्ञान नहीं तो मनुष्य पशु-पक्षी समान।

अज्ञानी का जीवन संताप भरा।

आत्मज्ञानी  ईश्वर तुल्य।

 आत्मा को पहचानो,

पता चलेगा अनश्वर दुनिया।।

कोई भी संसार में शाश्वत नहीं।

परिवर्तन ही यह लौकिक जीवन।

शैशव में परिवर्तन बचपन ।

बचपन का परिवर्तन लड़कपन।

 लड़कपन से जवानी,

जवानी से प्रौढ़,

प्रौढ़ावस्था से बुढ़ापा,

बुढ़ापे में शिथिलता,

मानव में ही नहीं,

सांसारिक सभी सृष्टियाँ

शाश्वत हैं नहीं।

 सोचो, समझो, पुण्य कर्म करो।।

भ्रष्टाचार , रिश्वत, अन्याय के पैसे,

न बचाएँगे तेरे प्राण।।

डाक्टर भी भी मरता है,

ज्ञानी भी मरता है,

अज्ञानी मत बनो,

मनुष्यता अपनाओ।

मतदान तो ईमानदारी को देना है।

मानव हो मनुष्यता अपनाओ।

 मनुष्यता न तो पशु तुल्य तेरा जीवन।।

Wednesday, December 13, 2023

स्वसंकेतों से करें व्यक्तित्व विकास।

 नमस्ते वणक्कम साहित्य बोध असम इकाई को।

 शीर्षक  स्वसंकेतों से करें व्यक्तित्व विकास।

विधा --अपनी हिंदी अपने विचार अपनी शैली भावाभिव्यक्ति।

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करो पहले, कहो पीछे।

गली गली का

 पाखाना स्वयं उठाया 

देख अन्यों ने साफ करने में लगे।

अपना व्यक्तित्व स्व संकेतों से

बने  राष्ट्रपिता महात्मा।

स्व संकेतों से रामकृष्ण परमहंस में

 सच्चाई थी।

स्वसंकेतों से आजकल

ओट के लिए पैसे देते हैं

 स्व संकेतों से भ्रष्टाचार

रिश्वत फिर भी बनते 

सांसद विधायक।

 उनके संकेत से  

देशको होता बुरा मार्गदर्शन।

 स्व संकेत सत्य के विकास के लिए।

 स्व संकेत पवित्र भक्ति के लिए।

स्वसंकेत  परोपकार के लिए।

स्वसंकेत निस्वार्थ भाव लेकर

स्वसंकेत मानवता बनाये रखने के लिए।

 स्वसंकेत जिओ और जीने दो के लिए ।

आजकल की शिक्षा  का संकेत

पैसा खर्च करो पैसे कमाओ।

वकीलों का संदेश स्वसंकेत

पैसा न तो अदालत में न न्याय।

 न भर्ती शिक्षा संस्थानों मैं

 न वोट अपने आदर्श 

प्रतिनिधि चुनने में।

 स्वसंकेत शासकों का

ईमानदारी नहीं,

अधिकारी का नहीं।

 अध्यापक तो स्वयं ट्यूशन के चक्कर में,

थानेदारों का संकेत भी 

अमीरों को छोड़ो गरीबों को पकड़ो।

स्वसंकेत आश्रम के आचार्य में भी नहीं।

समाज के विचारों में

व्यवहारों में प्रदूषण ही प्रदूषण।।

स्व संकेत है व्यक्तित्व का विकास

 कदम कदम पर नहीं।

स्वसंकेत ईमानदारी सत्यवादियों का कोई समझता नहीं।

 स्वसंकेत  सर्वेश्वर का

जवानी बुढ़ापा रोग प्राकृतिक क्रोध

नश्वर दुनिया

स्व संकेत ईश्वर का भी

मानव समझता नहीं तो

 मानव में शांति संतोष कैसे?

மாயை

 மாயை உலகத்திற்கு இன்னலைத் தரும்.

ஞானத்தை இழக்கச் செய்யும்.

 ஏரிகளை மூடி கட்டிடங்கள் கல்லூரிகள்

 தொழில்நுட்ப அலுவலகங்கள் கட்டத் தூண்டும் மாயையான பணம் மதியை இழக்கச் செய்யும்.

 ஒரு வீடு இருந்த இடத்தில் முன்னூறு வீடுகள். விண்ணைத் தொடும் அடுக்கு மாடி வீடுகள்.

நகர விஸ்தரிப்பு.

 விளைநிலங்கள் காணாமல் கட்டிடங்கள்.

 இன்று வெள்ளம் மட்டுமே.

 நாளை விளைநிலங்களற்ற 

நாடு. நெற்களஞ்சியம் என்று புகழ்பெற்ற பாரத மாநிலம் தமிழ்நாடு

உணவுக்கும் துடிக்கும்.

 இன்று லஞ்சம் வாங்கி கட்டிட அனுமதி கண்டபடி கொடுத்த அதிகாரிகளின் வாரிசுகள்

 பசியால் துடிக்கும்.

 மணல் கொள்ளை  வறட்சி.

 கட்டிடங்கள் இருக்கும். 

ஆனால் நிம்மதி இருக்காது.

 மாதா பிதா ஆட்சியாளர்கள் செய்த தவறு   மக்களை பாதிக்கும்.

 ஆண்டவனின் நிலைத்த சட்டம் பிணி ஏழ்மை முதுமை நரகவேதனை படுத்த படுக்கை அனைத்தும் இருக்கும்.

ஞானம் இருந்தும் மனிதன் உடனடி சுகம்தான் பெரிதென்று ஞான சூனியன் ஆவான். 2000 கோடி சொத்து இருந்தாலும்  முதுமை இளமை ஆகாது.

சே. அனந்த கிருஷ்ணன் சென்னை.

ஓய்வுபெற்ற தலைமை ஆசிரியர் ஹிந்து மேல்நிலைப் பள்ளி திருவல்லிக்கேணி.

செய்த பாவ புண்ணியங்களுக்கு பரிசும்  தண்டனையும் பூலோகத்தில் தான்.

 சுவர்க்கம் நரகம் வேறு எங்கும் கிடையாது.

। विरक्ति के बिना मोक्ष न मिलता।



  विषय -- विरक्ति के बिना मोक्ष न मिलता।

   विधा --अपनी हिंदी अपने विचार अपनी शैली भावाभिव्यक्ति।

14-12-2023.

मानव का मन अति चंचल।

ईश्वर की सृष्टि माया महादेवी।

 वह मानव के मन को

काम, क्रोध मद,लोभ, अहंकार

आदि  विषय वासनाओं से

बचने न देती।

 परिणाम स्वरूप मानव 

 संताप सागर में डुबकियाँ लगाता रहता है।

माया के चक्कर में मैं ऊबकर

अज्ञात अंधकार में

आत्महत्या की कोशिश में लगाता है।

 स्वार्थमय दुनिया में

माया का आकर्षण सर्वत्र है।

 ईश्वर की आराधना एक धंधा बन गयी है।

 दुखी मानव पाखंडी ढोंगियों के

 चक्कर मैं धोखा खाते हैं।

भक्ति  पेशा बन गई हैं।

वह विज्ञान नहीं,

मिथ्याडंबर का केंद्र।

हिंदू लोग तीस हजार की मूर्तियाँ

काली माता की, विघ्नैश्वर की

 बनाकर विसर्जन के नाम से अपमानित करते हैं।

 उन पैसों को आध्यात्मिक एकता के लिए,

 आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान के लिए नहीं करते।

  चाबी गुच्छे में ईश्वर, 

उसको मुख में रख

झूठा करते हैं।

 भक्ति सच्ची है तो

 सर्वत्र विराजमान भगवान को 

अपमानित नहीं करते।

 हर एक पौधा,

पशु-पक्षी

 तालाब झील 

नदियाँ ईश्वर स्वरूप।

उनको प्रदूषित करके

मिथ्याडंबर को नित्यानंद मानता है

बेवकूफ़ मानकर।

 माया के चक्कर में

उनकी बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है।

जब दुख रूपी सुनामी की लहरें

विनाश करती है,

तभी वह आत्मा परमात्मा को एक मानकर

ज्ञानी बनता हैं।

 लौकिक विचारों को  तजकर

 अलौकिक विचारों को अपनाता है।

 माया की सृष्टि ईश्वर ने की है।

माया मोह का दुख ईश्वर ही देता है।

माया की मुक्ति ईश्वर केवल ईश्वर के जप तप ध्यान

एकाग्रता से होती है।

कबीर कहते हैं

माला तो कर में फिरे जीभ फिरे मुखमाही।

मनुआ तो दिशी फिरै यह सुमिरन नहीं।


लाली मेरे लाल की जीत देखो तित लाल।

लाली देखन मैं गई,मैं भी हो गई लाल।

आत्म बोध होना चाहिए।

मन चंगा तो कठौती में गंगा।।

काशी में मिठाई खाना छोड़ दिया यह तो वैराग्य नहीं।

काशी में संकल्प करना है

झूठ न बोलूँगा, भ्रष्टाचारी न करूँगा,

रिश्वत न लूँगा,

केवल आत्म विचार करूँगा।

भगवान एक है,बाकी सब माया।

 अद्वैत भावना में 

विषय वासनाओं को भूल जाऊँगा।

ब्रह्ममम् सत्यम् जगत मिथ्या।

ऐसे विरक्त होने पर मोक्ष मिलेगा।

एस . अनंत कृष्णन चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति।

   विधा --अपनी हिंदी अपने विचार अपनी शैली भावाभिव्यक्ति।

14-12-2023.

मानव का मन अति चंचल।

ईश्वर की सृष्टि माया महादेवी।

 वह मानव के मन को

काम, क्रोध मद,लोभ, अहंकार

आदि  विषय वासनाओं से

बचने न देती।

 परिणाम स्वरूप मानव 

 संताप सागर में डुबकियाँ लगाता रहता है।

माया के चक्कर में मैं ऊबकर

अज्ञात अंधकार में

आत्महत्या की कोशिश में लगाता है।

 स्वार्थमय दुनिया में

माया का आकर्षण सर्वत्र है।

 ईश्वर की आराधना एक धंधा बन गयी है।

 दुखी मानव पाखंडी ढोंगियों के

 चक्कर मैं धोखा खाते हैं।

भक्ति  पेशा बन गई हैं।

वह विज्ञान नहीं,

मिथ्याडंबर का केंद्र।

हिंदू लोग तीस हजार की मूर्तियाँ

काली माता की, विघ्नैश्वर की

 बनाकर विसर्जन के नाम से अपमानित करते हैं।

 उन पैसों को आध्यात्मिक एकता के लिए,

 आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान के लिए नहीं करते।

  चाबी गुच्छे में ईश्वर, 

उसको मुख में रख

झूठा करते हैं।

 भक्ति सच्ची है तो

 सर्वत्र विराजमान भगवान को 

अपमानित नहीं करते।

 हर एक पौधा,

पशु-पक्षी

 तालाब झील 

नदियाँ ईश्वर स्वरूप।

उनको प्रदूषित करके

मिथ्याडंबर को नित्यानंद मानता है

बेवकूफ़ मानकर।

 माया के चक्कर में

उनकी बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है।

जब दुख रूपी सुनामी की लहरें

विनाश करती है,

तभी वह आत्मा परमात्मा को एक मानकर

ज्ञानी बनता हैं।

 लौकिक विचारों को  तजकर

 अलौकिक विचारों को अपनाता है।

 माया की सृष्टि ईश्वर ने की है।

माया मोह का दुख ईश्वर ही देता है।

माया की मुक्ति ईश्वर केवल ईश्वर के जप तप ध्यान

एकाग्रता से होती है।

कबीर कहते हैं

माला तो कर में फिरे जीभ फिरे मुखमाही।

मनुआ तो दिशी फिरै यह सुमिरन नहीं।


लाली मेरे लाल की जीत देखो तित लाल।

लाली देखन मैं गई,मैं भी हो गई लाल।

आत्म बोध होना चाहिए।

मन चंगा तो कठौती में गंगा।।

काशी में मिठाई खाना छोड़ दिया यह तो वैराग्य नहीं।

काशी में संकल्प करना है

झूठ न बोलूँगा, भ्रष्टाचारी न करूँगा,

रिश्वत न लूँगा,

केवल आत्म विचार करूँगा।

भगवान एक है,बाकी सब माया।

 अद्वैत भावना में 

विषय वासनाओं को भूल जाऊँगा।

ब्रह्ममम् सत्यम् जगत मिथ्या।

ऐसे विरक्त होने पर मोक्ष मिलेगा।

एस . अनंत कृष्णन चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति।

Saturday, December 9, 2023

स्ववलंब बनो

 मानव तो पशु -पक्षी नहीं,
स्वावलंब जीवन बिताने  के लिए ।
दस महीने माँ के अंधेरे कोख में ।
कोख से बाहर आते ही उसको रोना है,
न तो डाक्टर परेशान,
जब तक न रोता,
हाथ-पैर न हिलाता,
सब के सब परेशान ।।
उसको अपने पैरों पर खडे रहने एक साल।
वह तो माँ का प्यारा,
दादा-दादी का दुलारा।
उसकी सेवा करने तैयार ।
कैसे कहूँ,उनसे खुद  खाना खाओ।
पाश्चात्य देश दो साल के बच्चे को
भारतीय माँ का खाना खिलाना आश्चर्य की बात।
वहीं बच्चा स्वलंबित।
पाश्चात्य देशों में सोलह साल के बाद
युवक-युवतियाँ अपने पैरों पर खडे रहते ।
शादी भी खुद की मर्जी ।
तलाकभी खुद की मर्जी ।
इतना स्वावलंबन भारत में नहीं ।.
चालीस साल तक माता-पिता की अनुमति के बिना
पत्नी से बोलने का भी स्वतंत्रता नहीं ।
१९९० ई. के बाद सम्मिलित परिवार नहीं ।
भारत में  अंग्रेज़ी माध्यम का प्रभाव
नारी मन गई स्वावलंबित।
नर बन गया परावलंबित यही शहरी वातावरण।
मानव को स्वालंबित रहो कैसे कहूँ?
सांसद विधायक को चुनाव के दो महीने मत दाताओं के सामने
परावलंबित बनकर हाथ जोडना पडता है।
मानव मूल्यों क मंच के बिना 
तमिलनाडू में  कविता मंच नहीं  हिंदी नहीं ।
नाम पाने अवलंबित काम पाने अवलंबित
सीखने अवलंबित, सिखाने अवलंबित
भोजन खाने किसान,आवागमन के लिए चालक।
हर बात मे स्वालंबित रहना कैसे ?