Search This Blog

Monday, February 11, 2019

मिस्रा( मु )

मिसरा नहीं जानता,

मित्रों! मिसरा सोचते तो
चिंतन  में रुकावटें/बाधाएँ/अडंगें.
नमस्कार  मित्रों! माफ करना,
जो भाषा  पीढी रही  नदारद आज.
जो पीढी चोडी, जन साधारण  की भाषा  सरल बनी तो विकास.
घंटों बैठकर आटा पीसना
 एक ही काम.
आजकल यंत्रीकरण  करण,
स्विच दबाव, एक ही समय.
कपडे, बर्तन, आटा, बस,
झाडू रोबोट भी आ गये.
पर बीमारियां, आलसी, न जाने
उठना बैठना भी असंभव.
वैसा ही मानसिक दुःचिंता,, दुर्बलता
प्यार की कविताएँ,मोह की कविताएँ.
अमरेंद्रसिंह जी! अमर कलिकाएँ,
हसरतों,साधुओं की देन.
याद रखना, गले लगाना.
आछे दिन पाछे गए
अब हरि से होत किया.
राम नाम मणि दीप धरु
काम क्रोध  मद लोभ
संत वचनों को गले लगाना.
स्वपति  स्वचिंतक:यस.अनंतकृष्णन

No comments:

Post a Comment