Thursday, August 29, 2024

नर नारी

 नर नारी 

 अलग अलग गुण।

 ईश्वर की सृष्टि।

 नारी के अपने गुण,

 शारीरिक भेद।

 जितनी भी शक्ति शालिनी हो,

 संतान उत्पन्न करने की शक्ति 

 नारी को दुर्बल ही बना देगी।

  नारी की कोमलता,

   संतान के प्रति प्रेम 

   परवरिश में उनका ध्यान,

   शिक्षित नारी छत्रपति शिवाजी       महाराज की देन है।

  भगवान की सृष्टियों में 

  मोर , सिंह,हिरण , बैल, मेंढक सब  मादा को  आकर्षित करने 

  नाचते हैं,   पर नर मात्र

 नारी के पीछे कुत्तों के समान।

 एक राजकुमारी के लिए युद्ध।

 वीर जवानों की पत्नियाँ विधवाएँ।

 बच्चे अनाथ।

 नारी के लिए नर क्या नहीं है करता।

 रावण ने अपनी मर्यादा।

   नर -नारी में विषकन्या है।

  विष कुमार नहीं।

 पंत का कहना है

 यदि स्वर्ग है तो नारी के उर के भीतर।

 यदि नरक है तो नारी के ही उर के भीतर।

 इंद्र भले ही देवराज।

 पर नारी विषय में अति अपमानित।

  सहज शक्ति नारी में।

 जगत जननी नारी।

 मातृभूमि है,

 मातृभाषा है।

 पर राष्ट्रपति,

 न राष्ट्रपत्नी।

 लखपति भले ही लक्ष्मी कृपा।

 पर लखपति, करोड़पति।

 समानता सबल होने पर भी

 भगवान की सृष्टि गर्भाधारण नारी को सबला नहीं, अबला ही बना देती।

 वीरांगना की आदर है,

 वारांगना को?

 यही नारी की कमज़ोरी।

Tuesday, August 27, 2024

संतान और भाग्य

 नमस्ते वणक्कम्।

परवरिश  संतान और भाग्य 

 विधा --अपनी हिंदी अपने विचार अपनी स्वतंत्र शैली।

  परवरिश मानव के लिए आवश्यक।

   कम से कम  सोलह साल की उम्र तक।

  अनाथ बच्चे, माता द्वारा फेंके अवैध बच्चे।

 अनाथालय में पले बच्चे।

 कर्ण महाभारत में तो सीता रामायण में।

 खंडाला पड़ी मिली नंदन में।

 सबका परवरिश तो भाग्य वश।

 जनक महाराज की बेटी बनी सीता।

 सारथी का बेटा बना कर्ण।

ईसाई, साईं बाबा का जन्म रहस्य।

 राम , लक्ष्मण, भरत शत्रुघ्न के पिता रहस्य।

 पांडु के पुत्र नाम मात्र के

 पिता भिन्न भिन्न।

  वर्षा की बूँदों में सीपी बनना भाग्य।

 दत्त पुत्रों के भाग्य अलग।

 चुराये बच्चे, रत्नाकर जैसे डाकुओं से

  आकर्षित बच्चे,

 अशुभ नक्षत्र से अलग रहे तुलसीदास।

 परवरिश भी भाग्य के बल ही।

 ईश्वरीय अनुग्रह की देन।

 एस. अनंत कृष्णन चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक

मन चंचल

 नमस्ते वणक्कम्।

 मन चंचल।

 धन के कारण,

   पदोन्नति के कारण,

लोभ के कारण,

 नारी सुख के कारण,

 नाते-रिश्तेदार अड़ोस पड़ोस

 भ्रष्टाचारी घूसखोरियों  के

 बाह्याडंबर बाह्य सुख देखकर।

  आपको अपने बारे में 

   सोचना चाहिए। 

 अपनी योग्यता के बारे में 

 सोचना चाहिए।

 सुरीली आवाज़ के सुंदर गायक

 कोयल सा, प्रयत्न करो, पर

 ईर्ष्या से लाभ होता नहीं।

 चित्रकार बड़े विद्वान जन्म से अमीर।

 तुमको अपने से दुर्बल लोगों  से तुलना करो,

 मन को संतुष्ट कर लो।

नेला सब के सब बन नहीं सकते।

 तुम्हारी बात तुम्हारी पत्नी ही न मानेगी ।

 तुम्हारा बेटा नहीं मानेगा।

 आजकल के बच्चे चित्रपट का संवाद 

यह मैंने सुना,

 समाज बिगाड़ने शैतान की बात।

 ढ़ाई लाख की गाड़ी, संतान की इच्छा।

 पूरी न करेगा तो बच्चे का जन्म क्यों?

  मन चंचल।

 यह सोचो,

 गधे का स्वर कोयल नहीं पा सकता।

 भगवान की देन। भाग्य का फल।

 ईश्वर को मानो, जप करो।

 अपने दायरे में नाम मिलें।

प्रयत्न , प्रार्थना  जीवन।

सुख-दुख ईश्वर पर निर्भर।

 देव जेल में, असुर शासक।

 यही भारत के ईश्वरवाद।

 ईसाई, मुहम्मद के दुख।

 भले ही आज पूजनीय।

 जीवन काल।

 सब को मृत्यु निश्चित।

 एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु 

 

 मृत्यु निश्चित।

Sunday, August 25, 2024

भारतीय जन तंत्र

 धन प्रधान शासक,

 परिणाम कर्जा लेकर शिक्षा।

अंग्रेज़ी माध्यम, जीविकोपार्जन।

 उतना ही खर्च , स्वार्थ साधन है,

 ऋण प्रधान शिक्षा , स्वार्थ प्रधान।

 एक डाक्टर दोस्त का कहना है,

 दान के रूप में करोड़ों रुपए।

 पढ़ाई का खर्च,

 मेरे बेटे को अभी ऋण का बोझ।

 कार खरीदने सूद कम,

 पर शिक्षा ऋण के सूद अधिक।

 हर क्षेत्र में रिश्वत ही रिश्वत।

 कैसे करेंगे शिक्षित निस्वार्थ सेवा।

 अल्पसंख्यकों की सहूलियतें 

 बहुसंख्यकों को नहीं के बराबर।

 उम्र,अंक, शिक्षा शुल्क 

सब में कटौती।

 प्रतिभाशाली भले न हो,

 औसत बुद्धिमान बराबर।

 सेना में तो चाहिए सम बल।

 पर शिक्षा में सम प्रतिभा नहीं।

 खासकर चिकित्सा और शिक्षा,नीति के क्षेत्र में।

 जय भारत। चुनाव के लिए 

 हर साल सूचित अनुसूचित जातियों की संख्या बढ़ती,

 साथ ही चुनाव के खर्च 

 हर उम्मेदवार के लिए 

 सैकड़ों करोड़।।

  भले ही भ्रष्टाचार के पैसे।

 अल्पसंख्यक शासन।

 बुद्धि जीवी लापरवाही से 

30%वोट नहीं देते।

 40%वोट लेकर 

 अल्पसंख्यकों का शासन।

 जय लोकतंत्र।

एस. अनंत कृष्णन।



 


 


Saturday, August 24, 2024

माया महाठगिनी

 देवियों को नमस्कार।

देवियों के विभिन्न रूप

 देवियों की पूजा,

 फिर भी महिलाओं पर अत्याचार बलात्कार।

 हिंदुत्व में करेंगे तो कमी है

 धर्माचार्यों की 

जैसे आसाराम, संन्यासी रूपी  रावण,

 प्रेमानंद, नित्यानंद के रूप में 

 अनाचार बलात्कार 

दंड देकर भी उनकी रक्षा देखरेख सुरक्षित।

 भारतीय धर्म पंथ में अहल्या को शाप।

  इंद्र तो देवराज हजारों योनियों के शाप।

   दमयंती के स्वयंवर मैं नल के रूप में देव।

 देवियों से प्रार्थना  ! 

 देखते हो नर-नारियों के 

  असौमित व्यवहार।

 पटकथा के दृश्यों में गीतों में अभिनयनों में 

 अश्लीलता  अर्द्धनग्नता नग्नता

 शैतान की कुदृष्टि तेरी सद्दृष्टी के सामने 

 किस खेत की मूली।

 देती हो दुख समझते नहीं ज्ञानचक्षु प्राप्त मानव।

 तेरे सद्विचार काम नहीं करते।

 यही है माया शैतान की अपार शक्ति।

 मानव तो दुखी ही दुखी।

 कारण वह दुखी नहीं तो

‌और भी मनमाना करता।

 तेरी सजा बुढापा रोग मृत्यु।

  धन्य है ईश्वरीय कानून।

 फिर भी मानव अज्ञानांधकार में।

 वैद्यों के पारंगत रावण भी अपमानित।

धन्य!धन्य। मायादेवी।

Friday, August 23, 2024

बाधा हरो भगवान

   नमस्कार वणक्कम।

 दान में बढ़िया ज्ञान दान।

 भारत में  गो दान, भू दान, स्वर्ण दान  सबका  महत्व दे रहे हैं।

  विद्या दान में  कमी नहीं, पर वह परंपरागत   हो गया।

 आध्यात्मिक  शक्ति 

 शासक शक्ति 

 राजनैतिक शक्ति 

  हर कला में 

 वास्तुकला परंपरा 

 बढई परंपरा 

 स्वर्णवार

 चित्रकार।

शिल्पकार।

 अभिनय कलाकार 

 कृषी विज्ञान।

   परंपरागत होने से 

 कलाएँ मातृसत्तात्मक पितृ सत्तात्मक ईश्वर प्रदत्त मानी जाती थी।

 हर कलाकार अपने निपुणता दिखा रहे थे।

 भारत  के मंदिरों  की मूर्तियों से ही पता चलता है कि कितने सुंदर आभूषण, संगीत वाद्य यंत्र, युद्ध कौशल,  पाक कला, भोजन प्रिय।

 सभी कलाओं में सर्वसंपन्न  सुखी देश।

 विदेशी पहले पहल व्यापार के लिए आए।

 तमिलनाडु के नाट्टुक्कोट्टै चेट्टियार व्यापार के लिए प्रसिद्ध हैं। जहाज द्वारा, नाव द्वारा समुद्री व्यापार चलता था। आज भी  कारैक्कुडी में उनके द्वारा बनाई गई इमारतें अति सुन्दर।

  भारत के मंदिरों को लूटने मुगल आये। मनमाना लूटे। बेरहमी हत्याएँ, कला रहना रहित मंदिरों को, मंदिर की मूर्तियों को तोड़ना।

 लूटना। पर  उन मंदिरों को जैसे के तैसे पुनर्निर्माण अमानुषीय शाक्ति का चमत्कार हैं।

  भारत के उत्थान में वीरता थी।

 पर पतन देश द्रोह।

 संसार में भारत ही ऐसा देश है, 

 जहां देश के ही देश द्रोही ज्यादा है। द्रोहियों ने विदेशियों को साथ दिया।

   परंपरागत तकनीकी शिक्षा को बदलकर  पाश्चात्य शिक्षा प्रणाली, 

उच्च शिक्षा में जातिगत प्रधानता,

 प्रतिभाशाली  से औसत बुद्धि वालों के लिए पीढ़ी-दर-पीढ़ी की सुविधाएं परिणाम अनेक प्रतिभाशाली पाश्चात्य देशों में बसना चाहते हैं।

 विद्या , संस्कृत भाषा  के ज्ञानियों की कमी, परंपरागत  शिक्षा का समर्थन कालांतर में जातीयता में बदल गई।

 अब शिक्षा महँगी बढ़ गयी।

 भ्रष्टाचार के मूल में प्रति भाशाली वकील, चिकित्सक, लेखापाल, रिश्वतखोर अधिकारीवर्ग, शासक सांसद विधायक मंत्री , शिक्षाविद सब के सब  जड़ पकड़ रहे हैं।

 मतदाताओं में 30%देश के सत्ता पर ध्यान न देकर वोट नहीं देते।

१०%तटस्थ। बाकी 60%में

 40-45% मत से जीतकर वह भी अकेला दल नहीं भारतीय सत्ता।

    फिर भी गर्व है कि भारत की  सर्वांगीण विकास देख रहे हैं।

   मजहब और स्वार्थता मिटने पर 

 भारत ही दुनिया में सर्वोपरी है।

 युवकों को जागना, जगाना है।

   देश भक्तों को जय!

 देश द्रोही, भ्रष्टाचारी, रिश्वतखोर 

सुखी नहीं, उनके मानसिक ईमानदारी के लिए सर्वेश्वर से प्रार्थना है।

 एस. अनंत कृष्णन चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।

जय भारत। जय जवान। जय किसान।




 

 

 

 

 


Tuesday, August 20, 2024

स्वाश्रित कौन

  कवि मंच को मेरा नमस्ते, वणक्कम्।

 विषय ---अपने पैरों पर खड़े होना।

 विधा --अपनी हिंदी अपनी स्वतंत्र शैली 

 20--8-24.0अमेरिका समय 2-33दोपहर।

  देश वही है,

 जो अपनी माँगों को

 स्वयं पूरी करता ।

 भाषा वही है जो अपने आप

 जीविकोपार्जन का समर्थक हो।

 माता पिता वही जो अपने परिवार 

 अपने मेहनत से खुद संभाले।

  अपने पैरों पर खड़े रहने

 आत्म निर्भर रहने

 मानव  योग्य है क्या?

 योग्यता पाने तकनीकी ज्ञान चाहिए।

 धनोपार्जन की योग्यता चाहिए,

 तब तक माता-पिता, गुरु, मालिक,

 पूंजी चाहिए।

 स्वाश्रित कौन है जगत में।

 सब के सब ईश्वराश्रित।

 भगवान भी है पुजारी, भक्त आश्रित।

 सद्यःफल के लिए 

 ईश्वर, मजहब , देश बदलते मानव।

 किसान आश्रित राव रंक।

 अपने पैरों पर खड़े रहने की बात।

जहां में कैसे संभव।

 आत्मनिर्भरता हासिल करने तक

 अन्योन्याश्रित रहना ही पड़ता।

कवि हैं तो गायक संगीतक्ष।

 विधायक सांसद के लिए मतदाता।

 गुरु हो तो शिष्य।

 इन सबको संभालने ,

 अपने पैरों पर खड़े रहने ,

 ईश्वरीय अनुकंपा चाहिए।


एस. अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक

Tuesday, August 6, 2024

एकता दूर तो तीसरे को फायदा

 


एकता दूर तो तीसरे को फायदा।

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प्राचीन मंदिरों को जीर्णोद्धार आवश्यक है।

 कदम कदम पर मंदिर व्यापार केन्द्र।

 एक मंदिर  काला धागा।

एक मंदिर लाल तो एक हरा तों  एक रंगीला।

 एक तिलक माथे पर ।

 कनपटी में चंदन।

  तिलक में भेद बन जाता मानव मानव में भेद।

 सनातन धर्म की एकता टूट जाती।

 यही  मंदिर नये नये प्रसाद नये नये।

 लाल कु और कुंकुम, हरा कुंकुम।

 सीधी रेखाएँ, बराबर रेखाएँ।

 देखते ही शैव , वैष्णव के मानव भेद।

कैसी होगी हिंदू धर्म एकता।

एस.अनंतकृष्णन 

Friday, August 2, 2024

धर्म

 3301 .जैसे हम सोते समय अपने शरीर,संसार, बंधन सबको एक ही मिनट में भूल जाते हैं, वैसे ही ब्रह्मात्म बोध के उदय होते ही शरीर और संसार भूल जाते हैं। अर्थात् नींद में वासना का एहसास करके जागृतावस्था में प्रपंच में आते हैं। वैसे ही

जो आत्म बोध अप्राप्त है,वह वासनाओं के साथ मरने पर उसका जीव ब्रह्म में लय न होकर अनंतर जन्म लेकर संकल्प लोक जाता है।  लेकिन जीव संकल्प माया प्रपंच नगर से परमात्म स्थिति स्वर्ग जाने के लिए एकमात्र चाबी आत्म  विचार ही है।
अन्य स्मरण रहित आत्मा को मात्र सोचनेवाले को आतमज्ञान हाथ के आँवला जैसे बहुत ही आसानी से मिलेगा।


3302.  इस शरीर के परम कारण को अर्थात यथार्थ मैं कौन हूँ  अर्थात शरीर या प्राण को समझानेवाले को ही यथार्थ गुरु के रुप में स्वीकार करना चाहिए। वे ही यथार्थ गुरु होते हैं। वैसे गुरु के शिष्यों के राग-द्वेष, भेद बुद्धि नहीं होंगी। कारण उन सबको जिन्होंने पार किया,उन्हीं को ब्रह्म ज्ञानी के रूप में स्वीकार करते हैं। शिष्य की परिपक्वता न जानकर आत्मज्ञान देनेवाले गुरु बिलकुल समझदार न होंगे। अतः यथार्थ गुऱु और शिष्य अपने अपने ज्ञानाभ्यास के द्वारा ही विश्व के कल्याण कार्य करेंगे। अर्थात आतमज्ञान सीख लेने से मात्र ही गुरु नहीं बन सकते। खुद परमात्मा के परम स्थिति पाकर उनके स्वभाविक परमानंद को निरूपाधिक रूप में स्वयं भोगकर आनंद से गुरुओं के शिष्य को ही आत्मज्ञान बुद्धि में जमेगा,नहीं तो
अन्य गुरु से  सीखी आत्मज्ञान से परमानंद , अनिर्वचनीय शांति न मिलेगी।

3303.यथा राजा,तथा प्रजा। इसका सूक्ष्म अर्थ यह है कि इस ब्रह्मांड के  शासक परमात्मा ही है। यह ब्रह्मांड, ब्रह्मांड की प्रजाएँ अभिन्न ही लगेंगे।अर्थात परमात्मा के बिना कुछ भी नहीं है। इस तत्व को जानकर जिसका शासन चलता है वही रामराज्य है। वह शांति का राज्य है। उस राज्य की प्रजाएँ सानंद रहेंगे। विष्णु पुराण में महाविष्णु  दशावतार लेने में विष्णु अपनी इच्छा से रामावतार लेने का संकल्प किया। वह प्रारब्ध कर्म के अंत तक अखंड बोध ब्रह्म महाविष्णु शरीर में और संसार में रामावतार के अंत तक निस्संग ही राम शरीर में ही जीते थे।इसलिए लक्ष्मनोपदेश में लक्ष्मण से समझौता  करने के लिए राम वशिष्ट से सीखे आत्मतत्व को लक्ष्मण को उपदेश देते हैं। उस उपदेश से यथार्थ राम आत्मराम बनने का एहसास कर सकते हैं। ऱाम को राम देखनेवाला संसार ,नाते- रिश्ते बंधन सब त्रिकालों में रहित नामरूपों की माया है। वह माया आत्मरूपी अपनी शक्ति है,वह शक्ति सीता है। वे खुद परमात्मा बने अखंड बोध सत्य है।इन का एहसास करके ही ऱाम जिए थे और शासन करते थे।       

3304. मनुष्य रूप का ब्रह्म अपने परमानंद  स्वरूप अखंडबोध के परमात्म स्थिति को भूलकर तैलधारा जैसे सख-दुख देेनेवाली प्रकृति स्वभाव इच्छाओं के चित्त के पीछे मोहित होकर दौडते रहते हैं। वह चित्त सभी प्रकार के दोषों का वासस्थल इंद्रधनुष के समान निकलकर छिपनेवाली वर्ण प्रपंच की प्रकृति माया मोहिनी होती है। उस माया मोहिनी की दृष्टि मेंं पडे जीव को साँप निगलने के समान धीरे धीरे काल निगलेगा। इसलिए स्वस्वरूप  परमात्म स्थिति  के  स्मरण होने के लिए  आत्मज्ञान सीखकर प्रपंच आत्म शक्ति के दृश्य एक इंद्रजाल है का एहसास करके संसार के भ्रम में न पडकर परमानंद स्वरूप स्थिति को पाना चाहिए।

3305. अद्वैत ज्ञान में सभी भेदों को अभेद एकात्मक बुद्धि लेकर ही दर्शन करेगा। इसलिए विश्व शांति के लिए एकात्म दर्शन देनेवाले आत्मज्ञान को सभी शिक्षा ज्ञान में अपरिहार्य बना लेना चाहिए। केवल वही दुख देनेवाले जीवन के लिए एक परिकार होगा। आत्म ज्ञान  भौतिक पूरक मन के लिए बाधक बनने से स्वर्ग बनाने ,नित्य परमानंद स्थिति के लिए प्रार्थी होगा।क्योंकि हर एक जीव भौतिक शरीर ,आत्मा रूपी प्राण मिश्रित सृष्टि है।वह शरीर आत्मबोध प्राप्त कर क्रिया शील बनने पर ही शांति मिलती है। आत्म बोध रहित शारीरिक अभिमान,अहंकार से जीने से ही जीवन नरक-सा लगता है। जगत को बोधाभिन्न के रूप में दर्शन करने की क्षमता बढानेवाला आत्मज्ञान मात्र है। जो जगत को बोधाभिन्न के रूप में देखता है, वही परमानंद प्राप्त व्यक्ति है।

3306. इस संसार के बहुत बडा चिकित्सक शरीर के सृजनहार ही है। यह शरीर अपने में से ईश्वर के संकल्प से ही बना है इस शारीरिक अंगों की रचना, उनमें से होनेवाले सुख-दुख के रहस्यों को  जाननेवाला वही है। उसके पास जाकर उसके
कहेनुसार  दवा लेने पर रोग कैसा भी हो चंगा हो जाता है। अर्थात वह चिकित्सक सदा अपने में रहनेवाली अहमात्मा ही है।
इस शरीर का परम  कारण “ मैं” का अखंड बोध ही है। स्वयं बननेवाले  बोध को विस्मरण न करके रहना ही सभी रोगों के लिए  श्रेष्ठ दवा है। कारण जो कोई आत्मा बने बोध से न हटकर क्रिया शील बनता है, उसके  असम सभी अंग सहज ही सम स्थिति  बन जाएँगे। अर्थात सम स्थिति बननेवाला मन बोध ही है। यह शरीर और संसार जीव पर प्रभाव डालनेवाला एक भ्रम माया रोग ही है। वह बोध की संकल्प शक्ति बने मानसिक कल्पनाओं का एक दृश्य ही है। किसी भी संकल्प न करना ही उनसे बाहर आने की श्रेष्ठ दवा है।

3307, यह शरीर अरूप से ही रूप पाया है। अर्थात ब्रह्म ही शरीर और संसार के रूप में है। ब्रह्म न तो शरीर भी नहीं है और संसार भी। अर्थात् पहले निराकार अखंडबोध ही एक रूप में स्थित खडा रहता है। अब भी वह एक अखंड बोध मात्र ही है।
आगे भी वह अखंड बोध मात्र ही रहेगा। कारण वह नित्य है,सत्य है, परम कारण है। वह एक रूप अखंड बोध ब्रह्म को अपनी शक्ति माया विविध रूप में दिखाना ही नानात्व प्रपंच है।  इस विकल्प के प्रपंच को एक रूप में देखने की स्थिति ही निर्विकल्प होता है। अर्थात निर्विकल्प समाधि में एक ही बोध मात्र रहेगा। निर्विकल्प ही ब्रह्म है।वही अखंडबोध है। वही 

“मैं “ है।

3308. आत्मा स्वयं है, वह एक,सर्वव्यापी,निश्वल,निर्विकार,अनादि,आनंद, नित्य,पवित्र, अव्यक्त,अचिंतन स्वभाव में स्थिर होकर अपनी शक्ति माया से बनाये पंचभूत पिंजडे में अखंडरूपी स्वयं खंड रूपी जीव बोध में बदलकर उसमें अभिमानी बनकर माया से बनायी चित्त संकल्प लोक में जीते समय वह मरुभूमी की मृगमरीचिका के समान नहीं के बराबर हो गया। अर्थात निश्चल,निर्विकार ब्रह्म में माया की लहरें बने प्रपंच दृश्य हैं सा लगना जीव के भ्रम बदलने तक ही है। भ्रम के कारण माया है। माया के कारण अपने निजी स्वरूप अखंड बोध को विस्मरण करके खंड बोध में बदलते समय वास्तव में अखंडबोध
अपरिवर्तित ही है। अर्थात  जीवात्मा परमात्मा के रूप में,परमात्मा जीवात्मा के रूप में बदलती नहीं।उदाहरण के लिए दूर से कोई रेगिस्तान को देखते समय पानियों की लहरेंं दीख पडेंगी। निकट जाकर देखते समय एक बूंद पानी भी नहीं रहेगा। तीन कालों में  रहित पानी रेगिस्तानन में कभी न रहेग। वैसे ही ब्रह्म मात्र ही सदा रहता है।प्रपंच त्रिकालों में बनते नहीं है।
कारण निश्चलन  में  कभी चलन न होगा। इस जन्म  मेें  इस ज्ञान को बुद्धि में  दृढ बनाना है । और कुछ खोजने की ज़ूरत नहीं है। कारण  एक रस, एक, परम कारण के अखंड बोध ही शाश्वत है। बाकी सब बनाकर दीखता है। आग का स्वभान गर्मी है। वैसे ही ब्रह्म का स्वभाव ब्रह्म में है। दीख पडनेवाले सब परपंच प्रकृति का प्रभव प्रलय है।
3309. शरीर नाश होने को कोई न चाहेगा।इसलिए कोई भी अहंकार छोडने की कोशिश न करेगा। इसलिए अहंकार छोडने में देर लगती है। दुखी भी रहता है। शारीरिक अभिमान मिटे बिना आत्मबोध नहीं होगा। उसके लिए आत्मस्मरण करना चाहिए। आत्मस्मरण करते समय होनेवाले ज्ञानाग्नि में शारीरिक अभिमान जलकर अपने आप मिट जाएगा। यही जीव मुक्ति का मार्ग है। जीव भाव मिटे बिना दुख का विमोचन नहीं है।जीवभाव चाह के कारण स्थिर खडा है।. इच्छा रहित आत्मविचार ही मोक्ष है।

3310.सांसारिक जीवन के लिए,राज्य को शासन करने के लिए अहंकार अर्थात शारीरिक बोध अपरिहार्य है। पिछले काल की यादें ,भविष्य की प्रतीक्षाएँ ही अहंकार को स्थिर खडा रहता है। अहंकार का स्वभाव ,आत्म स्वभाव के विरुद्ध होने से जीवन  में  आत्मज्ञान को मुख्यत्व  नहीं दिया जाता।आत्मा अरूप है,माया को मिटानेवाली है।अहंकार रूप है,माया को विकसित करनेवाली है। आत्मज्ञान के विवेक के बदले अहंकार के अहंकार के सहोदर काम,क्रोध,भेद बुद्धि, राग-द्वेष,ही रहते हैं।  अर्थात स्वयं आत्मा है के बोध अर्थात एहसास न होने से जीवात्मा अहम बोध के कारण भेद बुद्धि और राग-द्वेष से संघर्ष करते हैं। लेकिन एकात्म बुद्धि से जीव जीव जब जीने लगते हैं, तभी शांति का सपना देख सकते हैं। आतमबोध के बिना अहंबोध से मात्र जीने के जीव मिट जाएगा। साथ ही नित्य दुख के पात्र बननेवाले अनंतरजन्म भी लेने पडेंगे। इसलिए नित्य दुख देनेवाले लौकिक जीवन के साथ नित्य आनंद देनेवाले बोध के साथ सभी कर्म करना चाहिए।  एक मनुष्य के लिए साँस लेने की जितनी आवश्यक्ता है,उतनी ही आवश्यक्ता बिजली की है। घर में, देश में, राज्य में  बिजली के बिना जी नहीं सकते। लेकिन बिजली के बारे में कोई नहीं सोचते।  बिजली के उपकरण और उसके गुणों को मात्र सोचते हैं। वैसे ही शरीर और  संसार के लिए परम कारण अखंड बोध मात्र है। लेकिन कोई भी आत्म बोध के साथ काम नहीं करते। उस अखंढ बोध को विस्मरण करके ही अहं बोध के साथ जगत में व्यवहार करते हैं। उसी कारण से ही मानव को दुख और संघर्ष होते हैं। जहाँ भी हो सूर्य या चंद्र आत्म बोध के साथ जाने पर सफलता ही मिलेगी। बोध नहीं तो सूर्य भी नहीं है, चंद्र भी नहीं है। संसार भी नहीं है। कारण बोध ही परम कारण है,सर्वस्व होता है।

ज्योतिष

 नमस्ते वणक्कम्।

 कलम बोलती है दल में  बहुत दिनों के बाद लिख रहा हूँ।

 यह भी भाग्योदय का विषय है।

   ज्योतिष शास्त्र आदी काल से आज तक  प्रचलित है।

 सिद्धार्थ के जन्म लेते ही उनकी जन्मकुंडली के अनुसार संन्यासी बनने की भविष्यवाणी ज्योतिष ने बताई।

कृष्ण के जन्म जानकर कंस ने आठ बहन के पुत्रों को मारा था।   ज्योतिष शास्त्र के पटु अब भी है। विश्वास करने के प्रमाण है। पर नकली वैद्यों की तरह नकली संन्यासी की तरह नकली ज्योतिषों के कारण  अविश्वास बढ़ रहा है।

 भारत में ज्योतिष के प्रकार पर विचार करेंगे।

 १.जन्मकुंडली २. हस्तरेखा ३.अगस्य नाड़ी ज्योतिष 

४.अंकज्योतिष। ५तोता ज्योतिष ६. चिपकली ध्वनि ज्योति ७. प्रश्न ज्योतिष 8.अंकस्पर्शज्योतिष ९. राम चक्र १०.सीता चक्र११.  चेहरा अध्ययन १२. काले धब्बे  ज्योतिष आदि। 

 भारत में सद्यःफल  के लिए साधु-संतों की दिव्य भविष्य वाणी जानने  जाते हैं। नाखूनों को देखकर भविष्य बताने वाले हैं।

  हर जगह की भीड़ के कारण अविश्वास को भी विश्वास होता है।

   मेरे चेहरे देखकर एक संन्यासी ने बताया तुम हिंदी के अध्यापक बनोगे। 1965ई. में हिंदी विरोध, 1967से हिंदी विरोध शासन  में हिंदी ही नहीं,पर मुझे तमिलनाडु मान्यता प्राप्त स्कूल में स्नातकोत्तर हिंदी अध्यापक की नौकरी मिली। प्रधान अध्यापक भी बना।  तमिलनाडु में हिंदी अध्यापक।

  अतः मुझे ज्योतिष शास्त्र पर विश्वास है।

एस.अनंणकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक 




 



 

Thursday, August 1, 2024

तन्हाई

 नमस्ते वणक्कम्।

 तन्हाई।

 

तन और मन उतावला तन्हाई में।

लौकिक विचार वालों में।

अलौकिक आध्यात्मिक तपस्वियों  को तो

तन्हाई तन सुध-बुध भूल,

बंद  मन का झूला ।,

 चंचलता दूर , ध्यान में एकाग्रता।

 बन गये आदी कवि वाल्मीकि।

 बन गये शशि तुलसीदास।

 बुद्धि बन गये आसिया ज्योति।

 अंधेरी गुफा में पैगंबर बने।

 अकेले कैद कमरे में गीता रहस्य 

 बालगंगाधर तिलक की देन।

 तन्हाई  तन भूल मन भूल

 आत्मा परमात्मा बन।

 अहं ब्रह्मासमी।

 न भेदाभिन्न भाव अद्वैत सिद्धांत।

 एस.अनंतकृष्णन, तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।

कबीर वाणी

 God is great.

 I believe only God from childhood.

 Nothing to worry about.

 Other thoughts are wrong way. It slips.

 Divine path is strong way. No sleepery.

  Divinity always appear like a mad. Fool.

 No worldly affection.

 But it only gives light to us. 

 Although divine man is mad but  God makes him up.

कबीर दास 

S Anandakrishnan 



  A man who's care by almighty He is strong.

 Although the devotee is alone whole world becomes his enemy 

 No one do little harm to him.


 जाको राखे साइयां मारी न सके कोई।

 बाल न बांका करि सकै जो जग वैरी होय।।

 கடவுளால் ரக்ஷிக்கப்படும் ஒருவன் தனியாக இருந்து உலகமே எதிர்த்தாலும் அவனை உலகமே சேர்ந்தாலும் சிறு தீங்கும் இழைக்க முடியாது.

  பூர்வ ஜன்ம கர்ம வினைகள் கூட இன்னல் அளித்தாலும் இன்பம் தரும்.

 கபீர்.

दिव्य शक्ति भारत

 अगजग में भारत-सा  

संपन्न देश।

 ज्ञान का केंद्र, 

वीर वीरांगनाओं का देश 

 वास्तुकला में अतुलनीय।

 धर्म-कर्म में आकार निराकार भक्ति।

 त्यागमय साधु ऋषि मुनि।

 बर्फीले प्रदेश में नंगे बदन।

  स्वर्ण  रत्न हीरे  पन्नों के मंदिर।

 गोरी ,गजनी, मालिकापुर के लूटने के बाद भी उस

 सर्व संपन्न मंदिर,  आज का पुनर्निर्माण।

 राम मंदिर की प्रतिष्ठा।

   फिर भी  हिंदु धर्म की एकता 

 उतनी शक्तिशाली नहीं,

 पैसे स्वार्थ परिणाम 

 जैसा भी हो ईश्वर की सृष्टि में ,

प्रतिभाशाली , मंद बुद्धि, बल दुर्बल चतुर चालाक 

 ये भेद भाव आरक्षण देने पर भी 

 ईश्वरीय शक्ति का अपना विशिष्ट महत्व है ही।

 यही भारत के विभिन्न आक्रमण कर्ताओं को

मज़हबी    घृणित वातावरण में 

 देश भक्ति के शिखर पर है भारत।

 जय जय भारत की दिव्य शक्ति।

एस. अनंत कृष्णन।

तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक