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Thursday, June 7, 2018

भगवान से मिलने का वरदान



  आज  मुख पुस्तिका में   तमिल में  पढी  कहानी  का सार.


    भगवान   के    दर्शन

 
एक दिन किसी देश  के  राजा के सुशासन  से खुश होकर

भगवान   ने  अपने दर्शन दिए. राजा खुश हो गए.   राजा  हमेशा  जन हित के सपने देखा  करते  थे .

 उन्होंने  भगवान से  एक  वर  माँगा.
भगवान खुशी  से  देने तैयार हो गए .

 राजा ने वर  माँगा  कि  मेरे देश  की  सारी  जनता  को आप  अपने  दर्शन    दीजिये.   भगवान सबको दर्शन देने

सन्नद्ध हो गए.

भगवान  ने  कहा --कल तुम अपनी  सारी प्रजा  सहित पहाड़  के शिखर  पर  आ जाओ. मैं  एक साथ सब के दर्शन देने  तैयार हूँ.

  राजा अत्यंत प्रसन्नता  के साथ राजमहल में पहुंचे.
 देश  भर में ढिंढोरा  पिटवाया  कि कल सब के सब
ईश्वर के दर्शन  और साक्षकार  के  लिए  पहाड़  पर आ जाइए.  पर्वत  पर   ईश्वर  के  दर्शन  मिलेंगे.

 दुसरे दिन  सब के सब  भगवान  से मिलने पहाड़ पर चढ़ने लगे.  थोड़ी  दूर चढ़ने  पर ताम्बे  के धातु मिले. कुछ लोग  ऊपर चढ़ना छोड़ ताम्बे की धातु जमा करने में   लग  गए.
बाकी लोग ऊपर चढ़ने  लगे. थोड़ी दूर के ऊपर  चढ़ते  ही
चांदी के ढेर दीख पड़े. चांदी के  देखते ही और बाकी लोग
चांदी एकत्रित करने में जुट गए.

राजा ,रानी ,सेनापति और बाकी लोग आगे बढे. थोड़ी दूर  और आगे बढ़ते  ही सोने के ढेर  मिले. जो आये उनमे अधिकांश लोग  स्वर्ण  जमा  करने लग  गए.
अब  केवल राजा,रानी ,सेनापति ,मंत्री ही आगे बढे.
थोड़ी दूर के  आगे बढ़ते  ही   चमकते हीरे के ढेर मिले. सिवा  राजा  के   बाकी सब  रानी भी हीरे इकट्ठा करने चले  गए.
अब  केवल  राजा  ही  अकेले  आगे बढे. भगवान  वहां  खड़े होकर  मुस्कुरा रहे  थे.
 राजा  ने भगवान के चरण पर मस्तक रखकर प्रणाम किया.

भगवान  ने  कहा--मैं  सर्व व्यापी हूँ . जगत रक्षक हूँ.
सब के  दर्शन देने  तैयार हूँ . पर जनता भौतिक  सुख  के  सामने  मेरा कोई महत्त्व न देती. माया मोह में फँस जाती.
मैं  क्या  करूँ?

 

लिखना ताज़ा कैसे?

 भारत प्रेमियों और हिंदी प्रेमियों को आज 8/5/18 के दिन सप्रेम नमस्कार.

रोज़  कुछ न कुछ  लिखने के संकल्प  में  नये विचार  आना ही चाहिए.
यों  सोचना सही है क्या?
मानव प्रेम, ईश्वर प्रेम, देश प्रेम,
आस्तिकवाद ,नास्तिक वाद,
देश द्रोह, भ्रष्टाचार, रिश्वत,
विवाह प्रेम  ,व्यवस्थित, जबर्दस्ती,
लाचारी,  गरीबी,  बेमेल,
चोर-डाकू,  दया निर्दय मानव,
अत्याचार, हत्याएँ
प्रेम के हार में,
अवैध संबंध  में,
धनी पति की, धनी पत्नी की,
क्रोधावेश में,  बातों बातों में
प्यार के इनकार  में,
आत्म हत्याएँ,
नेता के लिए,
प्रेम की नाकामयाबी  में,
माता पिता गुरु के ढाँटने से,
परीक्षा  में पास पर अंक कम,
परीक्षा  में असफल
नीट परीक्षा में फेल,
नेता या नेत्री पर मुकद्दमा जीतने,
न जाने आत्महत्या या हत्या के कारण
जाति धर्म संप्रदाय  के कारण संग्राम हत्या,
रोग के कारण  करुण हत्या,
कितनी बातें, कितने विचार  कितने सोच
सब के सब लिखते हैं
वर्तमान छोड अतीत की बातें
भविष्य  की कल्पना,
अनुशासन, चरित्र गठन
हर विष हर बात
नयी सी लगती, पर हर विषय पर कलम के सिपाहियों की कमी नहीं,
कहने को नये ढंग, शब्द शक्ति लेखक को शिखर पर पहुँचाया.

 देखिए गोपुर हर गोपुर की ऊँचाई  में अंतर
सर्वत्र  विद्यमान सर्वेश्वर  के आकर्षक मंदिर.

Tuesday, June 5, 2018

प्रदूषण --हवा.

  मनुष्य को स्वस्थ  रहने  के लिए  उसके  इर्द-गिर्द का  वातावरण निर्दूषित  होना  चाहिए|

आजकल  के वैज्ञानिक विकास  में  सुविधाएं जो  बढ़  रही  है, पर मनुष्य  का तन

स्वस्थ  नहीं   है. स्वस्थ    शरीर  में  ही स्वस्थ  विचारों का  स्वस्थ प्रगति  काम  में  मन लगेगा.   आज कल  के प्रमुख प्रढूषण में वायु,जल ,ध्वनी ,भूतल पानी  के    साथ -साथ
जन -संपर्क साधनों  के  द्वारा  विचार प्रदूषण भी   बढ़  रहे  हैं.

   बड़े बड़े ऋषी -मुनि ईश्वर  साक्षात्कार करने अन्न -आहार  के  बिना तपस्या करते  थे.

माहात्मा  मोहनदास  भी आजादी की लड़ाई में अनशन अस्त्र का प्रयोग किया.
कई सप्ताह ,कई महीने  बिना    खाए  रह  सकते  हैं. पर  बिना  सांस    लिए  जीना  मुश्किल  है.

 अतः हवा को   साफ रखना   चाहिए.   आजकल  युवा -युवतियाँ  सांस लेने का बहुत  कष्ट  उठाते हैं.

पानी,भोजन ,फल, तरकारियों  की  गन्दगी हम  प्रत्यक्ष  देख  सकते  हैं. धुल धूसरित वस्तुवों  को फ़ेंक  देते  हैं.

  पर  हवा  ईश्वर के  सामान  अदृश्य है. पञ्च भूतों में यह तुरंत जान लेवा  भूत  है.  कई   संक्रामक  रोग   हवा  द्वारा  फैलते  हैं. कई  अति सूक्ष्म कीटाणु  हवा में फैलते समय आसानी से साँस  लेते   समय  मनुष्य  शरीर  में प्रवेश करते  हैं.

  हवा  प्रदूषण  से  बचने -बचाने  हमें  वातावरण  को  साफ  रखना  चाहिए.
   हमें  सार्वजनिक  स्थानों में धूम्रपान करना नहीं चाहिए. मल-मूत्र ,थूकना आदि आम जगह पर  करने से  भी बीमारियाँ फैलती  है.
अतः  हवा  को  साफ  रखना  हर  एक  का  कर्तव्य  है. हर एक की जिमीदारी  भी  है. 

देशोन्नति में रुकावटें.

 सबको  प्रणाम !

आज का स्वतः चिंतन

भारत  की  प्रगति में बाधाएं :--

१. हिन्दू धर्म में एकता नहीं.
२.सनातन धर्म व्यापक  है.   खुद अपने को
भगवान   माननेवाले हैं .
अपने को मंदिर बनाकर पूजा पाठ करने वाले    हैं.

आध्यात्मिकता  जीविकोपार्जन का साधन  बन गया.
 कदम कदम पर   मंदिर ; पर अलग अलग मूर्तियाँ .
अय्यर   मंदिर /अय्यंगार  मंदिर / हर जाति का   मंदिर.
 ये मंदिर एकता तोड़ रहे हैं  या  जोड़ रहे  हैं   पता नहीं .

मंदिरों के इर्द -गिर्द ठग ज्यादा हैं .
आसपास के दूकानों में नकली रुद्राक्ष , नकली चन्दन ,
एक तरह की मिट्टी से  बने चन्दन घिसाने के पत्थर ,

 एक तरह से वाणिज्य केंद्र.

ईश्वर का भय नहीं  लुटेरों को. भ्रष्टाचारियों को ,रिश्वतखोरों को.

देव दर्शन दो   मिनट  ,लम्बे   कतारों  में घंटों खड़े होकर.

जब तक ईश्वरीय भय शाश्वत नहीं , तब तक देशोन्नति में रुकावटें होंगे ही.
हिन्दुओं को देखा देखी मस्जिद ,चर्च भी बढ़ रहे  हैं.
तीनों धर्मों में भेद भाव है, असली ,नक़ली,शाखाएं , उपशाखाएँ ,शंकाएं ,भक्ति में सांप छछूंदर की गति  है.
देखिये , मानुष मनुष्य पर का विशवास लुप्त हो रहा  है.
आश्रम खजाना बन रहा है .  किसीको अपने पर  अपनी भक्ति पर  प्रहलाद, ध्रुव जैसे दृढ़ भक्ति नहीं. भक्ति में ईश्वर की कृपा  प्राप्त करने दलील ,एजंट .
सोचिये ! अपने पर  भगवान पर दृढ़ विश्वास रखिये.

तब तो मानसिक  शान्ति मिलेगी  ही. 

Sunday, June 3, 2018

काव्यांचल में समर्पण

आज काव्यांचल  में
पहली  बार,
तमिलनाडु  के आँचल से

तालियाँ, वाह! वाह!
काव्यांचल के कलाकारों  को .
+++++++++++++++
मैं अपनी  भाषा,
अपनी शैली,
अपने विचार
लेकर चल रहा हूँ ;
वह पथ
कैसा है ?
जानना चाहता  हूँ.
  राह  बनता  है
 या कँटीला झाडू|

जानने में उत्सुक

छंद नियम के जाल में
तडपता
कुछ लिखना कहना
  पल ही में
अवरोध बन जाता.

तभी मन में आया,
जो मन में आया लिखो,
कोई आलोचक
 कविता कहें तो
बन जाओगे कवि.

कोई नव कविता माने तो

कवि के स्तर पर होना आसान.

हैकू कहें,
गद्य पद्य कहे,
बकवास कहे
 अनपढ कहे,
 
जो भी कहे,
 आलोचना एक कवि की.

अतः कम से कम
 लेखक  की कोटी में
निंदक, चाहक, या प्रशंसक
मिल ही जाएँगे.
यह तो सिर दर्द पाठकों का ,
कवि रूढीवादों का|

मन की बात कहने में
 क्या रुकावट.?
दोहे चौपाई, छप्पय
 पढ पढ कर बाल पक गये.

बंधन तोड़ कुछ लिखो.
 कोई न कोई एक नई शैली का  नाम
 किसी न किसी समय देगा  ही|

कभी न कभी ऐसा ही बन जाता.
रुद्राक्ष धारी हूँ मैं.
पास है दोस्त राजगोपाल.
ईश्वर के चरण छूकर लिखता हूँ.
पाठकों को मेरा विनम्र नमस्कार

अपनी रायें ,सुझावें ,निंदा ,प्रशंसा  का
सम्पूर्ण अधिकार पाठकों  में  हैं. 

Saturday, June 2, 2018

किसान का महत्व





तमिळ  कवयित्री  औवैयार  की भविष्यवाणी.
இது ஔவையாரின் பாடல்:

நூலெனிலோ கோல்சாயும் நுந்தமரேல் வெஞ்சமரால்
கோலெனிலோ ஆங்கே குடிசாயும் - நாலாவான்
மந்திரியும் ஆவான் வழிக்குத் துணையாவான்
அந்த அரசே அரசு


शिक्षित  मंत्री  बनेगा तो  उसका कुल ही श्रेष्ठ बनेगा.
क्षत्रीय  बनेगा तो स्वार्थ  और वीरता प्रदर्शन की लडाइयाँ होती रहेगी. वैश्य मंत्री  बनेगा तो उसका व्यापार चमकेगा.
पर किसान मंत्री  बनेगा तो अन्न धान्य सब्जियां फल
उत्पन्न होंगे.  देश अकाल रहित समृद्धि  बनेगा







இந்தப் பாடலின் பொருள்:



பிராமணன் மந்திரியாக ஆனால் அவன் பிராமணருக்குச் சாதகமாக நடந்து கொள்வான் உன் செங்கோல் சரிந்து விடும்.  உன்னைப் போன்றவர்களான சத்திரியன் மந்திரியானால் தினமும்
 கொடுமையான போர் நடக்கும். வைசியன் (தராசு பிடிப்பவன்) மந்திரியானால்  அவனுடைய பேராசையினால் மக்கள் துயரப் படுவார்கள். நாலாவான் மந்திரியாக ஆனால் அவன் நீ செல்லும் பாதையில் துணையாக இருப்பான். ஆகையால் அவன் மந்திரியாக இருக்கும் அரசே நல்ல அரசு.

இதில் நாலாவான் என்றால்யார்?


கா.சு. பிள்ளை உரையில் B  இரத்தின நாயகர் ஸன்ஸ் பதிப்பகத்தாரால் 1948ல் வெளிவந்த தனிப்பாடல் திரட்டு,
   இந்த தனி ப் பா டல்  விவசாயம் தா ன் மக்கள் வி ரு ம்பு ம்  சக்தி  தரும்.  விவசாயம்  செ ய் யு ம்  நா லா ம்  வர்ணத்தவன் வருடம் அதாவது  ஒளி  இழக்கம் செய் தால்   நா டு  பசி பட்டி  னி யில்  து ய ரு ரு ம் .

सबहीं नचावत राम गोसाई

रोज मन की बात
लिखना  सनकी सा बन गया.
क्या लिखना  है, वह हममें नहीं है.
हर कोई  कुछ न कुछ
 लिखना ही  चाहता है.
 हर कोई  नायक बनना ही चाहता है.
हर कोई  स्वस्थ  रहना ही चाहता है.
हर कोई   जिंदगी म
ें हर काम में विजय पाना ही चाहता है.
क्या यह संभव है?
रोज गुरु के चरण स्पर्श  कर
संगीत का अभ्यास  करनेवाला
बडे संगीतज्ञ  न बन सकता.
बडे बडे डाक्टर भी रोगी बनते हैं
अपने को बचा नहीं सकता.
अंत में चतुर मनुष्य को इसी निष्कर्ष  पर ही
आना पडा/ पडेगा/पडता है
"सबहीं  नचावत राम गोसाई "!