Saturday, June 2, 2018

सबहीं नचावत राम गोसाई

रोज मन की बात
लिखना  सनकी सा बन गया.
क्या लिखना  है, वह हममें नहीं है.
हर कोई  कुछ न कुछ
 लिखना ही  चाहता है.
 हर कोई  नायक बनना ही चाहता है.
हर कोई  स्वस्थ  रहना ही चाहता है.
हर कोई   जिंदगी म
ें हर काम में विजय पाना ही चाहता है.
क्या यह संभव है?
रोज गुरु के चरण स्पर्श  कर
संगीत का अभ्यास  करनेवाला
बडे संगीतज्ञ  न बन सकता.
बडे बडे डाक्टर भी रोगी बनते हैं
अपने को बचा नहीं सकता.
अंत में चतुर मनुष्य को इसी निष्कर्ष  पर ही
आना पडा/ पडेगा/पडता है
"सबहीं  नचावत राम गोसाई "!

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