रोज मन की बात
लिखना सनकी सा बन गया.
क्या लिखना है, वह हममें नहीं है.
हर कोई कुछ न कुछ
लिखना ही चाहता है.
हर कोई नायक बनना ही चाहता है.
हर कोई स्वस्थ रहना ही चाहता है.
हर कोई जिंदगी म
ें हर काम में विजय पाना ही चाहता है.
क्या यह संभव है?
रोज गुरु के चरण स्पर्श कर
संगीत का अभ्यास करनेवाला
बडे संगीतज्ञ न बन सकता.
बडे बडे डाक्टर भी रोगी बनते हैं
अपने को बचा नहीं सकता.
अंत में चतुर मनुष्य को इसी निष्कर्ष पर ही
आना पडा/ पडेगा/पडता है
"सबहीं नचावत राम गोसाई "!
लिखना सनकी सा बन गया.
क्या लिखना है, वह हममें नहीं है.
हर कोई कुछ न कुछ
लिखना ही चाहता है.
हर कोई नायक बनना ही चाहता है.
हर कोई स्वस्थ रहना ही चाहता है.
हर कोई जिंदगी म
ें हर काम में विजय पाना ही चाहता है.
क्या यह संभव है?
रोज गुरु के चरण स्पर्श कर
संगीत का अभ्यास करनेवाला
बडे संगीतज्ञ न बन सकता.
बडे बडे डाक्टर भी रोगी बनते हैं
अपने को बचा नहीं सकता.
अंत में चतुर मनुष्य को इसी निष्कर्ष पर ही
आना पडा/ पडेगा/पडता है
"सबहीं नचावत राम गोसाई "!
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