Friday, June 1, 2018

मातृभाषा


मैं हूँ. तमिलनाडु  के हिंदी प्रचारक  .
लिख रहा हूँ  ,अपनी हिंदी, 
अपनी शैली, अपने विचार. 
 प्रेम करता हूँ, अपनी मातृ भूमि से, 
अपनी देशी  भाषाओं  से
सनातन धर्म के भक्ति मार्ग से. 
 आदी काल से आजकल की राजनीति 
एकता लाने के प्रयत्न में. पर
स्वार्थी  मजहबी  ,
प्रेम भक्ति एकता में बाधक
विदेशी आये शासक बने
 जनता में सहन शीलता  
मंदिर तोड़, मसजिद बनाये
अंग्रेज़ आये  अपनी भाषा 
छोड चले, हम अपनी भाषा भूल चले. 
आजादी तो मिली, आधी रात को, 
अंधकार में, अंग्रेज़ी  की उजाला का 
अज्ञान  ज्योति जलाकर, 
शासक जो नेहरू बने 
अंग्रेजी  के पारंगत. 
मंत्री मंडल में सब अंग्रेजी  पटु. 
भूल गये मातृभाषा  और संपर्क भाषा. 
आज हर जगह जनता चाहती
अंग्रेज़ी  माध्यम  की शिक्षा. 
मातृभाषा  से नफरत. 
 बगैर अंग्रेज़ी  के, 
जीविकोपार्जन  असंभव. 
  यदि मातृभाषा  को
आय और, नौ करी का साधन  बनाने
सत्तर साल की आजादी 
अंग्रेज़ी  ही प्रधान. 
आरक्षण  नीति योग्य लोगों को
विदेशी भगा देती. 
फिर भी देश का विकास. 
शिक्षा  में अनुशासन  की कमी. 
फिर भी अनुशासित लोग. 
भ्रष्टाचार  शिखर पर
फिर भी न्याय की झलक. 
यह दिव्य भारत की दिव्य प्रभाव.
जानना-पहचानना,समझना मुश्किल. 


























No comments:

Post a Comment