Saturday, June 9, 2018

सूक्ष्म जंतु

सब को सादर प्रणाम .
आज  के मनोविचार
मनोविकार  ही मन
चंचल  के मूल कारण है.
मनुष्य जो कुछ देखता है,
उन्हें  पाने को लिए  तडपता है.
ईश्वर के सृजन में  एक रूपता नहीं है.
काँटा ज्यादा है, फूल कम.
मच्छर ज्यादा है, मनुष्य को चैन की नींद सोने नहीं देते.
आकार तो मच्छरों   के अति छोटा.
खटमल अति छोटा, पर नींद हराम.
बिच्छू  छोटा सा बडा मनुष्य की तुलना में अति छोटा .
कितने कीटाणु है, अति सूक्ष्म ,वे सताते हैं.
हाथी को अपने काबू में नचानेवाले मनुष्य
मच्छरों  के पाल नहीं सकता, काबू में रख नहीं सकता.
कर्ण   को शाप  के मूल में एक छोटा सा भ्रमर.
अलि,तितलियाँ, मधु मक्खियाँ न तो बडे बडे वृक्ष नहीं पनप सकते.  मकरंद  केसर जुड़े के मूल में
इन छोटे जीवों की  देन अधिक है.

तिनका
एक  कविता है.
मनुष्य के घमंड दूर होने एक तिनका आँखों में पड रह जाता  तो चतुर मनुष्य की परेशानी तिनका जब तक
 आँख से बाहर नहीं आता, तब तक दूर नहीं होती.
ज़रा सोचिए..  मनुष्य की हालत.
ध्यान  रखिए, हम गलत मार्ग अपनाएँगे तो हम तो दुख
 देने सूक्ष्म  जंतुओं के भी ईश्वर ने सृष्टि की है.

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