Friday, June 8, 2012

मित्रता -रिश्ता--12

अब तक मित्रता की व्याख्या में बुरी मित्रता,अछूत मित्रता,
असंग मित्रता,मित्रता छूट,प्राचीनतम मित्रता आदि
पर के वल्लुवर के कुरल की विशिष्ठ   गंभीर भाव विचार धारा 
और विशेष बातों  पर ध्यान दिया गया है।

सतर्कता पर विचार-विश्लेषण के बाद सच्ची मित्रता को जानने  की स्थिति पर आये हैं।
वल्लुवर ने  मित्रता पर के  अपने विचारों से तिल को पहाड़ बना दिया है।

एक किसान खेत में तुरंत बीज नहीं बो सकता।पहले खेत को  जोतना पडेगा।
पानी सींचकर छोटे पौधे  बोना पड़ेगा।
फिर पानी सींचना पडेगा।अन्य पौध उगे तो उन्हें  निकालना  पडेगा।
खाद देना पडेगा।धान के दाना पकने पर फहरा देना पड़ेगा।
धान काटने के  दिन तक खेत  में ही परिश्रम करना पडेगा।
तभी भात बनाने  योग्य चावल मिलेगा।
वैसे ही अच्छी  सच्ची योग्य गुणी  मित्र की प्राप्ति के लिए
मेहनत करना पडेगा।

मित्रता के गोपुर कलश है उनका पहला कुरल।

मित्रता जैसे अपूर्व रिश्ता क्या है संसार में?
हमारे कर्म करने में शत्रु से  होनेवाली हानियों और  बाधाओं  से बचाने वाले
 हमारे  सच्चे मित्र ही है।
वही पहरेदार है।

एक मनुष्य का जीवन नाते-रिश्तों के घेरे से बना है।
रिश्ता प्राकृतिक और कृत्रम दो तरह से होता है।
प्राकृतिक रिश्ता खून से सम्बंधित है।
शादी का रिश्ता अप्राकृतिक है।मदद पाने से होनेवाला रिश्ता,
संपर्क का रिश्ता,पेशे का रिश्ता,आवागमन का रिश्ता आदि
अप्राकृतिक रिश्ता है।इनमें मित्रता का रिश्ता निराला होता है।
पुष्ट होता है।सच्चे मित्र कष्ट काल में जान देकर  बचायेंगे।

there is a proverb ---A father is a treasure,a brother a comfort,but friend is both.
अव्वैयार  ने कहा है --मनुष्य जन्म दुर्लभ है;उस  बात को आगे करें तो
 योग्य मित्र पाना उससे भी  दुर्लभ है।

FORGETTING FRIENDSHIP WITH PERSONS OF GOOD QUALITIES IS BENIFICIAL LIKE READING GOOD BOOKS.

mitrata kee khojhमित्रता -रिश्ता--11

मित्र  की खोज की असावधानी    मृत्यु के समय  में  भी जलन का कार्य करेगा ।
मित्र    हीनावस्था में मदद नहीं  करें  तो  उसकी चिंता आजीवन  रहेगी।

किसी एक के गुण -दोष का अनुसंधान-विश्लेषण  गहराई छानबीन करके न करें तो
अंत में वह मृत्यु  का कारण बन जाएगा।
खोज,खोज ,खोज पुनः खोज ;यों ही वल्लुवर मित्रता के चुनाव की सावधानी पर सतर्क किया है।

THINK  CAREFULLY BEFORE YOU MAKE FRIENDS FOR FRIENDSHIP WITH SOME ONE WHO IS INCOMPATIBLE WILL CAUSE SARROW.
मनुष्य गुण में विविधता हैं।समाज में मनुष्य  स्वाभाविक व्यवहार  अलग-अलग हैं।
मित्र के चुनाव में असावधानी दुःख की अतल-पाताल में छोड़ देगा।
दुःख से बचना है तो मित्र को छान -बीन करके योग्य गुणी  को मित्र चुनना है।

वल्लुवर ने बड़ी सूक्ष्मता से मनुष्य कुल की शान्ति केलिए मित्र की खोज पर अपना सन्देश दिया है।
उनका सन्देश दिल में चुभता है।दिमाग में छप जाता है।

DOSTIमित्रता -रिश्ता--10

नालडियार  में वल्लुवर के समर्थन- सा एक पद है===

घृणा का कार्य ,बुरा कार्य ,खून  आदि मित्र करने पर भी
उसकी रक्षा करेंगे और चाहेंगे ;
जितना भी वे घृणा करें,सहकर भी साथ रहेंगे;

यारी नहीं छोड़ेंगे;
साथ न छोड़ेंगे;

यही मित्रता का पुरातन लक्षण है।
मित्रता की प्राचीनता को वल्लुवर ने ऊंचा उठाकर  कहा है---
मित्र को अपने मित्र की जान लेने का अधिकार भी है।
जान लेने के कार्य में मित्र लगने पर भी मित्रता न छोड़ेंगे।

हमारे हाथ हमारी  आँखों को चुभता है तो दुःख होगा ही।
उस हाथ को हम काटते नहीं;वैसे ही दोस्त बुरा करने पर भी
उसे  घृणा न करके गले  लगाना मित्रता है।

सच्ची मित्रता उनमें नहीं है,
जो नाच-गान,खाना,पंचेद्रियों  के सुख के लिए
 अपराध करने में  साथ देता है।
नीच कार्य में साथ देने को हम मित्रता समझ  लेते है।
 यह तो गलत धारणा है।
समाज को बिगाड  देने वाली दोस्ती में
आदर्श फ़र्ज़  और बढ़िया कला भी नष्ट हो जाएगा।
वह संकुचित मित्रता नफरत के योग्य है।

बराई में साथ देने को मित्रता समझना
 मित्रता का लक्षण नहीं है।
 वललूवर ने कहा है ---बाह्य-हंसी  की मित्रता मित्रता नहीं है;

 आतंरिक हंसी की मित्रता ही मित्रता है।

वल्लुवर  कहते हैं कि  गुण -दोष ,खानदान,नाता-रिश्ता  आदि
पहचानकर ही एक व्यक्ति को मित्र बनाना
सर्वोत्तम  है।
वलूवर का कुरल ----गुण  खोजो;दोष खोजो; उनमें ज्यादा जो है,
उसे खोजो;फिर उसे अपनाओ.
यह कुरल अच्छी मित्रता के लिए मात्र नहीं ,
योग्य वर-वधु की तलाश केलिए भी मार्ग दिखाता है।

मित्र अन्याय या कुकर्म करें तो उसको कठोरता दिखाकर
सुधारना  या ठीक मार्ग पर लाना मित्र -धर्म है।
एक  कहावत है -अपने प्रिय जन रुलायेंगे;अन्य हंसाएंगे;

ये ही अपने या पराये का अंतर है।

dostiमित्रता -रिश्ता-9

दोस्ती  का अर्थ  प्रेमी भी है।

दीर्घ काल के संपर्क स्त्री होने पर प्रेम होता है

पुरुष हो तो मित्रता ;

वह भी एक प्रकार का प्यार ही है।
जैसे प्रेमिका को भूल  नहीं सकते;

वैसे ही मित्र की याद हमेशा बनी रहती है।
वल्लुवर ने कहा है-----दोस्ती में विद्वत्ता उसी में है ,
जो दोस्त की मांग या चाह  को जान-पहचानकर
हक़ लेकर   उसकी चाह की पूरी करना।

उस चाह में रूचि बढ़ने का अधिकार लेना।
मित्रता का अंग है अधिकार लेना।

बड़े लोग उस अधिकार के लिए मधुर बनते हैं।

नमक खारा है;उस खारेपन में भी मिठास लाना मित्रता है।

THE SECRET TO A LONG-LASTING FRIENDSHIP IS HONOURING THE UNWRITTEN RIGHTS AND OBLIGATIONS ESTAABLISHED LONG AGO;NOBLE PEOPLE PRACTICE IT.

मित्रता  अति पुरातन है;इसी में विशेषता है।

दोस्ती  का आदर्श उदाहरण  महाभारत में मिलता है।

मित्रता में ज़रा भी शक को स्थान देना मित्रता को भंग करती है;

 कर्ण  दुर्योधन की पत्नी के साथ जुआ खेल रहा  था;
 तब वहां अचानक दुर्योधन आया;
उसकी सेवा करने उसकी पत्नी भानुमती उठी तो कर्ण ने समझा --
 वह हार के भय से उठती है;
तुरन्त  उसने उसका वस्त्र पकड़कर खींचा तो
उसकी साडी में जड़े मोती गिर पड़े।

तब दुर्योधन दौड़कर आया;मोती चुगने लगा और बिना शक किये पूछा ---

मैं इन मोतियों को जमा करूं  या जोडू .

यह पुरातन दोस्ती है;पूराण की यारी है।

दुर्योधन  को  कर्ण के साथ अपनी पत्नी का  जुआ खेलना  गलत नहीं   लगा।
उसके मन में  सम्मान ही रहा  मित्रता का।
गलत विचार न उठा।
मित्र का कार्य घृणाप्रद हो तो यों ही समझना उचित है ---

वह उसकी अज्ञानता है  या अधिकार है।

हमें  सह लेना है;उसके प्यार पर संदेह का भाव ठीक नहीं है।

कुरल है-----मित्र का दुःख और घृणाप्रद कर्म अति हक़ के कारण ही; या अबोध के कारण है।
इस बात को पूर्ण लिंगम पिल्लई  वल्लुवर के व्यक्तित्व की तारीफ में कहते हैं---

THE LANGUAGE  OF THE POEM IS PURE TAMIL,AND  ITS CAPACITY TO EXPRESS ANY THOUGHT  ,WITTY,HUMOROUS AND SUBTLE,IS EVIDENCED IN EACH COUPLET.

Thursday, June 7, 2012

mitrataमित्रता -रिश्ता--8

वल्लुवर में विशेष  कौशल  है।
धोखे में दुश्मन दोस्त बन जाए तो उनसे बचने का एक छूट देते हैं ---
शत्रु मित्र बन गया तो तुम भी उसके समान मित्र का अभिनय करो।
हँस -मुख रहो।बाहर  दोस्ती-सा व्यवहार
.जरूरत न हो तो मित्रता तजो।
बुरी संगती से असंगति बड़ा खतरनाक होता है।
बुरी  दोस्ती प्रकट होने की संभावना है। कुसंगति में पड़ने पर वह

केंसर रोग के सामान है।दर्द   नहीं; रोग अति बढ़ने पर ही मालूम  होगा;,
अचानक मृत -अवस्था में डाल  देगा।।
कुसंग -रोग का निदान अंतिम समय में होगा।
निदान  के बाद दिन गिनना ही शेष रहेगा।बचना कठिन है।
वहीं हालत है असंगति का।

मित्रता  की स्थिरता  का अध्याय है पुरातन.
दीर्घकाल निकटता .अंग्रेजी में  antiquity,longstandig intimacy कहते हैं।

वल्लुवर ने जो पुरातनता  को  मित्रता केलिए प्रयोग किया है,
उसे  'familirity',long-lasting friendship
कहकर भी अनवाद कर चुके हैं।
प्राचीनता  -दीर्घ काल की मित्रता का मतलब है,
मित्र के कर्म या बात को बिन सोचे -विचारे अपनाना।
हकदार बन जाना।
हक़दार का मतलब है हानी -लाभ को एक सामान मानना या सहना।
यही मित्रता की  परिपक्वता है।
जग में कोई भी निर्दोष या निष्कलंक नहीं है।
अतः  दीर्घकालीन मित्र के दोषों को सह लेना ही मित्रता का पहचान है।
मित्र के अपराधों को सहर्ष सह लेना मित्र का कर्त्तव्य हो जाता है।
यह वल्लुवर के  प्रेम की आज्ञा    है।
वल्लुवर एक सर्वश्रेष्ठ मित्र है।वे तो मित्र-स्वरुप है।
मित्र का मतलब है सखा। COMPANION/ASSOCIATE 

sakhaaमित्रता -रिश्ता--7

बुरे मित्रों को वल्लुवर ने कटु  आलोचना की है।

खोना-लेना ,वेश्या और चोर ,कर्म एक  और कथन एक का संपर्क,

छोडना   न   छोड़ना , आदि शब्द प्रयोग में वल्लुवर ने शब्दार्थ अलंकार का विशेष प्रयोग करके

 धोखा खानेवाले और धोखा करनेवाले दोनों  से  जागृत रहने की  प्रेरणा दी है।

लासरस  नामक  अँगरेज़  ने कहा है कि  वल्लुवर ने ध्वनि,शब्द ,का  उचित प्रयोग करके
संसार को भाषा प्रयोग  की सूझ दी है।


परिमल अलकर असंगति  के बारे में वल्लुवर के विचार को तीन भागों में
  बांटने के बजाय तीन अध्याय में तीन शीर्षकों में प्रकट किया है।

मित्र  की खोज,बुरा मित्र,असंगत-दुर्संगत  आदि तिरुवल्लुवर का संकेत हैं।

बुरा मित्र यह सिखा देता है --दूसरों से मित्रता बनाना या नहीं।

बुरे मित्र को अंकुर में ही पहचानना चाहिए।

उनके सन्देश की रीति ऐसी है  जैसे एक पिता  ने पुत्र को समझाया है।

जो शत्रु है वह बाहरी दृष्टि  से  मित्र का व्यवहार करेगा।

मन से वह छल करेगा।
यह वल्लुवर के विचार का परिमेललकर की व्याख्या है।

देवनेयप्पावानर   की व्याख्या है-----सचमुच  वे दुश्मन है।
वे अनुकूल अवसर तक मित्रता का मिथ्या -अभिनय करते हैं।
बाह्य-अभिनय  मित्रता  दिखाना है,
अहम से असंगति करते हैं।यह  बुरे मित्रों का एक वर्ग है.

दिल से मित्रता न करने का मतलब है ,
वे अवसर पाकर हमारा नाश कर देंगे।

वे गर्म किये हुए लोहे को पीटकर तेज़ करने तैयार कर रहे हैं।

वे मित्रता के अभिनय से हमें गर्म लोहा पीटने के पत्थर के सामान हमारा उपयोग करेंगे।

वल्लुवर के शब्द धनुष से निकलनेवाले तीर के सामान निकलते हैं।

वे कहते है---धनुष  पहले झुकता है,फिर उससे तेज़ बाण निकलता है।

वैसे ही दुश्मन का मिथ्या विनम्र व्यवहार पहले  अति विनम्र रहेगा।

अवसर पाकर ऐसे तीर के समान निकालेंगे ,

उससे हमारा बचना दुश्वार हो जाएगा।

बुरे संग से एक भले आदमी को बचाने वल्लुवर का उपमान है  धनुष-तीर।

बुरे लोग हाथ जोड़कर नमस्कार  करेंगे;

पर जोड़े हुए हाथ में तलवार हत्या करने छिपी रहेगी।

वे हथियार को अपने विनम्र बातों और आंसू से छिपा रखेंगे।

यह वल्लुवर का कथन पुराना है,
जिसे नाथूराम ने महात्मा गाँधी की ह्त्या के लिए प्रयोग किया था।

जान मर्डाक  नामक एक अँगरेज़  ने वल्लुवर के बारे में  कहा है----
तमिल्देश के निवासियों को धर्म-पथ  के 
उपदेशक कवियों में वल्लुवर का स्थान सर्वोपरी है।

भारतीय भाषाओं में और कोई वल्लुवर के स्थान को भर नहीं सकते।
तिरुक्कुरल  कविता नहीं है,पद्य नहीं है,  शोध ग्रन्थ है  वह धर्म-मार्ग का।

thiruvalluvar ,the AUTHOR OF KURAL,OCCUPIES THE FIRST PLACE AS A MORALIST
AMONG THE TAMILS.INDEED ,IT IS GENERALLY ACKNOWLEDGED THAT THERE IS NO TREATISE EQUAL TO THE KURAL IN ANY INDIAN LANGUAGE.





Wednesday, June 6, 2012

dostiमित्रता -रिश्ता 6

मणक़कुडवर  जैनाचार्य  थे।

परिमेललकर  अपने तिरुक्कुरळ  विवेचन में
जिसे अंतिम कुरल में लिखा ,
उसे मणककुडवर  ने   पहले कुरल में रखा है।


चतुर सब कुछ प्राप्त भाग्यवान है तो
मूर्ख  अपने पास सब कुछ होने पर  भी
 नहीं  के बराबर के हैं।

इस  तिरुक्कुरल को मणककुडवर  ने पहले स्थान दिया है;
लेकिन परिमेलअलकर  ने अंतिम स्थान दिया है।
परिमेलअलकर ने वल्लुवर के मूल कुरल के शब्दों को बदला भी है।
यह तो कवि  के प्रति अन्याय भी है।

जिसने  कभी किसी की मदद नहीं की,
उसने हमारी मदद की है तो उस मदद की  तुलना
 जग और आसमान  की बराबरी का नहीं होगी।वह तो  अपूर्व है।

हमने जिसकी मदद नहीं की,उसने हमारी मदद की है तो
वह अपूर्व है।
संसार और आसमान से भी उसकी तुलना नहीं की जा सकती.

मूल कुरल को विच्छेद करना अक्षम गलती है।

डाक्टर पोप ने अपने तिरुक्कुरल के अंग्रेजी अनुवाद में
 अंग-शास्त्र  के नाम से  74 अध्याय से 95 अध्याय तकदिये हैं।
इनमें दोस्ती के पांच भाग भी सम्मिलित हैं।
मनककुडवर,जिन्होंने तिरुक्कुरल का पहला विवेचनात्मक  ग्रन्थ लिखा है,

इस संपूर्ण भाग को मित्र शास्त्र का नाम ही दिया है।

बुरे मित्र की चाल पर वल्लुवर का क्रोध एकदम बढ़ जाता है।

बुरे मित्र अपने कार्य की सफलता तक साथ रहते हैं,
अपने कार्य साध करके मित्रता से हाथ धो देते हैं।
ऐसे मित्र की मित्र छोड़ देने में ही भलाई है।
इसमें बुरे मित्र को अतुलनीय कहा है।
इसका मतलब है स्वार्थता में उनके समान  वे ही है।

बुरे मित्र जो स्वार्थ सिद्ध करने में सफल है,

वे रंडी और डाकू के बराबर है।

ये बुरे मित्र मित्रता की गहराई नहीं जानते।

वे लेने में समर्थ हैं।
वे जितना अधिक लेते हैं ,उतना ही मित्रता निभाते हैं।
the motive of opportunists who want your friendship is the same as that of call girls and thieves .
-
जिसके कर्म और कथन में फरक हैं ,

उनकी मित्रता जाग्रत  और स्वस्थ दोनों अवस्था  में दुखप्रद है।
मनककुडवर ने भी वल्लुवर के समर्थन में कहा है--

जिसके करम  एक और कथन एक होताहै ,
उनसे मित्र रखना स्वप्न में भी दुखदायक  होता है।
doctor j.lasaras-----
IT IS A STANDING REBUKE TO THE MODERN TAMIL.THIRUVALLUVAR HAS CLEARLY PROVED THE RICHENSS MELODY AND POWER OF HIS MOTHER TONGUE.THE KURAL
CANNOT BE IMPROVED NOR ITS PLANMODE MORE PERFECT.IT IS A PERFECT MOSAIC IN ITSELF.