Saturday, December 13, 2014

तरंगित मन


तरंगित  मन



सुंदरता में  मन है तरंगित.


तरंगों में लय  भी हैं ,
जवार -भाटा  भी.

कोई उतरता है   तो

किनारे पर लग जाता है.

कोई -कोई  लहरों  की खींच में
एक दम  डूब  जाता है तो
कोई कहीं फेंका जाता है.
फेंके जाने  की जगह के मुताबिक़
उसका सर ऊंचा होता है  नहीं तो
झुक  जाता है.


prem. प्रेम भरी दुनिया ,


  प्रेम भरी दुनिया ,
प्रेम में प्रेरित ,
प्रेम में पुलकित 
प्रेम में प्रमाणित 
प्रेम में मिश्रित 
पल्लवित दुनिया. 
पर ये प्रेम व्यक्तिगत हो तो 
संसार है सनकी. 
सार्वजनिक हो तो मानकी /
दृष्टिगत हो तो वैयक्ति,
शारीरिक हो तो कामुकता। 
ईश्वरगत हो तो आध्यात्मिकता। 
स्वार्थ होतो  भोगी ;
परार्थ हो साधू ;

Thursday, December 11, 2014

क्या वास्तव में धर्म निरपेक्षता है भारत में ?

जन्म हुआ  मेरा आजादी के बाद.
संविधान का ज्ञात हुआ 
आजादी के चौदह साल के बाद .
नौकरी मिली ,तो क्या देखता हूँ 
पच्चीस साल की उम्र में 
अर्थात आजादी के पच्चीस साल बाद ,
हर तीन महीने छात्र सूची -अध्यापक सूची 
कितने  हरिजन ,कितने दलित ,
कितने पिछड़े ,कितने बहुत पिछड़े 
कितनी परिवर्तित ईस्सायी हरिजन 
भर्ती -नियुक्ति.
किसी की माँग  नहीं वह आमीर  या गरीब.
एक डाक्टर ,एकीन्जनीयर , सब जातियों की 
प्राथमिकता के आधार पर  पाते 
छात्रवृति-सहूलियतें.
भले ही वह पुत्र हो सांसद -विधायक का.
उच्च जातियों के गरीब 
जिनको खाना तक नसीब नहीं 
उनको नहीं सहूलियत या नौकरी की प्राथमिकता.
दुखी  है वे ,इसकी चिंता  नहीं किसीकी !
धन पर धन ,गरीबी पर गरीबी यही है 
क्या धार्मिक समानता.?
मिनोरिटी   अधिकार है ,
मेजारिटी  का  नहीं अधिकार.
कांग्रस और अन्य दल
मिलकर खाते रमजान दावत ,
हिंदू ही हिंदू का अपमान.
तमिलनाडु में गीता का विरोध.
मसलमानों  का समर्थन .
हिंदू भगवानों का जूता मार.
चौराहों  पर ये वाक्य -
नहीं भगवान ,भगवान के नाम लेनेवाला बेवकूफ .
वे  ही खाते  रमजान दावत.
क्या  यही  कांग्रस अन्य दलों का धर्म निरपेक्ष 
ज़रा सोचिये !दिल नहीं खौलता तो 
ये धर्म निरपेक्षता  है 
एक धोखे बाज.
अर्थ है  तो अर्थ है, अर्थ नहीं तो अर्थ नहीं,

धर्मार्थ ,मोक्षार्थ में तो अर्थ है,
सर्थाक्जीवन में अर्थ है,
सबके मूल में अर्थशास्त्र है.

Tuesday, December 9, 2014

क्रान्तियाँ .उच्च विचार.

भारत में आजादी के ६७ साल के बाद भी ,

प्रांतीयता के मोह नहीं घटे.

एक ओर राष्ट्रीयता ,देश भक्ति 

तो 

दूसरी ओर इधर -उधर  प्रांतीयता के

विषैले पौधे पल्लवित करने में 

स्वार्थता   बढ़ रही हैं ,

नदियों को लेकर ,

शहरों को  लेकर ,

भाषा को लेकर ,

इन सब से बड़ी 

 अजब  की   बात 

तमिलनाडु में 

और  एकाध देश -परदेश में 

ईश्वर है  हमारा का नारा लगाते हैं,
तमिलनाडु में मुरुगन ,
दक्षिण के शिव ,
उत्तर के राम -कृष्ण 
 इसी नफरत में एकाध 
रावण के भक्त ,
विभीषण से नफरत ,
वहाँ राम लीला हो तो 
यहाँ  रावण लीला.
 इन सब मिटाकर 
देश भक्ति  राष्ट्रीय धारा बहाने की 
क्रांति करनी हैं.
स्वच्छ भारत तो 
सफई केवल कूड़ों की नहीं ,
दिल की भी चाहिए.

संकीर्ण विचारों के 
प्रांतीय दलों को अंकुर में 
ही उखाड़ फ़ेंक  अत्यंत है आवश्यक.

देश को स्वार्थ वश ,

टुकड़े की भावना -जोश 

भटकाने में लगायेंगे तो 
 आजादी के पहले के भारत ,
सोचिये  भारतीयों!
पटेल की ऊंची मूर्ति से बढ़कर आवश्यक है 

उच्च विचार.



Monday, December 8, 2014

चाहिए महा तप.




कहा था 

 नारी के रूप में

जन्म लेने ,

महा तपस्या करनी है.

जग में दशा

 हमारी 

 क्या कहने लायक है ?


तेरे विचार में  यार!

 करो, महसूस

 हमारी हालत  की .

तेरे गृह  मुझे आना है ,

लक्ष्मी देवी- सी.

तेरे चरण में

 पतिव्रता के 

 पवित्र कर्पूर 

 बनना है.

केवल तेरे नेत्रों केलिए

  मैं  बनूँ  महालक्ष्मी.

पर-पुरुषों के लिए 

मैं बनूँ ज्वालामुखी .

माँ -सा मैं खिलाऊँ

 भोजन.

खाऊँ   मैं  तेरे

 जूठे का भोजन .


मेहमान 

तेरे आये तो 

मेरे मुख हमेशा

ताज़े फूल- सा

 खिले रहे.

तेरे दुलार के समय

 मैं बन जाऊँ  

 बच्ची.

तेरे खेलों का

 मैं बन जाऊँ

 गुडिया.

जब जब

 तू बुलाता ,

मैं लेटूँ,

तेरे बिस्तर पर 

मैं बनूँ

रंडी.


बनूँ 

तेरी 

आशिकाओं की 

 बड़ी बहन.

बनूँ 

मंत्री ,

जब तेरी बुद्धि 

 मंद पड़ जाती
.
तेरे पीट

 रगड़ने 
,
मेरे  

 नाखून
 बने 

 कुदाल.


पैर दबाने

  तेरे ,

मेरे फूल सी

 उंगलियाँ

 बने

 यंत्र.


तू रोगी बने 

तो

 मेरे कमल

 हाथ 

बने

 शौचालय.


तेरे शोक

ढोने

 बनूँ.

मैं.

  भार वाहक.


तेरे मन की 

 चाव समझूँ,

उसे पूरी करने 

 बनूँ  

 दासी.

तू लात

 मारें तो

 मैं 

बन जाऊँ 
,
पैर चाटने की 

कुतिया.



तेरे  लात

 मार  या फाड़

 सहने 

मैं बनूँ ,

सहनशील

 भूमि.


तेरे लिए

 न जाने 

क्या-क्या 

रूप लूँ.

यदि  तेरी 

मृत्यु हो  तो

जलना है 

मुझे भी.

हाँ !महिला के जन्म लेने ,
,
   चाहिए

 महा   तप. 

सूखकर सूखी कलियाँ .कवि तमिळ एळिल वेंदन

हथेली में छिपी  भविष्य भूलकर ,


भिक्षा पात्र उठाकर खडी  हैं 


नन्हीं नन्हीं उंगलियाँ.


परिपक्व के उम्र होते ही ,

द्वार तक जाने को निरोध,

रूप ढकने की पोशाक बताकर,

नारी के बड़प्पन बोलनेवाले 

 नाते -रिश्ते

मालिकों के घर 

मजदूरिन के रूप भेजेंगे.

दरिद्रता के  क्रूर  करों के

 दलित ,

सुविधाओं  के बरामदों  पर

वे  हैं   किशोर  पीड़ित .

न्याय के गले

 घोंटने  की वज़ह ,

गली में पडी

 ब्रह्मा की संतानें.

महानगर की सडकों के चौराहों पर,

चौराहों की संधियों में

खुले  खतरों को पारकर,

चालाकों   द्वार 

 भीख माँगनेवाले

नन्हीं -नन्हीं उंगलियाँ.

न तो यही नदी का कसर

न तो विधि का कसर

जिन्होंने  जन्म दिया ,

उनकी निधी की  कमी ,

इनसे   बराबर होती हैं

ये अत्याचार.

अक्षर ज्ञान 

अर्जित  करने की आयु में ,

ये भविष्य के ज्ञाता , 

जूठे बर्तन

 साफ करने की दुर्दशा,

तडके पुस्तकें पढने के बजाय ,

सबेरे होने के पहले

कार्यशाला की ओर

चलने वाले पददलित .

खेल प्रतियोगिता के

 विजयी खिलाड़ी बन

विजय पताका ले उठानेवाले कर,

झुककर कूड़े उठाने में लगे हैं.


रंगबिरंगे चित्र खींचनेवाले कर ,

ऊंचे विचारों के चित्र खींचने के कर

जूतों की चमक करने में लगे हैं.

फूलों के बोझ भी

 जो न सह सकी ,

कोमल हंस ,

बोझा ढोने के गधा बने  हैं.

भूतल पर 

 ताज़े सुगंध  बन ,

खिले फूल से वे ,

बारूद के कारखाने में

चन्दन के पेड़ जैसे 

जल रही है.

दियासलाई की लकड़ी

रिसकर प्रकाश देने के पीछे 

 यअन्धकार में

टूटे पंखों के पक्षी जैसे ,

गम में चीख रहे हैं.

दियासलाई की लकड़ी बनने ,

ये अन्धकार में

टूटे पंखों के पक्षी जैसे 

,गम में चीख रहे हैं.

 सूखकर  सूखी कलियाँ .


  रंगीले  वसंत सपनों लेकर

  घूमनेवाली  के नयनों  में  


धीमी सी


   चमक  

 उसे भी तोड़नेवाले कौन?
  
  मालूम नहीं.