Tuesday, January 26, 2016

गृहस्थ जीवन तिरुक्कुरल ४१ से ५० तक.

गृहस्थ   ---तिरुक्कुरल ४१ से ५० तक. 

  1.   गृहस्थ  वही  है ,जो अपने परिवार के सभी नाते -रिश्ते का  पालन -पोषण सही ढंग से करता है. परिवार का सहायक है.
  2. गृहस्थ जो सपरिवार रहता है ,उसको साधू- संत ,दीन -दुखियों और अपने यहाँ मरनेवालों की अंतिम क्रियाएं करनी  चाहिए. वही गृहस्थ धर्म है.
  3. गृहस्थ जीवन की श्रेष्ठता उसी में हैं ,जिनकी कमाई ईमानदारी हो; अपयश से संपत्ति न जोड़े. निंदा कर्म की संपत्ति से डरें. गृहस्थ  का सार्थक जीवन  अनुशान में है.अनुशासित कमाई के वितरण में गृहस्थ की सफलता है.
  4. गृहस्थ जीवन  की सार्थकता प्रेम पूर्ण व्यवहार में है और अनुशासन पूर्ण कर्म में है.
  5. धर्म और अनुशान के गृहस्थ में जो फल मिलते हैं ,उससे बढ़कर सुफल अन्य कर्म में नहीं मिलेगा.
  6. वही गृहस्थ श्रेष्ठ  हैं ,जिसमें  ईश्वर से मिलने ,सहज रूप में धर्म पालन करने का प्रयत्न हो.और सपरिवार जीता हो.
  7. तपस्वी के जीवन से अति श्रेष्ठ जीवन  गृहस्थ जीवन है  जो धर्म पथ पर चलता हैं और अन्यों को भी धर्म पथ से हटने नहीं देता.
  8. धर्म  का पर्यायी ही गृहस्थ जीवन हैं ,उसमें अपयश या निंदा का स्थान  न रहें तो अति श्रेष्ठ और उत्तम है.
  9. गृहस्थ जीवन के नियमों को जानसमझकर  खुद पालन करके ,दूसरों से कराने करवाने वाले गृहस्थ जीवन श्रेष्ठ है.
  10. इस संसार में रहते हुए धार्मिक अनुशासित जीवन पर चलनेवाले गृहस्थ का जीवन ईश्वर-तुल्य जीवन  है.

Friday, January 22, 2016

तिरुक्कुरल धर्म पर जोर --३१ से ४० तक.



तिरुक्कुरल --३०  से ४० 

धर्म की विशिष्टता 

  1. धर्म   से  बढ़कर  बड़ी संपत्ति और विशेषता प्रदान करनेवाला और कोई नहीं  है,
  2. धर्म भालइयों  की खेती है; जीवन की समृद्धि का आधार है. धर्म  को भूलने से बढ़कर और कोई बुराई नहीं  हैं. 
  3. जो भी कर्म करना हैं ,उन सब को धर्म मार्ग पर ही करना है. 
  4. मानसिक पवित्रता ही धर्म है; बिन मन की पवित्रता के जो भी करते हैं वे सब मिथ्याचरण है और बाह्याडम्बर है.
  5. धर्म मार्ग में ईर्ष्या ,लोभ,क्रोध और अश्लीली और चोट पहुंचनेवाले शब्द बाधाएं हैं.
  6. धर्म कर्म को स्थगित न करके तुरंत करना चाहिए; ऐसे धर्म कर्म मृत्यु के बाद भी यशोगान के योग्य बने अमर यश बन जाएगा.
  7. पालकी के अन्दर बैठने वाले और उस पालकी को ढोनेवालों से धर्म के महत्व कहने की आवश्यकता नहीं हैं .  खुद समझ लेंगे.
  8. धर्म को लगातार सुचारू रूप से करनेवालों को पुनर्जन्म  नहीं है;वह स्वर्ग में ही ठहरेगा.
  9. धर्म कर्म से जो कुछ मिलेगा वही सुखी हैं ;अधर्म से मिलनेवाले सब दुखी है.
  10. अति प्रयत्न से करने एक काम जग में है तो वह धर्म कर्म है. अपयश या निंदा का काम न करना है.






Monday, January 18, 2016

तिरुक्कुरल धर्म बड़प्पन अनासक्तियों का। २१ से ३० तक



तिरुक्कुरल धर्म 

बड़प्पन  अनासक्तियों  का। 




१. ग्रंथों का  साहस  उसी में हैं ,जिनमें चालचलन और चरित्र में अटल अनासक्त लोगों के वर्णन  हो। 


२.  अनासक्त लोगों की प्रशंसा करना उस परिमाण सम  है   ,आज तक संसार में जन्मे -मरें    लोगों की संख्याएँ। 


३. जन्म -मुक्ति  जैसे जितनी  बातें  दो -दो  हैं उनके भेदों  को जानकर  शोध करके धर्म को अपनाने वालों के यश ही  संसार में  बड़ा  हैं. 


४. पंचेंद्रियों को वश  में करके दृढ़ मन से जीनेवालों का जीवन ही संन्यास  खेत का बीज बनेगा. 


५. पंचेंद्रियों की इच्छाओं के दमन का  बल  ही देवेन्द्र   बल  के   समान बल  है। 

६.     असाध्य कर्मों को साध्य करनेवाले ही  महान  हैं, 
 जहा  में. 
         साध्य को भी न  सकनेवाले  जहां  में छोटे  है. 

७. संसार  उसके  हाथ में  है  जो   स्वाद ,प्रकाश ,ध्वनि ,गंध ,  बाधाएं  शोध करके समझ सकते हैं। 

८. बड़े महानों के बड़प्पन को उनके वेद ग्रंथों की भाषा की शैली और भाव बता देगा. 

९.  गुणी ,सदाचारी  का क्रोध क्षण भर में  मिट जाएगा।

१०. सभी लोगों से दया दिखानेवाले धार्मिक महान ही विप्र  है.


Sunday, January 17, 2016

तिरुक्कुरल ---२. वान चिरप्पु ---वर्षा की विशेषता। ११से २० तक

तिरुक्कुरल ---२. वान चिरप्पु ---वर्षा  की विशेषता। 


  १, वर्षा के होने  से संसार जी रहा है; अतः वर्षा अमृत-सम है;

२.  वर्षा अनाज और अन्य खाद्य -पदार्थों की उत्पत्ति करती है; प्यासे का प्यास बुझाती है। 
३. वर्षा न होने पर समुद्र से घेरे इस संसार के लोग भूखे रहेंगे। 

४. वर्षा  न हुयी तो किसान हल लेकर खेत  न जोतेंगे।. (परिणाम संकट में लोग. महंगाई )

५. बिना बरसे बिगाड़ेगी वर्षा  जन  जीवन को; यो ही बरसकर सुखीबनायेगी वर्षा।

६.. वर्षा की बूँदें आसमान से न गिरेंगी तो घास तक न पनपेगा ; न होगी हरियाली।

७. मेघ  समुन्दर के पानी लेकर भाप बनाकर न बरसेगा  तो समुद्र भी सूख जाएगा।

८. वर्षा न होगी तो  ईश्वर की पूजा आराधना ,मेला उत्सव ,दैनिक पूजा पाठ सब बंद हो जाएंगे. 

९. वर्षा न होगीतो  संसार में दान -धर्म काम भी न चलेगा।  

१०. बड़े बादशाह हो अर्थात सम्राट हो ,जितना भी महान हो ,पर  वर्षा न होने पर जीना दुश्वार हो जाएगा। अनुशासन न रहेगा।  सभी दुष्कर्म होने लगेगा। 





तिरुक्कुरल ---२. वान चिरप्पु ---वर्षा  की विशेषता। 


  १, वर्षा के होने  से संसार जी रहा है; अतः वर्षा अमृत-सम है;

२.  वर्षा अनाज और अन्य खाद्य -पदार्थों की उत्पत्ति करती है; प्यासे का प्यास बुझाती है। 
३. वर्षा न होने पर समुद्र से घेरे इस संसार के लोग भूखे रहेंगे। 

४. वर्षा  न हुयी तो किसान हल लेकर खेत  न जोतेंगे।. (परिणाम संकट में लोग. महंगाई )

५. बिना बरसे बिगाड़ेगी वर्षा  जन  जीवन को; यो ही बरसकर सुखीबनायेगी वर्षा।

६.. वर्षा की बूँदें आसमान से न गिरेंगी तो घास तक न पनपेगा ; न होगी हरियाली।

७. मेघ  समुन्दर के पानी लेकर भाप बनाकर न बरसेगा  तो समुद्र भी सूख जाएगा।

८. वर्षा न होगी तो  ईश्वर की पूजा आराधना ,मेला उत्सव ,दैनिक पूजा पाठ सब बंद हो जाएंगे. 

९. वर्षा न होगीतो  संसार में दान -धर्म काम भी न चलेगा।  

१०. बड़े बादशाह हो अर्थात सम्राट हो ,जितना भी महान हो ,पर  वर्षा न होने पर जीना दुश्वार हो जाएगा। अनुशासन न रहेगा।  सभी दुष्कर्म होने लगेगा। 













Friday, January 15, 2016

तिरुक्कुरल --प्रार्थना ७ to १०।

तिरुक्कुरल --प्रार्थना ७ to १०। 


७. 

तनक्कूवमै  इल्लातान ताल सेरंतार्ककल्लाळ 

मनक्कवलै  माट्रल  अरितु। 

मनुष्य   से  श्रेष्ठ  ईश्वर जिनका उपमेय उपमान नहीं हैं ,
उनके पादों के चरण  स्पर्श कर उनकी ही याद में 

रहनेवाले ही निश्चिन्त रह सकते है; उनका स्मरण न तो 
पीड़ा दूर होना  असंभव है. 

८. 
अरवाली  अंदणन ताल सेरन्तारक्कल्लाल   
पिरवाली नीत्तल अरितु। 

वे ही सुखी और धनी हैं जो  धर्माधिकारी ईश्वर के स्मरण में जीते हैं. 
उनका ही जीवन बनेगा सार्थक। दूसरोंको आर्थिक और अन्य सुख नहीं मिलेगा. 
९. 
कोलिल पोरियिन गुणमिलवे एण गुणत्तान 
तालै वनंगात तलै। 
पंचेन्द्रिय काम नहीं करता तो जो  बुरी दशा सिर  को होगी. 
वैसी ही दशा उनकी  होगी  जो ईश्वर  का ध्यान नहीं करता। 

१०. 
पिरविप्पेरुंगडल  निन्तुवर नींतार  
इरैवण आदि सेरातार। 
जो ईश्वर के चरणों में शरणार्थी बनते हैं  ,उनका जन्म ही सार्थक होगा. 
वे सांसारिक सागर पार करने में विजयी होंगे. अन्य नहीं पार कर सकते. 

 तिरुक्कुरल 

तिरुवल्लुवर  तमिल भाषा के साहित्य का सूर है.
          उनके तिरुक्कुरल का अनुवाद
 संसार की प्रमुख भाषा में हो चुका  है. 
हाल  ही में गुजरात भाषामें भी हुआ  है. 

एक ही ग्रन्थ के कई अनुवादक
अपनी अपनी शैली में 
      काव्यात्मक अनुवाद और गद्यानुवाद
कर चुके हैं। 
कर रहे हैं।
 मैं भी अपनी शैली में
लिखने की कोशिश कर रहा हूँ.

पहले कुछ अध्याय कर चुका। 

मेरा अनुवाद सिलसिलेवार  नहीं है.
अब अपने   अनुवाद ग्रन्थ को  सफल बनाने में 
श्री गणेश से प्रार्थना करता हूँ। 

प्रार्थना 
१। अकरा मुतल एलुत्तु  एल्लाम आदि 
भगवन  मुतट्रे उलकु।

अक्षरों का आदि अक्षर "अकार " है. 
वैसे ही संसार का आधार भगवान है. 

 तिरुक्कुरल 

तिरुवल्लुवर  तमिल भाषा के साहित्य का सूर है.
          उनके तिरुक्कुरल का अनुवाद
 संसार की प्रमुख भाषा में हो चुका  है. 
हाल  ही में गुजरात भाषामें भी हुआ  है. 

एक ही ग्रन्थ के कई अनुवादक
अपनी अपनी शैली में 
      काव्यात्मक अनुवाद और गद्यानुवाद
कर चुके हैं। 
कर रहे हैं।
 मैं भी अपनी शैली में
लिखने की कोशिश कर रहा हूँ.

पहले कुछ अध्याय कर चुका। 

मेरा अनुवाद सिलसिलेवार  नहीं है.
अब अपने   अनुवाद ग्रन्थ को  सफल बनाने में 
श्री गणेश से प्रार्थना करता हूँ। 

प्रार्थना 
१। अकरा मुतल एलुत्तु  एल्लाम आदि 
भगवन  मुतट्रे उलकु।

अक्षरों का आदि अक्षर "अकार " है. 
वैसे ही संसार का आधार भगवान है. 

२. 
क ट्र तनाल आय  पयनेन  कॉल वालारीवन 
नट्रॉल  तोलार्  एनिन. 
पवित्र ज्ञान स्वरूपी ईश्वर के चरण स्पर्श करके 
वंदना न करें तो सीखी शिक्षा से लाभ क्या ?
३. 
मलर  मिसै एकीनान  माणडी  सेर्नतार  
निलमिसै  नीडु वॉल्वार। 

भक्तों के ह्रदय कमल में विराजमान ईश्वर के चरण 
चिर वन्दना  करनेवाले शाश्वत सुख पाएँगे।
४. 
वेंडुतल  वेंडामै  इलानडी  सेरंतारुक्कु  
याण्डुम  इडुम्बै  इल.


इच्छा -अनिच्छा रहित तटस्थ  ईश्वर के जप तप में लगे 
ईश्वर चरणार्ति  को कोई दुःख कभी नहीं है. 
५. 
इरुल सेर   इरुविनैयुम  सेरा  इरैवन  

पोरुल सेर पुकल  पुरिन्तार  माट्टु. 

भगवान के सच्चे यश चाहनेवाले ,
भगवान से प्यार करनेवाले  की 
अज्ञानता  की गलतियों से होनेवाले 
सुकर्म -दुष्कर्म के फल  का कुछ  प्रभाव न पड़ेगा. 

६. 
पोरिवाईल  ऐन तवित्तान  पोयतीर् ओलुक्क
नेरी निनरार  नीडुवालवार। 

पंचेंद्रियों को नियंत्रण में रखकर ईश्वर की स्तुति करनेवाले 

अनुशासित लोग जग में लम्बी उम्र जिएँगे। 









२. 
क ट्र तनाल आय  पयनेन  कॉल वालारीवन 
नट्रॉल  तोलार्  एनिन. 
पवित्र ज्ञान स्वरूपी ईश्वर के चरण स्पर्श करके 
वंदना न करें तो सीखी शिक्षा से लाभ क्या ?
३. 
मलर  मिसै एकीनान  माणडी  सेर्नतार  
निलमिसै  नीडु वॉल्वार। 

भक्तों के ह्रदय कमल में विराजमान ईश्वर के चरण 
चिर वन्दना  करनेवाले शाश्वत सुख पाएँगे।
४. 
वेंडुतल  वेंडामै  इलानडी  सेरंतारुक्कु  
याण्डुम  इडुम्बै  इल.


इच्छा -अनिच्छा रहित तटस्थ  ईश्वर के जप तप में लगे 
ईश्वर चरणार्ति  को कोई दुःख कभी नहीं है. 
५. 
इरुल सेर   इरुविनैयुम  सेरा  इरैवन  

पोरुल सेर पुकल  पुरिन्तार  माट्टु. 

भगवान के सच्चे यश चाहनेवाले ,
भगवान से प्यार करनेवाले  की 
अज्ञानता  की गलतियों से होनेवाले 
सुकर्म -दुष्कर्म के फल  का कुछ  प्रभाव न पड़ेगा. 

६. 
पोरिवाईल  ऐन तवित्तान  पोयतीर् ओलुक्क
नेरी निनरार  नीडुवालवार। 

पंचेंद्रियों को नियंत्रण में रखकर ईश्वर की स्तुति करनेवाले 

अनुशासित लोग जग में लम्बी उम्र जिएँगे। 


 तिरुक्कुरल 

तिरुवल्लुवर  तमिल भाषा के साहित्य का सूर है.
          उनके तिरुक्कुरल का अनुवाद
 संसार की प्रमुख भाषा में हो चुका  है. 
हाल  ही में गुजरात भाषामें भी हुआ  है. 

एक ही ग्रन्थ के कई अनुवादक
अपनी अपनी शैली में 
      काव्यात्मक अनुवाद और गद्यानुवाद
कर चुके हैं। 
कर रहे हैं।
 मैं भी अपनी शैली में
लिखने की कोशिश कर रहा हूँ.

पहले कुछ अध्याय कर चुका। 

मेरा अनुवाद सिलसिलेवार  नहीं है.
अब अपने   अनुवाद ग्रन्थ को  सफल बनाने में 
श्री गणेश से प्रार्थना करता हूँ। 

प्रार्थना 
१। अकरा मुतल एलुत्तु  एल्लाम आदि 
भगवन  मुतट्रे उलकु।

अक्षरों का आदि अक्षर "अकार " है. 
वैसे ही संसार का आधार भगवान है. 

२. 
क ट्र तनाल आय  पयनेन  कॉल वालारीवन 
नट्रॉल  तोलार्  एनिन. 
पवित्र ज्ञान स्वरूपी ईश्वर के चरण स्पर्श करके 
वंदना न करें तो सीखी शिक्षा से लाभ क्या ?
३. 
मलर  मिसै एकीनान  माणडी  सेर्नतार  
निलमिसै  नीडु वॉल्वार। 

भक्तों के ह्रदय कमल में विराजमान ईश्वर के चरण 
चिर वन्दना  करनेवाले शाश्वत सुख पाएँगे।
४. 
वेंडुतल  वेंडामै  इलानडी  सेरंतारुक्कु  
याण्डुम  इडुम्बै  इल.


इच्छा -अनिच्छा रहित तटस्थ  ईश्वर के जप तप में लगे 
ईश्वर चरणार्ति  को कोई दुःख कभी नहीं है. 
५. 
इरुल सेर   इरुविनैयुम  सेरा  इरैवन  

पोरुल सेर पुकल  पुरिन्तार  माट्टु. 

भगवान के सच्चे यश चाहनेवाले ,
भगवान से प्यार करनेवाले  की 
अज्ञानता  की गलतियों से होनेवाले 
सुकर्म -दुष्कर्म के फल  का कुछ  प्रभाव न पड़ेगा. 

६. 
पोरिवाईल  ऐन तवित्तान  पोयतीर् ओलुक्क
नेरी निनरार  नीडुवालवार। 

पंचेंद्रियों को नियंत्रण में रखकर ईश्वर की स्तुति करनेवाले 

अनुशासित लोग जग में लम्बी उम्र जिएँगे। 



















Tuesday, January 12, 2016

तिरुक्कुरल --1 to 6-- praarthnaa प्रार्थना

 तिरुक्कुरल 

तिरुवल्लुवर  तमिल भाषा के साहित्य का सूर है.
          उनके तिरुक्कुरल का अनुवाद
 संसार की प्रमुख भाषा में हो चुका  है. 
हाल  ही में गुजरात भाषामें भी हुआ  है. 

एक ही ग्रन्थ के कई अनुवादक
अपनी अपनी शैली में 
      काव्यात्मक अनुवाद और गद्यानुवाद
कर चुके हैं। 
कर रहे हैं।
 मैं भी अपनी शैली में
लिखने की कोशिश कर रहा हूँ.

पहले कुछ अध्याय कर चुका। 

मेरा अनुवाद सिलसिलेवार  नहीं है.
अब अपने   अनुवाद ग्रन्थ को  सफल बनाने में 
श्री गणेश से प्रार्थना करता हूँ। 

प्रार्थना 
१। अकरा मुतल एलुत्तु  एल्लाम आदि 
भगवन  मुतट्रे उलकु।

अक्षरों का आदि अक्षर "अकार " है. 
वैसे ही संसार का आधार भगवान है. 

 तिरुक्कुरल 

तिरुवल्लुवर  तमिल भाषा के साहित्य का सूर है.
          उनके तिरुक्कुरल का अनुवाद
 संसार की प्रमुख भाषा में हो चुका  है. 
हाल  ही में गुजरात भाषामें भी हुआ  है. 

एक ही ग्रन्थ के कई अनुवादक
अपनी अपनी शैली में 
      काव्यात्मक अनुवाद और गद्यानुवाद
कर चुके हैं। 
कर रहे हैं।
 मैं भी अपनी शैली में
लिखने की कोशिश कर रहा हूँ.

पहले कुछ अध्याय कर चुका। 

मेरा अनुवाद सिलसिलेवार  नहीं है.
अब अपने   अनुवाद ग्रन्थ को  सफल बनाने में 
श्री गणेश से प्रार्थना करता हूँ। 

प्रार्थना 
१। अकरा मुतल एलुत्तु  एल्लाम आदि 
भगवन  मुतट्रे उलकु।

अक्षरों का आदि अक्षर "अकार " है. 
वैसे ही संसार का आधार भगवान है. 

२. 
क ट्र तनाल आय  पयनेन  कॉल वालारीवन 
नट्रॉल  तोलार्  एनिन. 
पवित्र ज्ञान स्वरूपी ईश्वर के चरण स्पर्श करके 
वंदना न करें तो सीखी शिक्षा से लाभ क्या ?
३. 
मलर  मिसै एकीनान  माणडी  सेर्नतार  
निलमिसै  नीडु वॉल्वार। 

भक्तों के ह्रदय कमल में विराजमान ईश्वर के चरण 
चिर वन्दना  करनेवाले शाश्वत सुख पाएँगे।
४. 
वेंडुतल  वेंडामै  इलानडी  सेरंतारुक्कु  
याण्डुम  इडुम्बै  इल.


इच्छा -अनिच्छा रहित तटस्थ  ईश्वर के जप तप में लगे 
ईश्वर चरणार्ति  को कोई दुःख कभी नहीं है. 
५. 
इरुल सेर   इरुविनैयुम  सेरा  इरैवन  

पोरुल सेर पुकल  पुरिन्तार  माट्टु. 

भगवान के सच्चे यश चाहनेवाले ,
भगवान से प्यार करनेवाले  की 
अज्ञानता  की गलतियों से होनेवाले 
सुकर्म -दुष्कर्म के फल  का कुछ  प्रभाव न पड़ेगा. 

६. 
पोरिवाईल  ऐन तवित्तान  पोयतीर् ओलुक्क
नेरी निनरार  नीडुवालवार। 

पंचेंद्रियों को नियंत्रण में रखकर ईश्वर की स्तुति करनेवाले 

अनुशासित लोग जग में लम्बी उम्र जिएँगे। 









२. 
क ट्र तनाल आय  पयनेन  कॉल वालारीवन 
नट्रॉल  तोलार्  एनिन. 
पवित्र ज्ञान स्वरूपी ईश्वर के चरण स्पर्श करके 
वंदना न करें तो सीखी शिक्षा से लाभ क्या ?
३. 
मलर  मिसै एकीनान  माणडी  सेर्नतार  
निलमिसै  नीडु वॉल्वार। 

भक्तों के ह्रदय कमल में विराजमान ईश्वर के चरण 
चिर वन्दना  करनेवाले शाश्वत सुख पाएँगे।
४. 
वेंडुतल  वेंडामै  इलानडी  सेरंतारुक्कु  
याण्डुम  इडुम्बै  इल.


इच्छा -अनिच्छा रहित तटस्थ  ईश्वर के जप तप में लगे 
ईश्वर चरणार्ति  को कोई दुःख कभी नहीं है. 
५. 
इरुल सेर   इरुविनैयुम  सेरा  इरैवन  

पोरुल सेर पुकल  पुरिन्तार  माट्टु. 

भगवान के सच्चे यश चाहनेवाले ,
भगवान से प्यार करनेवाले  की 
अज्ञानता  की गलतियों से होनेवाले 
सुकर्म -दुष्कर्म के फल  का कुछ  प्रभाव न पड़ेगा. 

६. 
पोरिवाईल  ऐन तवित्तान  पोयतीर् ओलुक्क
नेरी निनरार  नीडुवालवार। 

पंचेंद्रियों को नियंत्रण में रखकर ईश्वर की स्तुति करनेवाले 

अनुशासित लोग जग में लम्बी उम्र जिएँगे। 


 तिरुक्कुरल 

तिरुवल्लुवर  तमिल भाषा के साहित्य का सूर है.
          उनके तिरुक्कुरल का अनुवाद
 संसार की प्रमुख भाषा में हो चुका  है. 
हाल  ही में गुजरात भाषामें भी हुआ  है. 

एक ही ग्रन्थ के कई अनुवादक
अपनी अपनी शैली में 
      काव्यात्मक अनुवाद और गद्यानुवाद
कर चुके हैं। 
कर रहे हैं।
 मैं भी अपनी शैली में
लिखने की कोशिश कर रहा हूँ.

पहले कुछ अध्याय कर चुका। 

मेरा अनुवाद सिलसिलेवार  नहीं है.
अब अपने   अनुवाद ग्रन्थ को  सफल बनाने में 
श्री गणेश से प्रार्थना करता हूँ। 

प्रार्थना 
१। अकरा मुतल एलुत्तु  एल्लाम आदि 
भगवन  मुतट्रे उलकु।

अक्षरों का आदि अक्षर "अकार " है. 
वैसे ही संसार का आधार भगवान है. 

२. 
क ट्र तनाल आय  पयनेन  कॉल वालारीवन 
नट्रॉल  तोलार्  एनिन. 
पवित्र ज्ञान स्वरूपी ईश्वर के चरण स्पर्श करके 
वंदना न करें तो सीखी शिक्षा से लाभ क्या ?
३. 
मलर  मिसै एकीनान  माणडी  सेर्नतार  
निलमिसै  नीडु वॉल्वार। 

भक्तों के ह्रदय कमल में विराजमान ईश्वर के चरण 
चिर वन्दना  करनेवाले शाश्वत सुख पाएँगे।
४. 
वेंडुतल  वेंडामै  इलानडी  सेरंतारुक्कु  
याण्डुम  इडुम्बै  इल.


इच्छा -अनिच्छा रहित तटस्थ  ईश्वर के जप तप में लगे 
ईश्वर चरणार्ति  को कोई दुःख कभी नहीं है. 
५. 
इरुल सेर   इरुविनैयुम  सेरा  इरैवन  

पोरुल सेर पुकल  पुरिन्तार  माट्टु. 

भगवान के सच्चे यश चाहनेवाले ,
भगवान से प्यार करनेवाले  की 
अज्ञानता  की गलतियों से होनेवाले 
सुकर्म -दुष्कर्म के फल  का कुछ  प्रभाव न पड़ेगा. 

६. 
पोरिवाईल  ऐन तवित्तान  पोयतीर् ओलुक्क
नेरी निनरार  नीडुवालवार। 

पंचेंद्रियों को नियंत्रण में रखकर ईश्वर की स्तुति करनेवाले 

अनुशासित लोग जग में लम्बी उम्र जिएँगे। 

 तिरुक्कुरल 

तिरुवल्लुवर  तमिल भाषा के साहित्य का सूर है.
          उनके तिरुक्कुरल का अनुवाद
 संसार की प्रमुख भाषा में हो चुका  है. 
हाल  ही में गुजरात भाषामें भी हुआ  है. 

एक ही ग्रन्थ के कई अनुवादक
अपनी अपनी शैली में 
      काव्यात्मक अनुवाद और गद्यानुवाद
कर चुके हैं। 
कर रहे हैं।
 मैं भी अपनी शैली में
लिखने की कोशिश कर रहा हूँ.

पहले कुछ अध्याय कर चुका। 

मेरा अनुवाद सिलसिलेवार  नहीं है.
अब अपने   अनुवाद ग्रन्थ को  सफल बनाने में 
श्री गणेश से प्रार्थना करता हूँ। 

प्रार्थना 
१। अकरा मुतल एलुत्तु  एल्लाम आदि 
भगवन  मुतट्रे उलकु।

अक्षरों का आदि अक्षर "अकार " है. 
वैसे ही संसार का आधार भगवान है. 

 तिरुक्कुरल 

तिरुवल्लुवर  तमिल भाषा के साहित्य का सूर है.
          उनके तिरुक्कुरल का अनुवाद
 संसार की प्रमुख भाषा में हो चुका  है. 
हाल  ही में गुजरात भाषामें भी हुआ  है. 

एक ही ग्रन्थ के कई अनुवादक
अपनी अपनी शैली में 
      काव्यात्मक अनुवाद और गद्यानुवाद
कर चुके हैं। 
कर रहे हैं।
 मैं भी अपनी शैली में
लिखने की कोशिश कर रहा हूँ.

पहले कुछ अध्याय कर चुका। 

मेरा अनुवाद सिलसिलेवार  नहीं है.
अब अपने   अनुवाद ग्रन्थ को  सफल बनाने में 
श्री गणेश से प्रार्थना करता हूँ। 

प्रार्थना 
१। अकरा मुतल एलुत्तु  एल्लाम आदि 
भगवन  मुतट्रे उलकु।

अक्षरों का आदि अक्षर "अकार " है. 
वैसे ही संसार का आधार भगवान है. 

२. 
क ट्र तनाल आय  पयनेन  कॉल वालारीवन 
नट्रॉल  तोलार्  एनिन. 
पवित्र ज्ञान स्वरूपी ईश्वर के चरण स्पर्श करके 
वंदना न करें तो सीखी शिक्षा से लाभ क्या ?
३. 
मलर  मिसै एकीनान  माणडी  सेर्नतार  
निलमिसै  नीडु वॉल्वार। 

भक्तों के ह्रदय कमल में विराजमान ईश्वर के चरण 
चिर वन्दना  करनेवाले शाश्वत सुख पाएँगे।
४. 
वेंडुतल  वेंडामै  इलानडी  सेरंतारुक्कु  
याण्डुम  इडुम्बै  इल.


इच्छा -अनिच्छा रहित तटस्थ  ईश्वर के जप तप में लगे 
ईश्वर चरणार्ति  को कोई दुःख कभी नहीं है. 
५. 
इरुल सेर   इरुविनैयुम  सेरा  इरैवन  

पोरुल सेर पुकल  पुरिन्तार  माट्टु. 

भगवान के सच्चे यश चाहनेवाले ,
भगवान से प्यार करनेवाले  की 
अज्ञानता  की गलतियों से होनेवाले 
सुकर्म -दुष्कर्म के फल  का कुछ  प्रभाव न पड़ेगा. 

६. 
पोरिवाईल  ऐन तवित्तान  पोयतीर् ओलुक्क
नेरी निनरार  नीडुवालवार। 

पंचेंद्रियों को नियंत्रण में रखकर ईश्वर की स्तुति करनेवाले 

अनुशासित लोग जग में लम्बी उम्र जिएँगे। 









२. 
क ट्र तनाल आय  पयनेन  कॉल वालारीवन 
नट्रॉल  तोलार्  एनिन. 
पवित्र ज्ञान स्वरूपी ईश्वर के चरण स्पर्श करके 
वंदना न करें तो सीखी शिक्षा से लाभ क्या ?
३. 
मलर  मिसै एकीनान  माणडी  सेर्नतार  
निलमिसै  नीडु वॉल्वार। 

भक्तों के ह्रदय कमल में विराजमान ईश्वर के चरण 
चिर वन्दना  करनेवाले शाश्वत सुख पाएँगे।
४. 
वेंडुतल  वेंडामै  इलानडी  सेरंतारुक्कु  
याण्डुम  इडुम्बै  इल.


इच्छा -अनिच्छा रहित तटस्थ  ईश्वर के जप तप में लगे 
ईश्वर चरणार्ति  को कोई दुःख कभी नहीं है. 
५. 
इरुल सेर   इरुविनैयुम  सेरा  इरैवन  

पोरुल सेर पुकल  पुरिन्तार  माट्टु. 

भगवान के सच्चे यश चाहनेवाले ,
भगवान से प्यार करनेवाले  की 
अज्ञानता  की गलतियों से होनेवाले 
सुकर्म -दुष्कर्म के फल  का कुछ  प्रभाव न पड़ेगा. 

६. 
पोरिवाईल  ऐन तवित्तान  पोयतीर् ओलुक्क
नेरी निनरार  नीडुवालवार। 

पंचेंद्रियों को नियंत्रण में रखकर ईश्वर की स्तुति करनेवाले 

अनुशासित लोग जग में लम्बी उम्र जिएँगे। 


 तिरुक्कुरल 

तिरुवल्लुवर  तमिल भाषा के साहित्य का सूर है.
          उनके तिरुक्कुरल का अनुवाद
 संसार की प्रमुख भाषा में हो चुका  है. 
हाल  ही में गुजरात भाषामें भी हुआ  है. 

एक ही ग्रन्थ के कई अनुवादक
अपनी अपनी शैली में 
      काव्यात्मक अनुवाद और गद्यानुवाद
कर चुके हैं। 
कर रहे हैं।
 मैं भी अपनी शैली में
लिखने की कोशिश कर रहा हूँ.

पहले कुछ अध्याय कर चुका। 

मेरा अनुवाद सिलसिलेवार  नहीं है.
अब अपने   अनुवाद ग्रन्थ को  सफल बनाने में 
श्री गणेश से प्रार्थना करता हूँ। 

प्रार्थना 
१। अकरा मुतल एलुत्तु  एल्लाम आदि 
भगवन  मुतट्रे उलकु।

अक्षरों का आदि अक्षर "अकार " है. 
वैसे ही संसार का आधार भगवान है. 

२. 
क ट्र तनाल आय  पयनेन  कॉल वालारीवन 
नट्रॉल  तोलार्  एनिन. 
पवित्र ज्ञान स्वरूपी ईश्वर के चरण स्पर्श करके 
वंदना न करें तो सीखी शिक्षा से लाभ क्या ?
३. 
मलर  मिसै एकीनान  माणडी  सेर्नतार  
निलमिसै  नीडु वॉल्वार। 

भक्तों के ह्रदय कमल में विराजमान ईश्वर के चरण 
चिर वन्दना  करनेवाले शाश्वत सुख पाएँगे।
४. 
वेंडुतल  वेंडामै  इलानडी  सेरंतारुक्कु  
याण्डुम  इडुम्बै  इल.


इच्छा -अनिच्छा रहित तटस्थ  ईश्वर के जप तप में लगे 
ईश्वर चरणार्ति  को कोई दुःख कभी नहीं है. 
५. 
इरुल सेर   इरुविनैयुम  सेरा  इरैवन  

पोरुल सेर पुकल  पुरिन्तार  माट्टु. 

भगवान के सच्चे यश चाहनेवाले ,
भगवान से प्यार करनेवाले  की 
अज्ञानता  की गलतियों से होनेवाले 
सुकर्म -दुष्कर्म के फल  का कुछ  प्रभाव न पड़ेगा. 

६. 
पोरिवाईल  ऐन तवित्तान  पोयतीर् ओलुक्क
नेरी निनरार  नीडुवालवार। 

पंचेंद्रियों को नियंत्रण में रखकर ईश्वर की स्तुति करनेवाले 

अनुशासित लोग जग में लम्बी उम्र जिएँगे। 







तिरुक्कुरल ---२. वान चिरप्पु ---वर्षा  की विशेषता। 


  १, वर्षा के होने  से संसार जी रहा है; अतः वर्षा अमृत-सम है;

२.  वर्षा अनाज और अन्य खाद्य -पदार्थों की उत्पत्ति करती है; प्यासे का प्यास बुझाती है। 
३. वर्षा न होने पर समुद्र से घेरे इस संसार के लोग भूखे रहेंगे। 

४. वर्षा  न हुयी तो किसान हल लेकर खेत  न जोतेंगे।. (परिणाम संकट में लोग. महंगाई )

५. बिना बरसे बिगाड़ेगी वर्षा  जन  जीवन को; यो ही बरसकर सुखीबनायेगी वर्षा।

६.. वर्षा की बूँदें आसमान से न गिरेंगी तो घास तक न पनपेगा ; न होगी हरियाली।

७. मेघ  समुन्दर के पानी लेकर भाप बनाकर न बरसेगा  तो समुद्र भी सूख जाएगा।

८. वर्षा न होगी तो  ईश्वर की पूजा आराधना ,मेला उत्सव ,दैनिक पूजा पाठ सब बंद हो जाएंगे. 

९. वर्षा न होगीतो  संसार में दान -धर्म काम भी न चलेगा।  

१०. बड़े बादशाह हो अर्थात सम्राट हो ,जितना भी महान हो ,पर  वर्षा न होने पर जीना दुश्वार हो जाएगा। अनुशासन न रहेगा।  सभी दुष्कर्म होने लगेगा। 




तिरुक्कुरल ---२. वान चिरप्पु ---वर्षा  की विशेषता। 


  १, वर्षा के होने  से संसार जी रहा है; अतः वर्षा अमृत-सम है;

२.  वर्षा अनाज और अन्य खाद्य -पदार्थों की उत्पत्ति करती है; प्यासे का प्यास बुझाती है। 
३. वर्षा न होने पर समुद्र से घेरे इस संसार के लोग भूखे रहेंगे। 

४. वर्षा  न हुयी तो किसान हल लेकर खेत  न जोतेंगे।. (परिणाम संकट में लोग. महंगाई )

५. बिना बरसे बिगाड़ेगी वर्षा  जन  जीवन को; यो ही बरसकर सुखीबनायेगी वर्षा।

६.. वर्षा की बूँदें आसमान से न गिरेंगी तो घास तक न पनपेगा ; न होगी हरियाली।

७. मेघ  समुन्दर के पानी लेकर भाप बनाकर न बरसेगा  तो समुद्र भी सूख जाएगा।

८. वर्षा न होगी तो  ईश्वर की पूजा आराधना ,मेला उत्सव ,दैनिक पूजा पाठ सब बंद हो जाएंगे. 

९. वर्षा न होगीतो  संसार में दान -धर्म काम भी न चलेगा।  

१०. बड़े बादशाह हो अर्थात सम्राट हो ,जितना भी महान हो ,पर  वर्षा न होने पर जीना दुश्वार हो जाएगा। अनुशासन न रहेगा।  सभी दुष्कर्म होने लगेगा। 










































Monday, January 11, 2016

मन में कुछ नहीं

मन   मानता है या नहीं
अपनों के लिए
अपने खून के रिश्तों केलिए
अपनी दोस्ती निभाने के लिए
अपने प्यार के लिए
अपने स्वार्थ साधनके लिए
मानव भले बुरे कार्य में लग जाते हैं
भले अनुयायी भले मार्ग के प्रचार में।
बुरे अनुयायी बुराई के प्रचार में
ऐसे भी है कुछ पिछलग्गु
भले बुरे के मिश्रित प्रचार में।
तीसरों के कारण बनता बिगडता संसार।