Thursday, January 28, 2016

प्रेम -संपत्ति --तिरुक्कुरल ७१--८०

तिरुक्कुरल 
प्रेम -संपत्ति --७१ से ८० तक.
  1. प्यार या प्रेम को बंद कर रखने  की कोई ताला  या कुंडी नहीं है; अपने प्रियजनों के दुःख देख आंसू अपने आप  प्यार प्रकट होगा ।
  2. जिनमें प्रेम नहीं है ,वे ही सब कुछ  मेरे कहेंगे। जिनमें प्रेम है वे अपनी हड्डी को भी पराये कहेंगे.अर्थात सर्वस्व तजने तैयार रहेंगे.
  3. प्राण पाना दुर्लभ हैं ; उसका बड़प्पन शरीर में रहने में है. शरीर से छूटने पर प्राण का महत्त्व नहीं ;वैसे ही प्यार की दशा हैं। 
  4. प्यार ही संसार  से आसक्त रहने का साधन है, प्यार भरा मन ही मित्रता निभा सकता है ;बड़ा सकता है.
  5. प्यार भरे दिलवाले ही संसार में  सानंद जी सकते हैं.
  6. प्यार वीरता का भी साथी हैं ,जो इस बात को नहीं समझते ,वे ही कहेंगे प्रेम केवल शर्म से सम्बंधित है.
  7. जिस में प्रेम नहीं हैं उसको धर्म ऐसे मारेगा जैसे हड्डी हीन जीवों को धुप जला देता है;
  8. प्रेम हीन जीवन मरुभूमि के सूखे वृक्ष के सामान है.
  9. आतंरिक दिल में प्रेम न होकर बाहरी अंगों की सुन्दरता व्यर्थ है। 
  10. प्रेम युक्त शरीर ही प्राण युक्त शरीर है;प्रेमविहीन शरीर  केवल चमड़े से ढके हड्डियों का ढांचा है.

संतान प्राप्ति --तिरुक्कुरल ६१ से ७० तक,

संतान प्राप्ति 
तिरुक्कुरल --६१ से ७० तक 

  1. गृहस्थ जीवन में चतुर होनहार  होशियार पुत्रों का पैदा होना ही सैव्श्रेष्ठ आनंद है। 
  2. जन्मे बच्चे सदाचार सद्गुणी हो जाते तो सातों परम्पराओं को कल्याण होगा  और कोई बुराई नहीं होगी। 
  3. मनुष्य जीवन में  संतान ही संपत्ति है;पर उन संतानों की संपत्ति उनके कर्म पर आधारित.
  4. कहते हैं अमृत ही श्रेष्ठतम है;पर अपनी संतान के नन्ही नन्ही उँगलियों से स्पर्शित  मिश्रित रोटी या भात उस अमृत से श्रेष्ठ है। 
  5. अपनी संतानों से गले लगाकर खुश होना मन और तन को आनंदप्रद है और उनकी तुतली बोली सुनना श्रवण सुख है.
  6. जिन लोगों ने अपनी संतान की तुतली बोली नहीं सुनी वे ही कहेंगे मुरली मधुर और वीणा मधुर।
  7. एक अभिभावक को अपनी संतान के लिए वही बड़ी सहायता है,जिनसे संतान भरी  विद्वत सभा में निर्भयता से अपने विचार प्रकट कर सके। 
  8. माता-पिता से बढ़कर कोई संतान ज्ञानी हो तो केवल माता -पिता  ही नहीं बल्कि सारा संसार खुश होगा।
  9. अपने बेटे को ज्ञानी होने की प्रशंसा सुनकर माता  उसके जन्म की खुशी  से बढ़कर अधिक खुशी का अनुभव करेगी। 
  10. एक संतान को अपने कर्म और ज्ञान द्वारा अग जग में नाम पाने से लोगों को कहना चाहिए  कि ऐसे पुत्र रत्न की प्राप्ति के लिए उसके माता पिता ने बड़ी तपस्या की है. यही उस पुत्र को अपने माता पिता के प्रति उपहार है।


Wednesday, January 27, 2016

तिरुक्कुरल ---अर्द्धन्गिनी --५१--६०

तिरुक्कुरल ---अर्द्धन्गिनी --५१--६० 


  1. आदर्श अर्द्धांगिनी वह है जो  सद्गुणों  से भरी  है  और पति की आमदनी के अनुसार गृह संभालती हैं.
  2. सद्गुणों से युक्त पत्नी न मिली तो उस गृहस्थ का कोई विशेष महत्त्व नहीं रहता. 
  3. सद्गुणों से युक्त  अर्द्धांगिनी  मिलने पर वह सौभाग्यवान  और सब कुछ प्राप्त गृहस्थ होगा.सद्गुण  न  होने पर सब कुछ होकर भी सब कुछ  खोया हुआ गृहस्थ है.
  4. स्त्रीयों में दृढ़ पतिव्रता  हो तो उससे बढ़कर पत्नी की  और कोई विशेष  बात  की आवश्यकता नहीं  है .
  5. .पत्नी जो सिवा पति के अन्य देवताओं  की प्रार्थना में नहीं लगती ,उसकी आज्ञा से वर्षा होगी .
  6. वही औरत है जो खुद पतिव्रता धर्म निभाती हैं और पति को भी निभाने में समर्थ होती है .
  7. सद्गुणों से अपने को रक्षा करके जीनेवाली  औरत को सताना अज्ञानता होगी. 
  8. पति का यशोगान करते हुए गृहस्थ निभानेवाली औरत स्वर्ग प्राप्त करेगी .
  9. सद्गुणी और सदाचारी पुरुष मिलनेपर औरत को गृहस्थ जीवन आनंद से भरा रहे गा, 
  10. पत्नी  अपने पति से प्यार करके तारीफ न करेगी तो  पति सर ऊंचा करके बैल सा नहीं चल सकता.
  11. पत्नी के सद्गुण ही  आदर्श  गृहस्थ  जीवन  है;गृहस्थ जीवन के आभूषण सदाचार पुत्र को जन्म लेने में हैं .

Tuesday, January 26, 2016

गृहस्थ जीवन तिरुक्कुरल ४१ से ५० तक.

गृहस्थ   ---तिरुक्कुरल ४१ से ५० तक. 

  1.   गृहस्थ  वही  है ,जो अपने परिवार के सभी नाते -रिश्ते का  पालन -पोषण सही ढंग से करता है. परिवार का सहायक है.
  2. गृहस्थ जो सपरिवार रहता है ,उसको साधू- संत ,दीन -दुखियों और अपने यहाँ मरनेवालों की अंतिम क्रियाएं करनी  चाहिए. वही गृहस्थ धर्म है.
  3. गृहस्थ जीवन की श्रेष्ठता उसी में हैं ,जिनकी कमाई ईमानदारी हो; अपयश से संपत्ति न जोड़े. निंदा कर्म की संपत्ति से डरें. गृहस्थ  का सार्थक जीवन  अनुशान में है.अनुशासित कमाई के वितरण में गृहस्थ की सफलता है.
  4. गृहस्थ जीवन  की सार्थकता प्रेम पूर्ण व्यवहार में है और अनुशासन पूर्ण कर्म में है.
  5. धर्म और अनुशान के गृहस्थ में जो फल मिलते हैं ,उससे बढ़कर सुफल अन्य कर्म में नहीं मिलेगा.
  6. वही गृहस्थ श्रेष्ठ  हैं ,जिसमें  ईश्वर से मिलने ,सहज रूप में धर्म पालन करने का प्रयत्न हो.और सपरिवार जीता हो.
  7. तपस्वी के जीवन से अति श्रेष्ठ जीवन  गृहस्थ जीवन है  जो धर्म पथ पर चलता हैं और अन्यों को भी धर्म पथ से हटने नहीं देता.
  8. धर्म  का पर्यायी ही गृहस्थ जीवन हैं ,उसमें अपयश या निंदा का स्थान  न रहें तो अति श्रेष्ठ और उत्तम है.
  9. गृहस्थ जीवन के नियमों को जानसमझकर  खुद पालन करके ,दूसरों से कराने करवाने वाले गृहस्थ जीवन श्रेष्ठ है.
  10. इस संसार में रहते हुए धार्मिक अनुशासित जीवन पर चलनेवाले गृहस्थ का जीवन ईश्वर-तुल्य जीवन  है.

Friday, January 22, 2016

तिरुक्कुरल धर्म पर जोर --३१ से ४० तक.



तिरुक्कुरल --३०  से ४० 

धर्म की विशिष्टता 

  1. धर्म   से  बढ़कर  बड़ी संपत्ति और विशेषता प्रदान करनेवाला और कोई नहीं  है,
  2. धर्म भालइयों  की खेती है; जीवन की समृद्धि का आधार है. धर्म  को भूलने से बढ़कर और कोई बुराई नहीं  हैं. 
  3. जो भी कर्म करना हैं ,उन सब को धर्म मार्ग पर ही करना है. 
  4. मानसिक पवित्रता ही धर्म है; बिन मन की पवित्रता के जो भी करते हैं वे सब मिथ्याचरण है और बाह्याडम्बर है.
  5. धर्म मार्ग में ईर्ष्या ,लोभ,क्रोध और अश्लीली और चोट पहुंचनेवाले शब्द बाधाएं हैं.
  6. धर्म कर्म को स्थगित न करके तुरंत करना चाहिए; ऐसे धर्म कर्म मृत्यु के बाद भी यशोगान के योग्य बने अमर यश बन जाएगा.
  7. पालकी के अन्दर बैठने वाले और उस पालकी को ढोनेवालों से धर्म के महत्व कहने की आवश्यकता नहीं हैं .  खुद समझ लेंगे.
  8. धर्म को लगातार सुचारू रूप से करनेवालों को पुनर्जन्म  नहीं है;वह स्वर्ग में ही ठहरेगा.
  9. धर्म कर्म से जो कुछ मिलेगा वही सुखी हैं ;अधर्म से मिलनेवाले सब दुखी है.
  10. अति प्रयत्न से करने एक काम जग में है तो वह धर्म कर्म है. अपयश या निंदा का काम न करना है.






Monday, January 18, 2016

तिरुक्कुरल धर्म बड़प्पन अनासक्तियों का। २१ से ३० तक



तिरुक्कुरल धर्म 

बड़प्पन  अनासक्तियों  का। 




१. ग्रंथों का  साहस  उसी में हैं ,जिनमें चालचलन और चरित्र में अटल अनासक्त लोगों के वर्णन  हो। 


२.  अनासक्त लोगों की प्रशंसा करना उस परिमाण सम  है   ,आज तक संसार में जन्मे -मरें    लोगों की संख्याएँ। 


३. जन्म -मुक्ति  जैसे जितनी  बातें  दो -दो  हैं उनके भेदों  को जानकर  शोध करके धर्म को अपनाने वालों के यश ही  संसार में  बड़ा  हैं. 


४. पंचेंद्रियों को वश  में करके दृढ़ मन से जीनेवालों का जीवन ही संन्यास  खेत का बीज बनेगा. 


५. पंचेंद्रियों की इच्छाओं के दमन का  बल  ही देवेन्द्र   बल  के   समान बल  है। 

६.     असाध्य कर्मों को साध्य करनेवाले ही  महान  हैं, 
 जहा  में. 
         साध्य को भी न  सकनेवाले  जहां  में छोटे  है. 

७. संसार  उसके  हाथ में  है  जो   स्वाद ,प्रकाश ,ध्वनि ,गंध ,  बाधाएं  शोध करके समझ सकते हैं। 

८. बड़े महानों के बड़प्पन को उनके वेद ग्रंथों की भाषा की शैली और भाव बता देगा. 

९.  गुणी ,सदाचारी  का क्रोध क्षण भर में  मिट जाएगा।

१०. सभी लोगों से दया दिखानेवाले धार्मिक महान ही विप्र  है.


Sunday, January 17, 2016

तिरुक्कुरल ---२. वान चिरप्पु ---वर्षा की विशेषता। ११से २० तक

तिरुक्कुरल ---२. वान चिरप्पु ---वर्षा  की विशेषता। 


  १, वर्षा के होने  से संसार जी रहा है; अतः वर्षा अमृत-सम है;

२.  वर्षा अनाज और अन्य खाद्य -पदार्थों की उत्पत्ति करती है; प्यासे का प्यास बुझाती है। 
३. वर्षा न होने पर समुद्र से घेरे इस संसार के लोग भूखे रहेंगे। 

४. वर्षा  न हुयी तो किसान हल लेकर खेत  न जोतेंगे।. (परिणाम संकट में लोग. महंगाई )

५. बिना बरसे बिगाड़ेगी वर्षा  जन  जीवन को; यो ही बरसकर सुखीबनायेगी वर्षा।

६.. वर्षा की बूँदें आसमान से न गिरेंगी तो घास तक न पनपेगा ; न होगी हरियाली।

७. मेघ  समुन्दर के पानी लेकर भाप बनाकर न बरसेगा  तो समुद्र भी सूख जाएगा।

८. वर्षा न होगी तो  ईश्वर की पूजा आराधना ,मेला उत्सव ,दैनिक पूजा पाठ सब बंद हो जाएंगे. 

९. वर्षा न होगीतो  संसार में दान -धर्म काम भी न चलेगा।  

१०. बड़े बादशाह हो अर्थात सम्राट हो ,जितना भी महान हो ,पर  वर्षा न होने पर जीना दुश्वार हो जाएगा। अनुशासन न रहेगा।  सभी दुष्कर्म होने लगेगा। 





तिरुक्कुरल ---२. वान चिरप्पु ---वर्षा  की विशेषता। 


  १, वर्षा के होने  से संसार जी रहा है; अतः वर्षा अमृत-सम है;

२.  वर्षा अनाज और अन्य खाद्य -पदार्थों की उत्पत्ति करती है; प्यासे का प्यास बुझाती है। 
३. वर्षा न होने पर समुद्र से घेरे इस संसार के लोग भूखे रहेंगे। 

४. वर्षा  न हुयी तो किसान हल लेकर खेत  न जोतेंगे।. (परिणाम संकट में लोग. महंगाई )

५. बिना बरसे बिगाड़ेगी वर्षा  जन  जीवन को; यो ही बरसकर सुखीबनायेगी वर्षा।

६.. वर्षा की बूँदें आसमान से न गिरेंगी तो घास तक न पनपेगा ; न होगी हरियाली।

७. मेघ  समुन्दर के पानी लेकर भाप बनाकर न बरसेगा  तो समुद्र भी सूख जाएगा।

८. वर्षा न होगी तो  ईश्वर की पूजा आराधना ,मेला उत्सव ,दैनिक पूजा पाठ सब बंद हो जाएंगे. 

९. वर्षा न होगीतो  संसार में दान -धर्म काम भी न चलेगा।  

१०. बड़े बादशाह हो अर्थात सम्राट हो ,जितना भी महान हो ,पर  वर्षा न होने पर जीना दुश्वार हो जाएगा। अनुशासन न रहेगा।  सभी दुष्कर्म होने लगेगा।