Friday, February 26, 2016

ज्ञानियों से मित्रता --तिरुक्कुरल ४४१ से ४५० तक

ज्ञानियों  से मित्रता ४४१  से  ४५० 
१.  अपने से उम्र में बड़े ,
सूक्ष्म धार्मिक  ज्ञानियों  के मार्गदर्शन 
और मित्रता हासिल  करना  चाहिए .

२.जो दुःख हैं ,उन्हें  दूर करनेवाले  
और भविष्य में आने वाले दुःख से बचानेवाले 
 दूरदर्शी  को मित्र बना लेना चाहिए.
३.बड़ों की प्रशंसा  करके उनको मित्र बनाना मुक्ति  का  साधन  है.
४.हमसे  बढ़कर ज्ञानियों की मित्रता बलदायी  है.
५.उचित मार्गदर्शक ज्ञानियों को मित्र बनाने में ही कल्याण है. 
६.उचित बड़े ज्ञानियों के संग में रहने पर   
दुश्मन हानी नहीं पहुँचा  सकता. 
७.   जो निंदक  सज्जनों को अपने पास रखता  है , उसे   कोई उसे बिगाड़ नहीं सकता.
८.  जिस देश  में सरकार की  कमियों को  बतानेवाले नहीं होते ,वह शासन अपने  आप पतन हो जाएगा. 
९.  पूँजी रहित व्यापारी को कोई लाभ नहीं प्राप्त होगा ;वैसे  ही सज्जन के साथी रहित मित्र को  या शासकों को भी कोई प्रयोज़न नहीं  है.
१०. सज्जन मित्रों की मित्रता टूटना  दुश्मनी मोल लेना दोनों बराबर है. 

Friday, February 12, 2016

निरपराध --अर्थ -तिरुक्कुरल --४३१ से ४४०

निरपराध --अर्थ -तिरुक्कुरल --४३१ से ४४० 
१. काम ,क्रोध और मद आदि  अपराध रहित मनुष्य  ही निर्दोषी है. वे ही श्रेष्ठ  है.
२. शासकों के अपराध है --दान  न देना ,दोषी मन , अपराध में आनंद  ,बड़ों का अपमान करना आदि  अपराधी शासकों  के अवलक्षण है.  
३. 
जो अपयश से डरते हैं ,वे ज़रा - सी गलती  भी नहीं  करेंगे. तिल बराबर की गलती भी उन्हें बहुत बड़े पर्वत -सा लगेगा.
४.
अपराध ही एक मनुष्य को सर्वनाश करेगा ; अतः अपराध से बचना चाहिए. 
५. अपराध करने  से जो पहले ही नहीं अपने को बचा नहीं सकते  उनका जीवन  आग  में बड़े भूसे के सामान भस्म हो जाएगा. 
६. पहले अपने दोष और अपराधों से बचनेवाले नेता को किसी  भी  प्रकार का दुःख  न  आएगा. 
७. सत्कार्य में खर्च न करके धन जमा करने वाले कंजूस की संपत्ति बेकार हो जायेंगी . वह खुद सुख नहीं भोग सकता.
८.कंजूसों का अपराध अपराधों की सूची से हटकर विशेष अपराध हो जाएगा. 
९. किसी भी स्थिति में अपने को बड़ा मानकर अहंकार वश  दूसरों के लिए हानिकारक काम नहीं करना चाहिए.
१०.अपनी इच्छाओं और अपनी योज़नाओं को जो गोपनीय रखता है,उसको दुश्मनों का षड्यंत्र कुछ नहीं  कर सकता.

अर्थ --राजनीती --बुद्धिमत्ता --चतुराई ---तिरुक्कुरल -४२१ से ४३० तक

अर्थ --राजनीती --बुद्धिमत्ता --चतुराई ---तिरुक्कुरल -४२१ से  ४३० तक 
१.बुद्धि  सुरक्षित दुर्ग  के सामान हैं . बुद्धि हमें अपने शत्रुओं  से बचायेगी ; और हानि से भी .
२. मन को नियंत्रण में रखकर बुरे मार्ग में  न जाकर अच्छे मार्ग पर चलना ही  बुद्धिमत्ता  और  चतुराई है.
३.
दूसरे जो भी कहें उसे ज्यों का त्यों  न मानकर छानबीन करके सच्चाई जानना ही बुद्धिमत्ता है.
४.
जो कहते हैं  ,उसे अधिक सरलता से  श्रोताओं  को समझाना ही बुद्धिमत्ता है. वैसे ही दूसरों की बातें  सुनकर उनको सूक्ष्मता से समझना  भी बुद्धिमत्ता है. 
५. 
संसार के  सब  से  बड़े लोगों को मित्रता बनाना ही बुद्धिमत्ता है, ऐसे बनाने से खिला हुआ चेहरा  कभी नहीं कुम्हालाएगा.
६. 
संसार  जैसा हैं ,वैसा ही संसार  के साथ चलना बुद्धिमत्ता है.
७.
चतुर / बुद्धिमान लोग भविष्य में होनेवाली
 घटनाओं को जान सकते हैं .बुद्धिहीन लोग  भविष्य  को जान  नहीं सकते. चतुर दूरदर्शी होते  हैं .
८.
जिन बातों से डरना हैं ,उनसे डरना ही बुद्धिमत्ता है;
९.
जो बुद्धिमान दूरदर्शी होते  हैं ,उनको धक्का देने का कष्ट कभी  नहीं  होगा.
१०.
बुद्धिमानों  के पास  कुछ भी न होने पर भी  ,ऐसे रहेंगे  जैसे सब कुछ  अपने पास है. पर बुद्धीहीनों  के पास सब कुछ होने पर भी ,वैसी ही हैं ,जिसके पास कुछ  न हो.

Thursday, February 11, 2016

धर्म --राजनीती --राज्य और राजा की विशेषता ---तिरुक्कुरल ३८१ से ३९०

 धर्म --राजनीती --राज्य  और राजा की विशेषता ---तिरुक्कुरल ३८१ से ३९० 

१. राज्यों में श्रेष्ठ सिंह जैसे  राज्य  के छे अंग हैं  , शक्ति शाली सेना ,होशियार होनहार प्रजा ,धन का न घटना ,अटूट मित्रता ,मजबूत किला ,निर्दोष मंत्री  आदि. 
२. साहस , दया( दानी ) ,चतुराई ,ऊंचे लक्ष्य पर पहुँचने के सिद्धांत  आदि चार ही आदर्श राजा के स्वभाव है.
३.राजा के आवश्यक शाश्वत  तीन गुण हैं --समय का पालन ,ज्ञान और साहस .
४. श्रेष्ठ राजा के लक्षण हैं :-१. धर्म मार्ग पर अटल चलना २. अधर्म को मिटाना ,निष्कलंक ,३.वीरता ४. मर्यादा  आदि .
५.
संसार उसी राजा 
को ही चाहेगा, प्रशंसा करेगा ,
 जो देखने में सीधा साधा हो 
और मधुरवाणी बोलता हो ,
कठोर शब्द न बोलता हो.
६.
न्यायोचित मार्ग पर कर वसूल करके  खजाना 
भरना   और धन को सुरक्षित रखकर सही   योज़ना  बनाकर  खर्च  करना    ही   सुशासन  के लक्षण  है.
७.

मधुर बोली बोलकर  उचित ज़रूरतमंदों को दान देनेवाले उदार राजा  ही संसार के लोगों  की प्रशंसा के पात्र बनेंगे. 
८. 
न्याय और नैतिक में तटस्थ राजा  को  ही लोग ईश्वर तुल्य  सम्मान देंगे .
९.
निंदकों की बातें सहने वाले  गुणी शासक के अधीन/ उनके छत्र -छाया   में  ही संसार ठहरेगा.
१०.
दानी ,दयालु ,न्याय पर अटल ,दुखीलोगों  के रक्षक  आदि गुणवाले शासक  आकाश दीप के समान होते हैं. 


Wednesday, February 10, 2016

तिरुक्कुरल --अर्थ -- अशिक्षा /अनपढ़ --अविद्या .४०१ से ४१० तक =

तिरुक्कुरल  --अर्थ  --   अशिक्षा /अनपढ़ --अविद्या .४०१ से ४१० तक.

१.  अधूरे ज्ञान  लेकर  शिक्षितों की  सभा में बोलना  बिना  बिछौने के जुआ खेलने के समान है .

२. विद्वानों  की सभा  में अशिक्षित  कुछ कहना चाहता है तो वह  बगैर कुछ  की लडकी स्त्रीत्व चाहने के जैसे है.

३.शिक्षितों   की सभा  में  चुप रहने   पर  बुद्धू को भी  अच्छा  नाम मिल जाता  है.

४. अशिक्षितों को सहज ज्ञान मिलने पर भी लोग  उसके ज्ञान  नहीं  मानेंगे.

५. अशिक्षित  का शिक्षित छद्मवेश   शिक्षितों  के साथ बोलने पर खुल  जाएगा.

६. अशिक्षित बंजर भूमि के समान  है; वे चलते फिरते शव  समान  है.

७. देखने में सुन्दर ,पर अशिक्षित लोग  मिट्टी की सुन्दर मूर्ति के समान ही होंगे.

८.अशिक्षितों  के पास  जो धन   है ,वह शिक्षित  की गरीबी से  बढ़कर दुखप्रद है.

९. शिक्षित होने पर उंच -नीच के भेद मिट जायेंगे.

१०.पशु और मनुष्य में कितना अंतर है ,उतना ही अंतर शिक्षित और अशिक्षितों के बीच  में  है.

शिक्षा --अर्थ --तिरुक्कुरल ३९१ से ४००

शिक्षा --धर्म --तिरुक्कुरल ३९१ से ४०० 
१.  हमें  बिना किसी कसर के सीखना चाहिए.  सीखने के बाद प्राप्त ज्ञान का अक्षरसः  पालन करना चाहिए. धर्म मार्ग से फिसलना नहींचाहिये. 

२. अंक  और अक्षर ज्ञान  ही वास्तविक आँखें है. मनुष्य  जीवन के प्राण ये ही हैं.

३.  शिक्षित अंधे को कोई भी अँधा नहीं कहेंगे ; नेत्र होकर भी जो अशिक्षित हैं, उसे  अंधे कहेंगे.अशिक्षितों  की आँखें आँखें नहीं ,वे तो दो घाव है.

४.ज्ञानी  मिलकर रहते समय आनंदप्रद  व्यवहार करेंगे  ; बिछुड़ते समय ऐसी खुशी की बातें छोड़कर जायेंगे  कि   फिर मिलने के विचार  से पछताना  पडेगा.. यही कवियों का पेशा है. 

५.  रायीशों  के सामने  रंक अपने को हीन मानेंगे ; वैसे ही शिक्षितों के सामने अशिक्षित हीनता का महसूस करेंगे.

६.  खोदते खोदते जैसे पानी   ज्यादा निकालता हैं स्त्रोत से  वैसे ही शिक्षा भी पढ़ते -पढ़ते  बढ़ती रहेगी. 
७. शिक्षितों का आदर सर्वत्र होता है ,ऐसी हालत  में क्यों मनुष्य अशिक्षित है ?पता नहीं .
८. मनुष्य को एक जन्म में सीखी शिक्षा, कई  जन्मों तक लाभप्रद रहेगी. 
९.. अपनी सीखी शिक्षा से मिले सुख  को खुद अनुभव करके,
 संसार के लोगों को  भी शिक्षा  से मिले  आनंद  देखकर
  शिक्षित  और  अधिक पढने में  लग जायेंगे. 
१०. शिक्षा ही शाश्वत निधि है ; उसके सामान शाश्वत संपत्ति और कोई  नहीं  है. 


Tuesday, February 9, 2016

भाग्य /विधि /किस्मत . तिरुक्कुरल --३६१ से ३७० तक

भाग्य /विधि /किस्मत . तिरुक्कुरल --३६१ से ३७० तक 

१. भाग्य या विधि के अनुसार धन जुड़ने पर उत्साह बढेगा .  विधि गरीबी  लायेगी तो आलसी बढ़ेगी.
उत्साह या  आलसी विधि के कारण ही  बढ़ता है. 
२. विधि या  भाग्य  के कारण घाटा होगा तो अज्ञानता बढेगी . बेवकूफी घर कर लेगी.  संपत्ति भाग्य के अनुसार बढ़ेगी तो ज्ञान का भी विकास होगा. 
३. सूक्ष्म ज्ञान के ग्रंथों  के अध्ययनसे बढ़कर लाभ देगा सहज ज्ञान  जिसका आधार भाग्य ही है.
४.संसार में  भाग्य दो प्रकार के हैं. भाग्य किसी को अमीर बनाता है तो किसी को दरिद्र . यही विधि की विडम्बना है.
५. भाग्य बड़ी है; कल्याण कार्य करने काम शुरू करेंगे तो बुराई होगी;  बुराई करने काम शुरू करेंगे तो भलाई होगी . यही भाग्य का खेल है. 
६. जिसे  हम अधिक चाहते है और सुरक्षित रखते हैं ,उसे भाग्य  रहने नहीं देगा, जिसे हम नहीं चाहते उसे भाग्य जाने नहीं देगा.
७. करोड़ों रूपये  मेहनत करके कमाने पर भी भाग्य हो तो उसे भोग सकते है.  कमानेवाले के इच्छानुसार भोगना  अपने अपने भाग्य पर निर्भर है.
८.कष्ट भोगने की विधि लिखित आदमी को कष्टमय जीवन से मुक्ति नहीं मिलेगी ; विधि उसको संन्यास बन्ने नहीं देगी. 
९.जीवन में सुख -दुःख बदल बदल कर आयेंगे. सुख में प्रसन्नता और दुःख में अप्रसन्नता क्यों ?पता नहीं. 
१०.भाग्य से बढ़कर बलवान संसार में  कोई नहीं है. भाग्य से बचने के उपाय करने जायेंगे तो आगे विधि रोकने आयेगी.