Sunday, July 17, 2016

जीवन की सार्थकता

कितनी माया   कितनी  ममता,कितना  मोह ।
कितनी  चाहें, कितने प्यार।
देश प्रेम ,,भाषा प्रेम , ईश्वर प्रेम,
यश प्रेम,  धन प्रेम , दान प्रेम , सेवा प्रेम
मेवा प्रेम ,धर्म प्रेम,अधर्म प्रैम, हिंसा प्रेमेम
अहिंसा प्रेम, सत्य पेम, असत्य प्रेम,
   स्वार्थ निस्वार्थ प्रेम, शांति -अशांति प्रिय
प्रेम में कई जान बचाने - जान तजने प्रेम तो कई ।
जवानी में लडकियों के पीछे घूमने,सोचने, लिखने,
कल्पना के घोडे दौडाने, पशु तुल्य प्रेम जो है,
कई यवकों को आजकल पागल खाना भेजने तैयार।
सोचो, बढो,  संयम सीखो, यह जोश
रावणनों को, शाहजहानों को, कीचकोंको
मन में लाकर हतयारा बनाकर कर देता
जीवन को नरक - तुल्य।
सोचो युवकों! जागो, नर हो, संयम सीखो।
बीस से तीस के जीवन सतर्क रहो तो
जीवन बनेगा समर्थक।  सार्थक।

Friday, July 15, 2016

सत्य भक्ति

कहते  हैं   जग  में ,
एजी  जग  में ,
देश में  ,गली  में , हर  जगह 
सत्यमेव  जयते.
माया  -ममता  -मोह भरे   जग  में ,
सत्य  की ही  विजय  इसका  कोई  सबूत  नहीं .
सबूत  है  तो  कोई प्रमाणित  कीजिये.
एक  ही नाटक  हरिश्चंद्र  उसको  देख  या  पढ़ 
सत्य  बोलने  डरेगा  संसार. 
आदमी  निर्मित न्यायालय  में
 दंड  नहीं भ्रष्टाचारी , काले  धनी  अमीरों को 
नव- ग्रह   ईश्वर   निर्मित  संविधान  में 
बच  नहीं  सकता  कोई.
यम  दरबार का  निर्णय  न्याय  निश्चित  टाल  नहीं  सकता  कोई.
अग जग  की  आध्यात्मिक   कहानियों  में ,
लौकिक  पापियों  के  धन  के  बगैर,
न  बना  मंदिर , मस्जिद , गिरिजा-घर.
करोड़ों  का   काला  धनी चढ़ाता  लाखों के  रूपये.
सच्चे  आदर्श  भक्तों  के  लिए 
वटवृक्ष  के  निचे  बैठे   विघ्नेश   ही  है  भगवान.
अर्थ  बिना  पूजा -पाठ  में पूण्य  नहीं  तो 
अर्थ  ही  नहीं  अलख  शक्ति  का.
सोचो ,समझो, जागो, 
सार्थक   पूजा मन  से ,
न भ्रष्टाचारियों  के  हीरे-सोने -चांदी  भरे आलय  -आश्रमों  में.

नव -ग्रह

आज शनिवार है,
मनुष्य के सुख - दुख में
जग के न्याय परिपालन में
नव - ग्रहों का प्रधान्य स्थान है।
मनुष्य - मनुष्य   का द्रोह,
शासकों के
अन्याय , अत्याचार, भ्रष्टाचार
आदि  का दंड- व्यवस्था,
मानव निर्मित  न्यायालस में नहीं।
नव- ग्रहौं के दंड - फल से कोई
बच  नहीं  सकता।

Thursday, July 14, 2016

प्रेम लेन देन

संसार देखो, प्रेम  के गीत गाता  है।
लेन - देन  सच्चे प्रेम नहीं।
देना ही प्रेम है सही कहते  हैं।
  कबीर तो हठयोगी , कहा -- चाह नहीं , चिंता मिटी।
वे ही प्रार्थना करते हैं --
साई इतना दीजिए, जामें कुटुंब समाय।
कम से कम दैने के लिए , 
लेना  ही पडता है।
रूप - माधुर्य  देख ही प्रेम।
नयनाभिराम  लेकर प्रेमाभिराम
देन - लेन न हौ तो प्रेम नहीं।
ईश्वरीय| प्रेम में कम से कम बिन माँगे
मुक्ति की चाह।  प्नर्जन्म की न चाह।
कहना प्रेम में न लेन केवल देेन ।
वह केवल धन   नाटक।
राम राम कह बैठा तो रामायण  फूट पडी।
ढाई अक्षर प्रेम मिल जाती पंडिताई।
स्वार्थ प्रेम  में  परमार्थ नहीं,
परमार्थ प्रेम में स्वार्थ नहीं।

Tuesday, July 12, 2016

बूढी माँ की इच्छा।

��शरीर में रौंगटे खड़े कर देने वाली कविता

    ������ *माँ की इच्छा* ������

   महीने बीत जाते हैं ,
   साल गुजर जाता है ,
   वृद्धाश्रम की सीढ़ियों पर ,
   मैं तेरी राह देखती हूँ।

                   आँचल भीग जाता है ,
                   मन खाली खाली रहता है ,
                   तू कभी नहीं आता ,
                   तेरा मनि आर्डर आता है।

                             इस बार पैसे न भेज ,
                             तू खुद आ जा ,
                             बेटा मुझे अपने साथ ,
                         अपने ��घर लेकर जा।

तेरे पापा थे जब तक ,
समय ठीक रहा कटते ,
खुली आँखों से चले गए ,
तुझे याद करते करते।

               अंत तक तुझको हर दिन ,
               बढ़िया बेटा कहते थे ,
               तेरे साहबपन का ,
               गुमान बहुत वो करते थे।

                        मेरे ह्रदय में अपनी फोटो ,
                        आकर तू देख जा ,
                        बेटा मुझे अपने साथ ,
                        अपने ��घर लेकर जा।

अकाल के समय ,
जन्म तेरा हुआ था ,
तेरे दूध के लिए ,
हमने चाय पीना छोड़ा था।

               वर्षों तक एक कपडे को ,
               धो धो कर पहना हमने ,
               पापा ने चिथड़े पहने ,
               पर तुझे स्कूल भेजा हमने।

                         चाहे तो ये सारी बातें ,
                         आसानी से तू भूल जा ,
                         बेटा मुझे अपने साथ ,
                         अपने ��घर लेकर जा।

घर के बर्तन मैं माँजूंगी ,
झाडू पोछा मैं करूंगी ,
  खाना दोनों वक्त का ,
  सबके लिए बना दूँगी।

            नाती नातिन की देखभाल ,
            अच्छी तरह करूंगी मैं ,
            घबरा मत, उनकी दादी हूँ ,
            ऐंसा नहीं कहूँगी मैं।

                        तेरे ��घर की नौकरानी ,
                        ही समझ मुझे ले जा ,
                        बेटा मुझे अपने साथ ,
                        अपने ��घर लेकर जा।

आँखें मेरी थक गईं ,
प्राण अधर में अटका है ,
तेरे बिना जीवन जीना ,
अब मुश्किल लगता है।

                 कैसे मैं तुझे भुला दूँ ,
                 तुझसे तो मैं माँ हुई ,
                 बता ऐ मेरे कुलभूषण ,
                 अनाथ मैं कैसे हुई ?

अब आ जा तू..
एक बार तो माँ कह जा ,
हो सके तो जाते जाते
वृद्धाश्रम गिराता जा।
              बेटा मुझे अपने साथ
              अपने ��घर लेकर जा

*अगर आप को सही लगा हो तो आप के पास जो भी ग्रुप है उन सभी ग्रुप में कृपया 1 बार जरूर भेजे !*
�� *शायद आपकी कोशिश से कोई " माँ " अपने �� घर चली जाये ...*

भारतीय एकता

सोचा, सोचता रहा, भेदभरे संसार में,
   एकता  -शान्ति  कैसे?
पर   अमन-चैन  देखते हैं जग में.
शान्ति दूत बने-बनाने -बनवाने  में एक दल.

हिंसा  भटकाने में एकदल,

स्वार्थमय  दल, निस्वार्थ  मय  दल.
अपना  देश, अपना मजहब, अपने लोग.
बाकी सब का हो सर्नाश.
ऐसे  लोग मुखौटा  पहनकर ,

अपने को भी बेचैनी   में  डालकर,

निर्दयी  व्यवहार करने वाले,
मुख दिखाने  लायक नहीं  होते.

भारतीय सनातन धर्म कितना श्रेष्ठ,

कितना आदर्श,  कितना ऐक्यभाव.

हिंसा-आक्रमण-प्रचार बिन, एक धर्म व्यापक,

भारतीय  धर्म  बौद्ध अहिंसा से पूर्ण,

जैन तो त्याग जिओ और जीने दो,

वासुदेव   कुटुम्बकम. 

कभी  मुखौटा  पहन

हत्या का मार्ग नहीं  दिखाता.

भारतीय   स्वार्थ राजनैतिक  हिन्दू धर्म  के एकता बाधक.

हिंसा   धर्म  टिकता नहीं,

पर   ईश्वरीय शक्ति, बनाती  है एकता.

Monday, July 11, 2016

शैतानियत

रोज   रोज  कुछ लिखना ,
लिखने   का  नया विषय
ताजा   विषय   है  नहीं,
आज  सुना शैतानियत.

कोई भी   मनुष्य   नहीं  चाहता,

ईमान से हटने; पर  वह क्या करेगा,

शैतानियत की चमकीली पर्दा ,

ईश्वरत्व को ढका  करती तो.

पैदल  चला , ईमानदार रहा.

द्विचक्र यन्त्र    लगी गाडी  खरीदी,

कर्जा   बड़ा ,  खर्च    बड़ा,
संभालने रिश्वत  लेना पड़ा.

पेड़   के  नीचे  गुरुकुल  में  पड़ा.

वहाँ न  खर्च बिजली का,
न  खर्च शौचालय सफाई का,
पर  शिशु  विद्यालय   शैतानियत 
पंखा, मेज़, कुर्सी, श्यामपट ,खड़िया,
सब  बाह्याडंबर आरान देय   सुविधा बड़ी,
रिश्वत   लेने हाथ  बड़े,

नेता-या  राजा  जन सेवाऔर  सच्चाई के बल बना,
लोगों  ने प्रलोभन बढाया तो
सादा वन उच्चा विचार, असाधारणआडम्बरमें बदला,
भेंट  ,शाल, माला, बाह्याडम्बर , क्या करता बेचारा,

उनके प्रतिद्वंद्वी   देखा  देखीबने,
चुनाव लड़ना पड़ा, शैतानियत धन केलिए

भ्रष्टाचार   बढ़ा,बेचारा बेईमान  बना,

अधिकांश को  यह शैतानियत मेंअहम्के देवत्वआया तो

शैतानियत का घोर ताण्डव   अघोर ताण्डवबन गया,