रोज रोज कुछ लिखना ,
लिखने का नया विषय
ताजा विषय है नहीं,
आज सुना शैतानियत.
कोई भी मनुष्य नहीं चाहता,
ईमान से हटने; पर वह क्या करेगा,
शैतानियत की चमकीली पर्दा ,
ईश्वरत्व को ढका करती तो.
पैदल चला , ईमानदार रहा.
द्विचक्र यन्त्र लगी गाडी खरीदी,
कर्जा बड़ा , खर्च बड़ा,
संभालने रिश्वत लेना पड़ा.
पेड़ के नीचे गुरुकुल में पड़ा.
वहाँ न खर्च बिजली का,
न खर्च शौचालय सफाई का,
पर शिशु विद्यालय शैतानियत
पंखा, मेज़, कुर्सी, श्यामपट ,खड़िया,
सब बाह्याडंबर आरान देय सुविधा बड़ी,
रिश्वत लेने हाथ बड़े,
नेता-या राजा जन सेवाऔर सच्चाई के बल बना,
लोगों ने प्रलोभन बढाया तो
सादा वन उच्चा विचार, असाधारणआडम्बरमें बदला,
भेंट ,शाल, माला, बाह्याडम्बर , क्या करता बेचारा,
उनके प्रतिद्वंद्वी देखा देखीबने,
चुनाव लड़ना पड़ा, शैतानियत धन केलिए
भ्रष्टाचार बढ़ा,बेचारा बेईमान बना,
अधिकांश को यह शैतानियत मेंअहम्के देवत्वआया तो
शैतानियत का घोर ताण्डव अघोर ताण्डवबन गया,
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