Sunday, July 31, 2016

भक्ति क्षेत्र

कुछ  लिखना है रोज ।
कुछ बकना है,
चाहक बढें  या निंदक,
इसकी चिंता न करना है।
समझे लोग किसी पागल का प्रलाप।
ध्यान न देना।
कुछ मन की बातें प्रकट करते रहना।
भक्ति क्षेत्र अति पवित्र।
आजकल हो रहा है अति अपवित्र ।
चित्रपट -रंगशाला के समान
दर्शकों का वर्गीकरण।
हजार रुपये तो अति निकट ।
मुफ्च  तो अति दूर।
कहते हैं ईश्वर के सामने सब बराबर।
देवालयों  में  पैसे हो तो तेजलदर्शन।
लाखों का यग्ञ हवन , पाप से मुक्ति।
यह पैसे का प्रलोभन  पाप बढाएँगे। या
मुक्ति देंगै तो  भक्ति भी कलंकित।
अतः  भक्ति में हो रहा है छीना-झपटी।
भक्ति क्षेत्र बदल रहा  है
जीविकोपार्जन व्यापार क्षेत्र।
पाप की कमाई हुंडी में रुपये डालो,
पाप से मुक्ति।
ऐलान करनेवाले पागल या
अनुकरण करनेवाले पागल ।
पाप का दंड बडे राजा - महाराजा भी
भोगते ही है, न छूट।
दशरथ  का पुत्र शोक ।
राम| का पत्नी - विरह।
निृ्कर्ष यही-- सब की नचावत राम गोसाई।

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