कितनी माया कितनी ममता,कितना मोह ।
कितनी चाहें, कितने प्यार।
देश प्रेम ,,भाषा प्रेम , ईश्वर प्रेम,
यश प्रेम, धन प्रेम , दान प्रेम , सेवा प्रेम
मेवा प्रेम ,धर्म प्रेम,अधर्म प्रैम, हिंसा प्रेमेम
अहिंसा प्रेम, सत्य पेम, असत्य प्रेम,
स्वार्थ निस्वार्थ प्रेम, शांति -अशांति प्रिय
प्रेम में कई जान बचाने - जान तजने प्रेम तो कई ।
जवानी में लडकियों के पीछे घूमने,सोचने, लिखने,
कल्पना के घोडे दौडाने, पशु तुल्य प्रेम जो है,
कई यवकों को आजकल पागल खाना भेजने तैयार।
सोचो, बढो, संयम सीखो, यह जोश
रावणनों को, शाहजहानों को, कीचकोंको
मन में लाकर हतयारा बनाकर कर देता
जीवन को नरक - तुल्य।
सोचो युवकों! जागो, नर हो, संयम सीखो।
बीस से तीस के जीवन सतर्क रहो तो
जीवन बनेगा समर्थक। सार्थक।
Search This Blog
Sunday, July 17, 2016
जीवन की सार्थकता
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment