हित साहित्य लिखूँ या इश्क साहित्य।
जग में भारत ही प्यार प्रधान।
इश्क और तलाक दोनों प्रधान,
भारत| पार| करो पता लगेगा।
धर्म शास्त्रियों को मालूम| है,
भारतीयों को संयम से रखना असाध्य।
त्रिदेवियों की सृष्टी की-
ईश्वरी तुल्य| मानो ।
पर कहानियाँ तो
व्यवहार में तो नारियाँ
बेगार।
सति प्रथा, जवाहरव्रत ,बाल विवाह
सब बंद। गैर - कानूनी ।
पर आज तो दैनिक अखबारों में
देश हिताषि यों त् लिए
चिंतित खबरें ।
बलात्कार !
उनके समर्थक का कहना
कितना अन्याय।
ईश्वर| का दोष!
क्यों सुंदर लडकी की सृष्टी की है।
पोशाकें अर्द्ध नग्न क्यों ?
वह क्यों मिलन सार थी।
चुप रहती तो न मरती।
हरे! अन्यायियों!
नर हो , न नर पिशाच।
नग्न आने पर भी कपडे ओढकर
रक्षा तो नहीं ,पर नियंत्रण में रहना मनुष्यता है।
तुरंत बोलते माया महा ठगनी,
मुनि - र्रिषी भी बच न पायै।
खुद इंद्र भेजते, अपनी सुंदरियों को
तपस्या भंग करने।
ऐसे समुदाय में ,जहाँ वक्र बुद्धी चालू है,
नारियों को अपनी सुरक्षा आप ही कर लेनी पडेगी।
यों ही लिख रहा था कि चौदह वर्ष के लडके से
बडी औरत का बलात्कार। हुई गर्भवती।
न जाने कहाँ जा रहा है समाज।
युग - युग से लोक - लाज रखने की खबरें,
अब सभ्यता और शिक्षा की प्रगति
बहिरंग हो रही है।
यह कसर तो किसका है ?
नर रूप के नर पिशाचों का।
कमी है शिक्षा में अनुशासन की ।
कमी है शिक्षा में अच्छी चाल - चलन की।
चित्रपट, अंतर- जाल का माया जाल।
सोचो, विचारो, जगाओ, संयम सिखाओ।
पूर्वजों ने दी धार्मिक शिक्षा।योग। ध्यान।
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