संसार देखो, प्रेम के गीत गाता है।
लेन - देन सच्चे प्रेम नहीं।
देना ही प्रेम है सही कहते हैं।
कबीर तो हठयोगी , कहा -- चाह नहीं , चिंता मिटी।
वे ही प्रार्थना करते हैं --
साई इतना दीजिए, जामें कुटुंब समाय।
कम से कम दैने के लिए ,
लेना ही पडता है।
रूप - माधुर्य देख ही प्रेम।
नयनाभिराम लेकर प्रेमाभिराम
देन - लेन न हौ तो प्रेम नहीं।
ईश्वरीय| प्रेम में कम से कम बिन माँगे
मुक्ति की चाह। प्नर्जन्म की न चाह।
कहना प्रेम में न लेन केवल देेन ।
वह केवल धन नाटक।
राम राम कह बैठा तो रामायण फूट पडी।
ढाई अक्षर प्रेम मिल जाती पंडिताई।
स्वार्थ प्रेम में परमार्थ नहीं,
परमार्थ प्रेम में स्वार्थ नहीं।
Thursday, July 14, 2016
प्रेम लेन देन
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