Thursday, July 14, 2016

प्रेम लेन देन

संसार देखो, प्रेम  के गीत गाता  है।
लेन - देन  सच्चे प्रेम नहीं।
देना ही प्रेम है सही कहते  हैं।
  कबीर तो हठयोगी , कहा -- चाह नहीं , चिंता मिटी।
वे ही प्रार्थना करते हैं --
साई इतना दीजिए, जामें कुटुंब समाय।
कम से कम दैने के लिए , 
लेना  ही पडता है।
रूप - माधुर्य  देख ही प्रेम।
नयनाभिराम  लेकर प्रेमाभिराम
देन - लेन न हौ तो प्रेम नहीं।
ईश्वरीय| प्रेम में कम से कम बिन माँगे
मुक्ति की चाह।  प्नर्जन्म की न चाह।
कहना प्रेम में न लेन केवल देेन ।
वह केवल धन   नाटक।
राम राम कह बैठा तो रामायण  फूट पडी।
ढाई अक्षर प्रेम मिल जाती पंडिताई।
स्वार्थ प्रेम  में  परमार्थ नहीं,
परमार्थ प्रेम में स्वार्थ नहीं।

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