Tuesday, July 12, 2016

भारतीय एकता

सोचा, सोचता रहा, भेदभरे संसार में,
   एकता  -शान्ति  कैसे?
पर   अमन-चैन  देखते हैं जग में.
शान्ति दूत बने-बनाने -बनवाने  में एक दल.

हिंसा  भटकाने में एकदल,

स्वार्थमय  दल, निस्वार्थ  मय  दल.
अपना  देश, अपना मजहब, अपने लोग.
बाकी सब का हो सर्नाश.
ऐसे  लोग मुखौटा  पहनकर ,

अपने को भी बेचैनी   में  डालकर,

निर्दयी  व्यवहार करने वाले,
मुख दिखाने  लायक नहीं  होते.

भारतीय सनातन धर्म कितना श्रेष्ठ,

कितना आदर्श,  कितना ऐक्यभाव.

हिंसा-आक्रमण-प्रचार बिन, एक धर्म व्यापक,

भारतीय  धर्म  बौद्ध अहिंसा से पूर्ण,

जैन तो त्याग जिओ और जीने दो,

वासुदेव   कुटुम्बकम. 

कभी  मुखौटा  पहन

हत्या का मार्ग नहीं  दिखाता.

भारतीय   स्वार्थ राजनैतिक  हिन्दू धर्म  के एकता बाधक.

हिंसा   धर्म  टिकता नहीं,

पर   ईश्वरीय शक्ति, बनाती  है एकता.

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