मन में दुख के कारण| है अनेक।
मातृभाषा के विकास रुक जानै सै दुखी।
मातृ भाषा में न बोलने सै दुखी।
दुख के तारण है अनेक।
एकाध छूट गया तो लिखिए।
न चाह , न राय| तो दुख।
दुख है, दुख ही है संसार।
इस जिंदगी में जीना खुशी कैसे /
मनुष्य कौन है ?
जिसमें मनुष्यता है वही मनुष्य है.
मनुष्य सुखी है ?
नहीं। संसार में कोई भी मनुष्य सुखी नहीं है।
हर मनुष्य दुखी हैं।
पारिवारिक दशा से दुखी ,
सामाजिक उत्थान पतन से दुखी
देश के आतंकवाद से दुखी
शासकों के भ्रष्टाचारों से दुखी
अधिकारियों के रिश्वत से दुखी
भूख से दुखी ,नौकरी न मिलने से दुखी
पति से दुखी ,पत्नी से दुखी
नाते रिश्ते ,दोस्तों के कारण दुखी
रोग से दुखी ,
किसी की मृत्यु से दुखी,
प्रियतम प्रियतमा से दुखी
पति के गलत रिश्ते से दुखी
पत्नी के गलत व्यवहार से दुखी
अमीरी से दुखी ,गरीबी से दुखी
संतान से दुखी ,निस्संतान से दुखी
प्यार से दुखी ,नफरत से दुखी
स्वर्ग के मिलने से दुखी
नरक के डर से दुखी
और न जाने दुखी कितने ?
दुःख के प्रकार कितने /?
कार न होने से दुखी
कार न सं भालने से दुखी
ड्राइविंग न जानने से दुखी
योग्य ड्राइवर न मिलने से दुखी
दुःख के कारण अनेक ;
सुख के कारण कम.
यही जिंदगी अस्थिर फिर भी चिंता अधिक।
रोग साध्य रोग ,असाध्य रोग
मृत्यु।
इस जिंदगी में जीना खुशी कैसे /?
अत्याचारी शासकों से दुखी,।
बलात्कारियों से दुखी।
किसानों की आत्म हत्या से दुखी।
चितिरपट की कथा से दुखी।
अश्लीलता आचरण से दुखी,
बेकारी से दुखी, अर्द्ध नग्न दृश्यों से दुखी।
न| जाने कितने लोग काल्पनिक
भूत - पिशाच से होते हैं दुखी।
किसी कै दुख देख दुखी।
दूसरों के दुख देख कर दुखी।
लोभियों को तो हमेशा दुखी ।
देख दुखियों के दुख।
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