Monday, July 4, 2016

मन चंगा तो कटौती में गंगा



सबहीं नचावत राम गोसाई,

नाचते हैं नर-नारी अहम् की नाच.

सोलह साल से श्री गणेश बुद्धीहीन-बुद्धी सहित क्रियाएं,

कर्म-फल भोगता मनुष्य कलियुग में ज़िंदा ही,

बुढापे में हैं भूला-भटका यादों की गली में,

इतना समझाना है जग को, पहले हीकईमहान

समझा चुके हैं, कई दोहराकर समझा रहे हैं,

नेक का फल नेक, बद का फल बद.

कलियुग की बात नहीं सभी युग की बात.

कर्म -फल भोगते आनेवाली पीढियां.

देश हमारा आसुरी और देव शक्ति से भरा.

आसुरी नाश में नाचती तो देवी बचाती ;

नाश की निशानी देखकर भी,

बिना सोचे विचारे भ्रष्टाचार-काले धन के

साथी बनते, जिन्दगी में कालिमा छा जाती.

सोचना ,जागना, कर्म करना , भला होगा;

न तो होगा बुरा फल, मिलेगी ईश्वर कृपा.

ब्रह्मानंद की अनुभूति कर्तव्य-कर्मफल पर निर्भर.

न धन से, न यज्ञ -हवन से, न पूजा-पाठ से.

मन चंगा तो कटौतीमें गंगा जान.

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