Sunday, July 17, 2016

समझ रहे हैं सार्थक.

सबको प्रणाम.

सार्थक बातें,

निरर्थक करतूतें,

खुशामद की खुशी में,

जीने मिलता तो काफी.

निन्दा स्तुती में निपुण स्तुति

निंदक नियरे राखिये--कबीर वाणी;

अपने में जो हैं उसे जानिये.

अपने को पहचानिए---धार्मुक नसीहत.

आजादी के बाद हम 

सोचते हैं या नहीं पता नहीं,

वादा करते हैं, निभाते नहीं,

सड़कें बनाते है या नहीं पता,

हिसाब तो भर लेते हैं,


भली सड़कें,, बाते कच्ची हो,

वे जीतते और बनाते 

अपना जीवन सार्थक.

निरर्थक बकनेवाले, 

अधिक वोट पाते हैं,

सार्थक बकनेवाले,

 जमानत खोतेहैं.

कहीं का सितारा 

दूर पट पर 

अर्द्ध नग्न दर्शित,

वे खड़े होते हैं 

अपने क्षेत्र का प्रतिनिधि,

न मिल सकते हैं, 

न देख सकते हैं 
,
पर हैं वे हमारे सांसद और वैधानिक.

सार्थक- निरर्थक-बकने वाले,

वादा न निभानेवाले,

बन जाते हैं हमारे प्रतिनिधि.

हम कितने जागरूक  हैं ,

 पता नहीं,

निरर्थक जीवन को

 समझ रहे हैं सार्थक.

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