Tuesday, July 26, 2016

मैं हूँ साधारण वैधानिक - सांसद

मंच में स्थान पाने ,भटक रहा है मनुष्य ।
एक दोस्त आया, शाल दिया,
कहा, मंच पर चढूँगा,
मेरे नाम कह शाल ओढा देना।
पचास रुपया दूँगा।
आहा! मेरे दोनों हाथों में लड्डू।
मैं तो माला ,नाम मात्र कहकर नहीं,
विशेषण भी जोड दिया।
  हमाारे दायरे के दाता,दादा,
आदरणीय दयाराम  को
मेरा छोटा -सम्मान।
बस  बार -बार मंच मिला।
शाल ओढाने का काम मिला।
दयाराम से सुपरिचित ,
मुझसे मिलने लगे।
बार - बार शाल ओढाना।
मंच पर चढता -उतरता
धीरे -धीरे  एक शाल एक
बडे नेता ने पहनाया मुझे।
ऐसे सेवक मिलना दुर्लभ।
   मुझे मंच मिल गया।
भाग्य चमका।
नेता के खुशामद में ,
शब्द निकला-
बर्नाटशा सुना है, अब देखता हूँ,
लेनिन नाम सुना , अब देखता हूँ।
ईश्वर सद्यः -फल देते नहीं,
नेता प्रत्यक्ष देवता।
मिलो ,सद्यः फल मिलेगा।
ईश्वर तुल्य नेता को साष्टांग प्रणाम।
फिर  किया, नेता के पास खडा रहा करता।
मंच मिल गया।
   मैं जो बोलता हूँ ,खुद नहीं जानता।
बना  वैधानिक। बना सांसद।
न जानता देश प्रेम, न जानता सेवा।
लोग मुझे नहीं जानते, मैं  नहीं जानता जनता को।
नेता की जय घोषणा जानता।
चुनाव क्षेत्र और मेरा कोई तालुक नहीं,
मतदाता अति चतुर , मैं जीत जाता ।
मेरे  एक मंदिर,एक कालेज, बस मालामाल हे गया।
अब काले धन मुझे ओट ,
नोट से वोट, मेरे चाटुकार मुझे हारने न देते।
कमाते बहुत , विसा ,पास पोर्ट,
विदेशी बैंक,विदेशी यात्रा।
अच्छे अधिकारी, कुछ देशोन्नति  काम करते।
ठेकेदार पुल बनाते,
खासकर नेता की मूर्ती स्थापित करते ।
सडक बनाते तीन महीने में दरारे पड जाती।
फिर ठेका फिर सडक।
हर देश हित योजना,
पैसे बिना माँगे मिल जाते
चुनाव में खरच करना है,

मंच मिल गया, जय हो
भारतीय लोक तंत्र।

नेता के खुशामद में  जी रहा हूँ।
जय हिंद। वंदेमातरम्।

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