Sunday, July 3, 2016

तिल - दिल

मन के घौडे का  लगाम है अति मुश्किल।
कनपटी लगाओ, फिर भी  मनमाना दौडता है।
उस दौड में कितने टेढे - मेढे  रास्ते,
कितने शिखर, कितनी घाटियाँ।
कितने झरने, कितने  दरिया ,कितने सागर।
कितने  पोखर,कितने मोरे।
कितनी हरियालियाँ, कितने पतझड।

कितने मंदिर, कितनी मूर्तियाँ ।
कितने हिंसक ,कितने अहिंसक ।
कितने  दौड, कितने भाग।
कितना घना, कितना गहरा।
कितना चंचल , कितनी आँधियाँ।
कितना हलचल।
मन के घोडे में कितने दौड।
न रोक सकता लगाम।
न  कनपटी चलता  तंग मार्ग।
न पता तंग भी कैसे बनता विशाल।
ताड  का तिल बनाना,तल का ताड बनाना,
दिल  की विशिष्टता  या  विनाश ।
वह तो साँस की  गति  समान।
दिल की गति रुकती तब,
जब रुकता दिल का धडकन।

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