Thursday, July 28, 2016

मनुष्यता निभाओ।

खारा  पानी  भाप बनने को किसी ने न देखा।
ऐसे कर वसूलना उत्तम प्रशासन कवि ने कहा।
हँसता -मुस्कुराता  चेहरा, नीर बिन नयन।
प्रेम  सूर्य   ,कमल खिले दिल सुखा देता।
मीठे पानी के बदले खारा पानी निकाल देता।
वेदना के  जीव - नदी बहा  देता।
तनाव  में इतनी गर्मी  मनुष्य को दीवाना बना देता।
एक क्षण के पागलपन प्रेम का ,
इतना  अन्याय, हत्यारे बना दैता,
अपराधी या खदखुशी।
आजीवन कष्ट।
यह माया प्रेम  आत्मा से नहीं ,
बाह्य रूप आकर्षण, शैतानियत।
हृदय की गहराई का प्रेम ,प्रेमिका के प्रति
या प्रेमी के प्रति  भलाई चाहता।
तेजाब न छिडकाता।
  मजहबी प्रेम ,जातीय प्रेम का संक्रामक रोग,
  विषैला वातावरण, रूढिगत आत्मनियंत्रण ,
आत्म संयम , शांति प्रद, त्यागमय जीवन।
चित्रपट दिखाता बदमाशी प्रेम।
चित्त मनुष्य  का हो जाता ,घोर।
प्रेम  की कहानियाँ अलग।
अबला नारी का अपहरण अलग।
रावण ने किया, रावण तो मर्यादा रखा।
भीष्म ने तो तीन राजकुमारियों को
जबर्दस्त लाया, उसके लिए
जो वैवाहिक जीवन बिताने लायक नहीं।
कहते हैं भीष्म प्रतिग्ञा ।
उनमें न दया, न मनुष्यता।
प्रेम रूपाकर्षण अति भयंकर।
जागो युवकों, आजीवन के
खारे अश्रु बहाने से बचो।
संयम सीखो, मनिष्यता निभाओ।

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