Sunday, October 21, 2018

हमारा आत्म मंथन

हमारा आत्म मंथन
आज मेरे मन में उठे जागृति विचार
हिन्दू करता गर्भ विच्छेद ,
मुग़ल -ईसाई कहता -महा पाप.
हिन्दू प्रायश्चित्त पूर्वजों के गर्भ विच्छेद के लिए नहीं ,
शिशु हत्या पाप के लिए नहीं ,
करता कल सर्प दोष कहकर
नाग शिला रखता।
यह विचित्र नीति ज्योतिषों ने कह
गर्भ विच्छेद पाप का प्रायश्चित्त
नाग सर्प दोष के नाम से।
हँसी ही आती ;
मेरे अनुभव में कोई हिन्दू
नाग को दूध पिलाकर पूजा ही करता।
मुग़ल -ईसाई गर्भ -विच्छेद को महा पाप कह
महा संख्यक बन रहे हैं अल्प संख्यक।
अल्प संख्यक हो रहे हैं महा संख्यक।
हिन्दू तिलक के नाम पर टुकड़े ,
संस्कृत वेद ,तमिल -वेद के नाम लेकर मुकद्दमा,
शिव -वैष्णव के टुकड़े।
दक्षिण कला -उत्तर कला -मुकद्दमा
परिणाम तमिलवेद को अदालत ने न पढ़ने का सरकारी आदेश।
ऐसी अल्पता के लिए लड़ ,
महा संख्यक अल्पसंख्यक बनने से जागना है, जगाना है.
समझाना -समझना है।
स्वरचित -यस। अनंतकृष्णन

Friday, October 19, 2018

मैं आ गया घर.

घर  आ गया।

मैं जवानी से बुढ़ापे तक भटकता रहा.
बच्चे हुए ,न  पूरे नाम की याद।
न जन्म दिन की याद ;
न नक्षत्र की याद.
बच्चोको पालना है,
बच्चों  को अच्छी शिक्षा देना है.
बच्चों को पत्नी  को सुखी रखना है.
अब  घर वापस आगया।
जवानी  ें दौड़ घूप।
अब बुढ़ापा आगया।
शरीर शिथिल।
विचार शिथिल।
घर आया तो बच्चे विदेश  में.
बेटी ससुराल   में.
पत्नी  बुढ़ापे   में ,
वही रसोई घर।
धोबिन ,रसोइया ,धाय।
अब      मैं और  वह
बुढ़ापा  आगया।
जवानी में दोनों अकेले मिलने
बहुत कष्ट उठाते ;
माँ -बाप -बहन -भाई।
आते -जाते रिश्तेदार।
अब भी वैसा ही प्यार।
कोई नहीं घर में ;
एकांत हमारा राज्य ;पर
दिल   में पुत्र -पुत्री।
पोते -पोती की तस्वीरें जमाकर
अकेले बूढ़े-बूढ़ी
एक दुसरे को गोली देकर
आशा निराशा काल की याद में
नन्हें नन्हें बच्चों की याद में
दिन कटा रहें हैं ,
मैं आ गया घर.


विष ही निकला--दुःख प्रद .


सब में अनुकूलता
सब में प्रतिकूलता
एक न्यायाधीश का फैंसला
दुसरे बदलते।
चारों के फैंसले ,
एक महिला न्यायाधीश से न माना।
आज केरल में क्रांति
चारों न्यायाधीश के फैसले के विरुद्ध।
कोई भी न करता आत्ममंथन।
अदालत पर.न विश्वास .
छात्र पर अध्याकिया ने बलात्कार।
आश्रमाचार्य शिष्या पर बलात्कार
अवैध सम्बन्ध का अदालत ने मान्यता।
बहिरंग चुम्बन करने का आंदोलन।
कहीं भी न रहा निष्कलंक वातावरण।
ऋषि -मुनियों के देश में
अपहरण की कथाएं राम राज्य में ,
कृष्ण राज्य में
कलियुग में तो
खान वंश बन गया गांधी वंश।
न हिन्दू में अनुशासन।
न मुसलामानो में ,न ईसाई में.
आत्मंथन छोड़
पराई का मंथन।
समलिंग विवाह अनुमति।
आत्ममंथन भारत का वेदना से भरी।
आध्यात्मिक भूमि ,आज बदल रहा है
बलात्कार की भूमि।
पुरुष रक्षक संघ
पुरुष प्रधान देश में.
तलाक शब्द रहित देश में
तलाक मुकद्दमा संख्या अधिक।
हमारा आत्ममंथन
भावी पीढ़ी सोच
विष ही निकला--दुःख प्रद .

Thursday, October 18, 2018

मानव और भक्ति

सबको मेरा प्रणाम।
मानव जीवन -सृष्टि
जीवनारंभ ,सर्वेश्वर की लीला।
मनु अकेला। 
सदा जपता रहा,
न नाते -रिश्ते की चिंता
न जग की चिंता ,
कोई कहता पागल
रूखा -सूखा खाता
न जग के बाह्याडम्बर की चिंता।
नाम जपता। कुछ न कुछ माँगकर खाता।
फुटपाथ पर सोता ,
गर्मी में तपता
सर्दी में काँपता ,
लोग कहते वह है भिखारी।
भक्त सन्यासी।
सनकी !दीवाना !पागल !
भक्त सच्चा है तो
न जग का विकास।
ईश्वर की खोज में
भारत में योंही
भक्ति का प्रचार।
पर भगवान तो अति चतुर।
उससे बड़ा लगनेवाला
काम देवता की रचना की।
खुद फँस गया ,
अर्द्ध नारीश्वर बना
शक्ति न तो शिव नहीं ,
शिव नहीं तो शक्ति नहीं।
नर-नारियों में प्रेम जगाया।
ईश्वर की और कम आकर्षण
कामाग्नि जलाया।
प्रेमाग्नि भटकाया।
नव रसों के मनोविकार
मनो भाव।
मानव मन में चंचलता
श्रृंगार ,वात्सल्य ,स्वार्थता ,लोभ
मद ,क्रोध ,बाह्य आकर्षण
सुन्दर ,असुंदर ,खट्टी -मिट्ठी -कड़ुवी।
षडरस -षडरिपु की बातें।
अमीरी -गरीबी ,स्वस्थ -अस्वस्थ
दीर्घ रोगी -दारिद्री ,
त्यागी ,भोगी ,मोही ,
कितना मनमोहक विषय वासना ,
अब ईश्वर के ध्यान का समय अति कम.
तीन बार नाम लेना ,
बाकी समय जग- कल्याण का कर्तव्य निभाना
वही मानव मानव जीवन।
जवानी ,बुढ़ापा,रोग ,मरण।
सृजन करता का व्यापार
अति सूक्ष्म।
न जानता मनुष्य
जन्म -मरण की बातें।
अपने को छोटा ,
अपने को बड़ा ,
अपने को भाग्यवान
अपने को दुर्भग्यवान
सुखी -दुखी
मान - अपमान
प्यार नफरत।
नाथ -अनाथ .
अपकीर्ति ,अमर , कीर्ति -
खतम मानव जीवन।

Wednesday, October 17, 2018

ई स्वर।

ईश्वर सृष्टित मनुष्य को आदर्श पथ दिखाता।

ईश्वर भक्त बनो ,
ईमानदार से रहो। 
ईख रस मधुर रस बने जीवन।
ईकारांत इयाँ में अपने को ह्रस्व बनाना 
दीर्घ दर्शी , दीनानाथ ,
वीर ,वीरांगना ,
ई -स्वर ईश्वरानुभूति 
ईश्वरत्व।

अमीरी गरीबी

आज उठा जल्दी ही.
1बजे सबेरे.
बादलों के गर्जन, बिजली,
जागा तो नींद नदारद.
निंद्रादेवी रूठकर  कहीं
फुटपाथ वासी को सुलाने चली.
वर्षा ,बादल का गड गड
कुत्तों का भूँकना, मक्खियों का भिन्नाना
किसी की चिंता नहीं.
मेरे का बदबू उसके
सूखी मछलियों का बदबू
जो भी हो उसकी नींद टूटा ही नहीं.
यह ईश्वर की लीला जानना  मुश्किल.
उसको न अपने व्यापार  बनाने की चिंता.
बनाने की चिंता, आयकर की चिंता,
न पेट्रोल  या महँगाई की चिंता.
बाल बच्चों को
 अमीरी अच्छी पाठशाला में दाखिल की चिंता.
पाँच नक्षत्र  होटल स्वादिष्ट भोजन
पेय महँगा पीना,
देश विदेश घूमना
चिंताहीन वह,
उसका आनंद,
उसका परिश्रम
ही आराम प्रदान.
बगैर उसके अपमान सहकर
मेहनत के,
अमीरों का सोना दुश्वार.





Monday, October 15, 2018

अति मुश्किल

मैं जानता,
 समझता,
जग क्या है?
जग स्वार्थ, अति स्वार्थ,
यथार्थ  को जानता  है,
सत्य को जानता है.
ईमानदारी जानता है पर
ऐसी बुद्धि  से जीनेवाले
 कष्ट ही उठाये हैं अधिक.
ईश्वरावतार कष्ट का प्रतीक.
ईश्वरावतार  यही ससिखाता
धर्म  को जीतना अति मुश्किल.
एक अधर्मी वर पुत्र
उसको वध करने
राजकुमार  होकर भी वन में
भटकना पड़ा.
अपनी पत्नी नदारद
पत्नी  की तलाश में भटकना पडा.
सहायक बने शुग्रीव के भाई  तो
छिपकर वध करना पडा.
कृष्णावतार में कितने  अधर्म
कितना दुख, कितना शाप.

ईश्वर की सूक्षमता न जान सका,
न समझ सका.
मैं हूँ पागल
सब की नज़र में
मैं हूँ अभागा सब की नज़र में
पर मुझे यही लगता
इस पागल का भी
 काल नहीं छोडता
उस पापी को भी
काल नहीं छोडता.
चतुर को भी
काल नहीं छोड़ा.
चालाक को भी
काल नहीं छोड़ता.
 धनियों  को भी
काल नहीं छोड़ा.
गाडियों को भी काल नहीं छोडता
नायक को  भी काल नहीं छोड़ा.
खलनायक को भी
 नहीं छोडता काल.
पर एक खास बात
सदा के लिए  रह जाती.
नायक नायिका
 खल नायक के नाम.
ऐसे ईश्वर की लीला
जानना समझना
 अति मुश्किल़














भगवान कहाँ है.
भगवान है