Sunday, October 28, 2018

स्वतंत्र लेखन

स्वतंत्र लेखन

स्वतंत्र चिंतन चाहिए देश में 
सच्चाई को समझना चाहिए। 
सही अधिकार :
विचार प्रकट करने का
 अधिकार मिला है ;

ख़ान को गॉंधी कहे तो 
कहने का अधिकार। 
पर मानकर चलने का अधिकार 
खोकर मान बैठे हम.
सिंधु को हिन्दू कहा तो 
हमारे सनातन धर्म सागर को 
हिंदू शब्द से तंग गली बना दिया।
सनातन धर्म सागर ,
भले -बुरे ,गंध -दुर्गन्ध अपनाकर 
उठाकर लहरें न होता स्थिर।
ईश्वर वंदना लोक गीत में 
उच्च वर्ग की शिष्टित भाषा 
देव भाषा देवनागरी लिपि की भाषा।
अपने अपने कर्तव्य खूब निभाते,
यह ज्ञान भूमि में पला 
लोक-नृत्य,लोक कला,
पर हम अपने को भूल ,
विदेशी माया में आज भी 
अपने को भूल अंधानुकरण कर रहे हैं। 
स्वतंत्र लेखन कैसे ?
ज्ञान की बातें लिखूं ,
वह भी राजनीती;
सोचने की बात लिखूँ ,
वह भी राजनीती। 
आकार -निराकार परब्रह्म कहूँ ,
वह भी राजनीती। 
स्वतंत्र लेखन क्या लिखूँ ?

Saturday, October 27, 2018

छली आत्माएं

भाग्यवान पद पाते हैं ;पर
पद पाकर सद्यः फल के लिए
भ्रष्टाचार करनेवालों को
न्याय के पक्ष न रहनेवालों को
भगवान के प्रति न भय।
देश के प्रति न भक्ति।

समाज के प्रति ,
अपनी भावी परंपरा के प्रति
न कोई प्रेम।
अशाश्वत पद ,
नश्वर दुनिया
जान -पहचान कर भी
धन जोड़ फिर तन छोड़
आत्माएँ
देखेंगी अपनी पीढ़ियों के
सुख -दुःख
छली आत्माएँ
देखेंगी अपनी पीढ़ियों के
संकटमय स्तिथि।
आज मेरे मन में उठे विचार।

भाग्यवान और भगवान।

भाग्यवान और भगवान

भगवान संसार का है बागवान।
वह बागवान के बाग  अद्भुत।
कंटीले पौधे  सुगन्धित कुसुम।
प्राण लेवा विषैले पौधे
प्राण रक्षक रोग निवारण की
जड़ी बूटियाँ ,खट्टे-मिट्ठे फल.
कडुवी पत्ते -फल उसे लेने नहीं तैयार।
वही  रोग हरनेवाला।
अब कडुवी औषधियों को
मीठी आवरण की गोलियां
सद्यः फल निवारण ,अन्य रोगों के मूल.
गुरु वचन को भी अब मधुर बोली में
नतीजा न अनुशासन ,न गुरु का आदर.
गुरु अध्यापक के नाम से
गुरु गिरिवर से गिरपडा।
परिणाम छात्र हत्यारा बन रहा है.
अध्यापक कामांधकार ;
पवित्र रिश्ता  हो रहा हैं अश्लील रिश्ता।
जमाना बदल गया;
विदेशों ने विषैले विचारों के रक्त
संचरित  कर क़ानून पढ़ाकर  चले गए.
परपुरुष -पारा स्त्री सम्बन्ध को
न्याय मान हक़ अदालत ने दे दिया।
तलाक का दरवाजा खुला पड़ा है.
युवक भयभीत हैं ,
युवतियाँ  भयभीत है
क्या होगा जग शांति।
जब न शांति परिवार में।
आज मेरे मन में उठे विचार।
स्वयंचिन्तक -स्वरचित -यस.अनंतकृष्णन।

Friday, October 26, 2018

वधु मिलना मुश्किल।

नारी नहीं होती तो 
दुःख कहाँ ?नर को ;सुख कहाँ ? 
संतान भाग्य नहीं होता तो 
तुतली बोली की मधुरिमा कहाँ ?
नर से पीड़ित नारी में 
दया ,ममता ,सेवा के भाव नहीं होते तो
पौरुष नहीं होता जान.
कर्म फल पुरुष को भोगने का
अब आ गया ;
सीता अब होती तो
राम को ही फिर वनवास।
पुरुष रक्षक संघ की ज़रुरत आ पडी।
थीं बूढी कन्याएँ ,पर अब बूढ़े हैं , वधु मिलना मुश्किल।

Thursday, October 25, 2018

भक्ति

 भक्ति  क्या है ?
  ठीक मार्गदर्शक  मिलने  की खोज में
 कई भटकते हैं।
किसीने निश्चित मार्ग नहीं दिखाया।
किसी ने ज्ञान ही भक्ति बताया।
किसीने  प्रेम को ही भक्ति  बताया।
 किसीने कहा -गरीबी की हँसी  में  हैं भगवान।
परोपकार ,दान धर्म  ,यज्ञ -हवन द्वारा
ईश्वर के अनुग्रह पाने का मार्ग बताया।
आकार -निराकार स्वरुप भगवान।
नवग्रहों में भगवान।
प्रकाश ही भगवान।
 ऐसे  भगवान के मार्ग-दर्शक
मनुष्य को  दुविधा  में डालने
आगे आचार्यों ने तर्क युक्त
सन्देश ही देकर
मानव -मानव में ऐक्य भाव
इंसानियत  का सही मार्ग दिखाया।
पूरब की दिशा में ईश्वर कहा तो
दुसरे ने बताया  पश्चिम।
इत्र-तत्र -सर्वत्र विद्यमान ईश्वर  के
मार्ग दर्शक विज्ञान की तरह
एक निश्चित रूप देने में असमर्थ ,अज्ञान ही रहे.
सब को नचानेवाले ईश्वर ,
राजा के पद दिया तो
अहंकार भी दे दिया।
खुद राम के अवतार में राम
अपने   शत्रु  को पहचानने
अपने अधिकार जमाने
अश्वमेध यज्ञ किया तो
जिन्दा पत्नी के रहते सोने की सीता बनायी।
यह तो  मानव के चंचल मन में
नाना प्रकार के विचार ,शक ,तर्क-वितर्क।
सूक्ष्मता से विचार करें तो
राम का आदर्श  अनपढ़ धोबी द्वारा
दिल्लगी  का  कारण बना.
राम कहानी सुनाना का मतलब ही
रोना और संकट पूर्ण दशा का जिक्र करना हो गया.
रामायण कहानी अधूरी रह गयी.
राम के पुत्रों को क्या हुआ ?
इतिहास ने नहीं बताया।
कृष्णावतार की कहानी सुनाकर
गलत मार्ग पर जाने के उदहारण ज्यादा है.
धर्म की विजय कदम -कदम पर
अधर्म के षडयंत्र  द्वारा।
लौकिक कर्म में ईश्वर ने अमुक व्यक्ति के द्वारा
विश्व कल्याण विश्व को स्वर्ग तुल्य बनवा रहा हैं.
 अब सोचिये -
 व्यक्ति -व्यक्ति  में
आकार भेद ,रंग भेद ,बुद्धि भेद ,
अमीर -गरीब ,रोग -नीरोग ,
जन्म-रोग ,असाध्य रोग ,साध्य रोग ,
गर्भच्छेद ,शिशु मरण ,
मृत्यु के लिए निश्चित उम्र किसीने न बताया।
यों   ही कई बातें मानव के समझ के  बाहर।
   भगवान एक हैं।
 सर्व शक्तिमान।
सभी जीवों में  मनुष्य को ज्ञान दिया।
वह ज्ञानी यहाँ  तक कहने में समर्थ हो गया.
अपने अनुयाइयों की संख्या बढ़ाने की शक्ति मिली।
वह ज्ञान शक्ति अद्वैत भावना -अहम् ब्रह्मास्मी।

 आगे विचार कीजिये -अहम् ब्रह्मास्मि  ,
क्या मनुष्य सर्वज्ञानी हैं ?
तब तो एक चांडाल के द्वारा मनुष्यता निभाने की अनुभूति मिली।
मंडनमिश्र के साथ के तर्क में
कामकला  जानने  के लिए
 मृत्यु राजा के शरीर  में आत्मा गयी.
 तभी जीत सके.
तब आत्मा-परमात्मा कैसे एक ?
फिर द्वैत्व भाव।
आत्मा- परमात्मा अलग।
सब बन सकते हैं भक्त।
सब मिल सकते हैं परमात्मा से।
ॐ  हरी नारायणा मन्त्र।

  क्या किसीने ईश्वर का सही रूप दिया।
मुहम्मद  नबी  ने अल्ला का सन्देश दिया।
पर  अनुयायी ऐसे निकले दिल उदार नहीं;
अन्यों को सताने आतंकवादी  अल्ला के नाम को
बदनाम करने में लगे हैं ; उनके कुरआन के सिवा
लौकिक राजा,देश ,राष्ट्रगीत किसीका आदर करने तैयार नहीं।
अमीरों के देश ,पर न चैन। न संतोष।
आतंक कब कौन सा आतंकवादी बम फेंकेगा।बन्दूक चलाएगा।
 फिर ईसा मसीह ने प्यार ,सेवा, भ्रातृत्व का सन्देश दिया।
ये  अपने गुरु के संदेश के प्रचार के लिए पहले
दुनिया की भाषाएँ सीखी;
 दीन -दुखियों की सेवा  में  लगे.
बाइबिल का अनुवाद किया।
हर देश की मातृभाषा में भाषण दिया।
 पर किसीने  हमारे देश का सन्देश
वासुदेव कुटुम्बकम ,
सर्वेजना  सुखिनो भवन्तु।
पर कहीं भी मानव प्रेम ,एकता ,
मनुष्यता के लक्षण दीख नहीं पड़ते।






Wednesday, October 24, 2018

करते गहरे घाव

मानी है मित्रता ,
कुछ लिखने का हौसला दिया है
मेरी शैली अपनी ,
न रूढ़िगत।
न छंद न लय।
न रस ,न अलंकार
न यगण मगण तगण की चिंता।
ऐसी चिंता में लग जाऊँ तो
न अभिव्यक्ति कला व्यापक विस्तार।
दोहा से अकविता तक न विकास।
परम्पराएँ हैं बदलती ,
परिवर्तन ही विकास।
पैदल चले आदमी
पैदल ही चलूँगा तो वह पागल।
दिमागी हिसाबी कालकुलेटर न करेगा तो
संगणक का उपयोग न करेगा तो
हौसला फरार।
ज़रा क्षमा करना,
भाव प्रधान बन गया संसार।
you तीन अक्षर u एक अक्षर युवक चाहता।
ऐ एल यू ही लिखता।
अणु में सागर भरना
लेखकों का काम.
वन्देमातरम एक शब्द
जय जवान जय जवान एक शब्द
कितना काम ,कितना जोश ,
स्वच्छ भारत आजादी के सत्तर साल बाद.
न रोका किसी ने सड़क पर थूकने को।
क्रांति एक शब्द में
करो या मरो।
करो पहले ,कहो बाद।
मन चंगा तो कटौती गंगा।
कहने में छोटे लगे ,
करते गहरे घाव ,

बगैर कृपा कृपालु की

Anandakrishnan Sethuraman स्वरचित 
यस. 
अनंतकृष्णन. 

नहीं होता 
बिन प्रयत्न. 
प्रयत्न में असफलता. 
प्रयत्न में आलसी. 
प्रयत्न में लालची
प्रयत्न में स्वार्थता. 
प्रयत्न में निस्वार्थता
प्रयत्न में अंधविश्वास 
न होता सफलता. 
प्रयत्न की सफलता 
ईश्वरानुग्रह. 
देखा, महसूस किया. 
जाना समझा पहचाना
सबहीं नचावत राम गोसाई. 
नहीं होता बगैर कृपा कृपालु की. 
स्वरचित यस. अनंतकृष्णन.