Wednesday, December 26, 2018

आण्डाल कृत तिरुप्पावै -११.

आण्डाल कृत तिरुप्पावै -११.
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सनातन धर्म का कटु सन्देश /उपदेश
जिनका पालन करना अति मुश्किल है ,
पर पालन करने से ज्ञानी बन सकते हैं.
वह है तड़के उठना।

आण्डाल के तीस पद्य सूर्योदय के पहले उठकर
वह भी मार्ग शीर्ष महीने की सर्दी में
ईश्वर का यशोगान करके उस जगन्नाथ को
मन में बिठाना सांसारिक जीवन को सुखी बनाना।
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आज आण्डाल का ग्यारहवाँ पद्य :
सभी गोपिकाएँ उठकर
भगवान का यशोगान करने निकलीं।
और मार्ग पर एक अहीर की बेटी गहरी नींद में मग्न थी.
उनको जगाने आण्डाल कृत यह पद्य।
यह सखी के घर में असंख्य गोधन ,
जिनको गिनकर इतना ही कहना मुश्किल है.
उनमें गाये बछड़े में ही दूध देने लगी है.
गायों के स्तन दर्द से बचाने उसके पिता जल्दी दूध दुह लेते।
वे श्री कृष्ण के इतने बड़े भक्त थे कि कृष्ण के शत्रुओं को
अपना ही शत्रु मानकर उनको मिटाने में लग जाते।
उन अहीरों को कोई चिंता नहीं , फिर भी
कृष्ण के वैरियों को अपना ही मानकर चलते।
ये गोपालक अपने कर्तव्य मार्ग से कभी नहीं हटते।
ये कायरों को छोड़कर शक्तिशाली शत्रुओं पर ही हथियार चलाते।
ऐसे कृष्ण भक्त अहीर के घर में जन्म लेकर
पूजा और कृष्ण के यशोगान के लिए न उठकर
सोनेवाली सखी को जगाती है.
हे स्वर्णलता!तुम्हारी कमर सर्प घुसने के बिल-सी पतली है।
तुम्हारे केश मयूर पुच्छ की तरह सुन्दर आभूषण की तरह है.
श्री कृष्ण की प्रिय बालिका हो.तुम्हारी भक्ति बड़ी है.
आज इस प्रकार सोना उचित है क्या ?
तुम्हारे सभी सखियाँ नाते रिश्ते सहित आँगन में
खड़ी होकर श्री कृष्ण का यशोगान कर रही हैं.
कृष्ण के यशोगान में कितना असीम आनंद!
तुम तो अनसुनी होकर चुपचाप सोना
भक्ता का लक्षण है क्या ?
तुम्हारी नींद का अर्थ क्या है ? तुम उठो ;
गोपियों की पुकार सुनकर वह उठी;
अन्य सखियों के साथ श्री कृष्ण के
यशोगान में तन्मय हो गयी.

Tuesday, December 25, 2018

इरादे को बदलकर देखो. (मु )


इरादों को  मकसद बनाकर देखो 

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सादर प्रणाम।

विचारों को अपने मूल उद्देश्य बनाकर देखो ,
असीम आनंद का शिकार बन जाओगे।
उद्देश्य तक पहुँचने तक
बीच के माया मोह इरादों को बदल देगा।
मूल उद्देश्य /मकसद के बीच
उप लक्ष्य  मूल उद्देश्य  का बाधा बन जाएगा।
मोहिनी आएगी /सूर्पनखा आएगी /ऊर्वशी -रम्भा आएगी।
यू ट्यूब के नज़ारे आएँगे ,
पड़ोसी -पड़ोसिन  के जवान बेटा / बेटी
खिडकी खोल चुंबक बनेगा /बनेगी।
पद ,धन  का लोभ चमकेगा।
हमारे  मूल उद्देश्य के मार्ग  पर आँधी  ,
गर्मी ,सर्दी, पतझड़ वर्षा बेवक्त बेखबर
अड़चनें बन रोकेंगे।
सामना करना ही होगा।
इसमें कामयाबी मिलेगी क्या सबको
जिनको मिलती उसके सर पर मणी होती।
शूल पर चढ़ा ,उद्देश्य न छोड़ा ,पूजनीय बना.
पत्थर का मार सहा ,बचने भागा ,पैगम्बर बना।
कोमल कुसुम प्यार पत्नी -मासूम शिशु -राजमहल का सुख-वैभव तजा
एशिया की ज्योति महात्मा बुद्ध बना.
सोचो ,समझो ,विचारो
इरादे को मकसद बनाने में
केवल आगे देखना है ,
हरे भाई ,
ज़रा  देखते चलो ,
ऊपर भी नहीं,नीचे भी ,
दाए भी नहीं बाएँ  भी ,
यह गाना लागू नहीं ,
उद्देश्य /मकसद के शिखर पर
चमकते  भाग्यवानों को।
बीच  में    मधुशाला ,मधुबाला अपना रंग दिखाएगी।
इरादे का मकसद मात्र ले चलना ,
सफलता की चोटी  पर
खुद खड़े हो जाओगे।
बीच के ताल -तलैया ,
उद्यान नंदन वन  कुछ न देखना
यह अनंत अपने अनुभव से कह रहा है
दुनिया के अज़ब  बाज़ार पर नज़र न डालना।
सिर्फ आगे बढ़ना ,
मुड़कर कभी न देखना।
इरादे अपने आप मकसद बन
विश्व वन्द्य बना देगा।
कितने लालची मार्ग छोड़
बाए हटे ,पीछे हटे ,फिसले गए पड़े.
वह फौलाद औलाद  आगे बड़ा ,
मकसद के एवेरेस्ट पर झंडा फैलाया।

स्वचिंतक स्वरचित -यस. अनंतकृष्णन

इरादे इश्क का बदलकर मकसद देखो. (मु )

इरादे इश्क का बदलकर मकसद देखो. 


श्क निभाना कैसे ,
आजकल इश्क इश्क शब्द सी
समाज संयम खो बैठी है।
मुहब्बत निभाने पति पत्नी को मार देता।
पत्नी पति को।
ज़रा समाज में बलात्कार रोकने
मुहब्बत निभाना तज
कर्तव्य निभाने पर जोर देना
राष्ट्र हितैषी लेखकों का संकल्प।
फिर रीति काल में चलेंगे तो
अन्य शक्ति का बेगार बनेंगे।
तलाक के मुकद्दमे बढ़ते जाएंगे
इरादे मकसद को मुहब्बत से
राष्ट्र -समाज सुधार में लगाकर देखो।
स्वरचित -स्वचिंतक -यस. अनंतकृष्णन (तमिलनाडु-हिंदी प्रचारक )

Monday, December 24, 2018

ஆண்டாள் ---आण्डाल दक्षिण की मीरा -तिरुप्पावै --९ौर 9-10

ஆண்டாள் ---आण्डाल  दक्षिण की मीरा -तिरुप्पावै --९ौर १०।
तिरुप्पावै आंडाल..कृत . 9
अपनी मामा की पुत्री को जगाती हुई
गोपिका गाती है.
पवित्र हीरे पन्नों से जडे महल में, 
सुगंध भरे सुगंधित द्रव्य,
और चारों ओर दीपों से अलंकृत महल में
 कोमल शय्या पर सोनेवाली
मेरे मामा की सुपुत्री उठो.
दरवाजा खोलो.
मामीजी! क्या आपकी बेटी बहरी है?
 हम ऊँची आवाज़ से जगा रही है.
 क्या आलसी है?
आप जगाइए.
हम विष्णु के प्रसिद्ध हजारों नामों से
    उनके गुणगान करेंगी.
आपकी बेटी इसका महसूस करके उठी तो
सब मिलकर व्रत ऱखेंगी.

तिरुप्पावै --१०
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सबेरे सखियाँ सब व्रत रखने जा रही है.
 जो सो रही है ,उनको जगाने
कुम्भकर्ण की याद दिला रही हैं।
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अपनी सखी सो रही  है।
उनको जगाती हुयी ईश्वर  की महिमा  गाती  हैं।
पूर्व जन्म में सर्वेश्वर  नारायण  के ध्यान में मग्न रहने से
और व्रत रखने के परिणाम स्वरूप अब
स्वर्गीय  सुख भोगनेवाली सखी !
तुम तो अपने गृह द्वार खोलती नहीं हो ;
द्वार  न खोलने पर भी क्यों नहीं बोलती ?
सुगन्धित तुलसी को सर पर धारण किये
नारायण का यशोगान करें तो
उस व्रत का फल तुरंत मिल जाएगा।
 पहले निद्रा के उदाहरण में
कुम्भकर्ण का नाम लेंगे।
 तुम्हारी नींद देखने पर ऐसा लगता है कि
तुम कुंभ कर्ण  को हरा देगी।

आलसी के तिलक !
वह भी दुर्लभ आभूषण ही है।
किसी प्रकार के हिचक के बिना
 दरवाज़ा खोलकर
 बाहर आओ।

Saturday, December 22, 2018

आंडाल तिरुप्पावै 8


आंडाल तिरुप्पावै  8
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सब को मेरा प्रणाम.
आज मार्गशीर्ष  महीने का
आठवाँ  दिन है

आंडाल कृत  तिरुप्पावै  के तीस पद्यों में
यह आठवाँ  हैं.

हमारे पूर्वजों ने भक्ति के द्वारा
हमारी आलसी दूर करने की पद्धति  अपनायी है

हर बात में ईश्वर  के भय मिलाकर
अनुशासन बद्ध जीवन जीने का मार्ग दिखाया है.
विदेशी आक्रमण और शासन हमारे चरित्र को
बिगाड चुका है.
आजादी के बाद भी  नेहरू , करमचंद गाँधी जैसे
पाश्चात्य  रंग में रंगे नेता
धर्म निरपेक्षता और अल्प संख्या
अधिकार द्वारा
 भारतीय जितेंद्रिय  सिद्धांतों को
अवहेलना कर  अनुशासन और संयम रहित
समाज को बढावा दे चुके हैं.
आइये.

आंडाल तिरुप्पावै  पर विचार  करेंगे.
मार्गशीर्ष  महीना कठोर सर्दी का महीना है.
सबको तडके उठना मुश्किल है.
ऐसी हालत में चुस्त बनाने
 व्रत रखने का संदेश है.
सुप्तावस्था  की सखी को जाती हुई
लखिया गाती हैं.

पूर्व दिशा में सूर्योदय के कारण
उज्ज्वल  हो रहा है.
भैंसें  दूध दुहनेके पहले
हरी घास चरने लगी हैं,
ये सब बिना देखे सोे रही हो.
हम कन्या व्रत के लिए
निकल रही हैं,
हे सखी!  तुमको जगाने  रुक गयी है.
जागो,उठो,नहाकर भगवान  का यशोगान करेंगी.
पहले सात पद्यों का प्रकाशित किया है.
आज आठवाँ.
देर से सोेनेवाली सखी को अन्य सखियाँजगा रही है.

विषय युक्त रचना (मु )

सब दोस्तों को,
सादर प्रणाम.
संचालक  कुसुम त्रिवेदी को
विशेष प्रणाम.

विषय मुक्त  रचनाएं,

मुख पुस्तिका  से परिचित मुक्त
शीर्षक समिति में.
मुक्त या मुक्ति  फिर कैसी  रचना
किसके लिए? क्यों?
विषय स्वतंत्र, जीवन मुक्त, पर
मर्यादा का बंधन,
भावों का बंधन
बंधित  शैली,
बंधन मुक्त  न हो तो
विषय मुक्त कैसे?
रचनाकारों तो बंधित विषय पर जाना.
मर्यादा की सीमा न लांघना,
संयम सीखना, जितेंद्र  बनना,
देश प्रेम, अनुशासन, सत्य,
कर्तव्य  पालन,परोपकार
आदी से मुक्त
 प्रेम  का अश्लील  वर्णन.
आजकल समाज बिगाडना का विषय.
दुर्दर्शन बच्चों का कार्यक्रम तमिल में,
तीन साल की बच्ची से सवाल:
कालेज जाकर क्या करेगी?
बच्ची का उत्तर   अच्छे लडके  से
प्रेम करूंगी,
अभिभावक, दर्शक की तालियाँ.
यही आजकल,
सुपर सिंगर लडके लड़कियों से
 अश्लीले  अभिनय के गीत.
अंंग अभिनय वासना सहित
मनोरंजन, पैसे समाज बिगाडने.
कैसे विषय मुक्त  रचना
विषय बंधन युक्त.

स्वरचित स्वचिंतक:यस.अनंतकृष्णन

Friday, December 21, 2018

आंडाल कृत तिरुप्पावै. 7

तडके न उठी
 सखी को जगाती हुई सखी गाती है...
 बुद्धि हीन  सखी!
क्या  गौरैया का चहचहाना नहीं सुना?
 उन चिडियों की बोली न   सुनी है क्या?
सुगंधित केशवाली अहीर औरतों के गले के मंगल सूत्र,
उनके दही के मथने से
आवाज़ उठाती हैं.
 वह ध्वनी भी नहीं कानों पर पड़ी है?
तुमने कहा कि  तुम्हारे  नेतृत्व  में आज लेे चलोगी.
हम श्री  नारायण  ,केशव के यशोगान  कर रही हैं. 
वह भी तुम्हारे कानों पर नहीं पड रही हैं.
 तुम्हारे न जागने का रहस्य क्या है?
. कांतिमय  चेहरेवाली सखी!
तेरा दरवाजा खोलो, जागो.,