Friday, January 11, 2019

उमंग/खुशी(मु )

उमंग न तो
प्रयत्न नहीं,
प्रयत्न न तो
सफलता नहीं,
सफलता न तो
खुशी  नहीं.
खुशी नहीं तो उमंग नहीं.
नीरोग काया,
न तो दौड धूप  कैसे?
भारतीयों ने हजारों सालों
पहले मंदिरों में
गर्भ गृह के तीनों ओर
तीन शक्तियों की मूर्तियाँ  रखी हैं,
वे हैं  इच्छा  शक्ति,
ज्ञान शक्ति,
क्रिया शक्ति
तीनों नहीं तो
जिंदगी बेकार.
उमंग नहीं, खुशी नहीं.

स्वचिंतक  स्वरचित :-यस। अनंतकृष्णन 

Thursday, January 10, 2019

पाप-पुण्य (मु )

पाप -पुण्य पर विचार करो।

पापी  के लिए पाप कार्य में संतोष।

पुण्यात्मा  के लिए पाप कर्म से असंतोष।

भगवान की सृष्टियों  का अध्ययन किया  तो

बाघ  के  हिरन का शिकार
 उसके लिए
ईश्वरीय  देन।

इसे देख पछताते हुए
बकरी का  माँस  खरीदने जाने वाला
बुद्धि  जीवी मनुष्य  का काम
पाप  है  या पुण्य ?

सोचिये !
 अभिमन्यु का वध पाप है  तो
 छल से जयद्रध का  वध पुण्य कैसे ?
कर्ण  का वध  पाप है  या  पुण्य ?

नरसिंहावतार   पुण्य है ,
वध भी स्वीकार्य है।

द्रोण  का वध ?
यही निष्कर्ष पाप या पुण्य
सब के मूल में एक  अज्ञात शक्ति।

तभी कहते हैं ऋषी मूल ,
 नदी मूल न देखना।

सबहीं  नचावत  राम गोसाई।

इसमें पाप क्या ? पुण्य क्या ?

पैसे लेकर वोट देना पाप।
भ्रष्टाचारियों को वोट देना पाप।
भ्रष्टाचारियों को सांसद बनना -बनाना
सिरोरेखा  या  भाग्यवाद पता नहीं।

समझ में  नहीं आता
पाप क्या ?पुण्य क्या?

पाप -पुण्य
दोनों की सृष्टि का दोष
किसका है  ?
अनजाने में दुर्घटनाएं ,
मृत्यु ,रोग ,असाध्य रोग
पाप -पुण्य  का फल कहते ;
पर महानों की मृत्यु  अल्प  आयु में ?
बोलिये पाप क्या ?पुण्य क्या ?

स्वरचित ,स्वचिंतक :   यस. अनंतकृष्णन


Wednesday, January 9, 2019

आंडाल कृत तिरुप्पावै. 25,26(आ )

तिरुप्पावै... 25
आंडाल कृत  (दक्षिण  की मीरा.)
सरल भावार्थ.

एक के गर्भ में जन्म लेकर,(देवकी )

दूसरे के पुत्र  बन पले श्री  कृष्ण!(यशोधा)

कंस से छिपकर ही
उसके रखा भयभीत!
तेरेअनुग्रह   मिलें तो
तेरा यशोगान  करेंगी.
तेरी वीरता की प्रशंसा  में
गाती नहीं थकती.
तेरा दर्शन से
हमारे दुख भी होगा दूर.
हम आनंद मनाएँगे.

हिंदी अनुवाद  आंडाल तिरुप्पावै. 26.

हे कृष्ण  भक्तवत्सल!
नील पन्ने रंग के  तन,
दया पूर्ण मन!
 बोधि पत्ते पर शयनित  कृष्ण!
  मार्गशीर्ष
महीने के व्रत के लिए
जग विधारकशंख ध्वनी बजाओ।

हमें
 बजने  ढोल,
वाम तिरची  शंख,

तेरे प्रशंसक के साधु
मंगल दीप,
तोरण प्रदान कर अनुग्रह  कर.

यस. अनंतकृष्णन ,सरल  अनुवादक 

शिक्षित. पशु तुल्य जीवन (मु )

चित्र..
द्वार पर लडकी,
सडक पर साईकिल सवारी युवक.
आज शीर्षक  साहित्य विचार.

देखा,
तुरंत आये मन के विचार।


खिड़की  में से लडकी देखती,
लडका देखता दूर से.
राम खडा था नीचे,
सीता खडी  थी  ऊपर.

दोनों  की आँखें  हुई चार.

कुंती  भूलोक से देखती

सूर्य सुदूर से देखता कर्ण का जन्म.

मेरी कहाँ देखी पता नहीं ,
ईसा का जन्म.

सीता, आंडाल अनाथ मिली.
सनाथ तो सर्वेश्वर.

यह प्यार,
 यह आकर्षण
आज साहस लेकर द्वार पर ही
साईकिल की घंटी से हो जाता.
पर देखिए ,
जमाने के  अनुकूल
उड़ी चूम,दूर से.

 मंदिर या बाग में छिपकर
  मिलना अब तो दूर.

खुल्लमखुल्ला प्यार  करेंगे
हम दोनों.
इस दुनिया से न डरेंगे
हम दोनों.

स्नातक स्नातकोत्तर  के बढते बढते
पशु तुल्य आलिंगन चुंबन बहिरंग
आम जगहों में,
शिक्षा  संयम के बदले
जितेंद्रिय  के बदले
असंयम, अनियंत्रण पर
यह तो राष्ट्र, समाज, व्यक्तिगत  जीवन
सब को कर देते  बेचैन.
स्वचिंतक:यस.अनंतकृष्णन

क्या सच्ची भक्ति है? (मु)

चिंतन.

भारतीय क्यों दुखी,

विधर्म का विकास  कैसे?

विचारे सोचे बदल लों.

सर्वेश्वर  ही सब सुख और दुख के मूल में है.

जग में जगन्नाथ,
 यह अज्ञात  शक्ति,
अग जग में कई अपूर्व  बातें ,

मनुष्य बुद्धि  से बडी अमानुषीय शक्ति,
मनुष्य  जीवन का अध्ययन  करना है.
 सद्यःफल प्राप्त  करने मनुष्य को
अन्याय को देखकर,
समझकर ,जानकर भी
चुप ही रहना पड़ा है.
परिवार के सदस्य,
नाते  रिश्तों के लोग,
अपने ही दोस्त,
कोई अपराध करें तो
दुर्बल असहाय है  तो
तुरंत अखबारों में फोटो छपवाते हैं.

कोई मंत्री, कोई नामी अभिनेता, अमीर राजनीतिज्ञ  के
अपराध  मुकद्दमें के बहाने कैद कर फिर
जमानत में छोड़ देते हैं,
वे सुखी जीवन बिताते हैं.
अठारह साल, बारह साल तक मुकद्दमा  चलता रहता है.
बिना सिफारिश के मंदिर प्रवेश
 और भगवान की मूर्ति को निकट से
देखना संभव है?
मंदिरों के आसपास की दुकानें में
कितना ठगते हैं .
नकली रुद्राक्ष,
नकली चंदन की लकडी,
 मनमाना दाम
समझ में न आ रहा है,
तीर्थ स्थलों में
ठगों के बारे में स्थानीय पुलिस,
 निवासी, मंदिर के अधिकारी,
मंदिर के अंदर बाहर अन्यायों को
जानकर भी  चुप रहते हैं  यह क्यों?

धर्म परिवर्तन  के मूल में
सच्चे भारतीय चुप रहे.
विदेशी धर्मों के देवालयों की संख्या बढरहे हैं.
जनता, सरकार सब चुप.
 कारण सहन शीलता नहीं,
मंदिर संपत्ति  का अपहरण  ,
पहाडों को चूर्ण करना,
झीलें को मैदान बनाकर छोटा करना
और कई बातें हैं,
जो समाज की बुद्धि  को भ्रष्ट  कर देती.

 यही समाज भारत में.
सहनशील लोग .
पर विदेशी चालाक.
किसी मसजिद के बाहर अंदर
पेशाब का  दुर्गंध नहीं,

 पर  मंदिरों  में कूडा कचरा
पेशाब का दुर्गंध,
न टट्टी.
तमिलनाडु  का प्रसिद्ध  मंदिर,
 आय में बालाजी मंदिर  के बाद
अधिक आयवाले मंदिर पलनी.
वहाँ के बस स्टैंड  पर उतरते ही
बदबू. नाक बंद कर  चलना पड़ता है.

बालाजी मंदिर मेंदर्शन
 दो सेकंड,
बाकी बाजार  का  चक्कर।

त्रिकंबेश्वर गया तो नकली रुद्राक्ष
 कई आकार में असली रुद्राक्ष  कह बेचने को
स्थानीय लोग जानकर भी
पुलिस जानकर भी  चुप.

अतः भारतीय आध्यात्मिकता में

ईश्वर का भय नहीं..

स्वरचित स्वचिंतक:यस.अनंतकृष्णन

ईश्वर है या नहीं (मु )

चिंतन.

भारतीय क्यों दुखी,
विधर्म का विकास  कैसे?

विचारो सोचो बदल लों.

सर्वेश्वर  ही सब सुख और दुख के मूल में है.
जग में जगन्नाथ यह अज्ञात  शक्ति,
अग जग में कई अपूर्व  बातें होती हैं.
मनुष्य बुद्धि  से बडी अमानुषीय शक्ति,
मनुष्य  जीवन का अध्ययन  करना है.
 सद्यःफल प्राप्त  करने मनुष्य
अन्याय के देखकर, समझकर भी
चुप ही रहना पड़ा है.
परिवार के सदस्य, नाते  रिश्तों के लोग,
अपने ही दोस्त, कोई अपराध करें तो
दुर्बल असहाय है  तो
तुरंत अखबारों में फोटो छपवाते हैं.
कोई मंत्री, कोई नामी अभिनेता, अमीर राजनीतिज्ञ  के
अपराध  मुकद्दमें के बहाने कैद कर फिर
जमानत में छोड़ा देते हैं,
वे सुखी जीवन बिताते हैं.
अठारह साल, बारह साल तक मुकद्दमा  चलता रहता है.
बिना सिफारिश के मंदिर प्रवेश  और भगवान की मूर्ति को निकट से देखना संभव है?
मंदिरों के आसपास की दुकानें में कितना ठगने हैं
नकली रुद्राक्ष, नकली चंदन की लकडी, मनमाना दाम
समझ में न आ रहा है, तीर्थ स्थलों में
ठगों के बारे में स्थानीय पुलिस, निवासी, मंदिर के अधिकारी,  मंदिर के अंदर बाहर अन्यायों को
जानकर भी  चुप रहते हैं  यह क्यों?
धर्म परिवर्तन  के मूल में सच्चे भारतीय तप रहे.
विदेशी धर्मों के देवालयों की संख्या बन रहे हैं.
जनता, सरकार सब चुप. कारण सहन शीलता नहीं,
मंदिर संपत्ति  का अपहरण  ,पहाडों को चूर्ण करना,
झीलें को मैदान बनाकर छोटा करना और कई बातें हैं,
जो समाज की बुद्धि  भ्रष्ट  कर देती.

 यही समाज भारत में. सहनशील लोग पर विदेशी चालाक.
किसी मसजिद के बाहर अंदर पेशाब का  दुर्गंध नहीं, पर नंदिकेश में कूडा कचरा पेशाब का दुर्गंध, न टट्टी, तमिलनाडु  की प्रसिद्ध  मंदिर आय में बालटी के बाद अधिक आयवाले मंदिर पानी. वहाँ के बस स्टैंड  से उतरते ही बदबू. नाक बंदर चलना पड़ता है.
बालाजी मंदिर मेंदर्शन दो सेकंड, बाकी बाजार,.
त्रिकंबेश्वर गया तो नकली रुद्राक्ष  कई आकार में असली रुद्राक्ष  कह बेचने को स्थानीय लोग जानकर भी पुलिस जानकर भी  चुप.
अतः भारतीय आध्यात्मिकता मेंईश्वर का भय नहीं..
स्वरचित स्वचिंतक:यस.अनंतकृष्णन

Monday, January 7, 2019

तिरुप्पावै. 24(आंडाल )

दक्षिण  की मीरा आंडाल कृत तिरुप्पावै. 24
हिंदी में
 तीन पग में
दुनिया को नापा,
विकट रूप धरहर.
तेरा कमल पदों पर वंदना.
वामनावतार के चरणों की वंदना.
रामावतार चरणों की वंदना.
दक्षिण  श्री लंका के रावणासुर के संहारक,सीता के रक्षक,श्री राम को प्रणाम. तेरी वीरता को नमस्कार.
चक्रासुरके वधिक  को प्रणाम.
वत्सासुर वत्स के रूप में  आया तो
उसके लाठी बनाकर,
उसको कपित्तासुर पर फेंककर
संहार किये, ईश्वरावतार को प्रणाम.
तगोवर्धन  धारी श्री  कृष्ण  को प्रणाम.
तेरे हाथ के शूल को वंदन.
तुम्हारे  यशोगान  करने आये हैं,
दर्शन देन पधारकर,
अनुग्रह  की वर्षा करना.
तेरा चरण कमल में वंदन.