Wednesday, February 27, 2019

जवानों को सलीम (मु )


जवानों को सलीम (मु )
नमस्कार.
चित्र  शत्रुओं  को भयभीत कर रहा है,
भारतीय  शहीद जवानों  की आत्माएँ
पुनः भारतीय जननी की कोख में
जन्म लेने तड़प रही हैं, वीर जवानों
कायर  आतंकियों  के बद सलूक का
बदला यों किया, पाकिस्तान  डरपोक
अपने आतंकियों की मृत्यु
संख्या छिपा रहा है,
लडाकुविमान के चालकों  की चतुराई
चालाकी पैनी निशानी की प्रशंसा
अगजग में  हो रही है,
न कायरों  के आदमियों के समर्थन
 यह तो मोदीजी का चमत्कार.
वीरंगना  हमारी रक्षा मंत्रानी,
वेलुनाच्चियार, झाँसी रानी,  तिल्लैयाडी वल्लियम्मै की
वंशगत  वीरता की याद दिला रही  है.
माननीय मोदीजी अगजग अपने वश में कर लिया है.
स्वरचित स्वचिंतक:यस.अनंतकृष्णन

Monday, February 11, 2019

मिस्रा( मु )

मिसरा नहीं जानता,

मित्रों! मिसरा सोचते तो
चिंतन  में रुकावटें/बाधाएँ/अडंगें.
नमस्कार  मित्रों! माफ करना,
जो भाषा  पीढी रही  नदारद आज.
जो पीढी चोडी, जन साधारण  की भाषा  सरल बनी तो विकास.
घंटों बैठकर आटा पीसना
 एक ही काम.
आजकल यंत्रीकरण  करण,
स्विच दबाव, एक ही समय.
कपडे, बर्तन, आटा, बस,
झाडू रोबोट भी आ गये.
पर बीमारियां, आलसी, न जाने
उठना बैठना भी असंभव.
वैसा ही मानसिक दुःचिंता,, दुर्बलता
प्यार की कविताएँ,मोह की कविताएँ.
अमरेंद्रसिंह जी! अमर कलिकाएँ,
हसरतों,साधुओं की देन.
याद रखना, गले लगाना.
आछे दिन पाछे गए
अब हरि से होत किया.
राम नाम मणि दीप धरु
काम क्रोध  मद लोभ
संत वचनों को गले लगाना.
स्वपति  स्वचिंतक:यस.अनंतकृष्णन

Sunday, February 10, 2019

प्रेम दिवस का खंडन. ( मु )

कर रहा हूँ
प्रेमी दिवस की खंडण.

प्रेमिका न मिली,
हमारी जवानी में लड़कियाँ परदे के पीछे!
आजकल का गाना चोली के पीछे भीतर क्या है

अभिभाकों  द्वारा दंडनीय, अक्षम्य अपराध.
 पर गाये कार्तिकेय  के वल्ली प्रेम गाना.
गणपति की प्रेम सफलता की मदद.
पर जवानों को लडका देखने की अवसर कम.
न कालेज, न जटी काम, समाज विरोध.
न निरोध, न मिलकर रहना बिछुड जाने की बात.
न  सह शिक्षा, न सिटी बस्डै्ंड.
बूढी नानी, बूढी दादी के घेरे में घूंघट ओढकर आती.
न आजकल की तरह मिति मुनि ड्रस.
न अर्द्ध नग्न उभरी बिरा, यह न लगता बुरा.
हेलन को देखते, नायिका तो भद्र स्त्री, पर
आजकल की नायिका ओढनी फेंक नाचने लगती.
ईर्ष्या  वश हम करते प्रेमी दिवस की उल्लंघन.
पर हमारे जमाने में न तलाक शब्द,
न अदालत मुकद्दमा.
स्त्री केवल बेगार, कठपुतली.
उस जमाने की लड़कियों काशाप
वर के लिए  वधु मिलना  अति दुर्लभ.
प्रौढ कन्या नहीं अब प्रौढ अविवाहित कन्य.
प्रिय प्रिया होता तो कन्या कन्य  सहू.
हम करते प्रेम दिवस की खंडन समाज कल्याण  को लिए.
मन में तो ईर्ष्या  ज़रूर.
मुरादाबाद प्रेम दिवस.

माया से बचो करो प्रदूषण को दूर.( मु )

करो प्रदूषण को दूर.

आज सुबह  का सुप्रणाम .

भगवान की यादें,
भक्त के मन में.
भोग के  विचार.
 भोगी के मन में.
इच्छाओं की माया,
ईश्वर को न बुलायी.
ईश्वर की माया,
इच्छाओं को भगायी.
सांसारिक मायाओं से बचो.
वैज्ञानिक  युग,
भोगैश्वर्य साधन अनेक.
दान की महिमा हटाकर
धान उत्पादन  का महत्व हटाकर
झील, नदी, तालाब की लंबाई, चौडाई ढककर,
आगे की पीढी के सूखापन पर ध्यान न देकर,
तत्काल के सुख के अपूर्व मान,
अगजग को  अकाल की ओर
ले जा रहा है, जागना है,
भारतवासियों! जगाना है देशवासियों को.
सनातन सदा सादगी की ओर करता संकेत.
प्रकृति कोप सुनाना, भूकंप, अतिवर्षा,
सतर्क करता कभी कभी. पर
आधुनिकता आगे कभी कभी नहीं
अक्सर तंग करेगा जान.
जानकर भी तंग करता तो
जगदीश  न करेगा माफ.
माता -पिता भी अनजान हस्ती का माफ कर देते.
न करते जानी हस्ती को.
स्नातक स्नातकोत्तर  बढते जग में
हो रहा  है अनुशासन  की कमी.
सोचो समझे, संयम जानो, जितेंद्रिय  बनो
करो प्रदूषण को दूर.
स्वरचित स्वचिंतक:यस.अनंतकृष्णन

Friday, February 8, 2019

हिंदी

1900 ..118वर्ष  की हिंदी दुल्हन अति सुंदरी, स्वयं वर में 100करोड भारतीय
 अहिंदी प्रांत के लोग
अपने आप
अपने ढंग से
 कन्या को सजाकर
अति आकर्षित  बना रहे हैं,
प्रवासी भारतीय सम्मेलन
हिंदी दुल्हन  महँगी,
अमीरी साधारण लोग दूर से
अपने पाकेट मणि खर्च करने वाले आगे.
बाकी प्रेमचंद. आश्रयदाता के बगैर
विकसित होना हिंदी की विशिष्टता

अनुभवों के सिद्धांत (मु )


यह अनुभवी सिद्धों के दार्शनिक  सिद्धांत.


सुप्रभात.
सुखी जीवन
शांतिपूर्ण  जीवन
संतोष पूर्ण जीवन
अचंचल मन
अनंत सुख
अपने अनुभव  में
ईश्वरीय प्रार्थना  में ही,
स्वार्थ मय संसार
भूलों से परिपूर्ण
भूल से भूल.
भूल से अपराध
अपराध के दंड से बचने बचाने
मिथ्याचरण.
मिथ्याकरण के प्रकट अवश्य.
तिरुवळ्ळुवर का कथन
अपने दिल में जानकर भी मिथ्याचरण,
मिथ्याचरण मिथ्या स्थिर होने पर,प्रकट हेकर
अपने  मन ही अपने को जलाएगा.
मिथ्याचरण  राम और कृष्ण के जीवन पर भी कलंक.
 सब से बचकर जीने का मार्ग  ध्यान.
रूप अपूप ईश्वर से
दीप ज्वाला में, आँखें बंद करने के ध्यान में
जिदेन्द्रियता में ईश्वरीय ब्रह्मानंद.
यह अनुभवी सिद्धों के दार्शनिक  सिद्धांत.

Thursday, February 7, 2019

स्वार्थ (मु )

Anandakrishnan Sethuraman 

स्वार्थ 

सदस्यों को 

सब शीर्षक समिति के 
नमस्कार।

-आज का शीर्षक : स्वार्थ 
मेरे अर्थात अनंत कृष्णन जी 
के द्वारा 
स्वयंचिन्तक स्वरचित 
स्वार्थ भरी रचना।
सुनिए ,मैं गया मंदिर 
भीड़ अधिक ,
गर्भ ग्रह के ईश्वरदर्शन के अंध विश्वास ,
वहाँ के दलील के हाथ 
दबाया सौ रूपये का नोट .
हज़ारों के लोग घंटों कतार पर,
अंदर गया सब के आगे ,
दर्शन तो मिले ,
पुण्य मिले या पाप ?
मुझको चिंता नहीं .
दर्शन तो हो गया.
ऐसे दर्शकों के पक्ष में 
स्वार्थियों के साथ 
भगवान है तो 
पैसे ही प्रधान तो 
समझ में नहीं आता 
वह दर्शन स्वार्थ या 
वह भक्ति अप्रधान अंधविश्वास।

स्वार्थ वश भ्रष्टाचारी नेता 
वह तो मेरे मन पसंद नेता 
उनकी भ्रष्टाचारी सह 
उनको ही ओट बटोरता 
स्वार्थ , यह आदर्श है या 

अन्याय स्वार्थ पता नहीं। 
हज़ार रूपये ओट के लिए 
लेकर स्वार्थ वश ओट दिया 
भ्रष्टाचारी को 
वह देश के
लाभ के लिए या स्वार्थ नेता दल के 
पता नहीं। 

विभीषण के राम से जुड़ना ,
आम्बी के सिकंदर से जुड़ना स्वार्थ या निस्वार्थ 
अब भी विदेशी षड्यंत्र 
आज भी श्रीलंका में आतंक वाद 
स्वार्थ ,स्वार्थी चले गए देश तो 
भ्रष्टाचारी और अंग्रेज़ी 
भाषा की कठपुतली ,
वह अंग्रेज़ी पारंगत नेता भारतीय 
स्वार्थ या निस्वार्थ हमारी 

भारतीय भाषाएँ नौकरी प्रधान नहीं ,
वे मातृभाषा अप्रेमी चले गए ,
मातृ भाषा माद्यम बंद ,
अंग्रेज़ी माध्यम स्वार्थ लाभ के मालिक 

जूते के लिए कमीशन ,
टाई के लिए कमीशन ,
किताब के लिए कमीशन दाम तो अधिक 
किताब सिखाते या न सिखाते 
लेना अनिवार्य।
ऐसे स्वार्थ देश में 
छात्रों में अनुशासन की कमी 
स्वार्थ धन प्रधान 
योन ही स्वार्थ से हम 
अपना भोजन ,अपना संयम ,
अपनी संस्कृति। अप नी भाषा 
भूल रहे हैं .
मुर्दाबाद
स्वार्थ या जिंदाबाद