Monday, November 11, 2019

बचपन

प्रणाम।वणक्कम

पचपन
बचपन सा खेल कूद नहीं।
बचपन के लोगों से चर्चा  नहीं।
बडे  हो बढ बढ़ाना नहीं।
बुढापा का पहला सोपान।
तनाव,अवकाश होने तीन साल।
बेटी की शादी,लडके की पढाई नौकरी।
शक्कर,प्रेशर,न जाने वह है या नहीं
चेकप करने दोस्तों का आग्रह।
बचपन का मस्त खुशी पचपन में नदारद।
न धन,न पद,न अधिकार
वापस न देता जवानी।
ईश्वरीय नियम दंड पचपन।
यस।अनंतकृष्णन।

Friday, November 8, 2019

अभिमान की बात

चार आदमी
आज चार चक्र
 एक आदमी।
शव उठाने काल परिवर्तन ।
 कन्धा देने
कन्धा बदलने की
जरूरत नहीं।
सम्मिलत परिवार नहीं,
सोचते हैं पर वानप्रस्थ,
सन्यासी जीवन हैं  हमारा।
 ऐसी परम्परागत विचार में,
वृद्धाश्रम तो बढिया।
वह सन्तान
 बहु, बेटी, प्रशंसा के पात्र हैं ,

जो अपने वृद्ध माता -पिता को
वृद्धाश्रम में  छोडकर
 मासिक शुल्क अदा करके
कभी कभी मिलने आते हैं।
घर में रखकर सताने से
यह तो वृद्धों के लिए
अभिमान की बात ।

अभिमान

प्रणाम।
भगवान से प्रार्थना।
भवसागर  पार करने
भगवान का अनुग्रह चाहिए।
जन्म,जीवन,मरण ।
अभिमान क्या है?
स्वाभिमान !⁹
मनुष्य का सक्रिय जीवन
साठ  साल तक।
सब में  अपवाद हैं।
हज़ोरों में दस-बीस अपने बुढापे भी
सक्रिय रह्ते हैं।
जीवन में बीस साल
ज्ञानार्जन में बीत जाता हैं।
इस काल में
आत्म संयम,आत्मानुशासन ,
जितेंद्रियता अत्यंत आवश्यक हैं।

  आधुनिक वैज्ञानिक मनोरंजन के साधन
भलाई बुराई मिश्रित चित्रण में,
बुराई ज्यादा,भलाई कम ।

तब मनुष्य स्वभाव
बुराई को आसान से
पकड लेता है।
तब चरित्र निर्माण में बाधाएं होती हैं।
25 साल में ही युवा युवती अपनी
शक्ति खो बैठते हैं।
तीस साल की शादी में
अतृप्त गृहस्थ जीवन
गैर कानूनी  सम्बंध रखने में विवश।
तलाक के मुकद्दमे बढते जाते हैं।
हत्या,आत्महत्या,तेजाब फेंकना आदि
खबरें निकलती रह्ती हैं।
  शासक,आश्रमके आचार्य,शिक्षक,शिक्षार्थी
सब में आत्म संयम की कमी के
समाचार निकलते रहते हैं।
ये सब त्रेतयग,
द्वापर युग,
कलियुग तीनों में
पाते हैं।
पर कलियुग में संख्या ज्यादा हो रही हैं ।
रावण सीता को ले जाना - रामायण।
शिव,विष्णु,कार्तिक का प्रेम विवाह पुराण,
भीष्म का तीन राज्कुमारियो को
 जबर्दस्त उठालाना महाभारत।
आधुनिक काल में
ऐसी बातें रोज समाचार पत्र में।
  अस्थिर जीवन,नश्वर दुनिया, मरण निश्चित जीवन।
सबहिं नचावत राम गोसाई।
अपना अपना भाग्य
यही मानव जीवन।
 आज सुबह मन में उठे विचार।
स्वरचित स्वचिंतक
यस।अनंत कृष्णन।

Thursday, November 7, 2019

फुल और काँटा

प्रणाम।
फूल और काँटा।
पुष्पलता अतिसुंदर।
पुष्प काँटा अति दर्द।
यही है जीवन का सुख -दुख।
ईस्वरीय सृष्टियों में
कोमल एक है तो कठोर अधिक।
छिपकली एक कीडे अनेक।
 एक बूंद शहद एक चम्मच कडुवीदवा।
सुख दुख में  सुख एक फूल।
दुख असंख्य है मानव जीवन में।
सहना सामना करना
सावधानी से तोड़ना,जोडना
तभी आनन्द असीम।
स्वरचित स्वचिंतक
यस.अनंतकृष्णन

Wednesday, November 6, 2019

भारतीयता अपनाना

प्रणाम ।
प्रात:काल की प्रार्थना।
शुभ-कामना।
विदेशी तोडे मन्दिर।
अद्भूत शिल्पकला
निर्दयी तोडे हजारों मन्दिर।
अलग देश माँगकर ही छोडा।
आजादी के बाद के भारतीय शासक
भारतीयता छिपाने,
भारतीय भाषाओं को मिटाने,
विदेशी मजहब की  जनसंख्या बढाने
कितने अन्याय किये?
सत्तर साल में भारतियों के दिल में
यह भाव जम गया,
बगैर अंग्रेजी के
 तरक्की नहीं
 अपनी
और देश की।
भूल गये इतिहास।
अद्भूत किले,
चमत्कार मन्दिर
अजंता,एल्लोरा,
मदुरै,चिदंबरम,तिरनेलवेली,श्रीरंगमन्दिर।
कर्नाटक के मन्दिर,
कश्मीर की हस्तकलाएँ ,
बनरशी रेशम साड़ियाँ।
काली मिर्च,इलायची,लवन्ग और जडी बूटियाँ।
पकवान के कितने प्रकार।
कल्कत्ता रस्गुल्ला,तिरुप्पती लड्डू,
पलनी पंचामृत,विष्णु मन्दिर के स्वादिष्ट इमली भात।
कच्चे मांस खाए पश्चिमी परदेशी के शàन में
हम भी कच्चे-अधपकके हो गये।
आहार में भी  आ गये परिवर्तन।
भारतीय महत्व के प्रचार में न लगे शासक।
वैज्ञानिक साधन की तरक्की,विदेशी दिमाग,
भारत को बना दिया,
चेन नगर के चार बेकार।
मेहनती,सच्चे,ईमानदारी भूखों मरते हैं,
आलसी  भ्रष्टाचारी  सुखी मालामाल।
सोचिये भारत्वादीयों!जागिये।
अपने निजित्व का शान मानिये।
भारत भारतीयता अपनाकर आगे बढें ।
विदेशी पूंजी,विदेशी मालिक,विदेशों को लाभ।
भारतीय केवल नौकर यह रीति नीति बदल जायें।
करोडों की सम्पत्ति हमारे युवक -युवतियाँ।
 स्वचिंतक स्वरचित
यस।अनंतकृष्णन।वणक्कम

देशोन्नति

संगम के साथियों को ,
सबेरे एक बजे का वणक्कम।
प्रणाम।
प्रात:काल की प्रार्थना।
भारत देश की रक्षा
भारत की प्रगति,
देश -भक्त और देशद्रोहियों के साथ,
तब तो  भारतोन्नति तो भगवद शक्ति से।
क्या इस में कोई शक?
आध्यात्मिकदेश,
आदी भगवान
शिव का देश।
त्रि शक्तियों का देश।

शोधार्ती विश्व के मानते हैं,
रूस के नास्तिक मानते हैं
यज्ञ -हवन धुएँ  का महत्व।
तमिलनाडू  से उत्तरकाण्ड तक के
 सीधी रेखा केशिव मन्दिर का महत्व।
तमिलनाडू के चिदंबरम मन्दिर,
भूमि का केंद्र बिन्दु।
तिरु नल्लारु शिव मन्दिर का महत्व।
हर मन्दिर की कलात्मक्ता में वैज्ञानिक्ता।
चेन्गिस्खां से अंग्रेजों तक
कितने आक्रमण,
कितने देश द्रोही।
हिमाचल से कुमारी अंतरिप तक
कितनी प्राकृतिक भिन्नताएँ ?
कितनी भाषाएँ ?
गोरे -काले लोग ,
प्रान्तीय- क्षेत्रीय जोश।
एकता तो गणेश -कार्तिक
 शिव-विष्णु,के कारण।
रामायण,महाभारत के कारण।
माया,शैतान,माया की शक्ति
लौकिक मानव में न हो तो
धनलक्ष्मी का मोह न हो तो
सदय:फल की ओर
विदेशी धारा में न  बहें तो
स्वार्थ राजनीति न हो तो
स्वर्ग तुल्य भारत।
 स्वरचित स्वचिंतक
यस-अनंतकृष्णन।

पचपन/बचपन

प्रणाम।वणक्कम
बचपन
शिशु को किसीने कहा ,
नन्हा मेहमान।
पत्नी का सारा  प्यार,
चुंबन आलिंगन शिशु की ओर।
शिशु बच्चा,तब बचपन।
पाठशाला गमन,
खेलकूद,गिल्ली ठंडा,
गोली खेलना,कबडी
न चित्रपट,न दूरदर्शन न मोबाइल।
न ट्युसन,न क्रीकट कोच,
न की बोर्ड,न कराते।
खल खेल में पढाई।
आज दो साल में प्रि के जी,
किस के लिए?
मातृभाषा भूलने के लिए।
तब से टियुसण।
हमारा बचपन पैदल चल,
पेड  की  छाया में,
दौड धूप में आँख मिचौनी में बीता।
आज के जल्दी जल्दी
 किताबों की बोझ पीठ में ढोते,
 स्कूल बस के आते ही दौडना,
ज़रा भी आजाद नहीं,
वैसे ही बचपन गुलाम सा,
बेगार सा,न माँ  का प्यार,
न दादा दादी की आशीषें,
न हँसी,न खेल कूद,
बीत  जाता  बचपन।
स्वरचित स्वचिंतक
यस.अनंतकृष्णन
पचपन
बचपन सा खेल कूद नहीं।
बचपन के लोगों से चर्चा  नहीं।
बडे  हो बढ बढ़ाना नहीं।
बुढापा का पहला सोपान।
तनाव,अवकाश होने तीन साल।
बेटी की शादी,लडके की पढाई नौकरी।
शक्कर,प्रेशर,न जाने वह है या नहीं
चेकप करने दोस्तों का आग्रह।
बचपन का मस्त खुशी पचपन में नदारद।
न धन,न पद,न अधिकार
वापस न देता जवानी।
ईश्वरीय नियम दंड पचपन।
यस।अनंतकृष्णन।