Saturday, November 30, 2019

इतनी शक्ति हमें देना

ईश्वर  वंदना,
इतनी शक्ति  हमें  देना।
ईश्वरीय  स्मरण में
मन लग जाएँ।
हर कार्य  में
ईमानदारी  चमक जाएँ।
सत्य के फूल  खिल जाएँ।
धर्म  की महक मोहित  करें।
जितेन्द्र बन जीत सके संसार।
माया महा ठगनी से बच सकें।
संसार  में सुखी जीवन जीने
सब को सुबुद्धि मिलें।
पापियों  को भय दिखाना।
धर्म  के पक्ष के लोगों  को
खुश रखना,
असुरों  को वर देकर
 अवतार  न लेना।
खुद  कष्ट  न उठाना।
सीता का अग्निप्रवेश
सीता का त्याग
संतानों  से लड़ना
ईश्वरत्व करुणा  की शोभा नहीं।
भ्रष्टाचारियों को दंड  से बचाना।
अत्याचार की चरम सीमा  पर
अवतार लेना, भक्तों   को सताने
तेरे भक्तवत्सलता पर काला धब्बा।
क्षमा करना,  तेरी लीला सूक्ष्म  न जान
तेरी दी हुई  बुद्धि  से कर  रहा हूँ
विनम्र  प्रार्थना, उद्धार करना।
भक्तवत्सल  हो, दीनबंधु  हो।
अनाथ रक्षक हो, आश्रदाता।
मेरी सृष्टि  करता हो।
मैं  क्या माँगूँ।
जानता हूँ  सबहिं  नचावत  राम गोसाई।
हर हर शंकर , जय जय शंकर हर हर शंकर ।




Friday, November 29, 2019

परिवार

प्रणाम।  वणक्कम।
अनंतकृष्णन का।
शीर्षक : परिवार।
परमानंद
रिश्ते  के साथ
वास।
रक्षक
एक दूसरे का।
सहायक एक दूसरे का।
सुख दुख के सम भागी।
खून का रिश्ता।
सह उदर का रिश्ता।
रामायण में  भिन्न उदर।
पर भाइयों का प्रेम अभिन्न।
महाभारत पांडव के
भिन्न  पिता , पर प्रेम की कमी नहीं।
कौरव सौ,एक अंधे पिता।
पर
स्वभाव अच्छे  नहीं।
परिवार  में  प्रेम  ।
ईश्वर की देन।
स्वरचित स्वचिंतक यस अनंतकृष्णन

बंधन

प्रणाम। वणक्कम।
शीर्षक:  बंधन।
बंधन युक्त जग।
बंधन मुक्त जग कहाँ?
साधु-संत ईश्वर के बंधन  में।
भक्तों  के बंधन में ईश्वर।
 पदों  के बंधन  में  स्तुति।
मुख-स्तुति  के बंधन में  जनता।
जनता के बंधन में शासक।
घुटबंधन में  चुनाव जीत।
पैसे के बंधन  में  जग व्यवहार।
पाप के दंड भय से पुणय।
सुवर्ण  के बंधन  में शब्द।
स्वर्ण के बंधन में  नारी।
नारी के बंधन  में नर।
नर के बंधन  में  नारी।
प्रेम बंधन  में प्रेयसी।
शरीर के बंधन में तुलसीदास।
शरीर सुख का बंधन  छोडा तो
राम नाम का बंधन।
शरीर का बंधन
प्राण छोडा तो
राम  भी लाश का नाम।
बंधन  रहित  मानव का अंतिम रूप।
स्वरचित स्वचिंतक यस अनंतकृष्णन।
(मतिनंत)

करुण रस

प्रणाम। नमस्कार। वणक्कम।
 करुण  रस।
 ईश्वर  को कहते हैं
करुणा मूर्ति। करुणा सागर।
करुण भाव न तो
मानव जीवन पशु तुल्य।
ईश्वर  की करुणा  से
ईश्वरेत्तर  मनुष्य  जीवन।
दयालु और करुणामूर्ति में
मनुष्यता और ईश्वरत्व का अंतर।
किसी तत्काल प्रभाव से दया।
करुणा  मनोभाव।
एक उत्पन्न  एक सहज।
अनजान के दुख
देख,
दया।
ऐसा होगा सोचना  तो
 सहज करुण।
दया बाहरी।
करुणा  अंतःस्थापित।
दया मनुष्यत्व।
करुणा ईश्वरत्व।
 घायल शत्रु  देख
दया नहीं।
 घायल मित्र देख दया।
अतः मनुष्यत्व।
बगैर भेद  के करुणा।
महावीर,बुद्ध,महादेव करुणामूर्ति।
स्वरचित स्वचिंतक यस अनंतकृष्णन।
(मतिनंत)

Thursday, November 28, 2019

मुक्ति

वणक्कम। प्रणाम।
 मुक्ति   शीर्षक।
प्रेरक है कुछ लिखने  का।
कुछ प्रशंसा पाने का।
कुछ नये आकर्षक
नये विषय प्रस्तुत  करने का
कैसे सांसारिक  बंधन से मुक्ति।
न प्यास से मुक्ति,न भूख से मुक्ति।
न रक्त संचार  से मुक्ति।
मुक्ति  के लिए करते हैं  प्रार्थना।
समाज  की भलाई  के लिए  सोचते हैं।
राष्ट्र  के भ्रष्टाचार  के बारे में,
शिक्षा की महँगा पर,प्याज के दाम पर।
कितना सोचते हैं?
मुक्ति  कहाँ?
मन की ज्वार भाटा।
मन का पंख फैलाकर आकाश तक
उड़ना,आकाश  पाताल तक
जानने का जिज्ञासा।
वेंटिलेटर में  डाक्टर  भेजने के बाद भी
एक महीने  तक तड़पनेवाला बूढ़ा  बूढी।
कैसी मुक्ति?
जब तक आशतब तक साँस।
हम न विवेकानंद हम न आदी शंकर।
न गणितज्ञ  रामानुजम।
ईश्वर के हिसाब  की जिंदगी।
पाँच  मिनट मन निश्चल  तो
तभी मुक्ति।
स्वरचित स्वचिंतक यस अनंतकृष्णन। (मतिनंत  )
29-11-19।
मुक्ति शब्द  पारिवारिक दल तो
चाहें बढती हैं, कैसे  मुक्ति।

Wednesday, November 27, 2019

घर परिवार

प्रणाम। वणक्कम।
 सब परिवार को नहीं जानते।
सम्मिलित परिवार  नहीं जानते।
परिवार  की सहनशीलता नहीं समझते।
बात बात  पर झगडा।
तलाक।
माता पिता के रहते
कितने ही बच्चे अनाथ।
घर हीन फुटपाथ के परिवार  अच्छे।
 खुली हँसी ,
 मीठी नींद।
पर  बडे घर,
निस्संतान दंपति।
तलाक  की बातें।
एक दुखी खामोशी।
संतानों  की शिक्षा की परेशानी।
तीन साल का बच्चा।
यल।के।जी दो  लाख।
घर एक करोड़,
 पर न जमीन
उनके अपनी ।
 न दीवार
 अपना।
त्रिशंकु  घर।
कमाते  अधिक।
पर  खर्च  कर्जा चुकाने काफ़ी नहीं।
घर का मैनटनन्स चार्ज
 स्कोयर फुट दस रुपये ।
 जिम स्विमिंग पुल,
विभिन्न मैदानी
 खेल के मैदान।
पर न समय
वहाँ  जाने का।
घर परिवार
 मिलकर खाना।
मिलकर जाना।
एकसाथ मंदिर  जाने,
परिवार  एक नहीं।
स्वरचित स्वचिंतक यस अनंतकृष्णन

Tuesday, November 26, 2019

बदनाम

प्रणाम।
न जाने दोस्तों।
आज लिख रहा हूँ
कई दिनों  के बाद
लिख रहा हूँ।
हम हुए  बदनाम
 आखिर किसलिए?
सच बोले।
ईमानदार  से रहे।
कमाते किसी को
धोखा नहीं  किया।
फिर भी बदनाम।
किसलिए?
भ्रष्टाचारियों  के
मुखौटे  खोले।
दोस्त  न देखा,
रिश्ते  न देखा।
तटस्थ  रहा।
हमारे नेता  कामराज हार गए।
उनके बाद के नेता ,
लाखों  करोड़ों  के अधिपति।
हर वोट दो हज़ार।
 करोड़  पति जिताने
मतदाता तैयार।
सांसद बन
दल बदलने तैयार।
वोट के लिए  पैसा देना।
रीटैल व्यापार।
साँसद  बनकर ,
करोडों   के लिए
दल बदलना,
थोक व्यापार।
हम बदनाम  हुए।
आखिर  किसलिए?
राजनीति लिखना मना।
लोगों  को जगाना मना।
लिखो  तो प्रेम  पत्र लिखो।
नीलपरिधान बीच,
अधखुला अंग।
विरह वेदना,
प्रेम  मिलन
चुंबन  लिखना।
धड़कन तडप लिखना
कविता।
 गरीबों  की दशा।
भिखारी  की हालत
लिखना कविता।
हम हुए  बदनाम ।
आखिर  किसलिए?
स्वरचित स्वचिंतक यस अनंतकृष्णन।

प्रणाम।
न जाने दोस्तों।
आज लिख रहा हूँ
कई दिनों  के बाद
लिख रहा हूँ।
हम हुए  बदनाम
 आखिर किसलिए?
सच बोले।
ईमानदार  से रहे।
कमाते किसी को
धोखा नहीं  किया।
फिर भी बदनाम।
किसलिए?
भ्रष्टाचारियों  के
मुखौटे  खोले।
दोस्त  न देखा,
रिश्ते  न देखा।
तटस्थ  रहा।
हमारे नेता  कामराज हार गए।
उनके बाद के नेता ,
लाखों  करोड़ों  के अधिपति।
हर वोट दो हज़ार।
 करोड़  पति जिताने
मतदाता तैयार।
सांसद बन
दल बदलने तैयार।
वोट के लिए  पैसा देना।
रीटैल व्यापार।
साँसद  बनकर ,
करोडों   के लिए
दल बदलना,
थोक व्यापार।
हम बदनाम  हुए।
आखिर  किसलिए?
राजनीति लिखना मना।
लोगों  को जगाना मना।
लिखो  तो प्रेम  पत्र लिखो।
नीलपरिधान बीच,
अधखुला अंग।
विरह वेदना,
प्रेम  मिलन
चुंबन  लिखना।
धड़कन तडप लिखना
कविता।
 गरीबों  की दशा।
भिखारी  की हालत
लिखना कविता।
हम हुए  बदनाम ।
आखिर  किसलिए?
स्वरचित स्वचिंतक यस अनंतकृष्णन।