Friday, December 20, 2019

संयोग वियोग

नमस्ते।
संयोग वियोग।
कल्पना  करने समय कहाँ?
प्रेम प्रेमिका के मिलन कहाँ?
रीति काल के कवियों  के समान
बेकार लोग  कोई  नहीं आजकल।
स्नातक शिक्षित समाज में
पति नैट ड्य्टी पत्नी डे ड्यूटी
दिन दिन संयोग वियोग  ।
आधुनिक समाज  में।
बात बात में गुस्सा।
रोज पति-पत्नी में मन मुटाव।
बिस्तर दक्षिण  उत्तर ध्रुव।
दिमागी काम भारी मन।
संयोग वियोग  दिन दिन।
दादी से पूछा  आपका जमाना कैसा?
दादी ने कहा हम पढी लिखी  नहीं।
दस साल  की उम्र में  शादी।
बडा सम्मिलित परिवार।
न ग्रैंडर।न वाशिंग मिशन न मिक्शी।
आजकल  के समान  अलग अलग
शयनाघर नहीं, थक कर रात
 ग्यारह बारह बजे सोने जाते।
पति पत्नी बोलते नहीं।
पर चार घंटे  की नींद।
हर साल एक बच्चा।
हम न जानते संयोग वियोग।
ये कल्पना राजकुमारी  राजकुमार।
दरिद्र बेकार कवियों  के काम।
युवकों  को सोचने समय नहीं।
विदेश में  नौकरी। नेट में  मिलन।
संयोग  वियोग  के चिंतन का समय नहीं।
संयोग में  बात बात की लडाई।
अलग परिवार हम दो ।तलाक की बातें।
संयोग  वियोग की बातें पटकथा में।
बेकार  लोगों  की कल्पना।
घर का हर काम यंत्र करता।
यंत्र  के कर्जा चुकाने पति पत्नी
यंत्रवत जीवन ।
बच्चे केलिए किराया माता।
 शादी  की देरी निस्संतान की चिंता।
संयोग  वियोग के वर्णन करते
बेकार लोग।
यंत्र वत व्यस्त जीवन में
संयोग वियोग न जानते लोग।
स्वचिंतक स्वरचित स्वचिंतक यस अनंतकृष्णन।

जन्नत

नमस्कार।
प्रणाम।
  शीर्षक: जन्नत।
  जन्नत  कहाँ  हैं?
कामांधकारों के लिए,
नारी ही स्वर्ग।
तब तो स्वर्ग  उसके लिए
यह धरती  ही स्वर्ग  है।
पियक्कडों के लिए
 मधुशाला स्वर्ग।
पर्यटकों  के लिए
प्राकृतिक दर्शन स्वर्ग।
कवियों  के लिए उनकी
 रचना स्वर्ग ।
चित्रकारों  के लिए
चित्र खींचने में स्वर्ग।
हर एक यहीं  स्वर्ग का
अनुभव  करते हैं  तो
और कहीं  स्वर्ग  नहीं।
जहन्नुम  यहीं  दीर्घ रोगी।
दीर्घ दरिद्री, लूले लंगड़े,अंधे,बहरे।
 कइयों  को देखते हैं  यहाँ।
जन्नत  अलग नहीं  जहन्नुम अलग नहीं।
सब के सब यहीं।

स्वरचित स्वचिंतक यस अनंतकृष्णन।

Thursday, December 19, 2019

आत्मनिर्भर

संचालक सदस्य संयोजक चाहक रसिक पाठक सबको
 तमिलनाडु का हिंदी प्रेमी
 हिन्दी प्रचारक यस-अनंतकृष्णन   का प्रणाम।
 शीर्षक  : आत्मनिर्भर  दि:191219
कलियुग में एक बात
 अच्छी लगती।
काश!आत्मावलंबन।
 राजा के तीन बेटे।
बडा बेटा राजा बनने का हक।
बाकी दो की जिम्मेदारी कम।
सम्मिलित परिवार बडा बेटा
जिम्मेदारी,बाकी  का दायित्व कम।
पितृतर्पण भी बडे बेटे  कर्ता।
बाकी  निश्चिंतव गैर जिम्मेदार।
कलियुग  में  परिवार  के सब के सब
आत्मनिर्भर/आतामावलंबित।
परिवार  अलग  अलग।
नौकरी दूर  दूर।
एक ही संतान।
वह भी विदेश में ।
आत्मनिर्भरता अनिवार्य।
तीन साल  का बच्चा।
माँ-बाप दोनों  करते नौकरी।
वह बच्चा  खुद  खाता।
प्यार से घंटों  खिलाने समय नहीं।
आत्मनिर्भर बनाने में
कलियुग  का महत्व  अधिक।
राजनीति में  माँ,बाप ,बेटे ,बेटी
अलग अलग चुनाव  लडना।
आत्मसामर्थ्य  आत्मबल से
आत्मनिर्भर होकर जीतना है।
आत्मानंद आत्मसुख आत्मसंतोष
आत्म सम्मान  स्वाभिमान जिंदगी
जीने आत्म निर्भरता अतिआवश्यक।
आयकर बचाना है तो
एक ही व्यापार  चार बेटों  के लिए
अलग अलग दूकान।
आत्मनिर्भरता आय कर बचा लेता।
 आत्मनिर्भरता अति लाभ  प्रद।
पिता कांग्रेस माता भाजपा
पोता शिव सेना  मामा कम्युनिस्ट
चाचा एक छोटा  -जाति संप्रदाय 
प्रांतीय दल।
आत्मनिर्भरता से जीने की कला।
एक ही परिवार  भिन्न दल।
आत्मनिर्भरता में सत्ता
अपनों  के हाथ  में ।
यहाँ  शकुनि ,मंथरा आदि बेकार नहीं।
हर एक अपने अपने काम में व्यस्त।
नाते रिश्ते मित्रों के लिए
आत्मनिर्भर होकर जीने में
आत्मानंद  वही परमानंद।
स्वचिंतक स्वरचित स्वचिंतक यस अनंतकृष्णन।

Monday, December 16, 2019

-सपनों से भरे नैना।


कहानी शीर्षक :--सपनों से भरे नैना।
जब राम बच्चा था ,तब से आध्यात्मिक चमत्कार की बातें सुना करता था.

उसके दिमाग में अष्टसिद्धियाँ पाने की इच्छा के अंकुर फूटने लगे.कालिदास की कहानी सुनकर काली माता का ध्यान करता था. भक्तों को सद्यः वर देने वाले शिव का भक्त बनकर ॐ नमः शिवाय की तपस्या में लगा। सपनों से भरे नैना अष्टसिद्धि की कल्पना ,लघु रू से विराट रूप इस सपने में ही आदर्श भक्त बन गया.उसके मन से लौकिक विचार हट गए, तुलसी दास की कहानी से शारीर सड़नेवाली की बात आदि सुनकर साधू सिद्धपुरुष बन गया.उसको एक दिव्य शक्ति मिल गयी.वह आरादनीय व्यक्ति बन गया.यही आत्मसंयम का हिन्दू धर्म। सपनों से भरे नैना

Sunday, December 15, 2019

ईश्वरीय कानून।

परिवार  दल - कलम की यात्रा।  குடும்பங்கள்.பேனாவின்பயணம்.
नमस्ते। वणक्कम।
வணக்கம்.
சுய சிந்தனையாளர் சுயமாக இயற்றியது.
स्वचिंतक स्वरचित स्वचिंतक यस अनंतकृष्णन।
शीर्षक: सच्चाई। தலைப்பு: உண்மை.

வரம் தா கலைமகளே!
விவாதங்களில் சத்திய த்தின்  வெற்றி.
அசத்தியத்தின் தோல்வி கிட்டட்டும்.

.உண்மையில் மனிதனுக்கு
 துன்பங்கள் ஏன்?
இன்று  உண்மை வெளிப்பட
 ஞானம் கொடு.
உன்னுடைய லீலைகள் மிக நுண்ணியமானது.
ஊழல்வாதிகளின்
செழிப்பான வாழ்க்கை.
லஞ்ச அதிகாரிகளின் 
வாழ்க்கை
ஆணவ ஆட்சியாளர்களின்
 வாழ்க்கை
அறிவுக்கண் பெற்ற மனிதன்
அறிந்து  படிப்பதில்லை.
சிந்திப்பதில்லை.
உண்மையான வாழ்க்கை
சுகமானதே.
இந்தியப் பிரதமர்கள்
அம்மாவும்  மகனும்
புகழத்தக்க ஆட்சி  நடத்தினார்கள்.
இருவரின்  முடிவும்  எதிர்பாராதது.
அவர்கள் ஆட்சியில்
மடிந்தவர்கள் எத்தனை?
தொலைபேசியில் பேசி
வங்கியில்  பணம்.
சான்றளித்து
 நகர்வாலா மரணம்.
காவல் அதிகாரிகள் மரணம்.
அமைச்சர் மிஸ்ரா மரணம்.
பலன் அம்மாவின் புத்திர சோகம்.
அம்ருதசரில் மாநிலக் கட்சி
பொற்கோவிலில் ஆயுதங்கள்.
உண்மை  தெரியவில்லை.
மெய்காப்பாளரால் அம்மாவின்
இரக்கமற்ற  கொலை. மெய்க்காப்பாளர்மரணம்.
உண்மையும்  உன் நுண்ணிய
 லீலைகளும்  புரியவில்லை .
எத்தனை  அதிகாரிகள்
முதுமையில் தன் இளமை
லஞ்சத்தால்
வஞ்சகத்தால்
அல்லல் படுகிறார்கள்.
எத்தனை அதிகாரிகளுக்கு
தசரதன் போல் புத்திர சோகம்.
முதியோர் இல்லத்தில்
துடிக்கும் வாழ்க்கை.
எத்தனை  அரச பரம்பரை
வாரிசுகள் வறுமைக் கோட்டிற்கு கீழ் .
பெற்றோர்களின் நல்ல
தீய கர்மபலன்.
எத்தனை  நடிகைகள்
இறுதி நாட்களில்
நரகவேதனை.
அக்கம் பக்கம் உற்றார் உறவினர்கள்
வாழ்க்கையைப்  படித்தால்
இன்ப- துன்பங்களில்
ஆணிவேர் தெரியும்.
ஏரிகள் மறைகின்றன.
ஆறுகள் மாசுபடுகின்றன.
ஆற்றுமணல் கொள்ளை அடிக்கப்படுகிறது.
ப்ளாஸ்டிக் குப்பை  குன்றாகிறது.
இரக்கமற்ற  பசுவதை.
நாணயமற்ற நடத்தைகள்
இதன் தீய விளைவுகள்
நரகவேதனை வேதனைகள்.
தனியான சுவர்க்கம் நகரம் இல்லை.
இந்த பூமிதான் இந்த  இரண்டுமே.
இந்த  நுண்ணிய தண்டணை
 நீதிதான்இறைவனுடையது.
நரகமும் சுவர்க்கமும்
  தவறுகளால்தான் தான்.
நிகழ் கால தலைமுறையின்
 கர்மபலன்  எதிர்கால
தலைமுறையின்
சுவர்க்க நரக வாழ்க்கை.
தீரும் நோய்கள்  தீரா நோய்கள்.
நோயின் வேதனை.
உண்மையாக யோசித்துப் பாருங்கள்.
தங்கள்  வாழ்க்கை நடைமுறையில்
வெளி ஆடம்பரத்தைத்
தவிர்த்து  விடுங்கள்.
கடவுளின் பெயரால்
நாணயமுள்ளவர்களாக
இருங்கள்.
இதுதான்  பரிசு- தண்டனை  என்ற
கடவுளின்  சட்டம். நீதி.
அனந்தகிருஷ்ணன் மொழிபெயர்ப்பு
மூலம்  ஹிந்தி  கவிஞர்  அனந்தகிருஷ்ணன்.
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 वर दे वीणा  वादिनी  वर दे।
वाद विवाद  में
 सत्य की विजय।
असत्य की असफलता
मिल जाएँ।
वास्तव  में 
मानव दुखी  क्यों?
आज सच्चाई प्रकट करने का
 ज्ञान दे।
तेरी  लीलाएँ अति सूक्ष्म।
भ्रष्टाचारियों  का संपन्न जीवन
रिश्वतखोर अफसरों का जीवन।
अहंकारी  शासकों  का जीवन।
ज्ञान चक्षु प्राप्त मनुष्य 
अध्ययन
करता ही नहीं,
सोचता भी नहीं।
सुखी जीवन सच्चाई  में।
 भारत  के प्रधानमंत्री  माँ और बेटे
दोनों  का शासन प्रशंसनीय रहा।
दोनों  का अंत  अति अप्रत्याशित।
कितने मरे उनके शासन काल में।
फोन द्वारा  बोल पैसे  लिये।
आवाज़ की मिमिक्री ,प्रमाणित किया।
वह नगरवाला, उस केस के अधिकारी
मंत्री  मिश्रा सब एक साथ  मारे गये।
नतीजा  माँ पुत्र शोक । अमृतसर में
प्रांतीय दलों के विकास,मंदिर  में
अस्त्र-शस्त्र  कैसे पहुँचे
सच्चाई का पता नहीं ।
अंग रक्षक ने प्राण  लिये।प्राण दिए।
वास्तविकता तेरे सूक्ष्मता न समझा हम।
पुत्र शोक में  दशरथ जैसे
कितने वृद्ध  अधिकारी
कितने अधिकारियों के पुत्र अल्पायु।
वृद्धाश्रम  में  तडपता जीवन।
करोडों की संपत्ति  कितने राजपरिवार
आजकल  भूखे प्यासे।
कारण
माता पिता के सतकर्म -बद्कर्म फल।
कितनी अभिनेत्रियाँ जीवन के
अंतिम काल में  नरक वेदना।
अडोस पड़ोस  अपने जीवन,
नाते रिश्ते मित्रों  के जीवन का
अध्ययन से पता चलेगा
जीवन की सच्चाइयाँ  और
 दुखों का मूल।
झील  गायब  ,नदी प्रदूषण,
रेत की चोरी ,
प्लास्टिक कूडे
गोवध निर्दय
 बेईमानदार व्यवहार
इन सब का नरक वेदना
दुष्परिणाम
यही धरती पर ।
न अलग स्वर्ग-नरक।
यही सच्चाई
सूक्ष्म दंड  नीति ईश्वर की।
नरक -स्वर्ग  भूलों में ही।
सच्चाई यही भावी पीढी  का
स्वर्ग-नरक
वर्तमान  पीढ़ी  के कर्म पर।
ईश्वरीय  दंड  से धरती  ही स्वर्ग  नरक।
साध्य रोग ,
असाध्य  रोग।
रोग की पीडा,
यकीनन सोचिए।
अपनी जीवन शैली  में
बाह्याडम्बर  को स्थान  न देना।
ईश्वर के नाम लेकर
 ईमानदारी अपनाइए।
यही है पुरस्कार-दंड  का
ईश्वरीय  कानून।
स्वरचित स्वचिंतक यस अनंतकृष्णन।

Friday, December 13, 2019

बेमौसम

नमस्कार। नमस्ते। वणक्कम।
शीर्षक: बेमौसम के ख्याल।
मौसमी फल -फूल सस्ते।

बेमौसमी में महँगे।
मौसमी सर्दी, गर्मी,
वर्षा,वसंत
आनंदप्रद।
बेमौसमी में उल्टा
परिणाम।
ठीक है,
पर बेमौसमी के ख्यालात।
बालकपन में नौकरी।
जवानी में दरिद्रता।
बुढापे में जवान
लडकी से शादी।
जवानी में कुमारी कुमार
अविवाहित ।
बलातकार,
भ्रष्टाचार,
रिश्वत।
अधिकार का दुष्प्रयोग।
ये सब बेमौसमी ख्यालात।
एक संक्रामक रोग।
मानव मन में अकाल।
स्वरचित स्वचिंतक यस अनंतकृष्णन

Thursday, December 12, 2019

आने का बंदीश

नमस्कार। नमस्ते। वणक्कम।
  आने का बंदीश।
उपदेश दिलाने
पाठ सिखाने
स्कूल में  भर्ती  कराने
माता-पिता,
अभिभावक  तैयार।
नौकरी दिलाने,
शादी कराने तक
दायित्व  माता -पिता।
माता पिता के प्रति
पुत्र पुत्रियों का दायित्व  अलग।
निभाने तैयार हो तो सपूत।
निभाने  तैयार  नहीं  तो कुपूत।
पथ दिखाने में  सनातन  धर्म  न चूका।
अंग्रेज़ी  शिक्षण-प्रशिक्षण
इस सनातन प्रवृत्ति  को
मिटाने सनूनद्ध।
स्वरचित स्वचिंतक यस अनंतकृष्णन