Friday, July 14, 2023

उसने कहा था

 அவள் சொன்னாள்.

उसने कहा था।

   राम समान  मर्यादा पुरुषोत्तम था करुप्पन ‌। वह अपने नाम तमिल भाषा में होने से अपने को निम्न  मानकर दुखी होता था।

 उसका दोस्त कृष्ण था। कृष्ण का अर्थ काला था। तमिल में एक गाना है ,कौए के काले पंख में तेरा   काला रूप दिखता है नंदलाला।

पर श्याम नाम आदरणीय है।

करुप्पन नाम शुद्ध तमिल होने पर भी  सूचित अनुसूचित जातियों का भाव आ जाता है। 

 कुछ तमिल के अति प्रेमी 

 तमिल का नाम रखते हैं, फिर भी 

तामरै  जिसको कमल,सरोजा,पद्मा,नीरजा, पंकजा जलजा कहते हैं, वही नाम सुनने में आता है,तामरै तमिल शब्द कम। 

    करुप्पन बहुत चिंतित था।

      प्रेम जो है मनुष्य में अनजान में हो जाता है। नौकरी के साक्षात्कार  के समय, दूकान में, यात्रा में।करुप्पन को भी एक प्रेस मिटा मिल गयी।  उसका नाम तो पुष्पलता। तमिल के कुछ लोग पूंकोडि  नाम रखते हैं।

  आजकल तो अंग्रेज़ी का माहौल है न? सब पुष्पलता को पुष पुष कहते हैं।  उसकी सहेलियाँ पुष पुष पुकारते थे। पुष्पलता को अपना नाम पसंद नहीं था।  करुप्पन को उसके नाम से घुटन था व पुष्पलता को अपने नाम से।

    इत्तिफाक से दोनों एक कंपनी के साक्षात्कार के समय मिले।

 प्रेम कैसे ? कब? किससे होगा पता नहीं। दो ही मिनट की मुलाकात में दोनों में स्वर्ग पाताल की बातें हुई।  व्यक्तिगत बातें भी।

 तब पता लग चला कि करुप्पन को अपने नाम से नफ़रत है।

 पुष्पलता को अपने नाम से।

 पुष्पलता न जाने करुप्पन नाम से प्रभावित थी।

   तभी दोनों में भाषा की चर्चा हुई।  तब तमिल के प्रति की क्रांति की बातें हुई। 

 तमिल के बड़े बड़े भक्तों ने  अपने  संस्कृत नाम  को शुद्ध तमिल में बदल दिया।

ये अपने को पच्चैत्तमिऴन  कहते हैं। अर्थात हरा तमिऴन। Ever green तमिऴ भाषी।

  पुष्पलता ने कहा --"करुप्पन, तेरा नाम संस्कृत में कृष्णन, श्याम है। पर मुझे तो करुप्पन ही पसंद है।

 तब मजाक में करुप्पन ने कहा--करुप्पाई। करुप्पाई।

   न जाने पुष्पलता को यह करुप्पाई शब्द अति पसंद आ गयी। भगवान  विष्णु के मंदिर के आगे पतिनेट्टाम् करुप्पाई मंदिर प्रसिद्ध है।

 पुष्पलता ने कहा --हमआरआ कुल देवता पतिनेट्टाम् पड़ा करुप्पाई है।

आहा! मेरे घरवाले करुप्पणसामी  को कुल देवता    कहते हैं।

 हर साल हम अपने कुल देवता की आराधना करते हैं।

 हमारी शादी हुई तो पुष! 

तुरंत पुष्पलता ने कहा --पउष, पुष मत कहो। मुझे पुष करोगे । नहीं, करुप्पाई पुकारो। करुप्पाई में आत्मीयता है।

 तब दोनों एक साथ कहने लगे --"करुप्पन, करुप्पाई।

  यह नयी क्रांति नहीं,नाम को तमिल में बदलना।

  दोनों अपने अपने घर चले।

 पुष्पलता  अकेली  बैठे अपने प्रेमी की आवाज़ की याद आयी ऐसा लगा --करुप्पन  पुकार रहा है --"करुप्पाई करुप्पाई।".

 यहाँ‌ करुप्पन  अकेले आनंद विभोर हो रहा था ,पुष्पलता को करुप्पन पसंद आ गया और करुप्पाई भी।

यह वह दोनों सोच रहे थे -"उसने कहा था। 

  स्वरचित कहानी।

स्वरचनाकार स्वचिंतक अनुवादक

एस. अनंतकृष्णन, चेन्नई।

 


 




 

   

 



 

  


ஆசாரக் கோவை---आचार संग्रह - तमिल ग्रंथ

    ஆசாரக் கோவை---आचार संग्रह - तमिल ग्रंथ 
        तमिल संघ  काल  के अंधे काल अर्थात 
 संघ काल के परिवर्थित अंतिम समय में कई ग्रंथों की रचनाएँ लिखी गयी हैं ।
उस समय के ग्रंथों में  कवि  कयत्तूर पेरुवायन्  मुल्लियार रचित 'आचारक्कॊवै' अर्थात "आचार संग्रह"मानव जीवन में मानवता लाने अति श्रेष्‍ठ ग्रंथ है ।इनमें इन्सान में इन्सानियत लाने,इन्सान में ईश्वरत्व लाने के संपूर्ण गुणों का जिक्र किया गया है ।
अच्छी चालचलन और अनुशासन बनाये रखने का मार्गदर्शन मिलता है ।

ஆரோயின்‌ மூன்றுமழித்தானடி யேத்தி யாரிடத்துத்தானறிஈ்தமாத்தரெயானாசாரம்‌ யாருமதியவறனாயமற்றவற்றை யாசாரக்கோவையெனத்தொகுச்தான்றீராத்‌ இருவாயிலாயஇிரல்வண்கயச்‌ நூர்ப்‌ * பெருவாயின்முள்ளியென்பான .

आरोयिन मून्रुमलितंतानडि येत्ति  यारिडत्तुत्तानऱि ईतमात्तरेयानाचारम् 
यारुमतिनायमट्रमट्रवट्रै याचारक्कोवैयेनत्तोकुच्चान्ऱीरात्
तिरुवायिलायतिऱल्वन कयत्तूर्प पेरुवायन मुल्लियेन्बान्।. 

भावार्थ ----ः  भगवान शिव ने शत्रुओं के लिए दुर्लभ तीन दीवारों को (अहंकार,काम,लोभ ) को अपनी हँसी में ही चूर्ण कर दिया ।ऐसे भक्तवत्सल के चरण-कमलों को वंदना करके  आचार संहिता में जितनी बातों का मेरा ज्ञान है,उन सभी को संग्रह करके आचारक्कोवै 
नामक ग्रंथ को एकत्रित करके तिरुवण् कयत्तूर वासी पेरुायन मुल्लियार   ने लिखा है ।
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ग्रंथ कविताएँ --१.

बडों  के द्वारा बताये गये आठ आचरण 
१. दूसरों के द्वारा हमको किए गए उपकार को समझना ,कृतज्ञता से जीना ।
२. दूसरों के द्वारा प्राप्त बुराइयों को  सह लेना  व भूल जाना
३.मधुर सुखप्रद शब्द बोलना  ४.जीवों को बुराई न करना ५.शिक्षा में सुजान की बातें सीख लेना,ज्ञान ग्रहण करना
६.सत्संग में रहना ७.जग व्यवहार के साथ चलना ,परोपकार करना ८.ज्ञान संपत्ति बढाना आदि आठ अच्छे आचरण बढाने के मूल कारण स्वरूप होते हैं ।
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२. अपने आचरण अनुशासन को जो अक्षरसः पालन करते हैं,उनको निम्नलिखित आठ सुख साधन मिल जाते हैं  ----
       १.उच्च भद्र कुल में जन्म लेना २.दीर्घ आयु पाना ३.धनी बनना ४.सुंदर रूप प्राप्त करना ५.भू संपत्तियाँ पाना ६.वाणी की कृपा
७.आदर्श उच्च शिक्षा  ८. नीरोग काया --आदि.
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३. कवि पेरुवायन किल्लियार का कहना है कि बडों को दक्षिणा देना,यज्ञ करना,तप करना,शिक्षा प्राप्त करना आदि सुचारू रूप से 
नियमानुसार करना चाहिए।नहीं करेंगे तो धर्म,अर्थ,काम,मोक्ष नहीं मिलेगा।
४.ज्ञानियों ने  सुजीवन जीने के लिए निम्न आचार -व्यवहार का अनुसरण करने के नियम बताये हैं--
         १.ब्रह्म मुहूर्त में उठना, २.दूसरे  दिन के  दान-धर्म कार्यों को सोचना, ३.आय बढाने के कर्म कार्यों पर सोच -विचार करना ,४.माता-पिता का नमस्कार करना  आदि । 
५.धर्म निष्ठावान  गाय, ब्राह्मण,आग,देव,उच्च सिर आदि को स्पर्श न करेंगे ।

६. माँस,चंद्,सूर्य ,कुत्ते आदि देखना वर्जित हैं ।

































Thursday, July 13, 2023

திருவள்ளுவர் திருக்குறள்.तिरुक्कुरल

 ஈன்ற பொழுதில் பெரிதுவக்கும் தன் மகனைச் சான்றோன் எனக் கேட்ட தாய்.

 तमिऴ विच्छेद और हिंदी अर्थ _

ईन्र पोऴुतिल --जन्म लेते समय


पेरितुवक्कुम --अति प्रसन्न  होनेवाली  

तन मकनै --अपने बेटे को

 चान्रोन् -- पंडित, विद्वान,शिक्षित।

केट्ट --सुनी

ताय--माँ। திருவள்ளுவர் திருக்குறள்.

+++++++++++++++++

एक माँ अपने पुत्र को जन्म लेते समय अधिक खुश होती है।

 उस से तब अधिक खुश होती है,

जब लोग कहते हैं कि वह बहुत बड़ा विद्वान हैं।

 अनुवादक ----एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई।

Monday, July 10, 2023

दान तो गुप्त दान होना चाहिए।

 दान तो गुप्त दान होना चाहिए।

 यह दान किसके लिए उपयोगी होगा।

   कलियुग में बहुत बड़ा पाप निजी संस्थाओं को, निजी मंदिरों को  दान देना, भिखारियों को भीख देना एक भ्रष्टाचारी समाज का विकास करना है।

 राजनैतिक दलों को दान किसलिए देते हैं?

 जयललिता ने सोने का घड़ा दान दिया। 

क्या हुआ?

 चक्रवर्ती दशरथ ने बड़ा यज्ञ किया। चारों पुत्र उनके नहीं।

पुत्र शोक में मृत्यु। 

 तीन राजकुमारियों को जबर्दस्त ले आकर विचित्र वीर्य से शादी रचाया। उस भीष्म पितामह का अंत कैसे हुआ।

 एकलव्य का अंगूठा कटवाकर द्रोण ने गुरु धर्म  तोड़ा छोड़ा।

 जिस शिष्य की तरक्की के लिए 

अन्याय किया, वही शिष्य निहत्थे गुरु का वध किया। 

 एकलव्य को अंगूठा ही,

 अधर्मी गुरू का सिर अर्जुन द्वारा।

 कर्म के कारण देवताओं का नाम कलंक।

भिखारी करोड़पति ।

भिखारिन अचानक जगत प्रिय गायिका।


ईश्वरीय दंड व्यवस्था अति सूक्ष्म।

  एस.अनंतकृष्णन,

स्वरचनाकार स्वचिंतक अनुवादक तमिलनाडु का हिंदी प्रेमी प्रचारक।

 

मैं तो साधारण हिंदी अध्यापक।

 मालामाल व्यापारी या सांसद विधायक मंत्री नहीं।

 अम्मा जयललिता का हवन यज्ञ बेकार।

  यही व्यवहारिक बात।

मेरे विचार तरंगें


सादर।

 विनम्र।

सविनय।

नमस्ते।

 चरण कमल छूकर नमस्कार।

 इन नमस्कार में

 चम्मचागिरी नमस्कार।

 स्वार्थ के लिए।

 सार्वजनिक हित के लिए।

 आशीषों के लिए।

 इन सब में बड़ा नमस्कार

 मत के लिए।

 पैसे देकर चरण  छूकर।

इन राजनैतिक दलों के नमस्कार 

एक ही बात हर चुनाव में

 पर न  उस वचन का पालन।

 फिर नये रूप में पेय जल व्यवस्था।

 सड़क ,मोरे बनाना।

आज़ादी होकर १५ आम चुनाव।

 समस्या न हल।

 ऐसे राजनैतिक सलाम 

एक अद्भुत कला। 

 इस में जो पटू वहीं विधायक /सांसद।।

एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई।

स्वरचनाकार, स्वचिंतक, अनुवादक।

मानव मन चिंतित,

वह अवश्य भी, 

अनावश्य भी।

 पालतू कुत्ता मर गया,

पालनहार दुखी।

 पड़ोसी के लिए

 अनावश्यक।

 मेरे गुलाबी पौधा

 सूख गया।

 मेरे लिए वह सारे 

सुखों को  ले गया।

दुखी  था, 

मेरे परिवार के सदस्यों के लिए

अनावश्यक ही।

 सब को यह है

 अनावश्यक।

आवश्यक क्या?

अनावश्यक क्या?

अपनी अपनी चाहें।

चाह गयी चिंता मिटी मनुआ बेपरवाह।

जाको कछु न‌ चाहिए,

वही शाहँशाह।। कबीर।

यह जक्की वासुदेव के लिए 

पसंद नहीं,

उनका कहना सब को चाहो।।

अहं ब्रह्मास्मी शंकर का है तो

 आत्मा परमात्मा अलग अलग।

श्री रामानुजाचार्य का।।

जितेंद्रियता भारतीय संतों की बात।

  मिठाई खाना आवश्यक।

  एक के लिए लड्डू  अनावश्यक।

मैंने पूछा-लड्डू नहीं खाते?!!

लड्डू तो अति पसंद। 

क्या करूँ, काशी गया, 

पंडित ने कहा मन पसंद 

खाद्य पदार्थ तजना है।

 लड्डू अति मन पसंद।

खाना छोड़ दिया।

 यह आवश्यक त्याग या अनावश्यक।

 पंडित जी को  यही कहना 

कि काशी आये हो,

 भ्रष्टाचारी छोड़ देने का

 शपथ लो।।

 रिश्वतखोरी न लेने का शपथ लो।

  झूठ बोलना तज दो।


 यही मेरे लिए आवश्यक है कसमें।

 खाद्य-पदार्थ तजना अनावश्यक।

  आवश्यक अनावश्यक

 व्यक्ति व्यक्ति में भिन्न भिन्न।।

 मेरा लिखना आवश्यक या अनावश्यक

 बुद्धि पूर्ण या मूर्खता,

पाठकों को की अपनी अपनी मर्जी।

 आवश्यक अनावश्यक

  तमिल में अवसियम् अनावसियम् ।

बुद्धि और मूर्खता

तमिल में भी।

 यह तुलना आवश्यक या अनावश्यक।

भारतीय एकता समझाने आवश्यक।

भाषा भेद में एकता दिखाना आवश्यक।



एस.अनंतकृष्णन ,

स्वरचनाकार स्वचिंतक अनुवादक तमिलनाडु का हिंदी प्रेमी प्रचारक।

 दान तो गुप्त दान होना चाहिए।

 यह दान किसके लिए उपयोगी होगा।

   कलियुग में बहुत बड़ा पाप निजी संस्थाओं को, निजी मंदिरों को  दान देना, भिखारियों को भीख देना एक भ्रष्टाचारी समाज का विकास करना है।

 राजनैतिक दलों को दान किसलिए देते हैं?

 जयललिता ने सोने का घड़ा दान दिया। 

क्या हुआ?

 चक्रवर्ती दशरथ ने बड़ा यज्ञ किया। चारों पुत्र उनके नहीं।

पुत्र शोक में मृत्यु। 

 तीन राजकुमारियों को जबर्दस्त ले आकर विचित्र वीर्य से शादी रचाया। उस भीष्म पितामह का अंत कैसे हुआ।

 एकलव्य का अंगूठा कटवाकर द्रोण ने गुरु धर्म  तोड़ा छोड़ा।

 जिस शिष्य की तरक्की के लिए 

अन्याय किया, वही शिष्य निहत्थे गुरु का वध किया। 

 एकलव्य को अंगूठा ही,

 अधर्मी गुरू का सिर अर्जुन द्वारा।

 कर्म के कारण देवताओं का नाम कलंक।

भिखारी करोड़पति ।

भिखारिन अचानक जगत प्रिय गायिका।


ईश्वरीय दंड व्यवस्था अति सूक्ष्म।

  एस.अनंतकृष्णन,

स्वरचनाकार स्वचिंतक अनुवादक तमिलनाडु का हिंदी प्रेमी प्रचारक।

 

मैं तो साधारण हिंदी अध्यापक।

 मालामाल व्यापारी या सांसद विधायक मंत्री नहीं।

 अम्मा जयललिता का हवन यज्ञ बेकार।

  यही व्यवहारिक बात।

Saturday, July 8, 2023

अंग्रेजी माध्यम भारतीय भाषाओं को पनपने न देगी

 केवल हिंदी कैसे?

 केवल तमिल?

 यह तो कोलै वेरी.

ओय दिस कोलै वेरी?

 जब तक केवल तमिल या 

केवल हिंदी  जीविकोपार्जन का

आधार न बनेगी,

तब तक भारतीय भाषाओं का

 एक मात्र प्रयोग कैसे संभव।

 हिंदी प्रचार सभा का आजकल

 प्रमुख आय अंग्रेज़ी माध्यम स्कूल।।

पैंतालीस मिनट हिंदी,

बाकी सवा पाँच घंटे अंग्रेज़ी।

 मैं स्नातकोत्तर

 हिंदी अध्यापक था,

 चार हजार की छात्र संख्या,

केवल १०० हिंदी छात्र।।

यही आ सेतु हिमाचल की दशा।

 वह भी भारतीय आज़ादी के बाद।

 मैं केवल हिंदी प्रचार में 

 भूखा प्यासा रहा।

 अंग्रेज़ी माध्यम न तो

 हिंदी ही नहीं तमिलनाडु में।।

 दो हजार तमिल माध्यम स्कूल बंद।

 एक गाँव में एक तमिल माध्यम बंद।

वहाँ पाँच अंग्रेज़ी माध्यम स्कूल।

 अंग्रेज़ी में लगाव नहीं,

आमदनी से लगाव।

 भारतीय ब्राम्हण संस्कृत तजकर

 अंग्रेज़ी के वकील डाक्टर बने।

 आज़ादी के बाद उन्हीं का मंत्री मंडल।

 अंग्रेज़ी माध्यम के छात्रों को 

 मातृभाषा कठिन लगती है।

  ऐ,यूं,ही,शी,   इट, दे --गेव।

 Gave.

मैं ने दिया।नान कोडुत्तेन।

तुमने दिया। नई कोडुत्ताय।

उसने दिया। अवन कोडुत्तान।

अवळ कोडुत्ताळ।

अवर कोडुत्तार।

अवर्कळ कोडुत्तारकळ।

    क्रिया का  भूतकालिकक रूप।

 Gave one word for all pronouns.

 What a difficulty in Tamil.

मैं ने नहीं कहा! +२ के तमिल भाषी छात्र का कथन।

 वह तीन साल  की उम्र से  अंग्रेज़ी माध्यम।

 सरकार की नीति तमिल या हिंदी में तीस अंक। सी.बी.यस.सी स्कूल में।

बस शिक्षा नीति।

 सोचिए।

 मैं खुल्लमखुल्ला लिखता हूँ।

 एस. अनंत कृष्णन।

स्वरचनाकार, स्वचिंतक, 

मातृभाषा प्रेमी।

हिंदी और तमिलनाडु

 हिंदी में दिव्य शक्ति,

भारतेंदु काल की खड़ी बोली।

आज बन गयी हिंदी।

 संस्कृत की बेटी,

अब न रही तुलसी की भाषा।

 न रही सूर की,मीरा की व्रज माधुरी।

 दिल्ली,मेरठ,आख्या की डेढ़ लाख की बोली,

उसकी उम्र केवल 135.

बन गयी विश्व की दूसरी भाषा।।

  तमिल कवि सम्राट कण्णदआसन ने

अपनी भारतीय भाषाओं की प्रशंसा में हिंदी के बारे में लिखा है--

हिंदी मोर  नाचो,नाचो।

 घमंड रहित नाचो।

भारत देश अपनाएगी।

  कवि की बातें सत्य होगी ही।।

जनता में जागृति आ गई।

 केंद्र सरकार उन्हीं है को प्राथमिकता देनी चाहिए जिसमें

 सामान्य योग्यता के साथ हिंदी का प्रमाण पत्र हो।

 जागना जगाना जगवाना हमारा काम है।

  आज़ादी है के बाद ही अंग्रेज़ी मोह बढ़ रहा है।

 यही चिंताजनक है।

जनता में जागृति आ गई।

 केंद्र सरकार उन्हीं है को प्राथमिकता देनी चाहिए जिसमें

 सामान्य योग्यता के साथ हिंदी का प्रमाण पत्र हो।

 जागना जगाना जगवाना हमारा काम है।

  आज़ादी है के बाद ही अंग्रेज़ी मोह बढ़ रहा है।

 यही चिंताजनक है।

बढ़िया है।पर हिंदी जीविकोपार्जन भाषा तमिलनाडु में नहीं है।

भारत भर में अंग्रेज़ी का ही महत्व है। ऐ.टि। क्षेत्र में हिंदी प्रधान नहीं है। निजी संस्थाओं में अंग्रेज़ी का ही महत्व है। अंग्रेज़ी माध्यम स्कूल में ही हिंदी है। वेतन घर का किराया भी नहीं दे सकते।

 तमिल की भी ऐसी ही गति हैं ,2000से ज्यादा तमिल माध्यम स्कूल बंद।

 शिक्षा का पहला उद्देश्य जीविकोपार्जन।

 इसीलिए अंग्रेज़ी सीखने लगे।

 आजकल ब्राह्मण भी संस्कृत नहीं सीखते।  अंग्रेज़ों के शासन काल में ही नौकरी के लिए  लोग संस्कृत छोड़कर वकील क्लर्क बने। यह परिस्थिति आजतक चालू हैं। बीस अन्य विषयों के अंग्रेज़ी पारंगत काम करते हैं।

 एक दो हिंदी अध्यापक।

 हिंदी का विरोध अब कर्नाटक में भी शुरू हो गया है।

उच्च शिक्षा उच्च क्षय नौकरी जब तक भारतीय भाषाओं को नहीं मिलेगी, हिंदी की प्रगति  नाम मात्र के लिए।