Sunday, September 3, 2023

हिंदी

 असल में कन्याकुमारी से हिंदी यात्रा करनी है, जहाँ हिंदी का कठोर विरोध है।

 1937से यह विरोध   अंग्रेज़ शासकों के समर्थकों ने किया है।

जस्टिस पार्टी वाले द्राविड़ दलवालों ने  जिनकी माँग  अलग तमिलनाडु की माँग करते थे।

 यह हिंदी विरोध   राष्ट्रीय दलों को पनपने नहीं दिया।

आचार्य विनोबा भावे ही गाँव गाँव में हिंदी द्वारा आह्वान दिया।

 अब अंग्रेज़ी माध्यम पाठशाला जिनकी संख्या हर साल बढ़ रही है, जिनकी अनुमति केंद्र सरकार दे रही है, कारण सब के सब अंग्रेज़ी के पारंगत हैं।

 उनके मन में यह बात जम गई कि बगैर अंग्रेज़ी के भारत की प्रगति नहीं।

 वे पाश्चात्य रंग में रंगकर, थप्पड़ खाकर स्वतंत्रता सेनानी बने।

भारतीय मंदिर, संगीत, कलाएँ, कुटिर उद्योग , कृषि पद्धति ‌किसी का पता नहीं। जिन्होंने इन का महसूस किया, भारतीयों को भारतीय ढंग से आगे बढ़ाना चाहा,वे सत्ताधारी न बने।

  पंडित जवाहरलाल नेहरू तो

 उनके परिवार उनके‌वंशज पाश्चात्य परिवेश में पले।

 कृषि प्रधान देश को औद्योगीकरण की ओर ले गये।

परिणाम भारतीय झील गायब।

नदियों में प्रदूषण।

 नदियों के राष्ट्रीय करण नहीं  किया। ठंडे पेय विदेशों का।

 पेय जल विदेशी कारखानों का।

 गंगा के किनारे मिनरल वाटर की बिक्री।

 शैतानों की कुदृष्टि।

सब को  चैन नगर के चार बेकार

श्री सुदर्शन की कहानी बार बार पढ़ना चाहिए। पढ़ाना चाहिए।

 वेद मंत्र के समान  सुदर्शन की कहानी भारतीयों को जगाने वाली हैं।

 पहले मेहनती खाते थे, ब बेकार ऐश आराम।

 चुनाव में पैसे फेंको, पाँच साल में हजारों गुना कमाओ।

 बैंक में मिनिमम बैलेंस के नाम से  लेटो। उद्योगपतियों का कर्जा माफ कर दो।

 इतना बढ़ा गरीबों का लूट।

 वे गरीबों का भला क्या करेंगे।

    हिंदी के प्रचार हिंदी अधिकारियों के वेतन से नहीं,

 तमिलनाडु के प्रचारकों को देना चाहिए।

 वे अपने मनोरंजन त्याग कर हिंदी का प्रचार हिंदी विरोध शासकों के क्षेत्र में र रहे हैं।

आज तमिलनाडु में दो लाख हिंदी परीक्षार्थी है तो न हिंदी अधिकारियों की देन।

 आत्मचिंतक  भारतीय एकता चाहनेवाले हिंदी प्रचारक।

घर घर दरवाजा से बुलाकर मुफ्त में हिंदी प्रचार करते।

 पर हिंदी अधिकारी हस्ताक्षर करके वेतन भोगते हैं।

 अतः  हजार स्थाई हिंदी प्रचारक की नियुक्ति करनी चाहिए।

प्रशिक्षित प्रचारक।

जीविकोपार्जन के प्रबंध के बिना

हिंदी का विकास केवल बोलचाल ही रहेगा।

 हिंदी अधिकारी 76साल में कितने लोगों को सरकारी पत्राचार को सार्थक बनाया।

 सोचिए।

 करोड़ों नौकरी अंग्रेज़ी ज्ञाताओं को।

भूखा भजन न गोपाल।

 संस्कृत तज अंग्रेज़ी सीखी।

कारण गुमाश्ता, वकील, डाक्टर।

 भारतीय भाषाएँ जीविकोपार्जन का लायक नहीं।   

 सोचिए। कदम उठाइए।

शताब्दी वर्ष हिंदी प्रचार सभा में

स्थाई हिंदी प्रचारक हैं ही नहीं।

एस. अनंत कृष्णन चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक

 1967 से आज तक।

Friday, September 1, 2023

शाहंशाह

 नमस्ते। वणक्कम।

 प्रभु के यहाँ देर है,अंधेर नहीं।

    

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्। धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे।।4.8

 भद्रजनों की रक्षा के लिए,

 बद्कर्मों को नाश करने के लिए

 धर्म कर्मों की  ओर मानवको जगाने के लिए, 

 धर्म  की स्थापना करने केलिए

भगवान समय समय पर अवतार लेते हैं।

 संसार में भगवान की सृष्टियों में

 भगवान कंजूसी करते हैं।

 यह भगवत् लीला अति सूक्ष्म है।

 एक पौधे में फूल एक है।

 काँटों की संख्या अधिक हैं।

  कोई भी काँटों की ओर ध्यान नहीं देता।

सिंह की गंभीरता सराहनीय है।

पर वह आदमखोर हैं।

बाघ आदमीखोर है।

मच्छर अति छोटे हैं।

 मानव के खून चूसने वाले हैं।

मधु मक्खियाँ ज्यादा हैँ।

 उनके छत्ते में स्वादिष्ट,

 मधुर शहद का संग्रह है।

  आदमखोरों से मानव 

अपने बुद्धि बल से  नचाता है।

काँटों से सावधान रहता हैं।

मच्छरों  के काटने से बचता है।

कैसे?अपने बुद्धि बल से।

मधु का संग्रह करता है,

अपने बुद्धि-विवेक से।

काँटों के चुभने सावधान हो जाता है।

बुद्धियुक्त मानव अपने विवेक हीन कर्मों के कारण

समाज को बेचैनी  कर देता है‌।।

कारण उनकी बुद्धि सद्यःफल के लिए मंदिर जाती है।।

काम,क्रोध,मंद,लोभ मानव को महामूर्ख बना देता है।

विश्व के इतिहास में, भारतीय पौराणिक काव्यों में

आसुरी शक्ति ही सत्तारूढ़ शक्ति रही‌।

सत्ता के डर से सिवा प्रह्लाद के 

बाकी सब। हिय्यण्याय नमः का जप करते थे।

भगवान का नाम लेनेवाला प्रह्लाद,

अत्यंत कष्ट सहकर जिंदा रहा।

सत्य हरिश्चन्द्र के दुख का अंत न रहा।

 भगवान के यहाँ देर है, अंधेरा नहीं।

भगवान की देरी सहने शक्ति चाहिए।

सत्य चाहिए।

असह्यकष्टों को सहना चाहिए।

मानव में अधिकांश माया/शैतान के मोह में

विवेक हीन होकर भ्रष्टाचारी में सुख मानते हैं।

 भगवान् के भक्त लौकिक सुख नहीं चाहते।

कबीर ने कहा है,

चाह गयी चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह।

जाको कछु न चाहिए,वही शाहंशाह।।


 एस. अनंत कृष्णन,

स्वचिंतक स्वरचनाकार।शाहँनशाह

Thursday, August 31, 2023

भारत

 नमस्ते वणक्कम।

 मैं इतिहास का छात्र हूँ।

हिंदी साहित्य का छात्र हूँ।

 एक सुमंत्री का कर्तव्य है,

देश के सर्वांगीण विकास के लिए

 राजा को प्रोत्साहन करना।

पर वीरगाथाकाल में सुंदर 

 राजकुमारी के अंग देखने हजारों 

सिपाहियों को प्राण देने पड़े।

 सिपाहियों ने की पत्नियां विधवाएँ बन गईं। बच्चे हो गये अनाथ।

 निर्दयता की चरम सीमा जवहरव्रत।जिंदा जलती आग में कूद पड़ना। यह त्याग पतिव्रता की रक्षा के लिए।

यह देश भक्ति नहीं,

इसकी प्रशंसा कवियों ने खूब की हैं। कवि की स्वार्थता जिसका खाना उसका खाना।

 बड़े बड़े राजमहल,

अंतःपुर की सुंदरियाँ

बस,राजा कामान्धकारी।

परिणाम देश में मुगलों ने का शासन।

उनका लूटना, मंदिर तोड़ना,

 सब के साथ थे सद्यःफल भोगनेवाले देश वंचक देश द्रोही।।

हत्याएँ, अत्याचार ख़त्म। 

 भक्ति काल में आश्रयदाता 

 राजा नहीं,राजा को दर-दर भटकना पड़ा। कविगणों को 

खाने पीने ठहरने कोई सुविधा नहीं। अतः उनका ध्यान भक्ति यह की ओर गया।

त्याग मय जीवन बिताने लगे।

भगवान के दर्शन के लिए

 दो मार्ग ,दो मार्ग से

दो -दो उप-शाखाएंँ, परिणाम

मानव मानव में भेद।

 अपने अपने मार्ग पर 

दृढ़ता।  मानव की एकता 

भक्ति द्वारा भी नहीं हुई।

जैसा भी हो भक्ति मार्ग ने सिखा ही द गई दिया। जगत मिथ्या, ब्रह्म सत्यं। संसार में मानव ही नहीं 80हजार योनियों की सृष्टियाँ

शाश्वत नहीं। मृत्यु या नाश निश्चित है।

भक्ति काल की शांति भी अस्थाई रही। सुखी जीवन में भगवान का प्रेम भोग प्रेम में बदल गया। राधा कृष्ण का दिव्यवर्णन अश्लीलता में बदल गया। ऐश आराम,जुआ,नशा , भोग-विलास में बदल गया।  अंग्रेज़ी मेहमान बनकर आये। सत्ताधारी बन गये।

 भारतीय शिक्षा, भारतीय भाषाओं की शिक्षा अंग्रेज़ी भाषा माध्यम में बदल गया। परिणाम यह हुआ कि गुमाश्ता, वकील, डाक्टर बनने  बुद्धि जीवी अंग्रेज़ी के पारंगत बन गये। भारतीय भाषा बोलना गँवार मानने लगे।

भारतीय जनता भी अंग्रेज़ी पढ़े लिखे आदमी को ही ज्ञानी मानने लगे। 

आज़ादी ज्ञके 76वर्ष में देश भर में चालीस हजार CBSE पाठशालाएँ खुल गई। हर साल संख्या बढ़ती जा रही है।

 शासकों की सौपत्तियाँ बढ़ती रही।

 76साल में गरीबों की बस्ती ज्यों के त्यों हैं। फुटपाथ वासियों को गरीबी रेखाओं की सुविधाएं देकर 

चुनाव के समय वोट के लिए ज्यों का त्यों रखते हैं जिनके ओट से सांसद, विधायक बनकर अगले चुनाव को सौ करोड़ रुपये चुनाव के लिए खर्च करने तैयार हो जाते हैं।

शिक्षा न्याय पुलिस विभाग सत्ताधारी अमीरों की कठपुतलियांँ बन जाते हैं।यही आधुनिक चित्रपट के कथानक।

जय भारत। जय लोकतंत्र।

वंदेमातरम्।

Tuesday, August 29, 2023

बाल श्रमिकों को कहा से रोकना

 नाम- -एस. अनंतकृष्णन।

साहित्य बोध नई दिल्ली के संस्थापक संयोजक समन्वयक और सदस्यों को नमस्कार।

30-8-22023.

शीर्षक --बाल श्रम जागरुकता।

   आज का बालक कल का नागरिक है।वे देश को आगे बढ़ाने वाले हैं। वे देश के रक्षक है।वे देश के सर्वांगीण विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभानेवाले हैं।

होनहार बिरवान के होते चिकने पात।

पाँच साल की उम्र से उनको उचित शिक्षा देनी चाहिए।

मानव के तन,मन,धन  के बल ईश्वर की देन है।

मानव अपने प्रयासों से अपनी तरक्की कर सकता है।

 अच्छे विचार, संस्कार,शिक्षा आदि संगति का फल होता है।   सामूहिक विकास के लिए अभिभावक, समाज,नाते,रिश्ते, सरकारी प्रशासन सबके सम्मिलित शक्ति की आवश्यकता होती हैं।

 सब को समान। मौका देना चाहिए तो सबकी बुद्धि लब्धि, आर्थिक व्यवस्था , शारीरिक बल एक समान होना चाहिए।

 यह तो ईश्वरीय सृष्टि दोष है। चंद्रगुप्त को चाणक्य मिल गया।वे सम्राट बन गये। एक में बल दूसरे में बुद्धि बल।

शारीरिक बल और बुद्धि बल एक साथ मिलने पर भी आर्थिक बल ही प्रधानता है। कर्ण को दुर्योधन  साथ नहीं देता तो उसका शौर्य और दानवीरता प्रकट नहीं होती।

   आजकल सर्वशिक्षा अभियान है। सरकारी पाठशालाएँ हैं। सबको समान शिक्षा का अधिकार हैं। पाठशाला अनेक प्रकार के होते हैं। एक उच्चतम अमीरों के लिए,

  एक उच्च मध्यवर्गीय लोगों के लिए, मध्यवर्ग के लिए।

 इनमें बुद्धि लब्धि हो या न हो पढ़ने का अवसर सबको मिलता है। पढ़ें या न पढें अमीर मालिक बन जाता है।

 सांसद, मंत्री बन जाता है।

यह जन्म जात अमीरी ओर बुद्धि लब्धि के भेद भाव प्रकृति या ईश्वरीय देन को बदलना बुद्धिजीवियों के या सत्ताधारियों के वश में नहीं हैं।

  मानव मानव में समानता कानून रूप हो जाता है।

व्यवहार में यह संभव नहीं है।

 आज भी बच्चों को लेकर भीख माँगनेवाले हैं।

 बाल संन्यासी होते हैं। बाल कलाकार होते हैं।

 सरकार नियम के अनुसार बालक को चौदह साल तक ही

शिक्षा अनिवार्य है।  पंद्रह साल में वह मज़दूर बनने का अधिकार पाता है।

 हम तो बाल श्रमिकों के विरुद्ध ज़ोरदार भाषण दे सकते हैं। बड़े बड़े निबंध लिख सकते हैं। लालबहादुर शास्त्री तैरकर पाठशाला जाते थे। राष्ट्रपति स्वर्गीय अब्दुल कलाम अखबार वितरण का काम करते थे। आजके विश्वविख्यात प्रधानमंत्री क्षी नरेंद्र मोदी जी चाय की दूकान में।

 भूखा भजन न गोपाल।

 बाल श्रमिकों को दूर करना है तो जन्मजात बच्चों को लेकर भीख माँगने का दृश्य नजर न आना चाहिए।

 साहित्य समाज का दर्पण है।

आजकल अधिकांश चित्र पट का कथानक

ईमानदारी अधिकारियों को बदमाश सपरिवार हत्या कर देता है। उनके शिशु को दयावश पालकर सद्भाव बना देता है। वह बद्माश डाका डालता है।चोरी करता है। अंतराल के बाद वही बद्माश अधिकारियों को मारता है, कानून अपने हाथ में लेकर आम लोगों को बचाता है। 

 बाल श्रमिक कैसे बनते हैं पता नहीं।

 जेलर रजनीकांत का फिल्म की शिक्षा कानून के द्वारा बदमाश को समूल नष्ट करना असंभव है।

 बालश्रमिकों को रोकने सरकार को   सभी बच्चों की देखरेख ,लालन पालन को खुद अपनाना चाहिए।

अविवाहित पागल स्त्री भी गर्भवती बनती हैं।

अबार्शन को कानूनी मान्य है।

कर्मफल के अनुसार अमीर गरीबी, बुद्धिलब्धी , रोग असाध्य रोग जब तक दूर नहीं होगा,तब तक बालश्रमिकों को 100%दूर करना असंभव है।

 तन बल सब में नहीं। 

धन बल सब में नहीं।

मन बल सद्यःफल के लिए

झुक जाता है,

अपने आदर्श प्रतिनिधि चुनने के लिए वोट देने पैसे लेनेवाले हैं। ३०%वोट नहीं देते ।वोट देने का कर्तव्य निभाने ३०% विमुख है। २०% स्वार्थी हैं।

 बाल श्रमिकों को रोकना है तो बाल भिखारी , भिखारी बनाने बच्चों की चोरी करनेवाले सबको कठोर दंड देना चाहिए।

 बालक को भीख न देना चाहिए।

 अध्यापक  मज़दूर नहीं,

त्याग मय जीवन बिताना चाहिए।

 प्रैवेट ट्यूशन को रोकना चाहिए।

नीट की चिंग सेंटर की लूट रोकना चाहिए।

 अभीर गरीब पाठशाला के भेद दूर करना चाहिए।

 वर्दी  एक समान पहनने से समान भाव नहीं है।

 वर्दी के कपड़ों के भेद दूर करना चाहिए।

 पाठशाला इमारतों की तुलना कीजिए।

पेय जल नहीं,पट्टी नहीं, प्रयोगशाला नहीं,श्यापट नहीं,खड़िया नहीं ।

 बालश्रमिकों को दूर करने यहाँ से श्री गणेश करना चाहिए।

एस.अनंतकृष्णन द्वारा 

स्वरचित लेख।














Monday, August 28, 2023

मधुर शब्द है औषधि

 

 एस.अनंतकृष्णन, 

चेन्नई का नमस्कार।

शीर्षक -- हम बिक जाते हैं,

             चंद मीठे लफ़्ज़ों  में।।

विधा --- सरस्वती की देन।

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मानव ही नहीं,

दानव ही नहीं,

 पशु-पक्षी भी  नहीं,

 सर्वेश्वर भी  मधुर श्ब्दों  में

 अपने को भूल 

 बिक जाते हैं।

घोर तपस्या वीणावादन

रावण को शक्ति मिली।

हिरण्यकश्यप को  

अनंत शक्ति मिली।

ईश्वर को भूल,

उसी का नाम लेते रहे।

 नानक के सदुपदेशों से

 मानव में मानवता आयी।।

डाकू ने कहा,

 डाका भी डालता  रहूँ।

आत्मा को भी शांति मिलें।

गुरुनानक ने कहा,

सबेरे से शाम तक,

जो निर्दयता पूर्ण 

 काम करते हो,

 उसे लिखते रहना।

शामको मेरे प्रवचन की भरी सभा में पढ़ना।

डाकू सुधर गया।

 अंगुलिमाल निर्दयी लूटता,

लूटने के बाद  उंगलियों की माला पहनता।

 बुद्ध के सामने खड़ा रहा निर्दयी 

बुद्ध  की मधुर वाणी ने

 अंगुलिमाल को  बुद्ध भिक्षु बनाया।

क्रोधी परशुराम को राम की मधुर वाणी ने 

शांत कर दिया।

महाविष्णु को भृगु मुनि ने लात मारा।

 विष्णु की मुस्कुराहट ने 

मुनि को लज्जित किया।

मध्य वचन है औषधि,

खटीक वचन है तीर।

 सोचो, विचारों, जानो, समझो,

 संपेरे के बजाने से साँप भी वश हो जाता।

 मधुर संगीत नाच ने  बड़े बडेतपस्वियों को

 भी हिला दिया है।

एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई।

स्वचिंतक स्वरचनाकार अनुवादक तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।

Saturday, August 26, 2023

साहित्यकार को समझो जानो।

 




नमस्ते। वणक्कम।

  विचारों की अभिव्यक्ति में स्वतंत्रता चाहिए। समाज कल्याण के साहित्यकार धन के लिए नहीं लिखते।

जैसे समाचार पत्र नग्न चित्र अश्लीलता राजनीति अपनाकर धन अर्थ कमाकर अर्थ हीन जीवन बिताते हैं।

 सार्थक जीवन अर्थ प्रधान नहीं, अतः

साहित्यकार अमर बनते हैं। साहित्यकार की जीवनी में भूखे प्यासे  दरिद्र जिंदगी बीतनवाले ही अमर है।

 भक्त त्यागराज कबीर  प्रेमचंद  दरिद्र देते। उनकी ज्ञान धारा में डुबकी लगाकर मोती की सुंदर माला बनाकर बाजार चलानेवाले  डाक्टरेट की उपाधि पाकर प्राध्यापक बनकर रईस जीवन बिता रहे हैं।


समाज में सकारात्मक, नकारात्मक चिंतन की अभिव्यक्ति का अधिकार है।

 सब्रता से सोचना चाहिए कि

 लिखने का केंद्रीय भाव क्या है?

 आसाराम जैसे नकली त्रेता युग में द्वापर युग में कलियुग में तीनों युगों में ढोंगी संन्यासी थे, है, होंगे ही।  जग में ईश्वर ने गुलाब की सृष्टि की हैं। गुलाब के गुण की ही प्रशंसा करना है तो चुभने वाले कांटों की चिंता प्रकट करना गलत माननेवाले  समाज के पढ़े लिखे लोग हैं। गलत हिसाब किताब लिखनेवाले बुद्धि जीवी चार्टर्ड एकाउंटेंट।

अपराधी को बचानेवाले अर्थलोभी मेधावी वकील सोचने के लिए लिखनेवाला भूख से तड़पनेवाला 

साहित्यकार। पदोन्नति केलिए नेता के पैर चाटनेवाले चाटुकार हैं।

 


  अपने नेता के गुण की ही प्रशंसा चाहनेवाले 

उनके दोषों पर भी 

ध्यान देना चाहिए।

 तमिल में नक्कीरन नामक कवि थे। उन्होंने शिव भगवान के गलत विचार का विरोध किया।

 स्त्रियों के बाल में सहज सुगंध है

 ऐसा शिव ने कविता लिखी। 

कवि नक्कीरन ने शिव से कहा

  इसमें अर्थदोष है।

ऐसी वीरता से अपने नेता के गुण दोषों की प्रशंसा और निंदा आवश्यक है।

   हम तमिल नाडु के लोग कलक्टर का प्रयोग नहीं करते।

मावट्ट आट्चियर शब्द का प्रयोग करते हैं।  

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नमस्ते वणक्कम अनंतकृष्णन का!


मानव मन में सकारात्मक और नकारात्मक विचार उठते हैं।

 समाज कल्याण के साहित्यकार सकारात्मक और नकारात्मक   विचार प्रकट करते हैं तो सोचना चाहिए कि ईश्वर के सृजन में 

गुण भी हैं और दोष भी है।। 

ईश्वर की सृष्टि में केवल गुलाब का ही प्रशंसा करना है तो काँटों का वर्णन करनेवाले दोषी कैसे?अपने बच्चों के गुणों के लिए पुरस्कार के साथ अवगुणों का दंड देना चाहिए। 

 तभी वह आदर्श बनेगा।

अपने नेता के गुणों की प्रशंसा और भ्रष्टाचार की निंदा ही

 सार्वजनिक कल्याण करेगा।

 अपने नेता का अंधानुकरण सही    नहीं हैं। भारत में अंधानुकरण नहीं करते। अतः सनातन धर्म में ढोंगियों के द्वारा अनाचार बढ़ा तो

बौद्ध,जैन धर्म का उदय हुआ।

 यहाँ के ज्ञानी  दिगंबर को श्वेतांबर बनाया। दोनों  को माननेवाले हैं।

हीनयान,महायान बनाया।

हिंदू सनातन धर्म है।

 अगजग का धर्म है।

 सर्व जगत के जयजयकार करनेवाला है। वसुधैव कुटुंबकम् ,

सर्वेजनार्नः सुखिनो भवन्तु की विचारधारा बहती है।

 आजकल  राजनैतिक दलों में

 पद नहीं मिलें तो

 अलग-अलग दलों का आरंभ करते हैं।

पुराना कांग्रेस, इंदिरा कांग्रेस।

 जनता दल, जनसंघ, भारतीय जनता।

 द्राविड़ कऴकम्, द्राविड़ मुन्नेट्र कऴकम् ,अण्णा द्राविड़ मुन्नेट्र कऴकम् ‌ दल एक  नेता एक  सिद्धांत वही।

 अनुयायी अलग अलग । 

तब देश की चिंता नहीं।

 अपने अपने दलों की चिंता।

 अपने अपने दलों की 

सत्ता की चिंता।

 चुनाव के लिए पैसे जोड़ने की चिंता।

 भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी की चिंता।

 परिणाम सब दलों में भ्रष्टाचार।

 एक दूसरे पर कीचड उछालना।

 निंदा करना।

 हास्य की बात हैं कि सुबह जो दल भ्रष्टाचार की निंदा का पात्र रहा, 

शाम को प्रशंसा का पात्र।

 पैसे, स्वार्थता की चरम सीमा।

 गिरगिट से तेज़ रंग बदलनेवाले।

   अजीबोगरीब स्थिति है कि विश्वपटल पर भारत की प्रगति

प्रशंसनीय है।

 भिन्न भिन्न भगवान, भिन्न-भिन्न जलवयु, भिन्न-भिन्न मजहब, भिन्न-भिन्न पोशाक,भोजन पर

 आध्यात्मिक एकता 

आ सेतु हिमाचल तक 

एक ही है।

 भक्ति द्राविड़ उपजी।

 पर भक्ति के भगवान गणेश, कार्तिकेय,शिव,विष्णु उत्तर के।

 कार्तिकेय जिसको तमिल में मुरुगा कहते हैं, जिनका झंडा मुर्गा है,

उसे तमिऴ भगवान कहते हैं, पर नाम है दंडपाणी। कौपीन धारी।

 कोदंड पानी राम है।

 आ सेतु हिमाचल में ‌शिव, विष्णु, ब्रह्मा  पार्वती, लक्ष्मी, सरस्वती की आराधना है।

 यह आध्यात्मिक शक्ति ऐसी है जहाँ कबीर का दोहा चिरस्मरणीय है

 भगवान जिसको चाहता है, जिसकी रक्षा करने सन्नद्ध हैं,

वह अकेला होने पर भी ,सारे विश्व के  शत्रु होने पर भी, उसके बाल तक बिगाड़ नहीं सकता।

"जाको राखे साइयां ,मारी न सके कोय ! 

बाल न बांका करि सके , जो जग वैरी होय।।"

 भारत एक आध्यात्मिक भूमि है।

अतिथि देवो भव मानता है।

 विदेशी लुटेरों को लूटने देता है।

 जब अत्याचार चर्म सीमा पार करता है,तब एक दिव्य शक्ति का अवतार होता हैं, तभी हम देश की एकता दिखाते हैं तो विश्व के अन्य देश नत्मस्तक हो जाते हैं।

अहिंसा,सत्य, त्याग, दान,धर्म, परोपकार, जगत मिथ्या, सहनशीलता ,मानवता आदि शाश्वत सिद्धांत भारत को सर्वोच्च स्थान पर पहुंचा रहे हैं।

एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई।

स्वरचनाकार स्वचिंतक अनुवादक तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक

Friday, August 25, 2023

पूर्वजों का कर्म

कर्म फल  हास्य  

जब शादी हो गई,

तब मृदंग बन गया।

 एक ओर ससुरालवाले

 दूसरी ओर माँ

 ढोल पीटने लगे।

 बेचारी बीवी को 

दिलासा देने तैयार।

 समर्थन के लिए  एक दल।

 मैं ही मृदंग  बन।

 ढोल दोनों तरफ पीटने लगे।।

मैं पुरुष हूँ ,

सहना ही धर्म।

 अर्धांगिनी दुविधा में।।

 मैं?

 ज़माना गुजर गया।

अब बेटा विदेश में,

 बहू विदेश में।

आजद प्रेम पक्षी की तरह।।

 पोता फोन में बोलता है,

 मैं माता पिता यही मेरा परिवार।

 पुर्खों का पाप, सांस सुसुर 

 माँ बाप वृद्धाश्रम में,

 कलियुग में दंड तत्काल।

मैं भी छे महीने विलायत में।

 जानो समझो वृद्धाश्रम  का रहस्य।

 कर्म फल निश्चित।

 कलियुग धर्म से भरा।।

तत्काल स्वर्ग नरक भूलोक में।

एस.अनंतकृष्णन, चेन्नै।

 स्वरचनाकार स्वचिंतक अनुवादक तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।

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