Wednesday, December 13, 2023

स्वसंकेतों से करें व्यक्तित्व विकास।

 नमस्ते वणक्कम साहित्य बोध असम इकाई को।

 शीर्षक  स्वसंकेतों से करें व्यक्तित्व विकास।

विधा --अपनी हिंदी अपने विचार अपनी शैली भावाभिव्यक्ति।

+++++++

करो पहले, कहो पीछे।

गली गली का

 पाखाना स्वयं उठाया 

देख अन्यों ने साफ करने में लगे।

अपना व्यक्तित्व स्व संकेतों से

बने  राष्ट्रपिता महात्मा।

स्व संकेतों से रामकृष्ण परमहंस में

 सच्चाई थी।

स्वसंकेतों से आजकल

ओट के लिए पैसे देते हैं

 स्व संकेतों से भ्रष्टाचार

रिश्वत फिर भी बनते 

सांसद विधायक।

 उनके संकेत से  

देशको होता बुरा मार्गदर्शन।

 स्व संकेत सत्य के विकास के लिए।

 स्व संकेत पवित्र भक्ति के लिए।

स्वसंकेत  परोपकार के लिए।

स्वसंकेत निस्वार्थ भाव लेकर

स्वसंकेत मानवता बनाये रखने के लिए।

 स्वसंकेत जिओ और जीने दो के लिए ।

आजकल की शिक्षा  का संकेत

पैसा खर्च करो पैसे कमाओ।

वकीलों का संदेश स्वसंकेत

पैसा न तो अदालत में न न्याय।

 न भर्ती शिक्षा संस्थानों मैं

 न वोट अपने आदर्श 

प्रतिनिधि चुनने में।

 स्वसंकेत शासकों का

ईमानदारी नहीं,

अधिकारी का नहीं।

 अध्यापक तो स्वयं ट्यूशन के चक्कर में,

थानेदारों का संकेत भी 

अमीरों को छोड़ो गरीबों को पकड़ो।

स्वसंकेत आश्रम के आचार्य में भी नहीं।

समाज के विचारों में

व्यवहारों में प्रदूषण ही प्रदूषण।।

स्व संकेत है व्यक्तित्व का विकास

 कदम कदम पर नहीं।

स्वसंकेत ईमानदारी सत्यवादियों का कोई समझता नहीं।

 स्वसंकेत  सर्वेश्वर का

जवानी बुढ़ापा रोग प्राकृतिक क्रोध

नश्वर दुनिया

स्व संकेत ईश्वर का भी

मानव समझता नहीं तो

 मानव में शांति संतोष कैसे?

மாயை

 மாயை உலகத்திற்கு இன்னலைத் தரும்.

ஞானத்தை இழக்கச் செய்யும்.

 ஏரிகளை மூடி கட்டிடங்கள் கல்லூரிகள்

 தொழில்நுட்ப அலுவலகங்கள் கட்டத் தூண்டும் மாயையான பணம் மதியை இழக்கச் செய்யும்.

 ஒரு வீடு இருந்த இடத்தில் முன்னூறு வீடுகள். விண்ணைத் தொடும் அடுக்கு மாடி வீடுகள்.

நகர விஸ்தரிப்பு.

 விளைநிலங்கள் காணாமல் கட்டிடங்கள்.

 இன்று வெள்ளம் மட்டுமே.

 நாளை விளைநிலங்களற்ற 

நாடு. நெற்களஞ்சியம் என்று புகழ்பெற்ற பாரத மாநிலம் தமிழ்நாடு

உணவுக்கும் துடிக்கும்.

 இன்று லஞ்சம் வாங்கி கட்டிட அனுமதி கண்டபடி கொடுத்த அதிகாரிகளின் வாரிசுகள்

 பசியால் துடிக்கும்.

 மணல் கொள்ளை  வறட்சி.

 கட்டிடங்கள் இருக்கும். 

ஆனால் நிம்மதி இருக்காது.

 மாதா பிதா ஆட்சியாளர்கள் செய்த தவறு   மக்களை பாதிக்கும்.

 ஆண்டவனின் நிலைத்த சட்டம் பிணி ஏழ்மை முதுமை நரகவேதனை படுத்த படுக்கை அனைத்தும் இருக்கும்.

ஞானம் இருந்தும் மனிதன் உடனடி சுகம்தான் பெரிதென்று ஞான சூனியன் ஆவான். 2000 கோடி சொத்து இருந்தாலும்  முதுமை இளமை ஆகாது.

சே. அனந்த கிருஷ்ணன் சென்னை.

ஓய்வுபெற்ற தலைமை ஆசிரியர் ஹிந்து மேல்நிலைப் பள்ளி திருவல்லிக்கேணி.

செய்த பாவ புண்ணியங்களுக்கு பரிசும்  தண்டனையும் பூலோகத்தில் தான்.

 சுவர்க்கம் நரகம் வேறு எங்கும் கிடையாது.

। विरक्ति के बिना मोक्ष न मिलता।



  विषय -- विरक्ति के बिना मोक्ष न मिलता।

   विधा --अपनी हिंदी अपने विचार अपनी शैली भावाभिव्यक्ति।

14-12-2023.

मानव का मन अति चंचल।

ईश्वर की सृष्टि माया महादेवी।

 वह मानव के मन को

काम, क्रोध मद,लोभ, अहंकार

आदि  विषय वासनाओं से

बचने न देती।

 परिणाम स्वरूप मानव 

 संताप सागर में डुबकियाँ लगाता रहता है।

माया के चक्कर में मैं ऊबकर

अज्ञात अंधकार में

आत्महत्या की कोशिश में लगाता है।

 स्वार्थमय दुनिया में

माया का आकर्षण सर्वत्र है।

 ईश्वर की आराधना एक धंधा बन गयी है।

 दुखी मानव पाखंडी ढोंगियों के

 चक्कर मैं धोखा खाते हैं।

भक्ति  पेशा बन गई हैं।

वह विज्ञान नहीं,

मिथ्याडंबर का केंद्र।

हिंदू लोग तीस हजार की मूर्तियाँ

काली माता की, विघ्नैश्वर की

 बनाकर विसर्जन के नाम से अपमानित करते हैं।

 उन पैसों को आध्यात्मिक एकता के लिए,

 आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान के लिए नहीं करते।

  चाबी गुच्छे में ईश्वर, 

उसको मुख में रख

झूठा करते हैं।

 भक्ति सच्ची है तो

 सर्वत्र विराजमान भगवान को 

अपमानित नहीं करते।

 हर एक पौधा,

पशु-पक्षी

 तालाब झील 

नदियाँ ईश्वर स्वरूप।

उनको प्रदूषित करके

मिथ्याडंबर को नित्यानंद मानता है

बेवकूफ़ मानकर।

 माया के चक्कर में

उनकी बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है।

जब दुख रूपी सुनामी की लहरें

विनाश करती है,

तभी वह आत्मा परमात्मा को एक मानकर

ज्ञानी बनता हैं।

 लौकिक विचारों को  तजकर

 अलौकिक विचारों को अपनाता है।

 माया की सृष्टि ईश्वर ने की है।

माया मोह का दुख ईश्वर ही देता है।

माया की मुक्ति ईश्वर केवल ईश्वर के जप तप ध्यान

एकाग्रता से होती है।

कबीर कहते हैं

माला तो कर में फिरे जीभ फिरे मुखमाही।

मनुआ तो दिशी फिरै यह सुमिरन नहीं।


लाली मेरे लाल की जीत देखो तित लाल।

लाली देखन मैं गई,मैं भी हो गई लाल।

आत्म बोध होना चाहिए।

मन चंगा तो कठौती में गंगा।।

काशी में मिठाई खाना छोड़ दिया यह तो वैराग्य नहीं।

काशी में संकल्प करना है

झूठ न बोलूँगा, भ्रष्टाचारी न करूँगा,

रिश्वत न लूँगा,

केवल आत्म विचार करूँगा।

भगवान एक है,बाकी सब माया।

 अद्वैत भावना में 

विषय वासनाओं को भूल जाऊँगा।

ब्रह्ममम् सत्यम् जगत मिथ्या।

ऐसे विरक्त होने पर मोक्ष मिलेगा।

एस . अनंत कृष्णन चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति।

   विधा --अपनी हिंदी अपने विचार अपनी शैली भावाभिव्यक्ति।

14-12-2023.

मानव का मन अति चंचल।

ईश्वर की सृष्टि माया महादेवी।

 वह मानव के मन को

काम, क्रोध मद,लोभ, अहंकार

आदि  विषय वासनाओं से

बचने न देती।

 परिणाम स्वरूप मानव 

 संताप सागर में डुबकियाँ लगाता रहता है।

माया के चक्कर में मैं ऊबकर

अज्ञात अंधकार में

आत्महत्या की कोशिश में लगाता है।

 स्वार्थमय दुनिया में

माया का आकर्षण सर्वत्र है।

 ईश्वर की आराधना एक धंधा बन गयी है।

 दुखी मानव पाखंडी ढोंगियों के

 चक्कर मैं धोखा खाते हैं।

भक्ति  पेशा बन गई हैं।

वह विज्ञान नहीं,

मिथ्याडंबर का केंद्र।

हिंदू लोग तीस हजार की मूर्तियाँ

काली माता की, विघ्नैश्वर की

 बनाकर विसर्जन के नाम से अपमानित करते हैं।

 उन पैसों को आध्यात्मिक एकता के लिए,

 आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान के लिए नहीं करते।

  चाबी गुच्छे में ईश्वर, 

उसको मुख में रख

झूठा करते हैं।

 भक्ति सच्ची है तो

 सर्वत्र विराजमान भगवान को 

अपमानित नहीं करते।

 हर एक पौधा,

पशु-पक्षी

 तालाब झील 

नदियाँ ईश्वर स्वरूप।

उनको प्रदूषित करके

मिथ्याडंबर को नित्यानंद मानता है

बेवकूफ़ मानकर।

 माया के चक्कर में

उनकी बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है।

जब दुख रूपी सुनामी की लहरें

विनाश करती है,

तभी वह आत्मा परमात्मा को एक मानकर

ज्ञानी बनता हैं।

 लौकिक विचारों को  तजकर

 अलौकिक विचारों को अपनाता है।

 माया की सृष्टि ईश्वर ने की है।

माया मोह का दुख ईश्वर ही देता है।

माया की मुक्ति ईश्वर केवल ईश्वर के जप तप ध्यान

एकाग्रता से होती है।

कबीर कहते हैं

माला तो कर में फिरे जीभ फिरे मुखमाही।

मनुआ तो दिशी फिरै यह सुमिरन नहीं।


लाली मेरे लाल की जीत देखो तित लाल।

लाली देखन मैं गई,मैं भी हो गई लाल।

आत्म बोध होना चाहिए।

मन चंगा तो कठौती में गंगा।।

काशी में मिठाई खाना छोड़ दिया यह तो वैराग्य नहीं।

काशी में संकल्प करना है

झूठ न बोलूँगा, भ्रष्टाचारी न करूँगा,

रिश्वत न लूँगा,

केवल आत्म विचार करूँगा।

भगवान एक है,बाकी सब माया।

 अद्वैत भावना में 

विषय वासनाओं को भूल जाऊँगा।

ब्रह्ममम् सत्यम् जगत मिथ्या।

ऐसे विरक्त होने पर मोक्ष मिलेगा।

एस . अनंत कृष्णन चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति।

Saturday, December 9, 2023

स्ववलंब बनो

 मानव तो पशु -पक्षी नहीं,
स्वावलंब जीवन बिताने  के लिए ।
दस महीने माँ के अंधेरे कोख में ।
कोख से बाहर आते ही उसको रोना है,
न तो डाक्टर परेशान,
जब तक न रोता,
हाथ-पैर न हिलाता,
सब के सब परेशान ।।
उसको अपने पैरों पर खडे रहने एक साल।
वह तो माँ का प्यारा,
दादा-दादी का दुलारा।
उसकी सेवा करने तैयार ।
कैसे कहूँ,उनसे खुद  खाना खाओ।
पाश्चात्य देश दो साल के बच्चे को
भारतीय माँ का खाना खिलाना आश्चर्य की बात।
वहीं बच्चा स्वलंबित।
पाश्चात्य देशों में सोलह साल के बाद
युवक-युवतियाँ अपने पैरों पर खडे रहते ।
शादी भी खुद की मर्जी ।
तलाकभी खुद की मर्जी ।
इतना स्वावलंबन भारत में नहीं ।.
चालीस साल तक माता-पिता की अनुमति के बिना
पत्नी से बोलने का भी स्वतंत्रता नहीं ।
१९९० ई. के बाद सम्मिलित परिवार नहीं ।
भारत में  अंग्रेज़ी माध्यम का प्रभाव
नारी मन गई स्वावलंबित।
नर बन गया परावलंबित यही शहरी वातावरण।
मानव को स्वालंबित रहो कैसे कहूँ?
सांसद विधायक को चुनाव के दो महीने मत दाताओं के सामने
परावलंबित बनकर हाथ जोडना पडता है।
मानव मूल्यों क मंच के बिना 
तमिलनाडू में  कविता मंच नहीं  हिंदी नहीं ।
नाम पाने अवलंबित काम पाने अवलंबित
सीखने अवलंबित, सिखाने अवलंबित
भोजन खाने किसान,आवागमन के लिए चालक।
हर बात मे स्वालंबित रहना कैसे ?






Tuesday, November 14, 2023

 [4:08 pm, 27/10/2023] sanantha 50: महिला  बला या अबला,

पता नहीं,

कैकेई रोयी, परिणाम रोती रही।।

सीता के जीवन में,

अग्नि प्रवेश होकर भी रोती रही।

कुंती के जीवन में 

शांति नहीं,

द्रौपदी भी सुखी नहीं।

दमयंती,शकुंतला, सावित्री,

अनुसिया , चंद्रमति,

  दुखी ही रही।

बलशालिनी महिला,

ईश्वरीय कोमल तत्वों से बनी।

 इतनी दुखी महिलाओं की सूची

तो पौराणिक कथाएँ देती ।

झांसी रानी वीरांगना सही,

 13साल की बावन साल के राजा से, वीरांगना के नाम से प्रसिद्ध,

व्यक्तिगत जीवन निरर्थ।

कवयित्री मीरा,

कृष्ण भक्ता 

 भी वैसी ही  दुखिनियों की सूची में।

 आधुनिक महिलाएँ,

तलाक के पात्र।

बलात्कार का पात्र।

 यह ईश्वरीय सृष्टि ही ऐसी।

अग जग में स्त्री ,

 भोग की वस्तु ही रही।।

 पुरुष समान वह 

 आज़ादी से घूम फिर नहीं सकती।

वेश्या को ही दंड,

वेश्या अर्थात वेश्या के सुख

 पाने वाले  पुरुष को दंड कहाँ?

 कोमल  तत्वों  से बनी नारी

पाश्चात्…

[10:11 pm, 27/10/2023] sanantha 50: एस. अनंत कृष्णन चेन्नई का  नमस्कार साहित्य बोध, राजस्थान इकाई को।

+++++++++++

उम्मीदों का दामन कभी मत छोड़िए।

+++++±+±+++++++++

  मानव अपनी शादी के बाद

 संतान  की आशा करता है।

 संतान होने के बाद

 संतान की पढ़ाई, 

नौकरी की आशा करता है।

 उम्मीदों का जीवन मानव का।

मंदिर जाता है,

मिन्नतें करता है,

उम्मीद करता है 

 ईश्वर की कृपा मिलेगी।।

पल पल पर आशा,

न तो जिंदगी जीना दुश्वार।

परीक्षा देता है,

आशा रखता है,

अच्छे अंक मिलेंगे।

अच्छे महाविद्यालय में

 भर्ती मिलेगी।

  कैंपस साक्षात्कार में,

 नौकरी मिलेगी।

 विलायत जाएँगे।

भरोसा नहीं तो मानव को

बल नहीं,धैर्य नहीं,

 निराशा मानव का  लक्षण नहीं।।

नर है,तो सभी प्रकार का सामर्थ्यवान है।





 






 

एस. अनंत कृष्णन चेन्नई का  नमस्कार साहित्य बोध, राजस्थान इकाई को।

+++++++++++

उम्मीदों का दामन कभी मत छोड़िए।

+++++±+±+++++++++…

[8:59 am, 29/10/2023] sanantha 50: சே. அனந்தகிருஷ்ணன். வணக்கம் .

தலைப்பு --விலங்குகள் நேசிக்கப்பட ஆன்மா விழிக்கட்டும்.

++++++++±+++++++++±+

ஆன்மா  உருவமற்ற நிலையான ஒன்று./1

உடல் மரணம்  உயிர் பிரியும்/2

விலங்குகள் மனிதனைப் போல உயர்ந்தவை/3.

சிங்க நடை மான் விழி/4

 நரி தந்திரம் , பசு சாது/5

ஆறறிவு ஆனால்

ஒப்பிட  குணம்?6

 அனைத்தும் உண்ணும்

ஆர்வம் கொண்டவன்/7

ஆண்டவன் வாகனங்கள்

காளை,சிங்கம்,மயில்,கருடன்/8

சேவல் கொடி  உடையவன்வேலவன்/9

விலங்குகள் நேசிக்கப்பட ஆன்மா விழிக்கட்டும்.,/10

[7:09 pm, 29/10/2023] sanantha 50: एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।

अवकाश प्राप्त प्रधान अध्यापक,

हिंदू हायर सेकंडरी स्कूल तिरुवल्लिक्केणी, चेन्नै।

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मनोबल चाहिए मानव को,

केवल  मनोबल से नहीं होगा काम।

तन बल, स्वस्थ शरीर भी चाहिए,

केवल मन,तन बल से काम न बनेगा,

धन बल चाहिए।

 तन मन धन मिलने,

 मिलाने मिलवाने,

ईश्वर बल चाहिए।।

कबीर का दोहा चिर स्मरणीय है

"जाको राखे साइयां मारी न सके कोय।

बाल न बांका करि सके जो जग वैरी होय".

ईश्वरीय बल ही 

ज्ञान बल देगा जान।।

कर्मफल से मानव का जन्म

 धनी के यहाँ,

 भिखारी के यहांँ,

विद्वान के यहाँ

 वेश्या के यहाँ

 होता है।

सत्यवादी हमेशा 

धीरज से जाता तान कर रहता है।

वीर तो एक बार मरता है,

 कायर मरता रोज़ रोज़।

दान धर्म परोपकार जगत में

 मानव का नाम अमर कर देता है।

व्यवहार में

जिसकी लाठी,उसकी भैंस की नीति ही सत्य है।

एस. अनंत …

[7:13 pm, 31/10/2023] sanantha 50: mrityunjaytripathyofficial@gmail.com

[1:35 pm, 01/11/2023] sanantha 50: हम तमिलनाडु के लोग

कार्तिकेय को "मुरुगा" के नाम से,

षण्मुख के नाम से,

सुब्रह्मण्य के नाम से,

स्कंद के नाम से,

वेलन के नाम से,

दंडायुधपाणी नाम से,

लंगोटी संन्यासी के नाम से

कडंब के नाम से,

कदिरवेला (शूलकिरण)के नाम से 

कलियुग वरदाता के नाम से,

जप करते हैं।

भारतीय एकता में,

राम के रामेश्वर,

कार्तिक के पऴनी, तमिलनाडु

तमिल के प्रथम

 व्याकरणिक अगस्त्य,

जिनके कारण कावेरी नदी

पृथ्वी पर दक्षिण में बहने लगी,

भारतीय आध्यात्मिक एकता की

आधार शिला हैं,वह पक्की नींव

अति मज़बूत।।

हिलाना  असंभव।

पर सनातन धर्मियों में एकता नहीं,

अन्य धर्मों की तरह

 एक ही आवाज़ उठती नहीं।।

यह कमी  मिटने मिटाने में

ध्यान देना सनातन धर्मियों के लिए

अति अनिवार्य है।

एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई।

तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।

[5:57 pm, 01/11/2023] sanantha 50: https://www.facebook.com/groups/810202296271288/permalink/1330617644229748/?mibextid=rS40aB7S9Ucbxw6v

[9:53 am, 02/11/2023] sanantha 50: एस. अनंत कृष्णन चेन्नई का नमस्कार वणक्कम साहित्य बोध उत्तराखंड इकाई को।

शीर्षक --बस इस जन्म साथ निभा देना।

विधा --अपनी हिंदी अपने विचार अपनी शैली भावाभिव्यक्ति।

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आधुनिक युवकों, युवतियों,

आधुनिक ताज़ी खबरें

अति दुखप्रद और चिंतनीय।

सम्मिलित परिवार नहीं,

 वृद्धाश्रम की बढ़ती संख्या।

 ताज़ी खबरें तलाक के मुकद्दमे अधिक।

अवैध संबंध,

  अपने नन्हें बच्चे की हत्या तक।

अपनी प्रिय पति या पत्नी की हत्या तक।

पाश्चात्य प्रभाव  त्याग मय प्रेम  नहीं,

 सनातन प्रेम में त्याग अधिक,

निस्वार्थ बंधन, त्याग की सीख।

न प्रधान शारीरिक सुख का,

 न स्वार्थ मय जीवन ।

 बस पारिवारिक बंधन,

वैवाहिक बंधन हो गया तो

अंत तक प्रेम निभा देना।

 संयम में है जीवन।

बस इस जन्म साथ निभा देना।।

 जीवन में सुखी कोई नहीं,

न राम,न सीता, न लक्ष्मण,न उर्मिला,

न सिद्धार्थ,न यशोधरा।

न शकुंतला,…

[11:21 am, 04/11/2023] sanantha 50: सत्ताधारी धनी हैं।

नोट पाकर ओट देने तैयार।

 अंक देने तैयार।

अंग देने तैयार।

 हत्यारे के धन कै लिए

 वकीलों की सेना तैयार।

एक सांसद या विधायक देश प्रेमी नहीं,

धनी व्यक्ति दाम सौ करोड़।

 फिर भी देश आगे,

कारण धन।

चैन नगर के चार बेकार।

खेती नगर विस्तार में विनाश।

 समाधि,तोरण द्वार, मूर्ति,

के लिए लाखों करोड़।

 किसान अन्नदाता चौराहे पर।

कारखाना कालांतर में

 खाना न देगा।

 प्रेम तो सच्चा होना चाहिए।

 आदर्श प्रेमी ईमानदारी होते हैं।

 सत्य बोलते हैं,

 ऐसा कोई भूलोक में अवतार नहीं,राम भी नहीं, लक्ष्मण भी नहीं।

सबका प्यारा मुहम्मद भी नहीं, ईसा भी नहीं। राम भी नहीं, 

शिव भी नहीं।

सच्चा प्यारा बड़ा त्यागी।

भोगी नहीं।

[0:24 pm, 04/11/2023] sanantha 50: नमस्ते वणक्कम।

सनातन धर्म विश्व बंधुत्व का 

मार्गदर्शक है।

संसार के  सभी जीव राशियों के लिए युग युगों तक स्मरणीय और अनुकरणीय है।

सक्ला लोका सुखिनो भवन्तु।

वसुधैव कुटुंबकम्।

सर्वेजनाः सुखिनो भवन्तु।

ऐसे सिद्धांत केवल सनातन धर्म में है।

आसमान एक,

सूर्य एक,

चंद्रमा एक,

मानवता एक,

 सत्य चाहती दुनिया।

ईमानदारी चाहती दुनिया।

वचन का पालन चाहती दुनिया,

तटस्थता चाहती दुनिया,

  अहिंसा, संतोष, शांति, 

   चाहती  दुनिया।

चरित्र गठन चाहती दुनिया

समय का सदुपयोग चाहती दुनिया।

ईश्वरीय  सूक्ष्म लीला 

मानती दुनिया।।

अनुशासित संयम 

चाहती दुनिया।

इन सब की राह दिखाता 

एक धर्म सनातन।

यह शाश्वत धर्म है,

 मजहबों से परे,

मानव में मानवता भरने की कला

सनातन धर्म सिखाता है।


एस. अनंत कृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।

अवकाश प्राप्त प्रधान अध्यापक स्नातकोत्तर हिंदी अध्यापक स्वचिंतक स्वरचनाकार अनुवादक

[7:37 pm, 04/11/2023] sanantha 50: नमस्ते।

दीपावली है 

दीपों का त्योहार।

दुष्टों का वध,

इष्टों की रक्षा।

भारत भर में

आनंद का पर्व है।

कितनों को खुशी दे रहा है,

यह पर्व।

 तेल व्यापारी का व्यापार,

आलसी भी तड़के उठाकर

तेल स्नान करता है,

कपड़ों का व्यापार खूब चलता है,

पटाखों की गूँज है,

सर्वत्र है,

पटाखों के कारण अनेकों को

 नौकरी !

 दक्षिण में नरकासुर का वध,

सत्यभामा की मदद से 

कृष्ण ने किया।

 हर काम की सफलता 

नारी के साथ  रहने से 

सफलता जरूर।

 तमिलनाडु में दीपों से नहीं 

सजाते, पटाखें जलाते।

 अमावस्या के अंधेरे में

 फुलझडियां की उज्ज्वलता।

 व्यापार भी खूब,

मिठाइयों की दूकानों का व्यापार।

 बुरों की हत्या का आनंद।

 वाणिज्य का विकास,

भक्ति का महत्व,

ईश्वर की सूक्ष्म लीला।

भक्ति रस से भरा भारत।

 खेद की बात आजकल,

मधुशाला की बिक्री अधिक।

जुआभी खेलते हैं ।

सिनेमा टिकट में यूवकों की भीड़।

  यह माया छूटने ,

ईश्वर से प्रार्थना। 

 सर्वे जन: सुखिनो भवन्तु।


एस.अनं

[8:01 pm, 04/11/2023] sanantha 50: छोटों का नमस्कार,

बड़ों की आशीषें।

प्रथम साल शादी की

 बेटी दामाद  का स्वागत।

 अमीरों का आनंद,

 गरीबों में भी आनंद।

[9:26 am, 06/11/2023] sanantha 50: एस . अनंतकृष्णन

स्वरचित मौलिक रचना 

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शीर्षक --मउझए दंगा देनेवाले मुझे दगा देकर रोये।

विधा --अपनी हिंदी अपने विचार अपनी शैली भावाभिव्यक्ति गद्य पद्य  विधान।

-------------------

दंगा देना अर्थात ठगना,

धोखा देना,

रामायण काल से 

आधुनिक काल तक

मानव मानव में चलता रहता है।।

रावण ने सीता को संन्यासी वेश में तो मारीच ने स्वर्ण हिरन के रूप में 

विष्णु ने रावण रूप में,

अफ़ज़ल ख़ान 

वीर शिवाजी को

दोस्ती के रूप में,

ठगना  युद्ध में  भी धर्म नहीं।

आजकल  चुनाव में,

चुनाव के बाद जीत में,

कितना ठग देते हैं।

 नाते रिश्तों का ठगना

दगा  देना क्या करें,

अशाश्वत  संसार में,

ठगने की शैतानियों

आदी काल से आजतक।

कीडे के आगे मारा तो वह भी

एक पल निश्चल रहता है।

बाघ छिपकर मारता है।

जो भी हो मानव सब को

  संताप सहना पड़ता है।

मुझे भी लगा देनेवाले नहीं,

जो किसी को भी दंगा देग…

[3:06 pm, 07/11/2023] sanantha 50: एस. अनंतकृष्णन‌  का नमस्कार।

साहित्य बोध  महाराष्ट्र इकाई को।

विषय -- बच के रहो आस्तीनों के साँपों से

विधा--अषनी  भाषा अपने विचार अपनी शैली भावाभिव्यक्ति भाव प्रधान।

+++++++++++

इतिहास पढ़ा,

पौराणिक कथाएँ पढ़ी।

 आस्तीनों के साँप  के कारण ही

   महा युद्धों के कारण।

 बौद्ध धर्म के दो भेद,

जैन धर्म के भेद,

 हिंदू धर्म के भेद 

कदम कदम पर जातीय मंदिर।

सांप्रदायिक लडाइयाँ।

काँग्रेस के दो दल,

प्रांतीय दल।

 दल बदलने का हेरा फेरी।

 आँभी का ठगना,

पुरुषोत्तम का हार।

विभीषण का राम से  


मिलना ,

स्वतंत्रता संग्राम में भी

आस्तीनों के साँप असंख्य।।

कथानक के विकास भी

आस्तीनों के साँप ही कारण।।

हर परिवार में स्वार्थी मामा,

स्वार्थी मायकेवालोले,

साले, साली,

ईर्ष्यालू कायर दोस्त,

जाने -अनजाने दुश्मन।

अतः ऐसे आस्तीनों के साँपों से 

 सावधानी से बचकर रहना।

एस.अनंतकृष्णन‌। द्वारा  स्वरचित कविता।

[9:11 pm, 07/11/2023] sanantha 50: December 10th old boys meetings

[7:18 am, 09/11/2023] sanantha 50: दीपावली अनूठा संगम

 दूर दूर के नाते रिश्ते

मिलते,

देश में आजकल 

दान धर्म  के लोग 

मध्यवर्गीय परिवार के।

 बड़े धनी भ्रष्टाचारी चारी नेता

 फुटपाथ के परिवारों पर,

गरीबो की बस्ती पर 

ध्यान ही नहीं देते।

 चुनाव के समय गरीबों की 

बस्ती में घूमते रहते,

गरीबों के ओट नहीं तो

 चुनाव क्षेत्र खाली ही रहता।।

 अमीर शिक्षित चुनाव के दिन

 पता नहीं ओझल हो जाते।

 ४०% अल्प संख्यक सत्ता धारी बनते।

पता नहीं भारतवासी कब जागेंगे?

दीपावली अवसर पर 

सर्वेश्वर से यही प्रार्थना

प्रवासी भारतीयों को भी

ओट देने का अवसर मिलें

ओट देने जो नहीं जाते

 उनकी बूद्धि में जागृति हो।

एस. अनंत कृष्णन तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक

भारत भक्त।

[8:18 pm, 09/11/2023] sanantha 50: एस .अनंतकृष्णन का नमस्कार साहित्य बोध राजस्थान इकाई को।

 विषय --मन के दीप।

विधा --अपनी हिंदी अपने विचार अपनी शैली भावाभिव्यक्ति।

-------------------------

मन दीप है,यदि पवित्र हो तो।।

मन कलंकित हो तो अंधेरा।।

मन में शैतान बस गया तो

 मन के दीप का बुझना निश्चित ।।

नाना प्रकार के बद विचार।

बुरी संगति बुरा परिणाम।

 मन में भगवान को  बसाओ।

पूजा अर्चना का दीप जलाना।

ध्यान मग्न होकर

निश्चल-निश्छल बनाकर

ध्यान का दीप जलाओ।

मन के दीप में

 पवित्रता का तेल लगाना।

पवित्र विचार की बत्ती डालना।

 मन का पवित्र दीप जलाना।

चैन मन में संतोष जनक विचार।

ब्रह्मानंद परमानंद जीवन।।

मन का दीप उज्ज्वलतम होगा।।

एस. अनंत कृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित कविता।

[9:22 pm, 09/11/2023] sanantha 50: एस. अनंत कृष्णन का नमस्कार साहित्य बोध,असम इकाई को।।


विषय ---रिश्तों में अपनत्व।

 विधा --अपनी भाषा अपने विचार अपनी शैली भावाभिव्यक्ति।

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रिश्तों में अपनत्व है या नहीं,

संदेह प्रद शक नहीं।

अपनत्व है पर 

परिस्थिति अपनत्व 

मिटा देती है।

गलतफहमी, ईर्ष्या,अंधआक्रओध

ईश्वरीय लीला,

मंथरा के कारण

कैकेई अपनत्व   खो देती।

स्वार्थता घेर लेती।

अपने बेटे के लिए

 सिंहासन माँगती।

शकुनि  और कृष्ण भी

रिश्तों में अपनाने में

बदला लेने की भावना

कृष्ण चाहते तो युद्ध न होता।

कुंती के कर्ण  का त्याग,

रिश्तों में अपनत्व पर बड़ा कलंक।

आगे आधुनिक काल में

अनाथ आश्रम,व‌द्धाश्रम,

प्रेम विवाह, 

शादी के दिन बेटी का भागना

आज कल साधारण बात।।

अवैध संबंध, तलाक, 

पाश्चात्य प्रभाव।।

 सम लिंग शादी,

संतान को भारत समझना।

रिश्तों में अपनत्व कहाँ?

चित्रपट जगत में तो

  दांप…

[3:22 pm, 11/11/2023] sanantha 50: साहित्य कलम जिंदा मंच को एस.अनंतकृष्णन का नमस्कार। वणक्कम। दीपावली की शुभकामनाएँऔर बधाइयाँ।

    चित्र वर्णन। 11-11-2023

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मानव की मनो कामना

 मन की कल्पना,

पहाड़ की चोटी से चंद्रमा को छूना,

सूर्य मंडल   पर  घर बसाना,

अपने को अष्टसिद्धियाँ प्राप्त करना।।

लघु रूप लेना,महा रूप लेना।

 हनुमान सा समुद्र लांघना,

एक पहाड़ की चोटी से 

दूसरी चोटी पर,

छलांग मारना,

अनहोनी असंभव

 दुर्लभ साधना करना,

मानव मानव में

ईश्वरत्व लाना।।

  धन्य है सर्वेश्वर जिसने

 मानव को बुद्धि देना।।

 एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक

द्वारा स्वरचित कविता।।

स्वचिंतक स्वरचनाकार 


  

साहित्य कलम जिंदा मंच को एस.अनंतकृष्णन का नमस्कार। वणक्कम। दीपावली की शुभकामनाएँऔर बधाइयाँ।

    चित्र वर्णन। 11-11-2023

my creations

 [2:53 pm, 12/11/2023] sanantha 50: नमस्ते वणक्कम।

विषय --फैसले में देरी हार निश्चित।

विधा --अपनी हिंदी अपने विचार अपनी शैली

++++++++++++++++

 हमारा निर्णय सही है तो

तुरंत कार्रवाई पर लग जाना।।

देरी तीसरे को लाभप्रद होगा।

न्यायलय में देरी बारह साल तक

गवाही गायब,गवाही का निधन।।

फैल गायब, न्यायाधीशों का तबादला, अवकाश।

गलत फैसला अपराधी बच गया।।

देरी का फैसला

 अपराधिनी मर गई।

 दंड से बच गयी।

दूकान खोलने में देरी,

दूसरे ने वही दूकान खोली।

फैसले में देरी,हार निश्चित।

शादी में देरी,

शादी के बाद संतान का स्थगित,

देरी परिणाम निस्संतान का दुख।।

प्यार पत्र में देरी प्रेमी/प्रेमिका न मिला/न मिली हार निश्चित।।

फैसलों में देर हार निश्चित।।

एस. अनंत कृष्णन चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित कविता।

[10:56 am, 13/11/2023] sanantha 50: त्रिंशत् - 30

इसलिए, त्रयः त्रिंशत् / त्रयस्त्रिंशत् - 33

कोटिः - प्रकार


संस्कृत शब्द कोटि के दो अलग-अलग अर्थ हैं। एक करोड़ है और दूसरा प्रकार है।


यहां त्रयस्त्रिंशत् कोटि देवता का अर्थ 33 प्रकार के देवता है, न कि 33 करोड़ देवताओं।


33 प्रकार के देवताओं के नाम -

• द्वे अश्विनी कुमार (2) : नासत्य, दस्र।

• अष्ट वसु (8) : जल, पृथिवी, अग्नि, वायु, व्योम (आकाश), सूर्य, चन्द्र (सोम) और नक्षत्र (तारा गण)।

• एकादश रुद्र (11) : प्राण, अपान, व्यान, समान, उदान, नाग, कुर्म, किरकल, देवदत्त, धनञ्जय और जीवात्मा।

• द्वादश आदित्य (12) : यम, अर्यमन्, इन्द्र (मार्तण्ड), रवि, वरुण, धातृ, भग, हिरण्यगर्भ, अर्क, अंश, मित्र, दक्ष (पूष)।


परमात्मा को प्रजापति / परब्रह्म / पुरुष / विष्णु / रुद्र / ललिता / गणेश / सविता (कभी-कभी सवितृ) कहा जाता है, जो इन देवों का निर्माता हैं।

[3:06 pm, 13/11/2023] sanantha 50: मेरा विवरण -

नाम --एस. अनंतकृष्णन,

पिता का नाम --

पी. वि. सेतुरामन


पता---

S. Anandakrishnan

A7, Archana Usha Square,

4&5, Kubernagar IV Cross Street Extension,

Madippakkam Chennai 600091.

Mobile no 

86101 28658

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शैक्षिक योग्यता --

M.A.,(Hindi)M.Ed.,

राष्ट्र भाषा प्रवीण, प्रचारक प्रशिक्षण उपाधि।

पत्रकारिता और जन-संपर्क उपाधि।

अनुभव --1967ई. से  1977तक हिंदी विरोध आंदोलन के समय पऴनी, केंद्र में तीव्र हिंदी प्रचार


हिंदी स्नातक अध्यापक  तमिलनाडु सरकार मान्यता प्राप्त वेस्ली हाई स्कूल, रायप्पेट्टै, चेन्नई।

1981 से स्नातकोत्तर हिंदी अध्यापक, 2006तक, 2006 से2008 तक प्रधान अध्यापक

1986से1990तक अंशकालीन प्राध्यापक, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, राजाजी  प्रशिक्षण कालेज, चेन्नई।

लेखन कार्य ---

प्राथमिक से प्रवीण तक 

हिंदी परीक्षा मार्गदर्शिका,

जय प्रकाशन।

[7:25 pm, 13/11/2023] sanantha 50: சே. அனந்த கிருஷ்ணன்.

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தலைப்பு ---

நாளை நமதே

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நம்பிக்கையே மனித வாழ்க்கை/1

நீட் தேர்வு தற்கொலை/2

அது அரசியல் சுயநலம்/3

அவநம்பிக்கை  தூண்டும் செயல்/4

தேர்வில் தோல்வி  ஊக்கமின்மை/5

காரணம் வீரம் இல்லாமை/6

காதல் நெருக்கம் விலக/7

வேதனையின் உயர் நிலை/8

முயன்று  வெற்றி தருவது/9

நாளை நமதே  எண்ணமே/10.

சே.அனந்தகிருஷ்ணனின்

சுய படைப்பு

[7:01 am, 14/11/2023] sanantha 50: 1.भगवान भी, मंदिर भी परिवर्तन की है संभावना।

प्रार्थना तो एक ही है प्रेम की चाह।

२.भगवान के अवतार दस ,

 भुवनों की रक्षा के लिए   हैं,

उस परमेश्वर का यशोगान कर!

३.पाप अमर न हो, इस सिद्धांत के लिए, ईसा चढ़े शूलई पर।।

४.मकडी की जान बचाकर,

 नबी ने चिंतन दिया।

उस नबी का यशोगान कर।।

५. सूरज पर विश्वास कर जग घूमता रहता है।

वैसा ही  भगवान की परिक्रमा कर।।

6.

कृपालू आश्रय दाता भगवान के रहते!

कहीं अंधकार में किसे खोजते हो।

7.हवा प्रत्यक्ष दीख नहीं पडती,पर देती रहती जान।

  वैसी ही हैभगवान की श्रेष्ठता ।।

8.इंद्रधनुष के सात रंग के समान।

 ज्ञान धनुष की सूक्ष्मता से गुप्त है देश।।

9.ईश्वरीय निंदा करना जानबूझकर।

अहंकार वश ही जान।।

10.अनसक्त भक्त पर आसक्त  परमेश्वर  है,

परित्यागी संन्यासी  ही है तो

यह  वास्तविकता नहीं जान।।



: 11. तन अस्वस्थ मन अस्वस्थ

      तभी मानव खोजता…

[9:38 am, 14/11/2023] sanantha 50: अमीरी का बाह्याडंबर,

गरीबी का भूखा पेट,

भाग्यवान का अहंकार

अपना अपना भाग्य आजमाकर

 आजीवन सुख-दुख भोगना

ईश्वरीय सूक्ष्म लीला।

 खुदा भी खुद दुखी

यही शाश्वत सनातन धर्म की

 सीख जान।।

[2:12 pm, 14/11/2023] sanantha 50: एस.अनंतकृष्णन का नमस्कार साहित्य बोध दिल्ली इकाई को।

   1-11-23

विषय --जो दिखता है वह सत्य नहीं होता।

विधा --अपनी भाषा अपने विचार अपनी शैली भावाभिव्यक्ति।

+++++++++++

   नजर  से नजर मिलें,

   प्यार सा दिखा,

   पर वह तो सच नं निकला!

   बाह्याडंबर भक्ति,

  फूलों फलों से सज्जित

 ईश्वर की मूर्ति की चमक।

पुजारी की सृजन कला,

पर वह भक्ति सच नहीं निकला।

चुनाव के महीनों में,

दोनों हाथ जोड़कर,

मत माँगने आते थे,

चेहरे पर मुस्कुराहट,

मधुर वचन,

 सेवक का प्रति बिंब,

पर बनावटी मुस्कान।

सच नहीं था।

मोती माला तीन सौ रुपए,

सुंदर  थी,पर नकली मोती।।

पानी भरी चमक, पास गया तो मृग मरीचिका।।

सच क्या झूठ क्या पता नहीं,

पानी भरा था, पर पानी पीने का नहीं,

नमकीन पानी,  सच नहीं निकला।

जप माला हाथ में,

संन्यासी सा वेश भूषा,

दिखने में सच,पर भक्त नहीं था।

Monday, November 6, 2023

स्वरचित

 स्वरचित स्वचिंतक एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई, तमिलनाडु

 शीर्षक  कुम्हार

2-1-2021 

विधा अपनी भाषा अपनी शैली

चित्र पर आधारित।

माह जनवरी

पहला सप्ताह।

  हम रंग नींव  के  संयोजक, समन्वयक,सदस्य,पाठक, प्रशासक,

सब को वणक्कम। नमस्कार।।


  भगवान की  सृष्टि में, 

  मानव ही कलाकार।।

   वो धरती कितना देती है,

   अनाज,सोना,चांदी,हीरा,

   वही धरती की मिट्टी,

    कुम्हार के जीविकोपार्जन के लिए,

     मिट्टी के बर्तन, खिलौने,घड़ा वाद्य

     आधुनिकता के कारण 

       कुटिर उद्योग में जरा पतन।।

        पाठकों से निवेदन है,

        कम से कम एक 

        मिट्टी के बर्तन लेना।

       चक्र का पता चला,

        चीन से यह  चक्र कला  

         भारत आती।

        लाल मिट्टी,काली मिट्टी के बर्तन।।

         कलाकार अति ध्यान से बर्तन

        कच्ची मिट्टी से, फिर सुखाना।।

        मिट्टी के बर्तन का खाना,

       आजकल पाँच नक्षत्र  होटल में

       विशेष विज्ञापन के साथ प्रसिद्ध है।

      मिट्टी के बर्तन की रसोई ,

     स्वास्थ्य प्रद, आयु वृद्धि।

     मिट्टी के घड़े का पानी में

     प्राकृतिक धातु शक्ति।।

   और अनेक लाभ।।

  मिट्टी  वातानुकूलित बर्तन  

  तरकारियाँ ताजा रखते।

 स्वास्थ्य लाभ ही नहीं 

 भारतीय हस्त कला की सुरक्षा।

  कुम्हार का प्रोत्साहन।।

  अनेक भारतीय खोज में

   मिट्टी के बर्तन ही प्रमाण।

  बड़े बड़े बर्तन में,

  शव रख भूमि में गाढ़कर  रखते।

 मिट्टी की ईंटें भी 

आदी काल से आजतक।।

श्मशान में अंतिम क्रिया के समय

 चिता में शव रख,

 शव के बेटे या आग लगाने वाले,

 घड़े कंधे पर रख प्रदक्षिणा,

 प्रदक्षिणा के समय घड़े में 

  छेद कर  पानी निकालते

    अंत में  घडा फेंकते।

 शादी में कच्चे घड़े में 

 चूना लगा कर,

नागवल्ली घड़ा अति पवित्र।।

 मंगल अमंगल संस्कार में

 जिंदा है यह कला।।

कुम्हार की जय हो।।

स्वरचित स्वचिंतक एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु