तर्कसंगत ज्ञान
आप तो अग्नि के बच्चों को
सेनेवाले सूरज हैं.
हम तो जुगुनू के लिए रात्रि बने हैं.
जब आप बोलने लगे हैं,
तब हज़ारों वाट्स बल्ब के समान
हमारे ह्रदय चमकने लगे.
हम तो तभी बोलने आयेंगे ,जब
हज़ारों बल्ब जलने लगते हैं.
आप तो तमिल परिवार के पिता स्वरुप थे.
हम तो अपने निजी परिवार की ही
ध्यान देते हैं.
आप तो बिना भीड़ के विचार के
अपने तर्कसंगत ज्ञान के सिंह गर्जन ,
भाषण में लग जाते थे.
हम तो मतदाताओं की संख्या देखकर ही
शब्द प्रकट करते हैं.
आप तो जो सही नहीं और मानने योग्य नहीं
उन्हें बोलते नहीं है.
हम तो जो मान्य हैं ,सही है
उन्हें कहते भी नहीं है.
आप ने तो भोले -भाले
गंदे मनुष्य की गन्दगी मिटायी .
हमारे सुधारे आदमी फिर गंदे हो गए.
आप के भाषण तर्कसंगत होते थे .
हमारे भाषण तो केवल तालियों के लिए.
आप तो गरीब बुआ के दत्त पुत्र बने.
हम तो अमीराइन के दत्त-पुत्र ही
बनने के ख़्वाब देखते हैं .अवसर ताकते हैं.
आप तो आडम्बर से घृणा करते थे.
हम तो बाह्याडम्बर के लिए
सब कुछ होने तैयार है.
कंधे पर स्वर्णिम तौलिया के लिए
कमर की धोती गिरवी रखने तैयार होते हैं.
सर झुकाते हैं.
अर्थात पद के लिए अपमानित होने तैयार.
अग्रिम मर्यादा के लिए
हम है बेइज्जती सहने तैयार.
स्वाभिमान को दलित करने तैयार.
आप तो धन को तुच्छ माना ;
देशवासियों को दिल से चाहा.
हम तो धन को मानकर
देशवासियों को तुच्छ समझते हैं.
आपने तो अपने को ही समाज के लिए
किया अर्पण
.और कुछ अर्पण की खोज में लगे.
हम तो अपने लिए समाज का अर्पण चाहते हैं.
आपने तो ईश्वर स्वरुप बन
तमिल जाति का सम्मान ऊँचा किया.
हम तो आपके सेवक बनकर भी
संसार के आगे अपमानित हुए हैं.
आपके सिद्धांत सोच ने
अभिनेताओं को भी नास्तिक बनाया.
आज तो नास्तिक भी अभिनेता बन गए.
आप तो जातियों के नाम में कीचड उछाला.
हम तो उस कीचड को छाती में लेपते हैं.
हम अपने यहाँ जाते हैं कि
जातियाँ मिट गयीं .
लेकिन वहां जाते हैं
हर मनुष्य के मन में
जातीयता तीव्र रूप में उज्ज्वालित हैं.
हम तो समझौता नहीं करते
भाइयों से .
शत्रुओं से नहीं लड़ते .
लड़ते हैं जाति के नाम लेकर.
आप तो मितव्ययी हैं ,
हम भी आपके सिद्धांत के उपयोग में
मितव्ययी हैं.
तर्कसंगत ज्ञान का प्रयोग नहीं करते.
वह तो हमारे यहाँ है सुरक्षित.
आपके सिद्धांत आपको परिचित कराया.
हमारे लिए बनेबनाये चेहरे ही जरूरत हो गयी.
हमें सैन्धान्तिक चेहरेसे
लाल बत्ती मोहल्ले काचेहरा
लगता है अच्छा.
आप सफेद दाढी और बाल से बुढापे में
नज़र आये.
हम तो बालों को कालेरंग देकर ही
चेहरा दिखाते हैं. नहीं तो
चेहरा दिखाते ही नहीं.
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Friday, December 5, 2014
तर्क संगतज्ञान கவி ---எழில் வேந்தனின் வெளிச்சங்கள் கவிதைத் தொகுப்பின் ஹிந்தி மொழி ஆக்கம்.
तमिल कवितायें கவி ---எழில் வேந்தனின் வெளிச்சங்கள் கவிதைத் தொகுப்பின் ஹிந்தி மொழி ஆக்கம்.
प्रेम के दास.
केवट( गुह )--मेहनती वर्ग का प्रतिबिम्ब ;
घृणित वर्ग के नए प्रतिनिधि.
विधि के कर उसको दूर रखा .
पर वह है कथा-पात्र
नदी के जल में भीगा.
नीच कुल में जन्मा वह ,
रवि कुल का सेतु बना.
बिजली -सा चमका.
चमेली के खेत में
उदित मोती वह.
चन्दन के वन में
घुटने के बल बहे
सुखद हवा.
कुल के कारण हटा रखा पर
वह है हीरा जंगल का काला.
तम को दिया अपना काला रंग.
वह तो जंगल का गुलाब.
राम के पाद -स्पर्श से वंचित
पवित्र प्रेम का पात्र शिखर.
वह तो पढ़ा लिखा विचित्र
नहीं गया पाठशाला.
गहरी गंगा की में
उसने पढ़ा शान्ति-पाठ.
आकाश ने दिया ज्ञान .
मछलियों से संगीत सीखा.
चक्रवर्ती को अपने प्यार से जीता.
तमिल कवितायें -हिंदी में अनुदित கவி ---எழில் வேந்தனின் வெளிச்சங்கள் கவிதைத் தொகுப்பின் ஹிந்தி மொழி ஆக்கம்.
क्या तुम एक विश्वविद्यालय हो ?
मैंने कहा -मेरे अश्रुओं में
असीमित घनमीटर की वेदनाएं हैं.
तुम ने अपने तकनीकी हाथों से
स्पर्श करके
उनको बहा दिया.
देह भर आतंरिक चोटें है तो
तूने अपने स्टेतसस्कोप अदरों से
जाँच की तो चोटों का दर्द नदारद.
मैंने कहा -मेरा ह्रदय पारेजैसा है
किसीसे चिपकेगा नहीं.
तुमने अपने पिपेट नयनों से चूस लिया.
क्या तुम अपनी रसायिनिक जांच पूरी कर चुकी हो.?
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माँ टेरसा.
गंदे आदमी भी ,
माँ के हाथों से सुन्दर बन गए.
रोते रोगी ,कुष्ट रोगी
माँ के रिश्तेदार बने.
कीड़े के घाव धोने
मुस्कराहट के फूल बनी माँ .
भूमी में नई चांदनी छिडकी
चाँद बनी.
ठुकराए घृणित लोगों के
मन में मधुरस बनी.
पवित्र नारी बन
भूमि पर चलती -फिरती
विश्वास की लौ बनी.
उनके प्यार का पात्र बनी .
दरिद्रता की क्रूरता के हाथों में
कष्ट सह्नेवालों को हर्ष की वर्षा बनी.
कूड़ेदान में पड़े अनाथ बच्चों की माँ बनी
सभी अनाथों को पूजनीय बनी.
आंसू पोंछने के कर बनी
प्यार ही ईश्वर , केसंदेश
माँ की ज्योति को
ह्रदय में प्रज्वलित करेंगे.
vruddhaavastha
वृद्धावस्था
अवस्थाएँ चार तो
बालावस्था में अवलंबित ,
जवानी में वीर धीर गंभीर
जवानी का जोश.
प्रौढावस्था एक तरह का ढीलापन
वृद्धावस्था तो बैठकर सोचना
कैसा था गुजारा हुआ ज़माना?
हम ने क्या सोचा ?
हमने क्या किया?
हमने कितना कमाया ?
कितना भोगा ?कितना त्यागा?
अच्छे कितने ?बुरे कितने ?
कितने को लाभ पहुँचा?
कितने को बुरा/
कितना प्यार मिला? कितना नफरत ?
कितना खोया?कितना पाया?
कितनी सम्पत्ती जोड़ी ?
कितनी छोडी?
कितनों को छेड़ा?
कितनों को छोड़ा?
इतने हिसाब -किताब ?
उठने का बल नहीं ?
घुटने के बल सरकना भी दुर्बल.
विचारों की तरंगें तो उठती रहती है.
जब तक साँस,तब तक आशा..
झुर्रियों का चेहरा ,
हाथों का कम्पन
पर विचारोंके ज्वार -भाटा
यही है विरुद्धावस्था वृद्धावस्था में.
Monday, December 1, 2014
तमिल कवितायें -हिंदी में अनुदित கவி ---எழில் வேந்தனின் வெளிச்சங்கள் கவிதைத் தொகுப்பின் ஹிந்தி மொழி ஆக்கம்.
प्रिय दोस्त,
नमस्ते. मैंने जो तमिल की कवितायें हिन्ढी में लिखी है ,भेज रहा हूँ .कृपया उसमें गल्तियाँ या
अन्य कोई गल्तियाँ हो तो सही करके अपने विचार भी लिखना.
कोई हिंदी प्रांत वाले तमिल सीखना चाहें तो SBM SCHOOL फेस बुक में देखिये.और दोस्तों को भी बताइए.
कविता
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१. प्रात:काल
क्या यह सुगन्धित हवा है ,
जो श्वास को करती है स्वच्छ .
क्या यह तम दबानेवाले
पंकज जल में भीगे पाद हो.
क्या यह क्षितिज में उगे ,
तडके के द्वार पर .
संगृहीत खुशबू है ?
सोर्योदय से ज्यादा
मैं तुझसे करता अति प्यार.
ज़रा सा समय ,
लेकिन मेरेलिए
रोमांचित समय.
बिस्तर के कब्र में
अस्थायी नींद से
हर दिन जीवित होते समय
तू ही अपने मृदु होंट से
चूमकर जगाते हो . ..हे प्रातःकाल.
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२. पोंगल -तमिल त्यौहार
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नए जीवन में उमड़ पड़े हर्ष
यह तो त्यौहार अति मधुर.
इस पर्व पर बधाई देने
करों मैं कविता लेकर आया हूँ.
कर मिलाता हूँ.
यह तो पर्व पोंगल का ;
अर्थात हर्ष उमड़ने का.
परिश्रमियों का इच्छित त्यौहार.
फसलों में हरियाली
अपने धान्यो की दृष्टी फैलाकर
दिवाकर को धन्यवाद देने
मेहनतियों का सांस्कृत इच्छित त्यौहार.
यह त्यौहार है किसानों का ,
जोत-जोतकर भूमि को,
परिश्रम के फ्ल्स्वूप
रंग-बिरंगे फूलों से भरा दिया.
रंगीले त्यौहार.
हल का महत्त्व तो बैल के कारण
अतः बैलों की पूजा का त्यौहार.
पालतू जानवरों के लिए
भोज का त्यौहार.
भूख मिटाने पाक-क्रिया में लगी ,
भोजन लाई महिलाओं का त्यौहार.
दिल में पनपने वाले प्यार ,
खेत में उगनेवाले फसल
दोनों की रक्षा में लगी
कन्याओं का त्यौहार ;
यही एक त्यौहार
मेहनती ही इसकी उत्सव मूर्तियाँ.
ये तो आँखों देखी गवाहें .
दिल में जो यादें हैं
उनकी तो कुछ करेंगे
निदर्शन सत्य बातें.
इन गन्नों के मीठापन के लिए
रासायनिक नमकों के साथ ,
पसीने के नमक भी तो
डालने पड़ते हैं.
मिट्टी खोदते समय
कुडताल की चोट तो
पैरों पर भी पड़ती हैं.
जल सहित खून की धारा भी तो
मिलकर बहती है.
आज इस संभव को भी सोचेंगे दिल में.
परिश्रमी लोगोंके कौशल के
पुरस्कार स्वरुप
भूमि माता फूल को
प्रसवित करतीहै.
सूर्य ताप की उपेक्षा करके
पसीने में तरकर
किसान क्यों कठोर मेहनत करता है?
मन को आनंदप्रद इस हर्षोल्लास पर
आप से एक निवेदन करता हूँ ---
मेहनती किसान है साथी हमारे.
उनको मुफ्त में कुछ देने की
नहीं ज़रुरत.
केवल आप उसको उचित इज्ज़त दें .
तभी भू -देवी खुश होगी.
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3.
स्वतंत्रता दिवस -
स्वर्ण जयंती -वीरों को प्रणाम
********************
स्वतंत्रता देवी के गर्भ गृह में
आराध्य दीप के रूप
जन्मे भारतीयों.!
पूरब के अन्धकार को
मिटाने भगाने
लाठी लेकर भारत भर घूमे
महात्माओं,!
एकाधिपत्य के शव-संदूक के लिए
अपनी हड्डियों से कील बनाए
पौरुष सिंहों !
जब जब स्वतंत्रता के दीप
सर्दी -गर्मी में बुझने के थे
तब तब अपनी रक्त धारा बहाकर
स्वतंत्र दीपों को प्रज्वलित कर
प्राण दिए शहीदों!
स्वतंत्र की मान मर्यादा
उड़ते समय
जहाज चलाकर
मान की रक्षा को किनारे लगाये
स्वाभिमानी महानिभावों.!
राष्ट्रीय झंडा फहराने
अपने को फांसी पर चढ़ाए
फांसे के रस्से को चूमे
वीर त्यागियों!
अपनी वीरता भरी कविताओं से
अग्नी कविताओं को उगले ,
एटटायपुर के {भारतियार }
ज्वालामुखी कवितायें !
स्वतंत्रता के स्वर्णिम
मुलायम लगाकर ,
गुलाम भारत में आहुति हुए
देश भक्तों!
आजादी के श्वास दिलाने
सांस घुटकर
घोर जेल में प्राण दिए
अनजान शहीदों!
आप के वीर यज्ञों के कारण
मिले विजय फलों के
स्वाद हम ले रहे हैं.!
उन दिनों में सुरक्षा की माँग में लगे
भारत में आज
दूसरों की मदद करने
की क्षमता है,
यह देख, भौंहे चढाते हैं लोग.
आज हमारी विद्वत्ता देख
जिनतक हम पहुँच नहीं सकते ,
वे खुद आ रहे हैं .
हमारे स्पर्श के लिए तड़प रहे हैं.
हमारे खाली हाथ को
विजयी हाथ बनाए
स्वतंत्रता संग्राम के वीर त्यागियों को
वीर सलाम !वीर प्रणाम !
तड़के हुए ,सुबह होने देर नहीं.
Tuesday, November 18, 2014
ईश्वर की कृपा.
मनुष्य जीवन में ईश्वर की कृपाकटाक्ष
जप -तप से नहीं ,नाम जप से नहीं
इनसे बढ़कर एक चीज़ है
कर्तव्य पालन.
मनुष्य को ईश्वर ने दिया ज्ञान .
ज्ञान ही नहीं ,उसे क्रियान्वित करने का कौशल है.
वही गीता का कर्म मार्ग.
यह मार्ग निष्काम मार्ग .
अपने कर्म जितने ईमानदार पूर्वक होगा,
उतना ही फल ईश्वर प्रदान करेगा;
एक मजदूर को बड़े गद्दे, खोदने की शक्ति है.
एक बड़े स्नातकोत्तर व्यक्ति को तैरने में डर होता है.
उसको नदी पार करना हो तो
एक अनपढ़ को ईश्वर ने तैरने ,
नाव खेने कीशक्ति दी है.
इसी प्रकार समाज में बराबरी और एक दुसरे की माँग
मनुष्य में बड़ा -छोटा भेद नहीं होता.
वेद अध्ययन की क्षमता ,वेदोच्चारण की मार्मिक ध्वनि
सब में बराबर नहीं.
अतः ईश्वर को संतुष्ट करके
हमारी मनोकामना पूरी होनी है तो
ईमानदारी से भगवान से दिए कर्म -कौशल को
सही रूप से करेंगे तो
भगवान की पूरी कृपा मिलेगी.
जीवन की सार्थकता होगी.
Tuesday, November 4, 2014
आज कल भारत के हिन्दू लोगों में यह सवाल और व्यथा है कि हिन्दू जनता अपनी धार्मिक एकता केलिये या अपने धर्म के अपमान के वक्त एक ही आवाज क्यों नहीं उठाते. मूर्ति पूजा के पक्षवादी हिन्दू लोग गणेश चतुर्थी की पूजा और ईश्वरीय आह्वान और पूजा के बाद उस सुन्दर मनमोहक कठोर मेहनत और पांच हज़ार रुपये के खर्च में बनाई मूर्ति को समुद या नदी में फेंककर खण्ड -खण्ड करने केलिये फेंकते हैन.वह मनमोहक रूप समुद्र की ल्हरों की चोट खाकर किनारे पर लगती है्. सिर् कॅया टुकड़ा , सूंड़, हाथ पेर अलग- अलग. क्या ऐसी कोई संस्कार वेद या उपनिषद में हैं? यह तो स्वतंत्रता संग्राममें अंग्रेज़ों की नज़र बचाने शहीद बॉल गंगाधर तिलक ने जुलूस निकाला था. इसका अंधानुकरण आजादी के बाद भी हो रहाहै. चेन्नई में मात्र 6,500 मूर्तियाँ समुद्र में फेंकी गयीं हैं. उनका मूल्य एक करोड़ से ज्यादा. अलावा इसके पुलिस की सुरक्षा, भय-आतंक,मार-पीट अशान्ति अलग. कैसे एक स्वर हिन्दू उठाएंगे.?
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