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Wednesday, October 7, 2020

 


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  • नमस्ते। वणक्कम।
    चूड़ियां भारतीय संस्कृति का प्रतीक।।
    नाम -अनंतकृष्णन।
    विधा --अपनी शैली,अपना राग।
    विषय: चूड़ियां।
    चूड़ियां आध्यात्मिक प्रतीक।।
    उनकी ध्वनी तरंगें स्वास्थ्य रक्षक।।
    दिव्य शक्ति प्रदान करनेवाली।
    कांच की चूड़ियां अति उत्तम।
    प्लास्टिक चूड़ियां सही नहीं।।
    पाश्चात्य सभ्यता अंग्रेजी स्नातक
    माथे के तिलक ,हाथ की चूड़ियां
    पहनाने को कम कर रहा है।।
    चांदी, सोने व तांबे की चूड़ियां।।
    सुमंगल के लक्षण चूड़ियां।।
    लक्ष्मी के अनुग्रह के लिए
    मानसिक शांति के लिए चूड़ियां।
    मंदिरों में देवियों को
    चूड़ियों का मेला भी।।
    मेलों में चूड़ियों की दूकाने ।
    पीले रंग आनंद प्रद।
    हरा रंग शांति प्रद ।।
    नीला रंग ऊर्जाप्रद।।
    लाल रंग समस्या ओं को
    सामने करने की शक्तिदायक।।
    नारंगी रंग विजय प्रद।
    काला रंग धैर्य प्रद ।
    लाल और हरा शुभ मुहूर्त में
    उत्साह प्रद ।
    वैज्ञानिक आधार नकरात्मक विचार
    भगाकर सकारात्मक
    विचार देने वाले हैं।।
    बुरी शक्तियों को भगाने वाली।
    नेत्र दोष से बचाने वाली हैं चूड़ियां।।
    आधुनिक फेशन ,भले ही
    चूड़ियां पहनने की प्रथा दूर रखें
    इसका महत्त्व समझाने
    ऐसे शीर्षक भी ईश्वरीय देन।।
    स्व स्वर चित स्वचिंतक
    एस.अनंतकृष्णन,चेन्नै।

Monday, October 5, 2020

 நமஸ்தே. वण क्कम ।।

रस्सी जली ऐठन नहीं गई।।

 तमिल में कहावत है

कुप्पुराविलूंतालुम मीसैयिल 

मण ओट्टलै--

अर्थात पेट के बल गिरने पर भी

मूंछ पर मिट्टी न चिपका।

आजकल के राजनीतिज्ञ पर 

इतने आरोप बारह साल के बाद 

फैसला है अपराधी।

अख़बारों में कीचड़ उछालते।

फिर भी वे चुनाव लडने तैयार।

किसने अत्यधिक कीचड़ उछाला

वही उनके साथ मिलकर 

मांगते वोट।

रस्सी जल गयी पर ऐंठन न  गई।।

मेरे दोस्त के बेटे २४ पेपर फेल।

कोराना की कृपा से सब में उत्तीर्ण।

रस्सी जल गई,पर  ऐंठन नहीं गई।

यही भाग्य की बात।

अपमानित सम्मान,

दुर्बलता में सबलता।

भाग्य भला तो रस्सी जलने पर भी  ऐंठन न गई।।

अनंत कृष्णन,तमिलनाडु के हिंदी प्रचारक ,(मति नंत)

Sunday, October 4, 2020

 आसमान -आकाश धरती -वसुंधरा

आसमान धरती से देखते हैं ,
सूर्य की गर्मी ,चन्द्रमा का शीतल
तारों का टिम टिमाना
धरती को निकट से छूकर देखते हैं।
जलप्रपात से गिरते नीर में नहाकर देखते हैं
बहती नदी में डुबकियाँ लगाकर देखते हैं
कुएँ में कूदकर तैरते हैं ,
मिट्टी के खिलौने बनाकर ,
पेड़ पौधे लगाकर ,
प्रिय पालतू जानवर को गाढ़कर
अंतिम संस्कार कर देखते हैं ,
यहीं स्वर्ग -नरक का अनुभव करते हैं
पर यहीं कहते हैं स्वर्ग है आसमान पर।
जिसे किसीने न देखा है.
बचपन का दुलार ,लड़कपन के दुलार
जवानी का दुलार ,बुढ़ापा का दुःख
दौड़ना -भागना जवानी ,बुढ़ापा सोच सोचकर आँसू
नरक तुल्य कोई कोइ खोया जवानी।
आसमान के स्वर्ग -नरक की चिंता में
जवानी का स्वर्ग -बुढ़ापे का नरक भूल
मानव तन समाजाता मिट्टी में।
आसमान धरा की चिंता कहीं नहीं
यहीं भोग प्राण पखेरू उड़जाते।
कहते हैं धरा नरक आसमान स्वर्ग।
एस। अनंतकृष्णन ,चेन्नै।

Saturday, October 3, 2020


 पीठ पीछे बुराई करते लोग।

पीठ पीछे आगे सामने 

बुराई करते लोग।

सत्य जो बोलते।

मैं हूं रिश्वत खोर।

सत्य कटु सत्य सामने बोलते हैं तो

क्या होगा?

पीछे बुराई करनेवाले अच्छे हैं कि बुरे?

मैं हूं चोर सामने पकड़ने वाले है बुरे।

पीठ पीछे बुराई 

सत्यवान  को ही करते है

सत्यवान की भीड़ अधिक।

अपने दायरे में हिंदी प्रचार।

सत्य  बोलूं तो मुझे चाहते नहीं।

मैं किसी  के पीछे चुगल खोर नहीं करता।

जो पीछे बोलते है इसकी चिंता नहीं करता।

देश द्रोही, पैसे के लिए जीनेवाले

राजनीतिज्ञ  मजहब के नाम मानव एकता तोड़नेवाले 

पीठ के पीछे  बुराई करते लोग।

मेरा भगवान श्रेष्ठ अन्य भक्त काफिर।

पीठ के पीछे बुराई करते लोग।

भगवान सब का एक है तो

इतने भगवान कैसे आए।

एक एक सुधारक एकता लाए,

उनके अनुायियों ने कितनी शाखाएं बनवाई।

ये पीठ के पीछे करते बुराई।

सत्य को बोलते ,कटु सत्य को बोलते सामने बोलते।

जो बुराई करते वे पीठ पीछे ही करते।

सत्य अटल धर्म पर आधारित।

पीठ के पीछे बुराई छल  षडयंत्र झूठे जान ।।

स्वरचित स्व चिन्तक अनंत कृष्णन,चेन्नई

Friday, October 2, 2020


यादें 

सुख दुख की बातें ।

यादों की बारात में।

नौकरी की तलाश में

हिंदी ने साथ दी; 

पर आय नहीं दी।

आत्मसंतोष।

हिंदी विरोध आंदोलन।

हिंदी का प्रचार शुरू।

रोज बिल्कुल मुफ्त में 

दस घंटे का हिंदी प्रचार।।

हिंदी कैसे आयी?

तमिलनाडु में कितने त्यागी प्रचारक।

गांधीजी के अनुययियों ने

घर घर हिंदी का प्रचार।।

मेरी मां  गोमती जी  

हिंदी के प्रचार में लगी

जब मैं उनके गर्भ में था।

अभिमन्यु ने चक्रव्यूह में घुसना मात्र सीख।

पर मैंने चक्रव्यूह हिंदी के प्रचार में

प्रवेश कर बाहर भी आना सीख लिया।

कभी कभी सोचता हूं,

प्रहलाद ने गर्भ में नारायण मंत्र का 

उच्चारण सीखा था।

मैं भी हिंदी सिखाओ का मंत्र सीख लिया।

घाट घाट का पानी पीना सुना,

मैं भी घाट  घाट का हिंदी स्नातक स्नातकोत्तर की शिक्षा ली

बी।ए। दिल्ली में एम ए तिरुपति में

बी. एड मदुरै में एम एड हिमाचल में ।

पर में अपने शहर पलनी में था।

स्नातकोत्तर तक बनने की बुनियाद शिक्षा महात्मा गांधीजी द्वारा स्थापित दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, चेननै ।

स्वाध्याय, मेरी मां भी।।

सभा के संगठक श्री ई. तंगप्पन जिसे प्रेरणा मिली।उनके बाद संगठक श्री सुमतींद्र हिंदी कवि भी

उनके काले कलूटे पतली काया से

पहली नजर में उनका आदर तक नहीं दिया।पर उनकी हिंदी  बढ़िया थी,वे एम ए थे। उस जमाने में एम.ए  बडी उपाधि स्नातकोत्तर थी. उत्तीर्ण होना आजकल की तरह नहीं,टेढी खीर था। मन में यही ख्याल आया , ये सूमतींद्र

 एम ए मैं  क्यों न बन सकता।

वे दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा से इस्टिफा करके मदुरै कालेज के प्राध्यापक बन गए।

तभी  हृदय राज नामक एक सरकारी अस्पताल के कर्मचारी हिंदी पढ़ने आए।

उनका रूप रंग भी सुमतींद्रजी के जैसे ही था। उनको उच्चारण की गड़बड़ था। मेरे पास हिंदी पढ़ने आए। यह ,वह को  यग वग ही कहते थे। एक दिन उन्होंने दिल्ली विश्विद्यालय के स्नातक प्रमाण पत्र लेकर आए कहा कि में पी. ए उत्तीर्ण हूं

।बी. ए  भी सही उच्चारण नहीं कर पाए तो मैक्यों ? मैंने उनसे पूछा दिल्ली जाना है क्या?

नहीं,तमिलनाडु के पलनी शहर से ही पढ़ सकते है,पर परीक्षा केंद्र चेन्नई है।  उनके मार्ग दर्शन में बी ए  दिल्ली विश्वविद्यालय का बी ए स्नातक बना। आर्थिक संकट के बीच।भूखे प्यासे के वे दिन।औसत बुद्धि वाले की प्रेरणा से बी ए,प्रतिभाशाली कवि श्री सुमतींद्रा से एम ए।

एम ए तिरुपति विश्व विद्यालय दस दिन परीक्षा के लिएं तिरुपति विश्वविद्यालय के फुटपाथ पर दस दस दिन।वे दुख के दिन ।पर बालाजी का पूरा अनुग्रह ।एम ए स्नातकोत्तर बनते ही सरकारी मान्यता प्राप्त विश्व विख्यात हिन्दू हायर सेकंडरी स्कूल में तीस साल की सेवा।हिंदी अध्यापक होकर प्रधान अध्यापक बनकर अवकाश।एम ए पढ़ने वेस्ली स्कूल के स्नातक अध्यापक ने मार्ग दिखाया वेंकटेश्वरा विश्वविद्यालय में केवल सौ रुपए में निजी रूप में एम ए पढ़ सकते है।

दो साल के लिए सौ रुपए।

मेरे प्रयत्न बालाजी श्री वेंकटेश्वर का अनुग्रह प्रत्यक्ष दर्शन ये यादें दिव्यात्मक ।।मेरे इन प्रेरकों को भूल नहीं सकता।

स्वरचित स्व चिन्तक 

तमिलनाडु का हिंदी प्रेमी प्रचारक 

एस.अनंत कृष्णन (मतिनंत)