Monday, July 9, 2012

साधुता16

बीसवीं शताब्दी  में तमिल  समाज को  ई..वे.रा  ने आमूल  परिवर्तन किया।.उस महान को यह कुरल बहुत पसंद था।
वल्लुवर  के "साधुता" शीर्षक  का दूसरा  कुरल था ---" यदि   दुःख को ही दुःख देने का साहस हो जाएँ ,तो इस संसार में  कोई   दुःख न  होगा।

कुरल:- इदुम्बैक्के कोल्कलंग  कोल्लो कुदुन्पत्तई  कुत्र मरिप्पानुडम्बू।


  अपने परिवार को दुःख से बचाने के लिए जो कोशिश करता है,  क्या वह कोशिश   दुःख का ही कैदकर रखनेवाला बर्तन हो जायेगी?? नहीं।. वह तो सुख का भण्डार-गृह हो जाएगा।.

हर एक नागरिक का फर्ज़ है , अपने परिवार की उन्नति करना।.वैसे सब के सब  आगे बढ़ेंगे  तो  देश आगे बढेगा। एक देश या संसार  का छोटा -सा  अंश  परिवार है।.बड़ा  अंश देश होता है। अतः देश की उन्नति का बुनियाद  परिवार है। अतः वल्लुवर परिवार की उन्नति  पर जोर  देते हैं।.

It  is  only  to suffering  that  his body is exposed  who undertakes  to  presence  his family from evil.
  माँग  के बाद  का शीर्षक  है  मांगने का भय। यह दूसरों से माँगकर  जीने  का जो भय है ,वही  मनुष्य को बड़ा बनाता  है। अतः वल्लुवर ने उसका उल्लेख बड़ी गंभीरता के साथ किया है।

मर्यादा  नष्ट करनेवाली  "माँग "(दूसरों से भीख  माँगकर जीना))के  लिए डरना  ही मांगने (भीख)) का भय है। याचकता  का भय  ही मनुष्य को बड़ा बनाता है।


इड  मेल्लाम  कोल्लत  तकैत्तेयिड  मिल्लाक  कालुमिर  वोल्लाच  साल्बू।(कुरल)

वल्लुवर के  महान  सम्बन्धी  विचारों के झंडों में ऊंचा झंडा  "मांगकर  जीने के भय का झंडा।"

जब एक खोटा  सिक्का भी हाथ में नहीं है,  उस हालत में  भी दूसरों से बिना  माँगे  जीने का गुण अतुलनीय  और बेजोड़ है।उस गुण  के  कारण  जितना बड़े और महान बनते है,उससे बड़ा बड़प्पन कुछ नहीं है। उस  बड़े नाम को भरने  संसार में  बड़ा भण्डार--गृह  नहीं  मिलेगा।.उतना महत्त्व  पूर्ण है 

 "याचकता का भय  " शीर्षक  कुरल।.

Even the whole world  cannot  sufficientlt praise the dignity that would not beg  even in the midst of destitution.--G.U.POPE.
भीख  माँगना   का अनुवाद  "begging" कहने  से  "the dread of mendicancy" ही ठीक  मानते हैं।.

वल्लुवर खुद    याचकों   से  याचना  करते   हैं। उनकी माँग  दिल पिघलनेवाली  माँग  है। उनकी माँग  के अनुसार हमें  भी  याचना  करना  आवश्यक हो जाता  है।खुद याचक बनकर, दृष्टांत  बननेवाले  वल्लुवर ही     उल्लेखनीय महान हो सकते है।

वह कुरल है---जो माँगकर  भी  नहीं देता, उनसे मत माँगिये ,जितना भी अत्यंत तकाजा हो।.---यही  वल्लुवर की मांग है।.ऐसे महान संत संसार में विरले ही मिलेंगे।

कुरल---इरप्पन  इरप्पारै   एल्लाम इराप्पिं  करप्पार   इरवन मिन  एन्रू।

  I  BESEECH ALL BEGGERS  AND SAY," IF YOU NEED TO BEG, NEVER BEG OF THESE WHO GIVE UNWILLINGLY."

मनुष्य-प्रेमी  वल्लुवर ने  एक सामान्य  व्यक्ति  को  महान  बनने  का  मार्ग  दिखा रहे हैं।.यह साधुता या
महानता का शीर्षक  को  आगे रखना है। इसके पहले जो आठ अध्याय है, वे सब  महान बनने  का  सहायक शीर्षक  है।.

महान बनने  के लिए चार आधार स्तम्भ  है --प्यार, लज्जा, अतिथि--सत्कार,दया, सत्य  आदि।

इन  पाँच  गुणों  को अपनाने पर ,पालन  करने  पर  महान बनने  में  कोई बाधा नहीं होगी। लज्जा  का  मतलब

है, भूल करने के लिए लज्जा का महसूस करना।

 प्यार,लज्जा,,दया,अतिथि--सत्कार,सत्य  आदि गुणों में एक कम होने पर भी महान बनने  में पूर्णत्व  नहीं होगा।.यह तो स्पष्ट  बात  है।

कुरल---अनबू ,नान   ओप्पुरावु, कन्नोट टम   वाय्मैयोडु   ऐन्तु  साल्बू  ऊन्रिय तून .

   हम जिसको  महानता  रुपी  समुद्र का  किनारा  कहते  हैं,   वे   अन्य  समुद्र  के किनारे  के  भंग होने पर भी   अटल रहेंगे ।

कुरल:  ऊली  पेयारिनुम ताम पेयारार सान्रान्मैक काली एनप पदुवार।

वल्लुवर ने साधुता का महत्व्   बढ़ाने  समुद्र  शब्द  का प्रयोग किया है। सारा  संसार महानों  के विरुद्ध  होने  पर भी महान  अपने गुण और व्यवहार  को नहीं बदलेंगे।
  PEOPLE  WHO  ARE NOBLE  IN CHARECTER  AND BEHAVIOUR WILL NOT CHANGE  EVEN  IF THE WHOLE  WORLD  TURNS AGAINST THEM.

वल्लुवर ने जो साधू और महान को बनाया, उससे  बढ़कर कोई  महान को बना नहीं सकते।यह तो ठीक है न?








Sunday, July 8, 2012

15.साधुता





लज्जाशीलता के गुण को वल्लुवर ने बड़ी सूक्ष्मता से उल्लेख किया है।

.अणु को तोड़कर सात समुद्र के पानी को भर दिया है वललुवर ने अपने कुरल में।

.अर्थात कुरल में अत्यधिक बातें हैं।
.सभी  जीवों  के  प्राण  का केंद्र स्थान शरीर है।
.लेकिन योग्यता  ने   लज्जा नामक अच्छे गुण को अपने निवास स्थान बनाया है।
योग्यता को जैसे हम आँखों से देख नहीं सकते, वैसे ही लज्जा शीलता को।
योग्यता के लिए अदृष्ट लज्जाशीलता ही केंद्र स्थान है।
महानता के सारे कुरल को पढने से ही लज्जशील्ता की व्याख्या पा सकते हैं।.

अनुवाद करनेवाले लज्जा शीलता का अनुवाद यों ही किया है. --CONSCIENCE OR SHAME.

A CONSICIENCE IS ESSENTIAL FOR DURING NOBLE DEEDS JUST AS BREATHING IS ESSENTIAL FOR THE FUNCTIONING OF THE BODY.
बद कर्म करने से शर्म मह्सूस करनेवाले अपने को शर्म-शीलता से बचाने के लिए जान तक तज देंगे।.वे अपने प्राण की रक्षा केलिए लज्जाजनक काम नहीं करेंगे।.
कुरल:-  नानालुयिरै   तुराप्परुयिर्प  पोरुट टाल    नान्डूरवार  नानाल पवर।








14 //उत्कृष्ट साधुता



जो दूसरों को देता   नहीं  और खुद  उसका  उपभोग  नहीं  करता,  वह करोड़ों  के अधिपति  होने पर भी   गरीब  ही है।.

नाल-अडियार  भी  वल्लुवर के इस विचार   का  समर्थन  करता है।   वह कहता है---अज्ञानी  धन को अपना मानकर  खुद भी उसको नहीं भोगता और दूसरों  को भी नहीं   भोगने देता।.
।.वह धन को  अपना   ही  मानकर आनंद का अनुभव करेगा।
.लेकिन उस धन से    वह  सुख नहीं  पायेगा।.

महानों  के बुनियाद गुण ही नागरिकता के  गुणों को   जानना-पहचानना  होता   है।



साधुता

 नागरिक के कर्तव्य  जानकर  अपने  नागरिकों की उन्नति  के कार्य  में लगना  ही  बड़े लोगों का काम होता है।

वल्लुवर ने इस अध्याय  में जो कुछ  बताया  है , बड़े ही गंभीरता  से सोचने  समझने  का विषय है।.उसका  हर  एक  कुरल   अर्थ की चरम  सीमा  पर पहुँच  गया है।.उससे  मालूम  होता  है  कि  उनका मन नागरिक -सेवा  में  अधिक जुडा  हुआ  था।

देश के नागरिक को बेकार रहना  उचित  नहीं  है। हर  एक युवक को अपने परिवार को उन्नत करने केलिए  तन-मन -वचन से कठोर  परिश्रम  करना  चाहिए।


  इस  विचार के कारण  इस  अध्याय  में  अति विशेष ध्यान  दिया है वल्लुवर  जी  ने।.

पावानर  ने भावावेश में  वलूवर  के बारे में  कहा  है---व्यापक दृष्टिकोण  से नागरिक के कर्त्तव्य  को समझाने  की  सेवा करनेवाले  एक मात्र नेता थे  वल्लुवर।

अपने परिवार की दयनीय  स्थिति  देखकर  लज्जित  होकर  साहस  पूर्वक  युवक कुछ करने  के लिए   प्रेरित होता  है।.
इसीलिये नागरिक -कर्म और कर्त्तव्य  शीर्षक ,   लज्जाशीलता  अध्याय  के बाद  आता  है।.

जो अपने नागरिकों की प्रगति चाहते हैं  या  प्रगति   करने  के अधिकार पर रहते हैं,
यदि   वे समय  पर ध्यान  न देकर आलसी  से  रहेंगे तो  नागरिकों  का पतन होगा।
अतः  जो अपनी जाति  की प्रगति  चाहते  हैं,
उनको समय पर ध्यान न देकर,   सदा सर्वकाल अपने देश की सेवा में  लगना  चाहिए।
भूख,,मान ,काल आदि  पर ध्यान  न देकर  काम करना चाहिए।

कुरल:  कुडिसेय्वारुक्कू  इल्लै   परूवं   मडीसेय्तु  मानंग करुतक  केडूम .


THE  PRESENT MOMENT IS THE RIGHT TIME FOR  ONE TO DO SO SOMETHING FOR THE GOOD OF THE  COMMUNITY WILL SUFFER OF THE PROCRASTINATES.

13. साधु//उत्कृष्ट

महान  या बड़े आदमी  को कृतज्ञ रहना चाहिए।
.कृतघ्नता   गरीबी  का सूचक है।
 अपने पास की संपत्ति को गाढ़कर  रखना ,   अपनी संपत्ति से लाभान्वित न होना भी   गरीबी है।

धन को बिना भोगे छिपाकर रखने  से  मनुष्य  का बड़प्पन 50% घट  जाता  है।
.इसे अंग्रेजी में " " hoarded wealth ,wealth with out benefaction ""
कहते  हैं।

यह गाढ़कर रखे हुए धन किसीको लाभ  नहीं  देगा।
 जिसने  कमाया,  उसको भी लाभ नहीं;  दूसरों  को भी।.
अगुणी  को मिले धन ,व्यर्थ  हो जाएगा।

वल्लुवर  ऐसे कंजूस  व्यक्ति  पर अपना  क्रोध  प्रकट  करते हैं।.

अपनी  कमाई  बड़ी संपत्ति  को   अपनी  कंजूसी  के कारण  जो  नहीं भोगता ,वह बेजान  व्यक्ति  है। उसके  लिए  कोई  काम नहीं  है।  धन होने  पर भी  वह दरिद्र  ही  है।.

कुरल:-वैत्तान  वाय  चानर  पेरुम्पोरुल  तुन्नान   चेत्तान  सेयक्किडन्त  दिल।


the one who  hands  his enormous  wealth  without  enjoying or utilizing it productively  will  no live a good life; he is as good  as dead.

नालडियार  कहते  हैं----जो कंजूसी के कारण खाता--पीता  नहीं, वह संसार  में  नहीं  चमकेगा।
 यश प्राप्त करने योग्य  काम  नहीं  करेगा।  वह  दूसरों  का  दुःख दूर  नहीं  करेगा; दान नहीं देगा।
अपने धन  छिपाकर उसकी  सुरक्षा  के ध्यान में ही  रहेगा।
उसके बारे में यह    धारणा  निश्चित हो जाता  है  कि
   वह सबकुछ पाकर भी सब  कुछ  खोया हुआ आदमी  बन   जाता   है।.

नालाडीयार :

उन्नान  ओळी  निरान उंगु पुकल  सेयान  तुन्नरुंग  केलिर  तुयर कलै यान  . कोन्ने
वलन्गान   पोरुल  कात्तिरुप्पानेल  ,अ आ
इलान्दान एन्रू एन्नाप्पदुम।

वल्लुवर  ने  कहा  है --किसी एक   की  भीख  मांगना मात्र   हीन  कार्य  नहीं  होता  ; कमाए धन को दूसरों को  न  देना  भी  हीनता पूर्ण जन्म  है
.वह दरिद्र जन्म  का प्रतीक  है।
कुरल:  पोरुलाना  मेलला  मेंरीयातिवारू   मानाप  पिराप्पू .

HE  WHO  KNOWS  THAT  WEALTH  YIELDS  EVERY  PLEASURE  AND  YET  IS SO  BLIND AS TO  LEAD MISERLY  LIFE  WILL  BE  BORN   A  DEMON.

यही  वल्लुवर के कुरल का केंद्रीय  भाव  होता  है।

धनी  लोगों को  जानना  है---अति तेज़ से प्राप्त धन  जल्दी चला  जाएगा।(नाल अडियार )
धन का लाभ   परायों  को  देना  ही   है।

कुएँ    का पानी सींचते -सींचते  बढेगा ;(धन देते -देते बढेगा ही).

इस जन्म का दान   दूसरे  जन्म में भी  फल  देगा।.

तिरुवल्लुवर  कृतघ्न  धनी  के  बारे में कहते -कहते  उन के लिए कठोर शब्द  का प्रयोग  करते  हैं।.
जो अपना यश  न  चाहकर  धन  कमाने   में  ही लगते  हैं, उनका जन्म भूभार  हो  जाता  है।.

ईटट  मिवरिसई  वेंडा  वाडवर   तोटर  निलक्कुप  पोरै .(कुरल)

वे आगे धनी  लोगों  को  उपदेश  देते  हैं--""-जो मांगते हैं,,उनको देने से ही संसार में नाम मिलेगा।"".

इस मानुष-- जन्म में  देना और नाम पाना ,इससे बढ़कर  कमाना और पारिश्रमिक रकम  और   कुछ नहीं  है।.

अपयश  प्राप्त  करके  यश को अप्राप्त करना संसार  के लोगों केलिए दुष्कर्म  है।.

इतनी बाते, उपदेश  सुनकर,,जानकर,,समझकर  भी  जो मनुष्य  केवल धन  जोड़ने की लालसा में ही
संसार  में जीता है ,वह संसार के लिए एक बोझ  मात्र  है।

PEOPLE  WHO  HEARD THEIR WEALTH,  RATHER THAN  EARN  HONOUR  BY DOING THINGS FOR THE GOOD OF THE LESS FORTUNATE ARE A BURDEN TO THE WORLD.

 कुरल   1. उरैप्पारुरैप पवई येल्ला मिराप्पार्क कोन  रीवार मेनिर्कुम पुकल।
             2.ईतल   इसैपदा वाल्ट लतु   वल्ल   तूतिय  मिल्लै  उयिर्क्कू 
             3.वसैयेंब  वैयात्तार्क केल्ला मिसै  येंनु  मेंच्चम  पेरा  विडीन.
             4.वकैयिला  वन्पयन  कुन्रू  मिसैयिला  याक्कै  पोरुत्त  निलम।
उपर्युक्त  चारों कुर्लों में वल्लुवर ने दान  और परोपकार का महत्व बता चुके हैं।










Saturday, July 7, 2012

12साधु /महान/ उत्कृष्ट आदमी

 मनुष्य  केलिए   हँसी-खेल   में    भी  अपमान  दुखदायक है।.इसलिए  अन्यों के स्वभाव  जानकर   बर्ताव  करने वाले , दुश्मन से भी मधुर व्यवहार  ही  करेंगे। 

DO NOT BEHAVE DISRESPECTFULLY EVEN  AS A JOKE;WELL NURTURED COURTEOUS EVEN TO THEIR ENEMIES.
 संसार की दोस्ती गुणी  से होती है।अतः  गुण -शीलता स्थायी रूप में लगातार आता  रहता है।
संसार की गतिशीलता   गुण  और अच्छी चाल--चलन में ही है।G.U.POPE--THE  (WAY OF  THE) WORLD SUBSITS   BY CONTACT  WITH THE GOOD; IF NOT ,IT WOULD BURNS ITSELF IN THE EARTH PERISH.
बड़प्पन  और महानता  को बल देनेवाले  गुणों में  एक है  लज्जाशीलता।  जिसमें  वह गुण  है,,उसके लिए वह गुण  एक कवच  है।.वह कवच स्त्री  हो या पुरुष  दोनों के लिए आवश्यक  है।

उच्च  कुल में जन्म  लेकर  , उस  का    काम         मान, बड़प्पन,  योग्यता,  आदि के अनुकूल  न हो ,  तो    उसे करने में  लज्जित  होना   लज्जाशीलता  है।जो कार्य उचित नहीं है, उसे करने केलिए लज्जित होना है।.
मनक्कुडवर  का कहना  है---धर्म,,अर्थ,,काम आदि में दूसरों की निंदा का पात्र न बनना लज्जा शीलता है।.
लज्जा शब्द  केवल  स्त्रियों  केलिए मात्र नहीं ,परुषों केलिए भी  है।. तिरुवल्लुवर अर्थ अध्याय में  लज्जाशीलता पर भी अपना विचार  प्रकट करते हैं।

परुषों  की लज्जा शीलता  उसके  कर्म के कारण होती है।  नीच कर्म के कारण पुरुषों को लज्जित  होना पड़ता है।
 स्त्रियों   को  मन,शरीर ,भाषा आदि  के नियंत्रण  के  कारण  लज्जा होती  है।कुल--स्त्रियों  में ही यह गुण रहती है।.
पुरुषो की लज्जा शीलता बुरे कर्म करने से होती है।.लेकिन स्त्रियों  को कई कारणों से लज्जा होती  है। स्त्रियों  को परिचित पुरुषों से बोलने ,पुरुषों की सभा में बोलने  आदि के कलिए भी लज्जा होती है।.लेकिन वेश्यावों के लिए यह गुण  अपवाद है।


11.साधु /महान/ उत्कृष्ट आदमी




बड़े लोगों को और बल प्रदान करने का अध्याय है  बड़प्पन  या महानता।.इसकी  व्याख्या  यों  दे सकते हैं-----
अपूर्व काम करना;अहम् रहित रहना; दूसरों पर आरोप  न लगाना आदि बड़ों  के  श्रेष्ठ गुण होते हैं।.
ज्ञान कौशल ,अच्छी  चाल--चलन ,अनुशासन आदि के कारण  जनता  या नागरिक,  पानेवाला यश या उच्चता ही   साधुता  //बड़प्पन //महानता  है।.

इस अध्याय का ठीक आधा  भाग   बड़प्पन  शब्द से शुरू हुआ है।.वल्लुवर बेकार लोगों के  बड़प्पन या आत्म--स्तुति के   बड़प्पन  के  बारे में नहीं कहते;वे स्वस्थ   बड़प्पन  अर्थात बड़े नाम के  बारे में कहते हैं।.वे जो कहते हैं ,वे सब के लिए   अनुकरणीय  है।.
  आज संसार में  नए जोश के साथ सब को प्रोत्साहित करने वाला  बोलबाला  एक  कुरल  बड़प्पन  अधिकार  में है।.

सभी लोग जनम  से एक  ही  होते हैं।.हर एक  का वर्गीकरण  उसके कर्म या पेशे के आधार  पर होता  है। कर्म  या पेशे  के कारण ही  एक बड़ा  या छोटा  बनता है।.

पिराप्पोक्कुम  एल्ला  उयिर्क्कुम  सिराप्पोव्वा    सेय्तोलिल  वेटरुमैयान .(कुरल)

बड़े लोग  अपूर्व  कम  करेंगे;उनके   कर्म में एक चमत्कार  रहेगा।.छोटे लोग ऐसे काम करने में असमर्थ  होते हैं।.

सेयर्करिय  सेय्वार   पेरियर  , सिरियर   सेयर्करिय  सेय्कलातार।(KURAL}

सामाजिक  क्रांतिकारी   और ,विचारों  की  क्रांतिकारी    एक  सज्जन  ने    कहा था , अनुशासन सार्वजनिक  संपत्ति है ;
भक्ति   व्यक्तिगत  सम्पत्ति  है.
वे    जिंदगी  भर   अपने समाज सुधार--कार्य में लगे रहे, वे बड़े  बने।.   वे  है   ई..वे. रामासामी .  वे  अपने  अपूर्व  सिद्धांतों के  कारण  बड़े बन गए।.उनके  नाम  के साथ  बड़ा (पेरियार)  शब्द  जुड़  गया।.

तिरुवल्लुवर  बड़प्पन  की महत्ता  को  दूसरे  एक  कुरल में   जो अमृत  के  सामान है,बताया है।.

पतिव्रता  नारी के समान  पत्निव्रता  पति भी  होना चाहिए।.

वल्लुवर  पतिव्रता  नारी केलिए  कुल--वधु  शब्द  का  प्रयोग  करते  हैं।
.एक  की  महिला  शब्द  और आम महिला  शब्द  से  कितना बड़ा शब्द  हैं।.ऐसा प्रयोग  वल्लुवर  ही  कर सकते  हैं।.

पतिव्रता धर्म के समान  पति को पत्नी व्रता   बनकर   जीने में   ही   बड़प्पन हैं।.

कुरल:  ओरुमै  मकलिरे पोलप  पेरुमैयुं   तन्नैत्तान   कोंडॉ लुकिनुंडू .

self -esteem, like chastity, stems  from  self -respect.---एक ज्ञानी।.

  उत्कृष्टता  या बड़प्पन की शोभा बढ़ानेवाला   दूसरा   अध्याय  है---गुण  ;शीलता।
।.महानता ,बड़े पद ,ऊंचे  आदमी होकर ,  ऊँचे   गुणों   से  न  हटकर  , दूसरों का स्वभाव  जानकर  उसके अनुसार चलना ही   गुण-- शीलता   है।

नेय्थर कलि  नामक  ग्रन्थ  में  नम्रता  के बारे में लेखक  ने कहा  है --मनुष्य को अपनी -सीख  के अनुसार चलना ही गुण-शीलता है।

हर एक व्यक्ति  को   सहज  सम्मान   भाव   और  दृष्टी  से  देखना गुणशीलता   है।.
  .देखने में सरल  दीखना  ही गुणी का  महत्त्व  है।   इसे केवल  वल्लुवर ने   मात्र   नहीं  कहा  है; धार्मिक  ग्रंथो  में  वल्लुवर  के  पहले    ईश्वर  के बारे में भी बताया गया  है।

एन्पतत्ता  लेय्तलि तेनब  यार  माटटुम   पानपुडमै  येंनुम वलक्कू।(kural)tamil)


IF  ONE  IS  EASY  OF  ACCESS  TO ALL,IT  WILL BE EASY  FOR  ONE TO  OBTAIN  THE
VIRTUE  CALLED  GOODNESS.--G.U.POP


10 साधु /महान/ उत्कृष्ट आदमी



वल्लुवर  ने    कहा  है --सब से  विनम्रता  का व्यवहार  करना चाहिए।वे ही धनी  के धनी  हो सकते  है।

कुरल:एल्लोरुक्कुम  नन्राम  पनितल  अवरुल्लम  सेल्वर्क्के  सेलवम  तकैत्तु .

जो भी अच्छे विषय हो, गरीबी में बताने पर वह  महत्व पूर्ण नहीं होगा।
.धन -सम्पन्न दिनों में निम्न विषय बोलने पर भी प्रशंसा होगी।
.गरीबी  में अनादर  ही  होगा। इसलिए संपत्ति बढ़ने पर विनम्रता आवश्यक है।.
.दीनावास्था  में गर्व से रहना चाहिए।.यही वल्लुवर की सीख है।.

कुरल:--नर पोरुल  नन्गुनर्न्तु   सोल्लिनुम  नाल्कूर्न्तार   सोर्पोरुल  सोर्वु  पडूम .


IN GREAT PROSPERITY HUMILITY IS BECOMING;DIGNITY,IN GREAT ADVERSITY.-G.U.POPE.
तिरुवल्लुवर  के  तिरुक्कुरल, तमिल  वेद  है।.उस में  मनुष्य--कुल के जीवन सुचारू रूप से  चलने  का मार्ग -दर्शन मिलता है।.
 उनके कुरलों  में साहित्य--स्वाद भी मिलता है।.

पेड़  ने  छिपाया  है बडे  हाथी को। हाथी ने  छिपाया  है पेड़.
वैसे ही  हम वल्लुवर के उपदेश मात्र पढ़ते हैं।.उनके साहित्य स्वाद जानने-समझने  कुरल को नहीं  पढ़ते।.अतः उस तमिल वेद  के रचयिता वल्लुवर  का साहियिक व्यक्तित्व  समझ नहीं पाते।.

कई कुरलों में  शब्द--शक्ति का प्रयोग, साहित्यक ज्ञान,कई प्रकार के अलंकार  आदि कौशलों में वल्लुवर सम वल्लुवर ही है।.यह पहाड़ पर जलाए दीप--समान दीखता है।.

उन्होंने  "कुनरू "शब्द का बार--बार प्रयोग करके एक कुरल लिखा है।.

कुनरिन  अनैयारुम  कुनरुवर  कुनरुव   कुनरी यानैया सेयिन..(तमिल))

कुनरू  के अर्थ  है---पहाड़,,कम होना,,छोटा--सा काले और लाल रंग की  बीज।.

इस कुरल का मतलब है---पहाड़--सी कीर्ति  प्राप्त मनुष्य भी ,छोटा -सा निम्न कार्य करने पर ,अपने महत्वपूर्ण  खानदानी यश  से घटकर अपयश प्राप्त करेंगे।.अतः अति ध्यान से व्यवहार करना चाहिए।.
यह शब्दार्थ उभय--अलंकार है।.इस कुरल का अर्थ और अलंकार दोनों में गाम्भीर्य है।.

EVEN AN  EMINENT PERSON  WILL  LOOK  SMALL  IF  HE  COMMITS ON  UNDIGNIFIED ACT.

संत कबीर  के समान  वल्लुवर भी विद्वानों के प्रयोग के विपरीत  "बाल" शब्द  का प्रयोग करते हैं।. मयिर तमिल शब्द  का अर्थ  बाल है।.कविताओं   में इसका प्रयोग किया नहीं करते।लेकिन वल्लुवर ने  इसका
सुन्दर  प्रयोग किया है।.इसमें शब्दार्थ -विशेषता है।.वल्लुवर  ने  मयिर (बाल))शब्द से  शुरू करके एक कुरल लिखा है।.

बाल औरतों के लिए वर्णनीय  सुन्दर रूप है।.औरतों के बाल झड जाने पर, अपमान ही  होगा।असुन्दर होगा रूप।.
वैसे ही नीच कार्य  करने से उच्च कुल्वाले भी अशोभनीय हो जायेंगे  और अपमान  का पात्र  बनेंगे।.

कुरल:  तलै  यिनिलिंत  मयिरनैयर   मान्तर    निलैयिनी लिन्तक  कडै .

THEY  WHO   HAVE   FALLEN   FROM THEIR POSITION ONE LIKE HAIR WHICH HAS FAALLEN FROM THE HEAD.