Friday, December 5, 2014

मनुष्य जाति கவி ---எழில் வேந்தனின் வெளிச்சங்கள் கவிதைத் தொகுப்பின் ஹிந்தி மொழி ஆக்கம்.

 मनुष्य जाति 

       (तमिलनाडु में नाम के साथ जो जाति के नाम जोड़ते हैं ,उसे मिटाने के आदेश के कारण गलियों  के नाम    मिटा दिए. पर  वास्तव में जाति-भेद अभी जिन्दा है, इसपर कवि एलिल्वेंदन की कविता   का   तमिल   अनुवाद )

                          निकाल चुके हैं गलियों में लिखे 

                          जातियों  के नाम.

                       लेकिन मन में मंच बनाकर 

                        फूल की वर्षा से सजाकर  रखे हैं.

                       सडकों में लिखे जाति नाम  तो मिट चुके.
                        लेकिन घर में  दीप जलाकर 
                        आड़ में करते हैं पूजा.
                              घोषणा करते हैं 
                          जातियों को मिटा चुके हैं,
                              पर छिपकर उज्जवलित है जातियां.

                                     हमारे ह्रदय के माँस-पेशियों में 
                                     चिपककर  
                                      अशुद्धता को बना दिया गाढ़ा.
                                     भूमि में अनेक जीव्राशियाँ 
                                     वैसे ही जातियों के संघ .
                                     हम ऐसा संघ बनायेंगे 
                                    जिसमें मनुष्यों के संघ रहे.

                                    जाति संघ मिट जाएँ .

तमिल कविताएँகவி ---எழில் வேந்தனின் வெளிச்சங்கள் கவிதைத் தொகுப்பின் ஹிந்தி மொழி ஆக்கம்.

                                                        

                                                                    तीली 

    आप  तो धूल में ही तो 
    फेंकते  हैं,
   अंकुरित होकर अपना 
     तेज़   मुख दिखाऊंगा.

  सद्माएं  आकर मुझमे छेद बनाकर जाएँ तो 
मुरली  का नया रूप लूँगा.
भट्टी में डालेंगे तो 
लोहे के रूप में 
टिकाऊ  बनकर आऊँगा.
जितना चाहे उतनी मिट्टी डालिए 
मेरी जड़ों को परिश्रम का समय  आया..
मैं तो सूरज नहीं बन सकता.
कम से कम तीलीतो बन सकता हूँ न ?
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            सुम्मावंतता  स्वतंत्र 

        क्या आजादी मुफ्त में मिली?

      क्या  आजादी मिली मुफ्त में ?

     लौ से चमके गांधी जी ,
    प्रान्तों के असंख्य लोग ,
    विन्ध -हिमालय की चोटी से 
   कुमारी अंतरीप सागर  तक 
   बहे खून की धारा से  
 लालिमा  फैलकर मिली  आज़ादी.

   ताला लगाए घर में 
   गुलाम सा रहकर ,
   दासता में  मूढ़ता से 
   फंसे देश में ,
  किले  तोड़कर ,
झंडा ऊँचा करके 
 वीरावेश में लड़ी वीरांगना 
झांसी रानी की वीरता ने 
सत्य की आजादी दिलाई.

शुरू हुआ सिपाही कलह ,
वीरता झाँकी हर चेहरे पर ,
शासक गोरों के शासन हिलने में
 वही शुरुआत.

दंडी में एक यात्रा ,
धरणी  पर एक मुहर.
हमेशा त्याग की परंपरा,
दिल में रखो यह स्मरण.
गंगा-कावेरी आज नहीं 
तभी जुडी थी .
सत्य के प्यास  के वीरों से 
भारत का हुआ संगम .
बंगाल भी यहाँ  आया--
व.उ. चिदाम्बरानार और वांची सीखने ,
महाकवि भारती का संघ-नाद 
मिलकर बने तीव्र संग्राम.

द्वार सब बंदकर ,
गूलियों के भरमार से 
  कायर टयर ने 
किया अत्याचार.
गूंजी बंदूकों की गोलियां;
जालियांवाला बाग़ में 
शिशु नर-नारी,बूढ़े -बूढ़ी 
उवा-युवती सब के प्राण उड़े;
उनके रक्तों की नदी बही ;
उसी में मिली आज़ादी.
पंजाब  सिंह लाला लजपति,
के रक्त की धारा सूखी नहीं ,
वीर दिलेर   तिलक के दल 
माथे पर अग्नि तिलक रख 
 वीरा-वेश में किये संग्राम .
विदेश हुए चकित.
तभी मिली आजादी.

जहाज चलाये व.उ.चिदम्बरानार 
देख विदेश हुए विस्मित 
कोल्हू खींचे जेल में ,
तभी तो मिली आज़ादी.

शहीदों की लहरें उठी नयी -नयी,
सर्वत्र आजादी के वेद गूँज उठे,
 हवा में अग्नी ताप ;
दासता के आसमान  फटा;
गन्दगी के मेघ मिटे,
आजादी की रोशनी फैली.
क्या हमें दफना सकते हो?
समझ लो वीर शैतानो!
हम तो वीर बीज ,
बोते हो तुम!
अंकुरित फूटेगी आजादी.--
यों ही वीर गर्जन करते -करते 
भगत सिंह ,सुखदेव ,राज गुरु 
लटके फांसी पर;
उनकी निज बली से मिली आज़ादी.
कठोरता से कारवास में 
घूँस रखा वीरो को;
सांस घुटकर मरे;रोगी बने;
स्वर्णिम आजादी की चमक  के निमित्त 
हज़ारों के तादाद में संग्राम के अग्नि कुण्ड में 
भस्म हुए वीर शहीद .
भारत  की  स्वतंत्रता  के काव्य में 
ये  हैं हजारों  वीर पात्र .

माता के जंजीर तोड़ने ,
उसका झंडा फहराने ,
देश की आजादी देखने 
अविवाहित रहे;

आँखों में हज़ारों ख़्वाब ,
काल्पनिक विचारों अनेक 
रखकर जिए घन्य मान्य कामराज.
ऐसे धीरों के हठ  त्याग से 
मिली है आजादी.

गुलामी  तोड़ने ,
आजादी पाने ,
दमन नीति मिटाने 
कठोर दान भोगने ,
जेल में रहने ,
लाठी का मार सहने 
हजारो  वीर पुत्रों ने डी  चुनौती.  
अपने सिद्धांत के पक्के 
देश के शहीद पुत्रों के 
असंख्य वेदना  के  सहने से 
मिली आज़ादी की हवा.

राष्ट्रपिता अनूदित கவி ---எழில் வேந்தனின் வெளிச்சங்கள் கவிதைத் தொகுப்பின் ஹிந்தி மொழி ஆக்கம்.

            राष्ट्रपिता 

दासता अन्धकार मिटाने आये   स्वतंत्रता  त्याग के  लौ.

   हे  राष्ट्रपिता!  सडकों के किनारे पर  के लोगों  की आवाज़  सुनिए.
        बने-बनाए अलंकृत चेहरों को देखकर 
        हम  आदि हो गए हैं.
तेरे  सच्चे चेहरे  का पता लगाना ,
नहीं आसान हमारे लिए.
   निवेदन  है ज़रा दें अवकाश।

ख़्वाब के बोलपट  के कट-अवुट  के चरणों पर 
तमिल कवितायें घुटने टेक 
तपस्या करने का काल है यह.

गोरे दुह्शासन चर्चिल ने तुझे कहा--
अर्द्ध नग्न फकीर.
तुझे पांचाली बनाकर  हंसी उड़ाया.
इसीलिये  हमारे जोशीले कवि 
भारती ने  लिखा "पांचाली शपथ -उद्वेग के साथ.
उस देश -भक्त चिंगारी को 
आपने स्पष्टरूप से समझा। 
उसकी सुरक्षा की बात बतायी.
तब के नेता उस अंगारे कवि  की सुरक्षाका न सके.
हम आज इसी चिंता में है --
  क्या आज के नेता ,
हमारी आजादी की सुरक्षा बिना चोट के  कर सकते हैं.
 हम प्रतीक्षा करते हैं --
रात में मनुष्य दया से कुछ छोड़ रखें कि नहीं.
उस दिन तूने धार्मिक कट्टरता  क लिए 
अपने देह का बलिदान किया.
वह धार्मिक कट्टरता आज देश को ही बलि के लिए 
माँग रही है.
आज  
भारत माता के सर से लेकर चरण तक 
पापी धार्मिक फैलाते हैं आतंक.
    तू  तो ठीक है ,आजाद भारत में जन्म लेकर,
   स्वतंत्र  भारत में तेज़ आँखें बंद कीं।
तू ने कहा-सच्ची आजादी तभी सार्थक , तब स्वर्णाभूषणों से 
सजी महिला  आधी रात घूम अकेले घर लौट जाए.

आजकल रात में क्या ,दिन में घूमना भी 
आतंक लगता है.
ऐसे समय आना हैरान  की बात नहीं ,
कुर्तों पर भी ताला लगाने पड़ें, बटन के बदले.
 हमें डर लगता है --
देश की घटनाएं देखकर 
आजाद भारत में जन्मे हम 
गुलाम भारत में  अंत हो जायेंगे.
हम नहीं चाहते ,
हमारे नेता तेरे जैसे महात्मा बने.
मन के गवाह के अनुसार 
औसत आत्माएं  बनना काफी है 
हमारा भारत इतिहास में 
साधना की चोटी पर पहुंच जाएगा.

तर्क संगतज्ञान கவி ---எழில் வேந்தனின் வெளிச்சங்கள் கவிதைத் தொகுப்பின் ஹிந்தி மொழி ஆக்கம்.


तमिल कवितायें கவி ---எழில் வேந்தனின் வெளிச்சங்கள் கவிதைத் தொகுப்பின் ஹிந்தி மொழி ஆக்கம்.

                                 प्रेम  के दास.
          
  केवट( गुह )--मेहनती वर्ग का प्रतिबिम्ब ;

घृणित  वर्ग के नए प्रतिनिधि.

विधि के कर उसको दूर रखा .
पर वह है कथा-पात्र 
नदी के जल में भीगा.

नीच कुल में जन्मा वह ,
रवि कुल का सेतु बना.
बिजली -सा  चमका.

चमेली के खेत में 
उदित मोती वह.

चन्दन के वन में 
घुटने के बल बहे 
सुखद हवा.

कुल के कारण हटा रखा पर 
वह है हीरा जंगल का  काला.

तम को दिया अपना काला रंग.
वह तो जंगल का गुलाब.

राम के पाद -स्पर्श से वंचित 

पवित्र प्रेम का पात्र  शिखर.

वह तो पढ़ा लिखा  विचित्र 
नहीं गया पाठशाला.
गहरी गंगा की में 
उसने पढ़ा शान्ति-पाठ.
आकाश ने दिया ज्ञान .
मछलियों से संगीत सीखा.
चक्रवर्ती को अपने प्यार से जीता.

तमिल कवितायें -हिंदी में अनुदित கவி ---எழில் வேந்தனின் வெளிச்சங்கள் கவிதைத் தொகுப்பின் ஹிந்தி மொழி ஆக்கம்.

                                          क्या तुम एक विश्वविद्यालय हो ?

 मैंने कहा -मेरे अश्रुओं में 
  असीमित घनमीटर  की वेदनाएं हैं.
तुम   ने अपने तकनीकी हाथों से 
स्पर्श करके 
 उनको बहा दिया.
देह भर आतंरिक चोटें है  तो 
तूने अपने स्टेतसस्कोप अदरों से 
जाँच  की तो  चोटों का दर्द नदारद.
मैंने कहा -मेरा ह्रदय पारेजैसा है 
किसीसे चिपकेगा नहीं.
तुमने  अपने पिपेट नयनों से चूस लिया.
क्या तुम अपनी   रसायिनिक  जांच पूरी  कर चुकी  हो.?
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                 माँ  टेरसा.

 गंदे आदमी भी ,
माँ के हाथों से सुन्दर बन गए.
रोते रोगी ,कुष्ट रोगी 
माँ के रिश्तेदार बने.
कीड़े के घाव धोने
मुस्कराहट के फूल बनी माँ .
भूमी में नई चांदनी छिडकी 
चाँद बनी.

ठुकराए  घृणित लोगों के 
मन में मधुरस बनी.
पवित्र नारी बन 
भूमि पर चलती -फिरती 
   विश्वास  की लौ  बनी.
उनके प्यार का पात्र बनी .
दरिद्रता की क्रूरता  के हाथों में 
कष्ट  सह्नेवालों को हर्ष की वर्षा बनी.
कूड़ेदान में पड़े अनाथ बच्चों की माँ बनी 
सभी अनाथों को पूजनीय बनी.
आंसू पोंछने के कर बनी 
प्यार ही ईश्वर , केसंदेश 
माँ की ज्योति  को 
ह्रदय में प्रज्वलित करेंगे.
vruddhaavastha
वृद्धावस्था 
अवस्थाएँ   चार  तो 
बालावस्था  में अवलंबित ,
जवानी में वीर धीर  गंभीर 
जवानी का जोश.
प्रौढावस्था   एक तरह का ढीलापन 
वृद्धावस्था तो बैठकर सोचना 
कैसा था गुजारा हुआ ज़माना?
हम ने क्या सोचा ?
हमने क्या किया?
हमने कितना कमाया ?
कितना भोगा ?कितना त्यागा?
अच्छे  कितने ?बुरे कितने ?
कितने  को लाभ पहुँचा?
कितने को बुरा/
कितना प्यार मिला? कितना नफरत ?
कितना खोया?कितना पाया?
कितनी सम्पत्ती जोड़ी ?
कितनी  छोडी?
कितनों को छेड़ा?
कितनों  को छोड़ा?
इतने हिसाब -किताब ?
उठने का बल नहीं ?
घुटने के बल सरकना भी दुर्बल.
विचारों की तरंगें तो उठती रहती है.
जब तक साँस,तब तक आशा..
झुर्रियों का चेहरा ,
हाथों का कम्पन 
पर  विचारोंके ज्वार -भाटा
यही है विरुद्धावस्था   वृद्धावस्था  में.