Friday, December 5, 2014

तीली கவி ---எழில் வேந்தனின் வெளிச்சங்கள் கவிதைத் தொகுப்பின் ஹிந்தி மொழி ஆக்கம்.

                                             

           तीली 

    आप  तो धूल में ही तो 
    फेंकते  हैं,
   अंकुरित होकर अपना 
     तेज़   मुख दिखाऊंगा.

  सद्माएं  आकर मुझमे छेद बनाकर जाएँ तो 
मुरली  का नया रूप लूँगा.
भट्टी में डालेंगे तो 
लोहे के रूप में 
टिकाऊ  बनकर आऊँगा.
जितना चाहे उतनी मिट्टी डालिए 
मेरी जड़ों को परिश्रम का समय  आया..
मैं तो सूरज नहीं बन सकता.
कम से कम तीलीतो बन सकता हूँ न ?
******************************************
          

        क्या आजादी मुफ्त में मिली?

      क्या  आजादी मिली मुफ्त में ?

     लौ से चमके गांधी जी ,
    प्रान्तों के असंख्य लोग ,
    विन्ध -हिमालय की चोटी से 
   कुमारी अंतरीप सागर  तक 
   बहे खून की धारा से  
 लालिमा  फैलकर मिली  आज़ादी.

   ताला लगाए घर में 
   गुलाम सा रहकर ,
   दासता में  मूढ़ता से 
   फंसे देश में ,
  किले  तोड़कर ,
झंडा ऊँचा करके 
 वीरावेश में लड़ी वीरांगना 
झांसी रानी की वीरता ने 
सत्य की आजादी दिलाई.

शुरू हुआ सिपाही कलह ,
वीरता झाँकी हर चेहरे पर ,
शासक गोरों के शासन हिलने में
 वही शुरुआत.

दंडी में एक यात्रा ,
धरणी  पर एक मुहर.
हमेशा त्याग की परंपरा,
दिल में रखो यह स्मरण.
गंगा-कावेरी आज नहीं 
तभी जुडी थी .
सत्य के प्यास  के वीरों से 
भारत का हुआ संगम .
बंगाल भी यहाँ  आया--
व.उ. चिदाम्बरानार और वांची सीखने ,
महाकवि भारती का संघ-नाद 
मिलकर बने तीव्र संग्राम.

द्वार सब बंदकर ,
गूलियों के भरमार से 
  कायर टयर ने 
किया अत्याचार.
गूंजी बंदूकों की गोलियां;
जालियांवाला बाग़ में 
शिशु नर-नारी,बूढ़े -बूढ़ी 
उवा-युवती सब के प्राण उड़े;
उनके रक्तों की नदी बही ;
उसी में मिली आज़ादी.
पंजाब  सिंह लाला लजपति,
के रक्त की धारा सूखी नहीं ,
वीर दिलेर   तिलक के दल 
माथे पर अग्नि तिलक रख 
 वीरा-वेश में किये संग्राम .
विदेश हुए चकित.
तभी मिली आजादी.

जहाज चलाये व.उ.चिदम्बरानार 
देख विदेश हुए विस्मित 
कोल्हू खींचे जेल में ,
तभी तो मिली आज़ादी.

शहीदों की लहरें उठी नयी -नयी,
सर्वत्र आजादी के वेद गूँज उठे,
 हवा में अग्नी ताप ;
दासता के आसमान  फटा;
गन्दगी के मेघ मिटे,
आजादी की रोशनी फैली.
क्या हमें दफना सकते हो?
समझ लो वीर शैतानो!
हम तो वीर बीज ,
बोते हो तुम!
अंकुरित फूटेगी आजादी.--
यों ही वीर गर्जन करते -करते 
भगत सिंह ,सुखदेव ,राज गुरु 
लटके फांसी पर;
उनकी निज बली से मिली आज़ादी.
कठोरता से कारवास में 
घूँस रखा वीरो को;
सांस घुटकर मरे;रोगी बने;
स्वर्णिम आजादी की चमक  के निमित्त 
हज़ारों के तादाद में संग्राम के अग्नि कुण्ड में 
भस्म हुए वीर शहीद .
भारत  की  स्वतंत्रता  के काव्य में 
ये  हैं हजारों  वीर पात्र .

माता के जंजीर तोड़ने ,
उसका झंडा फहराने ,
देश की आजादी देखने 
अविवाहित रहे;

आँखों में हज़ारों ख़्वाब ,
काल्पनिक विचारों अनेक 
रखकर जिए घन्य मान्य कामराज.
ऐसे धीरों के हठ  त्याग से 
मिली है आजादी.

गुलामी  तोड़ने ,
आजादी पाने ,
दमन नीति मिटाने 
कठोर दान भोगने ,
जेल में रहने ,
लाठी का मार सहने 
हजारो  वीर पुत्रों ने डी  चुनौती.  
अपने सिद्धांत के पक्के 
देश के शहीद पुत्रों के 
असंख्य वेदना  के  सहने से 
मिली आज़ादी की हवा.

जीवन मधुर கவி ---எழில் வேந்தனின் வெளிச்சங்கள் கவிதைத் தொகுப்பின் ஹிந்தி மொழி ஆக்கம்.

स्वतंत्रता देवी के गर्भ गृह  में 
आराध्य दीप के रूप 
जन्मे  भारतीयों.!
पूरब के अन्धकार को 
मिटाने भगाने 
लाठी लेकर भारत भर घूमे 
महात्माओं,!
एकाधिपत्य के शव-संदूक के लिए 
अपनी हड्डियों से कील बनाए 
पौरुष सिंहों !
जब जब स्वतंत्रता के दीप 
सर्दी -गर्मी में बुझने के थे 
तब तब अपनी रक्त धारा बहाकर 
स्वतरदीओ को प्रज्वलित कर 
प्राण दिए शहीदों!
स्वतंत्र की मान  मर्यादा 
उड़ते समय 
जहाज चलाकर
मान की रक्षा  को किनारे लगाये 
स्वाभिमानी महानिभावों.!
राष्ट्रीय झंडा फहराने 
अपने को फांसी पर चढ़ाए 
फांसे के रस्से को चूमे 
वीर  त्यागियों!

अपनी वीरता भरी कविताओं से 
अग्नी कविताओं को थूके ,
एटटायपुर  के   {भारतियार  }
ज्वालामुखी कविताओं !

स्वतंत्रता  के स्वर्णिम 
मुलायम लगाकर ,
गुलाम भारत में आहुति हुए 
देश भक्तों!

आजादी केश्वास  दिलाने 
सांस घुटकर  
घोर जेल में  प्राण दिए 
अनजान शहीदों!

आप के  वीर यज्ञों  के कारण 
मिले विजय फलों के 
स्वाद हम ले रहे हैं.!
उन दिनों में सुरक्षा की माँग में लगे 
भारत  में आज 
 दूसरों की मदद करने 
की  क्षमता   है,
यह देख भौंहे चढाते हैं लोग.

आज हमारी विद्वत्ता देख 
जिनतक हम पहुँच नहीं सकते ,
वे  खुद  आ  रहे हैं .
हमारे स्पर्श के लिए तड़प रहे हैं.

हमारे खाली हाथ को 
विजयी हाथ बनाए 
स्वतंत्रता संग्राम के वीर त्यागियों को 
वीर  सलाम !वीर प्रणाम !
तड़के हुए ,सुबह होने देर नहीं.
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                                      जीवन मधुर.
आकाश सुन्दर! मिट्टी सुन्दर!
जीना चाहें तो जिन्दगी सुन्दर.

पंखे होकर  न  उड़ें तो 
उगे पंख भी गिर सकते हैं.
रिश्ता भी न निभाने पर 
दिल भी सूख सकता  है.
होंट  होकर भी न मुस्कुराए तो 
मुस्कराहट भी भूल सकते हैं.

सुन्दरता  देखकर  भी   रसिकता न होने पर 
भावना भी सूख सकती है.
हाथ होकर भी न मेहनत करें तो 
विद्वत उंगलियाँ प्रश्न कर सकती हैं.
पैर होकर भी चलने का अभ्यास न हो तो 
रगड़कर  चलने का अवसर आयेगा.
बिना जल के पेड़ उगे तो 
जड़ों को काम से निवृत्ति होगी.
बिना संग्राम के मनुष्य जिए तो 
भूमि में गिरे छोटी बिंदु ही बन सकता है.

आँखें होकर भी न देखा करें तो 
तेज भी तुमसे हट  सकता है.
भाषाएँ हैं ;फिर भी न बोलें  तो 
मौन ही भाषा बन सजता है.

प्रेम के दास.கவி ---எழில் வேந்தனின் வெளிச்சங்கள் கவிதைத் தொகுப்பின் ஹிந்தி மொழி ஆக்கம்.

    तरंगों की आवाज़  केवल मछलियों को सुनाई पड़ेगी.

तेरे ह्रदय की  आवाज़  मुझे ही सुनाई पड़ेगी.




वसंत  के विलाप 

तूने  सज्जित कपडे पहने थे ,
आज  नंगे बदन खडी  है.

तू तो अक्षय पात्र बन 
खुलकर दान  देती थी.
आज  हाथ में   
भिक्षा पात्र  लेकर क्यों  खडी है?
स्वाभिमान की रक्षा में 
अंगारे बनी तू 
आज क्यों ठंडी हो गयी.
दिशाओं के निर्णायक 
सूरज थी तू ,
आज तो दिशाहीन बन गयी.
सिंहासन में चढी तू 
आज टूटी कुर्सियों के नीचे 
पडी है.
शाश्वर रंग  और खुशबू बन 
फूल माला के धागे को भी 
सुगन्धित करनेवाली तू 
आज बदबू होकर पडी है.
*********************
समुद्र के तप के फल देने 
किनारे तोड़कर बही नदी 
आज कीचड बन गयी है.
पूर्णिमा रात में किलकारियां भरनेवाली 
देव गोपुर ,
आज कूड़े में पडी है  ,
मुर्गा-मुर्गी अपने पैरों से 
तुझे भंग कर रहे हैं.
सपनों में गंभीर राजसिंह 
जैसी थी; 
आज गली के कुत्ते  तुझे 
भगा रहे हैं.,

दार्शनिक तेरे गान करते थे.
तू अद्भुत ज्ञान के स्त्रोत थी .
आज तो भद्दी बन गयी है.
कोयलों को शरण देनेवाली तू 

आज उल्लुओं के खोखले मेंबंद पडी है.

हमारे लक्ष्य के बहार 
आज दुखी बन गयी है.


       प्यार ---भगवान 


हे प्यार!
तू है या नहीं 
जानने हम तेरी तलाश में 
परिक्रमा करते हैं.
मन पिघलता है.
परवश हो जाते हैं .
मन तड़पता है.
जांच -पड़ताल के पात्र बनते हैं.
हमारे निवेदन  का 
जवाब तो जल्दी नहीं मिलता.
बिना रात भर सोये 
रखते हैं व्रत.
प्रतीक्षा में तड़पते हैं ,
बकते हैं ,
सर टकराते हैं,  सर मारते  हैं 

कभी -कभी वर देने से 
विश्वासी धोखा नहीं खाते 
ऐसे लोकोक्ति से 
तेरे संनाधि में सब बराबर 
भेद-भाव नहीं यों 
आशा कर खड़े हैं 
अतः प्यार है एक भगवान.

    एट्टैय़ापुरत्तु  ज्वालामुखी 

घाव को मरहम  लेपकर 
स्वर्ण शाल ओढ़े 
कवियों केबीच 
अपनी   संकेत उंगली से 
अग्नी चोट की थी तू ने .
तेरे मन के गवाह 
अग्नी की चिंगारी बनकर जले तो 
तेरे कारण अन्यायों पर खतरा पड़ा.
वादविवाद मंडप पर चर्चाएँ 
चल रही है कि तू ने तिलक लगाया कि नहीं.

तू ने आग को ही तो माथे पर रखा 
वह कुमकुम सा ठंडा पद गया.

स्वर्ग का चादर ओढ़कर 
धर्म के पिशाच धरती को नरक 
बना रहा था.
धर्म के भूत भगाने 
पास्परस सा तू आया.
तेरी कानी में जो दिमाग था ,
वह हमारेसर के दिमाग में नहीं,;
जातीय कट्टरता के नर-पशुओं को देखकर ,
तेरे सूरज समान तापवाले  विशाल  नेत्रोंसे 
आग उगलने लगे.
तू स्वर्ग सिधारकर पचहत्तर साल हो गए .
जानते हो ,हम तेरे मूगे के दिन में 
कौन -सा  उपहार देनेवाले हैं?

दलित बस्तियों में  जले 
राख की ढेरी .
जातियों के मिटाने का सम्मान.

तूने कहा 
अबला नारी की बेइज्जती 
की मूर्खता करेंगे दूर.

हम तो वीणाओं को चूल्हे रखकर 
जलाते हैं.
तू ने कहा -जिन  लोगोंने भारत देवी का अपमान किया 
उनको जलाओ.

हम तो अपनी उँगलियों में 

कालादाग लगाकर 
बड़े काले लोगों की तैयारी करते हैं.
एकाधिपत्य के चेहरों पर 
आग उगाले थे भारती. 
एत्तैयापुर के ज्वालामुखी !
तेरी नम्रता से मैं चकित हूँ.
तूने अपना परिचय 
अग्नी के बच्चे कहकर दिया.
तेरी ऊंचाई तक कोई 
तमिल आदमी पहुँच नहीं सकता 
इसीलिये अग्नी के बच्चे बनकर 
चुनौती दी थी.
वह अग्नी बच्चे के कण बनने में लगे हैं.
तू ने तो साहित्य क्रान्ति के लिए 
मुफ्त में अग्नी  डी थी.
उनसे हम शराब के चूल्हे जलाते हैं.
तू तो आग.
तेरे सामने कोई भी खड़ा नहीं हो सकता.
हमारे आज के लेखक लाल मोहल्ले के अश्लीली 
कवितायें लिखते हैं.
तू ने  तो अग्नी अम्ल को ही 
कलम बनाकर लिखते थे.
तू अवतार पुरुष है..

किसी भी नज़र से  देखने पर भी 
तू आग के समान सीधे खड़ा है.
हमारे     एट्टैय़ापुरत्तु  ज्वालामुखी .


                                   प्रेम  के दास.
          
  केवट( गुह )--मेहनती वर्ग का प्रतिबिम्ब ;

घृणित  वर्ग के नए प्रतिनिधि.

विधि के कर उसको दूर रखा .
पर वह है कथा-पात्र 
नदी के जल में भीगा.

नीच कुल में जन्मा वह ,
रवि कुल का सेतु बना.
बिजली -सा  चमका.

चमेली के खेत में 
उदित मोती वह.

चन्दन के वन में 
घुटने के बल बहे 
सुखद हवा.

कुल के कारण हटा रखा पर 
वह है हीरा जंगल का  काला.

तम को दिया अपना काला रंग.
वह तो जंगल का गुलाब.

राम के पाद -स्पर्श से वंचित 

पवित्र प्रेम का पात्र  शिखर.

वह तो पढ़ा लिखा  विचित्र 
नहीं गया पाठशाला.
गहरी गंगा की में 
उसने पढ़ा शान्ति-पाठ.
आकाश ने दिया ज्ञान .
मछलियों से संगीत सीखा.
चक्रवर्ती को अपने प्यार से जीता.

वैज्ञानिक चमत्कार கவி ---எழில் வேந்தனின் வெளிச்சங்கள் கவிதைத் தொகுப்பின் ஹிந்தி மொழி ஆக்கம்.

                 वैज्ञानिक  चमत्कार 

  यद्यपि  आकाश में  प्रकाश भले  ही हो,

 हमारे लिए तो तम ही तम था.

 मगर आज दियासलाई  के समान 

घर-घर में दूरदर्शन के डिब्बे हैं.

वैज्ञानिक अद्भुत-शक्ति  की वजह से 

तुम्बा और हरिकोटा  चमत्कार की 

हरी-भरी भूमि सा पुण्य पर्यटन के क्षेत्र बन गए .

सूर्य ग्रहण  के प्रत्यक्ष प्रसार के कारण 

हजारों साल की झूठी कहानी  

राहू -केतु का निगलना मिट गयी.

आज नानियाँ नयी कहानी 
कोलकत्ता में कहती हैं ---
सूर्य प्रेमी को चाँद की प्रेयसी हीरे की 

अंगूठी पहनाई है.

बढ़ती जन संख्या में 
कट-आउट नदारद होंगे .
रंगबिरंगे  पट-रहित  
चित्र खींचकर दिखाएँगे.

दूर जाने देरी होगी --

यह दशा बदली और चंद घंटों में 

दूरी  संकुचित हो गयी.

उन दिनों में वर्षा आयेगी तो 

मिथ्या प्रमाणित हो जायेगी.

न वर्षा होगी तो आकर डरायेगी.
वैज्ञानिक चमत्कार ने  यह दशा बदलाकर 

वर्षा की सूचना सत्य बन गयी.

बादलों के दिनों में 
सिल्वर नाइट्रेट  छिड्काने पर 
होगी वर्षा .

वर्षा ठगे,भले ही नदी सूख जाए 
आकाश-गंगा  को ले आयेंगे.


            पेरियार  नामक ज्ञान -अम्ल 

तेरी आँखे नकली को 
जलानेवाले मशाले.

तेरे होंट सत्य के स्त्रोत.

काले कुरते पहने शान्ति के कबूतर.

तेरा रूप ही निराला.

काले माँ-बत्ती के ज्वाला के समान ,

तेरे दिमाग में ज्ञान के अम्ल  ने 
तमिलनाडु के कोने -कोने में 
रहे मैलों को मिटाया.

तेरे चिंतन की बिजली -बचत करें तो 
अनुविद्युत की तुलना बराबर.

मनुष्य जाति கவி ---எழில் வேந்தனின் வெளிச்சங்கள் கவிதைத் தொகுப்பின் ஹிந்தி மொழி ஆக்கம்.

 मनुष्य जाति 

       (तमिलनाडु में नाम के साथ जो जाति के नाम जोड़ते हैं ,उसे मिटाने के आदेश के कारण गलियों  के नाम    मिटा दिए. पर  वास्तव में जाति-भेद अभी जिन्दा है, इसपर कवि एलिल्वेंदन की कविता   का   तमिल   अनुवाद )

                          निकाल चुके हैं गलियों में लिखे 

                          जातियों  के नाम.

                       लेकिन मन में मंच बनाकर 

                        फूल की वर्षा से सजाकर  रखे हैं.

                       सडकों में लिखे जाति नाम  तो मिट चुके.
                        लेकिन घर में  दीप जलाकर 
                        आड़ में करते हैं पूजा.
                              घोषणा करते हैं 
                          जातियों को मिटा चुके हैं,
                              पर छिपकर उज्जवलित है जातियां.

                                     हमारे ह्रदय के माँस-पेशियों में 
                                     चिपककर  
                                      अशुद्धता को बना दिया गाढ़ा.
                                     भूमि में अनेक जीव्राशियाँ 
                                     वैसे ही जातियों के संघ .
                                     हम ऐसा संघ बनायेंगे 
                                    जिसमें मनुष्यों के संघ रहे.

                                    जाति संघ मिट जाएँ .

तमिल कविताएँகவி ---எழில் வேந்தனின் வெளிச்சங்கள் கவிதைத் தொகுப்பின் ஹிந்தி மொழி ஆக்கம்.

                                                        

                                                                    तीली 

    आप  तो धूल में ही तो 
    फेंकते  हैं,
   अंकुरित होकर अपना 
     तेज़   मुख दिखाऊंगा.

  सद्माएं  आकर मुझमे छेद बनाकर जाएँ तो 
मुरली  का नया रूप लूँगा.
भट्टी में डालेंगे तो 
लोहे के रूप में 
टिकाऊ  बनकर आऊँगा.
जितना चाहे उतनी मिट्टी डालिए 
मेरी जड़ों को परिश्रम का समय  आया..
मैं तो सूरज नहीं बन सकता.
कम से कम तीलीतो बन सकता हूँ न ?
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            सुम्मावंतता  स्वतंत्र 

        क्या आजादी मुफ्त में मिली?

      क्या  आजादी मिली मुफ्त में ?

     लौ से चमके गांधी जी ,
    प्रान्तों के असंख्य लोग ,
    विन्ध -हिमालय की चोटी से 
   कुमारी अंतरीप सागर  तक 
   बहे खून की धारा से  
 लालिमा  फैलकर मिली  आज़ादी.

   ताला लगाए घर में 
   गुलाम सा रहकर ,
   दासता में  मूढ़ता से 
   फंसे देश में ,
  किले  तोड़कर ,
झंडा ऊँचा करके 
 वीरावेश में लड़ी वीरांगना 
झांसी रानी की वीरता ने 
सत्य की आजादी दिलाई.

शुरू हुआ सिपाही कलह ,
वीरता झाँकी हर चेहरे पर ,
शासक गोरों के शासन हिलने में
 वही शुरुआत.

दंडी में एक यात्रा ,
धरणी  पर एक मुहर.
हमेशा त्याग की परंपरा,
दिल में रखो यह स्मरण.
गंगा-कावेरी आज नहीं 
तभी जुडी थी .
सत्य के प्यास  के वीरों से 
भारत का हुआ संगम .
बंगाल भी यहाँ  आया--
व.उ. चिदाम्बरानार और वांची सीखने ,
महाकवि भारती का संघ-नाद 
मिलकर बने तीव्र संग्राम.

द्वार सब बंदकर ,
गूलियों के भरमार से 
  कायर टयर ने 
किया अत्याचार.
गूंजी बंदूकों की गोलियां;
जालियांवाला बाग़ में 
शिशु नर-नारी,बूढ़े -बूढ़ी 
उवा-युवती सब के प्राण उड़े;
उनके रक्तों की नदी बही ;
उसी में मिली आज़ादी.
पंजाब  सिंह लाला लजपति,
के रक्त की धारा सूखी नहीं ,
वीर दिलेर   तिलक के दल 
माथे पर अग्नि तिलक रख 
 वीरा-वेश में किये संग्राम .
विदेश हुए चकित.
तभी मिली आजादी.

जहाज चलाये व.उ.चिदम्बरानार 
देख विदेश हुए विस्मित 
कोल्हू खींचे जेल में ,
तभी तो मिली आज़ादी.

शहीदों की लहरें उठी नयी -नयी,
सर्वत्र आजादी के वेद गूँज उठे,
 हवा में अग्नी ताप ;
दासता के आसमान  फटा;
गन्दगी के मेघ मिटे,
आजादी की रोशनी फैली.
क्या हमें दफना सकते हो?
समझ लो वीर शैतानो!
हम तो वीर बीज ,
बोते हो तुम!
अंकुरित फूटेगी आजादी.--
यों ही वीर गर्जन करते -करते 
भगत सिंह ,सुखदेव ,राज गुरु 
लटके फांसी पर;
उनकी निज बली से मिली आज़ादी.
कठोरता से कारवास में 
घूँस रखा वीरो को;
सांस घुटकर मरे;रोगी बने;
स्वर्णिम आजादी की चमक  के निमित्त 
हज़ारों के तादाद में संग्राम के अग्नि कुण्ड में 
भस्म हुए वीर शहीद .
भारत  की  स्वतंत्रता  के काव्य में 
ये  हैं हजारों  वीर पात्र .

माता के जंजीर तोड़ने ,
उसका झंडा फहराने ,
देश की आजादी देखने 
अविवाहित रहे;

आँखों में हज़ारों ख़्वाब ,
काल्पनिक विचारों अनेक 
रखकर जिए घन्य मान्य कामराज.
ऐसे धीरों के हठ  त्याग से 
मिली है आजादी.

गुलामी  तोड़ने ,
आजादी पाने ,
दमन नीति मिटाने 
कठोर दान भोगने ,
जेल में रहने ,
लाठी का मार सहने 
हजारो  वीर पुत्रों ने डी  चुनौती.  
अपने सिद्धांत के पक्के 
देश के शहीद पुत्रों के 
असंख्य वेदना  के  सहने से 
मिली आज़ादी की हवा.

राष्ट्रपिता अनूदित கவி ---எழில் வேந்தனின் வெளிச்சங்கள் கவிதைத் தொகுப்பின் ஹிந்தி மொழி ஆக்கம்.

            राष्ट्रपिता 

दासता अन्धकार मिटाने आये   स्वतंत्रता  त्याग के  लौ.

   हे  राष्ट्रपिता!  सडकों के किनारे पर  के लोगों  की आवाज़  सुनिए.
        बने-बनाए अलंकृत चेहरों को देखकर 
        हम  आदि हो गए हैं.
तेरे  सच्चे चेहरे  का पता लगाना ,
नहीं आसान हमारे लिए.
   निवेदन  है ज़रा दें अवकाश।

ख़्वाब के बोलपट  के कट-अवुट  के चरणों पर 
तमिल कवितायें घुटने टेक 
तपस्या करने का काल है यह.

गोरे दुह्शासन चर्चिल ने तुझे कहा--
अर्द्ध नग्न फकीर.
तुझे पांचाली बनाकर  हंसी उड़ाया.
इसीलिये  हमारे जोशीले कवि 
भारती ने  लिखा "पांचाली शपथ -उद्वेग के साथ.
उस देश -भक्त चिंगारी को 
आपने स्पष्टरूप से समझा। 
उसकी सुरक्षा की बात बतायी.
तब के नेता उस अंगारे कवि  की सुरक्षाका न सके.
हम आज इसी चिंता में है --
  क्या आज के नेता ,
हमारी आजादी की सुरक्षा बिना चोट के  कर सकते हैं.
 हम प्रतीक्षा करते हैं --
रात में मनुष्य दया से कुछ छोड़ रखें कि नहीं.
उस दिन तूने धार्मिक कट्टरता  क लिए 
अपने देह का बलिदान किया.
वह धार्मिक कट्टरता आज देश को ही बलि के लिए 
माँग रही है.
आज  
भारत माता के सर से लेकर चरण तक 
पापी धार्मिक फैलाते हैं आतंक.
    तू  तो ठीक है ,आजाद भारत में जन्म लेकर,
   स्वतंत्र  भारत में तेज़ आँखें बंद कीं।
तू ने कहा-सच्ची आजादी तभी सार्थक , तब स्वर्णाभूषणों से 
सजी महिला  आधी रात घूम अकेले घर लौट जाए.

आजकल रात में क्या ,दिन में घूमना भी 
आतंक लगता है.
ऐसे समय आना हैरान  की बात नहीं ,
कुर्तों पर भी ताला लगाने पड़ें, बटन के बदले.
 हमें डर लगता है --
देश की घटनाएं देखकर 
आजाद भारत में जन्मे हम 
गुलाम भारत में  अंत हो जायेंगे.
हम नहीं चाहते ,
हमारे नेता तेरे जैसे महात्मा बने.
मन के गवाह के अनुसार 
औसत आत्माएं  बनना काफी है 
हमारा भारत इतिहास में 
साधना की चोटी पर पहुंच जाएगा.