लिखना आता ही नहीं ,
पर लिखने की इच्छा,
यह इच्छा तीव्र होती तो
कैसे लिखना है ?
कितना लिखना है?
किस विषय पर लिखना है ?
आध्यात्मिक बातों पर ,
सामाजिक व्यवहार पर,
रीतियों पर या कुरीतियों पर,
सुशासन पर ,कुशासन पर
धर्म पर अधर्म पर ।
कलपना के घोडे दौडाने के पहले,
जो ताजी खबरे हैं ,
पुरानी खबरे हैं ,
सोचेंगे तो सब बासी ही लगती।
आविष्कारें नई नई,
हृदय परिवर्तन नया इलाज।
तुरंत पुरानी बातें याद आती।
गणेश जी का सिर परिवर्तन।
ताजी बातें जो हैं ,वह तो प्राचीनता के आधार पर।
जो है, वही नया या ताजा बनता है।
अस्त्र - शस्त्रों का वर्णन ,
रामायण - महाभारत में वर्णनातीत।
चंद्र मंडल की यात्रा वह भी प्राचीन ।
टेस्ट ट्यूब बेबी, भाडे माँ, शुक्ल दान ।
सब के आधार हमारी पैराणिक कथाओं में।
ताजी खबरें विचार करने पर पुरानी ही लगती।
Wednesday, July 20, 2016
पुरानी ही लगती।
Monday, July 18, 2016
सेना भारतीय का यशोगान करें
आप को अपनी जान और देश दोनों को बचाना है तो
आतंकियों को भून डालने में ही वीरता.
शत्रुओं को भारतीय सेना देख लघु-शंका बहना है,
दिखाओ अपनी बहादुरी, सिंह स्वप्न हो जाए.
Sunday, July 17, 2016
समझ रहे हैं सार्थक.
सड़कें बनाते है या नहीं पता,
हिसाब तो भर लेते हैं,
वादा न निभानेवाले,
बन जाते हैं हमारे प्रतिनिधि.
जीवन की सार्थकता
कितनी माया कितनी ममता,कितना मोह ।
कितनी चाहें, कितने प्यार।
देश प्रेम ,,भाषा प्रेम , ईश्वर प्रेम,
यश प्रेम, धन प्रेम , दान प्रेम , सेवा प्रेम
मेवा प्रेम ,धर्म प्रेम,अधर्म प्रैम, हिंसा प्रेमेम
अहिंसा प्रेम, सत्य पेम, असत्य प्रेम,
स्वार्थ निस्वार्थ प्रेम, शांति -अशांति प्रिय
प्रेम में कई जान बचाने - जान तजने प्रेम तो कई ।
जवानी में लडकियों के पीछे घूमने,सोचने, लिखने,
कल्पना के घोडे दौडाने, पशु तुल्य प्रेम जो है,
कई यवकों को आजकल पागल खाना भेजने तैयार।
सोचो, बढो, संयम सीखो, यह जोश
रावणनों को, शाहजहानों को, कीचकोंको
मन में लाकर हतयारा बनाकर कर देता
जीवन को नरक - तुल्य।
सोचो युवकों! जागो, नर हो, संयम सीखो।
बीस से तीस के जीवन सतर्क रहो तो
जीवन बनेगा समर्थक। सार्थक।
Friday, July 15, 2016
सत्य भक्ति
नव -ग्रह
आज शनिवार है,
मनुष्य के सुख - दुख में
जग के न्याय परिपालन में
नव - ग्रहों का प्रधान्य स्थान है।
मनुष्य - मनुष्य का द्रोह,
शासकों के
अन्याय , अत्याचार, भ्रष्टाचार
आदि का दंड- व्यवस्था,
मानव निर्मित न्यायालस में नहीं।
नव- ग्रहौं के दंड - फल से कोई
बच नहीं सकता।
Thursday, July 14, 2016
प्रेम लेन देन
संसार देखो, प्रेम के गीत गाता है।
लेन - देन सच्चे प्रेम नहीं।
देना ही प्रेम है सही कहते हैं।
कबीर तो हठयोगी , कहा -- चाह नहीं , चिंता मिटी।
वे ही प्रार्थना करते हैं --
साई इतना दीजिए, जामें कुटुंब समाय।
कम से कम दैने के लिए ,
लेना ही पडता है।
रूप - माधुर्य देख ही प्रेम।
नयनाभिराम लेकर प्रेमाभिराम
देन - लेन न हौ तो प्रेम नहीं।
ईश्वरीय| प्रेम में कम से कम बिन माँगे
मुक्ति की चाह। प्नर्जन्म की न चाह।
कहना प्रेम में न लेन केवल देेन ।
वह केवल धन नाटक।
राम राम कह बैठा तो रामायण फूट पडी।
ढाई अक्षर प्रेम मिल जाती पंडिताई।
स्वार्थ प्रेम में परमार्थ नहीं,
परमार्थ प्रेम में स्वार्थ नहीं।