Wednesday, July 20, 2016

पुरानी ही लगती।

लिखना आता ही नहीं ,
पर लिखने की इच्छा,
यह इच्छा तीव्र होती तो
कैसे लिखना है ?
कितना लिखना है?
किस विषय पर लिखना है ?
  आध्यात्मिक बातों पर ,
सामाजिक व्यवहार पर,
रीतियों पर या कुरीतियों पर,
सुशासन पर ,कुशासन पर
धर्म पर अधर्म पर ।
कलपना के घोडे दौडाने के पहले,
जो  ताजी खबरे हैं ,
पुरानी खबरे हैं ,
सोचेंगे तो सब बासी ही लगती।
   आविष्कारें नई नई,
हृदय परिवर्तन नया इलाज।
तुरंत पुरानी बातें याद आती।
  गणेश जी का सिर परिवर्तन।
ताजी बातें जो हैं ,वह तो प्राचीनता के आधार पर।
जो है, वही नया या ताजा बनता है।
   अस्त्र - शस्त्रों का वर्णन ,
रामायण - महाभारत में  वर्णनातीत।
चंद्र मंडल की यात्रा वह भी प्राचीन ।
टेस्ट ट्यूब बेबी, भाडे  माँ, शुक्ल दान ।
सब  के आधार हमारी पैराणिक कथाओं में।
ताजी खबरें  विचार करने पर   पुरानी ही लगती।

Monday, July 18, 2016

सेना भारतीय का यशोगान करें

भारतीय सेना का यशोगान करेंगे हम.

जवान जो है हमारे प्रत्यक्ष रक्षक भगवान.

एक पत्थर का जवाब हज़ारों गोलियों से देना,

एक जवान पर चोट सौ करोड़ भारतीयों पर मान.

एक एक जवान अमूल्य, उनका बहुमूल्य जान.

उन आतंकवादियों के समर्थकों को पहले करना है

जड़- मूल नष्ट, एक चिंगारी उनकी ,सोच छोड़ना ,

दावानल का सामना करने के संकेत.

पंद्रह मिनटसमय माँगा ओवेसी, उन का जीभ तुरंत न काटा,

अब वह पनप रहा हैं, 

बाद में पछतानेसे क्यालाभ.

वीर सैनिकों ! तुझको सलाम.


आप को अपनी जान और देश दोनों  को    बचाना है तो

चौकन्ना रहना,फूँक-फूँक कर कदम रखना.

पत्थरों   की  चोट सहना है कायरता,




आतंकियों  को   भून डालने में ही वीरता.


ऐसे डराना उनको, थर-थर काम्पें शत्रु
,
शत्रुओं को   भारतीय  सेना देख  लघु-शंका बहना है,


दिखाओ अपनी बहादुरी, सिंह स्वप्न  हो जाए.

Sunday, July 17, 2016

समझ रहे हैं सार्थक.

सबको प्रणाम.

सार्थक बातें,

निरर्थक करतूतें,

खुशामद की खुशी में,

जीने मिलता तो काफी.

निन्दा स्तुती में निपुण स्तुति

निंदक नियरे राखिये--कबीर वाणी;

अपने में जो हैं उसे जानिये.

अपने को पहचानिए---धार्मुक नसीहत.

आजादी के बाद हम 

सोचते हैं या नहीं पता नहीं,

वादा करते हैं, निभाते नहीं,

सड़कें बनाते है या नहीं पता,

हिसाब तो भर लेते हैं,


भली सड़कें,, बाते कच्ची हो,

वे जीतते और बनाते 

अपना जीवन सार्थक.

निरर्थक बकनेवाले, 

अधिक वोट पाते हैं,

सार्थक बकनेवाले,

 जमानत खोतेहैं.

कहीं का सितारा 

दूर पट पर 

अर्द्ध नग्न दर्शित,

वे खड़े होते हैं 

अपने क्षेत्र का प्रतिनिधि,

न मिल सकते हैं, 

न देख सकते हैं 
,
पर हैं वे हमारे सांसद और वैधानिक.

सार्थक- निरर्थक-बकने वाले,

वादा न निभानेवाले,

बन जाते हैं हमारे प्रतिनिधि.

हम कितने जागरूक  हैं ,

 पता नहीं,

निरर्थक जीवन को

 समझ रहे हैं सार्थक.

जीवन की सार्थकता

कितनी माया   कितनी  ममता,कितना  मोह ।
कितनी  चाहें, कितने प्यार।
देश प्रेम ,,भाषा प्रेम , ईश्वर प्रेम,
यश प्रेम,  धन प्रेम , दान प्रेम , सेवा प्रेम
मेवा प्रेम ,धर्म प्रेम,अधर्म प्रैम, हिंसा प्रेमेम
अहिंसा प्रेम, सत्य पेम, असत्य प्रेम,
   स्वार्थ निस्वार्थ प्रेम, शांति -अशांति प्रिय
प्रेम में कई जान बचाने - जान तजने प्रेम तो कई ।
जवानी में लडकियों के पीछे घूमने,सोचने, लिखने,
कल्पना के घोडे दौडाने, पशु तुल्य प्रेम जो है,
कई यवकों को आजकल पागल खाना भेजने तैयार।
सोचो, बढो,  संयम सीखो, यह जोश
रावणनों को, शाहजहानों को, कीचकोंको
मन में लाकर हतयारा बनाकर कर देता
जीवन को नरक - तुल्य।
सोचो युवकों! जागो, नर हो, संयम सीखो।
बीस से तीस के जीवन सतर्क रहो तो
जीवन बनेगा समर्थक।  सार्थक।

Friday, July 15, 2016

सत्य भक्ति

कहते  हैं   जग  में ,
एजी  जग  में ,
देश में  ,गली  में , हर  जगह 
सत्यमेव  जयते.
माया  -ममता  -मोह भरे   जग  में ,
सत्य  की ही  विजय  इसका  कोई  सबूत  नहीं .
सबूत  है  तो  कोई प्रमाणित  कीजिये.
एक  ही नाटक  हरिश्चंद्र  उसको  देख  या  पढ़ 
सत्य  बोलने  डरेगा  संसार. 
आदमी  निर्मित न्यायालय  में
 दंड  नहीं भ्रष्टाचारी , काले  धनी  अमीरों को 
नव- ग्रह   ईश्वर   निर्मित  संविधान  में 
बच  नहीं  सकता  कोई.
यम  दरबार का  निर्णय  न्याय  निश्चित  टाल  नहीं  सकता  कोई.
अग जग  की  आध्यात्मिक   कहानियों  में ,
लौकिक  पापियों  के  धन  के  बगैर,
न  बना  मंदिर , मस्जिद , गिरिजा-घर.
करोड़ों  का   काला  धनी चढ़ाता  लाखों के  रूपये.
सच्चे  आदर्श  भक्तों  के  लिए 
वटवृक्ष  के  निचे  बैठे   विघ्नेश   ही  है  भगवान.
अर्थ  बिना  पूजा -पाठ  में पूण्य  नहीं  तो 
अर्थ  ही  नहीं  अलख  शक्ति  का.
सोचो ,समझो, जागो, 
सार्थक   पूजा मन  से ,
न भ्रष्टाचारियों  के  हीरे-सोने -चांदी  भरे आलय  -आश्रमों  में.

नव -ग्रह

आज शनिवार है,
मनुष्य के सुख - दुख में
जग के न्याय परिपालन में
नव - ग्रहों का प्रधान्य स्थान है।
मनुष्य - मनुष्य   का द्रोह,
शासकों के
अन्याय , अत्याचार, भ्रष्टाचार
आदि  का दंड- व्यवस्था,
मानव निर्मित  न्यायालस में नहीं।
नव- ग्रहौं के दंड - फल से कोई
बच  नहीं  सकता।

Thursday, July 14, 2016

प्रेम लेन देन

संसार देखो, प्रेम  के गीत गाता  है।
लेन - देन  सच्चे प्रेम नहीं।
देना ही प्रेम है सही कहते  हैं।
  कबीर तो हठयोगी , कहा -- चाह नहीं , चिंता मिटी।
वे ही प्रार्थना करते हैं --
साई इतना दीजिए, जामें कुटुंब समाय।
कम से कम दैने के लिए , 
लेना  ही पडता है।
रूप - माधुर्य  देख ही प्रेम।
नयनाभिराम  लेकर प्रेमाभिराम
देन - लेन न हौ तो प्रेम नहीं।
ईश्वरीय| प्रेम में कम से कम बिन माँगे
मुक्ति की चाह।  प्नर्जन्म की न चाह।
कहना प्रेम में न लेन केवल देेन ।
वह केवल धन   नाटक।
राम राम कह बैठा तो रामायण  फूट पडी।
ढाई अक्षर प्रेम मिल जाती पंडिताई।
स्वार्थ प्रेम  में  परमार्थ नहीं,
परमार्थ प्रेम में स्वार्थ नहीं।