Friday, July 20, 2018

bhadragiriyar --4

भद्रगिरियार -४

तमिल  मूल :--(२१ )  अत्तन  इरुप्पिडतै  आरायन्तु  पार्थ्थु  नितम
                                सेत्त  सवम  पोल  तिरिवतिनि  यक्कालम। |

    हिंदी भावार्थ :---दिन -दिन  ईश्वर  के वासस्थान की खोज में
                            लौकिक इच्छाएँ  तजकर लाश -सा भटकने का  मेरा  समय कब                                      आएगा |

तमिल मूल :--(२२ )  ओळींत तरु  मत्तिनैवैत  तुललेलुम्बू  वेळ  एलुमबाय्क
                               कलिंत  पिणम   पोलिरुन्तु  कान पतिनि   यक्कालम ||

      हिंदी:-- लौकिक इच्छाएँ   छोड़कर  सन्यासी  धर्म पर दृढ़ रहकर  हड्डी श्वेत  बनकर
                  बेकार   शव  जैसा  तेरी कृपा पाकर दर्शन करना  कब होगा?

तमिल  मूल :-{२३ }  अर्प   सुखमरंते     अरिवै  अरिवालारिन्तु
                                गर्भत्तील  वीलन्तु  कोंड   कोलरुप्पतू  यक्कालम।
                               
                               पवित्र बुद्धि  के भगवान को ,
                                उनके चरण कमल की अनुभूति करके                         
                            जन्म के अल्प   सुख   के विचारों को छोड़कर
                              जीने का काल   कब आएगा?



Thursday, July 19, 2018

विचार तो नाना , सोचो ..

  विचार तो नाना , सोचो ..

        मनुष्य मन  तो  चंचल ,
        कल्पना  के घोड़े दौड़ते
        मनमाना विचार उठते .
        मन को काबू में  रखना
        मन चंचलता  स्थिर रखना
        ईश्वरीय निमंत्रण का भी स्थगित .|
        ऐसे  ही चलता है  जीवन संग्राम .

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Wednesday, July 18, 2018

भगवद गीता के सदुपदेश .

भगवद गीता के सदुपदेश .
गुण आतानं---  हममें जो गुण नहीं  हैं ,उन्हें ग्रहण करना .

दोष अपनयनम--- हममें जो बुरे गुण हैं , उन्हें छोड़ देना.

 उन गुणों  को पाने  का  मार्ग :--
१. अर्थ दर्शनं :--सद्गुणों के प्रयोजनों को सोचना.

२. अनर्थ दर्शनं -- बद्गगुणों  के बुरे फलों के बारे में सोचना .
३. सज्जनों  के  सत्संग में रहना
४.  प्रायश्चित्तं :-- अपने  चाल की बुराइयों को अपने   आप  छोटे छोटे    दंड  देना.
५. प्रशंसा :--जिन अच्छे गुणों को सोच -समझकर पालन  किया ,
                  उन अच्छे गुणों की प्रशंसा अपने आप को करना.

६. संकल्प :-- अच्छे गुणों  पालन का  संकल्प  कर लेना.
७. सावधान :--सतर्कता   और   जागृत  रहना .

८. प्रतिपक्ष  भावना :--जब   क्रोध होता   है ,तब  सहनशीलता का  पालन करना.

९. ध्यान:-- सद्गुणों  का  पालन करना चाहिए.
१०. प्रार्थना :-- सद्गुणों की प्राप्ति के लिए भगवान  प्रार्थना करना .
 (आधार :-श्री स्वामी  ब्रह्मा योगानान्द,  श्री सद्गुरु  मासिक पत्रिका के सौजन्य से )

सतुष्ट हो जाना हे मनुष्य मन !

हिंदी में लिखते हैं ,
हिंदी का पक्ष लेते हैं ,
मेवा उतना नहीं मिलता ,
जितनी सेवा का समय लगता हैं.
लिखने के प्रकाश के लिए धन ,
प्रकाश के सम्मान के लिए दान .

अच्छे प्रसिद्ध लेखनी चलाना
वीनापाणी का वरदान .
अच्छे लिखने पर भी लक्ष्मी की कृपा
न हो तो अति दरिद्र.
स्वास्थ्य के लिए देवी दुर्गा.

त्रिदेवियों से प्रार्थना है ,
देवियाँ !अपने अनुग्रह की वर्षा चाहिए.
वाणी वीर ,धन वीर , शक्ति वीर
बना दो , अब मेरी उम्र बढ़ गयी हैं तो
अभी मेरी अपनी संतानों को
जो तेरी कृपा से सृष्टि की
संतानों पर
करना अनुग्रह .
जितना दिया हैं आप तीनों ने
उतने से असंतुष्ट नहीं ,
मानव मन अति चाहता हैं
जब तुलना करता हैं दूसरों से .
तमिल के एक कवि का गीत
अपने से जो कमज़ोर हैं उनसे सीखो
भगवान ने हमको श्रेष्ठ बनाया है.
जग के सुख भोगने तड़पते मन
लोभ क्रोध अहंकार में भर जाता.
पर बादशाह को अल्ला से विनती देख
संतुष्ट होंने का उच्चा विचार देना.,
आज मन में उठे विचार स्वरचित

Saturday, July 14, 2018

गृह गृह में .

man मन नाचता है, नचाता है,नचा रहा है मन बंधन कैसे हो ?बीबी बंधन हो गया.
माँ,बाप ,भाई का बंधन तोड़ चला. 
साला साली सास ससुर का बंधन जोड़ चला. 
शकुनी की याद आयी ,फिर भी चुप .
मंथरा की याद आयी फिर भी चुप. 
कंस की याद आयी फिर भी चुप.
सहोदर सहोदरी उतारी दिल से .
यही रामायण -महाभारत की कहानी
गृह गृह में .

भारतीय भाषाएँ

पड़ता हूँ मुख पुस्तिका के हिंदी भाषी
कवियों की कवितायेँ , अति सुन्दर.
नाना भाव उठते हैं मन में ,
विचार मेरे शब्द हिंदी पर मैं हूँ हिंदीतर
हिन्दिविरोध क्षेत्र में पला, बढा हिंदी प्रचारक .
तमिल भाषी नेता गोरी अंगरेजी से गले लगाते हैं ,
न समझ रहे हैं वह रखैल तमिल पत्नी को
तमिल माता को , तमिल कुमारी को
गला घोंटकर मार रही हैं.
अभी हर गाँव , हर शहर में अंगरेजी का बोलबाला है,
भारतीय भाषाएँ जीविकोपार्जन के क़ानून न हो तो
अंग्रेज़ी मगर मच्छ सारी भारतीय भाषाओं को निगलेगी.
ज़रा सोचना ,जागना, जगाना भारतीय युवकों का काम.
पूर्वज संस्कृत को भूल चंद अंगरेजी पद , अधिकार के लिए
अंग्रेज़ी सीख उसीमें ज्ञानसागर , भारतीय भाषाएँ, अज्ञान का दरिया
सिखा दिया, अभी सत्तर साल के बाद भी न जागें तो
संस्कृत के सामान अव्व्यवाहर की भाषाएँ बन जायेंगी
भारतीय भाषाएँ .

Wednesday, July 11, 2018

यही ईश्वर की सृष्टि की सूक्ष्मता है.

प्रातःकालीन प्रणाम.
आज मैं क्या लिखूंगा?
मन में कैसे विचार आयेंगे ?
पता नहीं.
सामाजिक अध्ययन हमें बड़े बड़े लेखकों
के बड़े बड़े ग्रंथों को पढने से समाज के बारे में
जान समझ सकते हैं.
वास्तव में समाज के विचार ,व्यवहार ,
जानना अति मुश्किल है.
तमिल देश में भूमि को पाँच तरह के
लोगों की जीवनी पर उल्लेख करते हैं.
तब मनुष्य गुण भूमि भाग की
समृद्धि , रूखापन , अभाव , अकाल ,
जलवायु ठंडी ,गर्मी ,सुरक्षा ,असुरक्षा
आदि के अनुकूल व्यवहार करता है.
भारत भूमि स्वर्ग तुली होने पर भी
आध्यात्मिक भूमि ,ज्ञान भूमि होने पर भी
तत्काल के लाभ भारतवासियों को अँधा बना देता हैं.
वे तुरंत अपनी पोशाक ,व्यवहार , विचार ,
सिद्धांत बदलने तैयार होते हैं.
खान -पान में भी सोचते समझते नहीं हैं .
इसीलिये मजहबी परिवर्तन आसानी से हिते हैं .
अंग्रेज़ी आये तो अपनी भाषा भूल ,
अपने भाषा ज्ञान विज्ञान के ग्रन्थ भूल ,
अपने भाषा के आदर्श विचारों को भूल ,
शेक्सपियर के कोटेसंस को ही देना
ही बड़ी बात मानने लगे.
परिणाम स्वरुप माता,पिता ,गुरु
सब को अवहेलना करने के संवाद में आनंद लेने लगे .
माँ-बाप अपने सुख के आनंद के स्वार्थ में मेरा जन्म हुआ.
न तो मेरा जन्म होना ,ऐसे संकट का अनुभव करना
आदि के मूल में माता-पिता का दोष है . ऐसे विचार
भारतीय मन में कैसे उठे?
जिनकी संस्कृति हर दिन माता-पिता -गुरु के चरण में
नमस्कार करना.
ऐसे ही हर विचार बदलने में विदेश चतुर रहें.
कारण वर्ण व्यवस्था धीरे धीरे हिन्दू समाज में
मनुष्य -मनुष्य में घृणा उत्पन्न करने में विदेशों का साथ दिया.
आज भी तिलक देख एक दूसरे के जानी दुश्मन हिन्दुओं में हैं .
ऐसे ही ईसाईयों में हैं ,मुगलों में हैं .
केतालिन ,प्रोटोस्टेंट ,सेवंथ डे एडवेंटिस्ट ,लाब्बे ,सिया,सुन्नी आदि ईअसायी और मुग़ल एक दुसरे को देखना भी पाप मानते हैं.

धर्म ग्रंथों के अनुसार यही निर्णय है कि खुद भगवान ने ऐसी बुद्धि दी हैं
जैसे सांप,बिच्छु , सिंह ,सियार, बाघ ,चीता, भेडिये आदि.
ईश्वर ने दया,ममता ,सहानुभूति ,परोपकार , करुणा , आदि भाव भी
ईर्ष्या,क्रोध , लोभ ,काम के बीच मनुष्य समाज को दिया है. अतः मनुष्य
जीवन पशु जीवन से श्रेष्ठ है.
जानवरों के गुण पहचानकर बच सकते हैं ,पर मनुष्य को देखने मात्र से
पता नहीं चलेगा कि वह साँप है या बिच्छू , सिंह है या सियार ,
बाघ है या भेड़िया, कुत्ता है या भेदिया, तोता है या बाज.
यही ईश्वर की सृष्टि की सूक्ष्मता है.