Sunday, September 30, 2018

सत्य शाश्वत, असत्य अशाश्वत

प्रात: कालीन प्रणाम।
संसार स्वर्ग है,
संसार नरक है
संसार नश्वर है,
संसार अनश्वर है
संसार लौकिक है,
संसार अलौकिक है।
गंभीरता से सोचो,
जानो,समझो,पहचानो,
पता चलेगा, कैसे?
मौसमी परिवर्तन स्थाई।
फल फूल पत्ते अ्स्थाई।
काम क्रोध मंद लोभ स्थाई,
अंतर्मन में वास कर जीनेवाले अस्थाई।
वनस्पति,जीव जंतुओं, मनुष्य रचना स्थाई।
रचकर नष्ट करने की ईश्वरीय लीला स्थाई।
मनुष्य का रूपरंग गुण भाषा सब के सब
परिवर्तन शील , अमानुषय शक्ति स्थाई।
गुण शाश्वत,सत्य शाश्वत, अवगुण असत्य अशाश्वत।
स्वरित अनंत कृष्णन.


Saturday, September 29, 2018

ईश्वर का अनुग्रह



नींद की गोली न ली.
प्राणायाम, योग निद्रा, भ्रमरी,
ध्यान किसी में मन न लगा.
न आर्थिक संकट,
न ईश्वरीय प्रकोप.
न रोग न चिंता नींद नहीं आयी.
ध्यान भ्रमरी योग निद्रा
क्या मनुष्य धनी, स्नातक, स्नातकोत्तर
जो भी हो नींद, अपच, जवानी,
सब के मूल धन से परे, मन से परे, विद्वत्ता से परे
सोचो जपो मनुष्येत्तर अमानुष शक्ति को
सब ही नचावत राम गोसाई.
न धन, न बुद्धि, न पद
नींद सहज आना भी ईश्वर का अनुग्रह.

नियम शनैः शनैः नदारद.


सबको प्रातःकालीन प्रणाम. 
मन में उठी मान की बातें 
मेरी नहीं हमारे पूर्वजों की. 
युग युगों कर अनुकरणीय. 
सज्जन मानते,, अनुशासित मानते, 
ईश्वरानुरागी मानते.
सत्य प्रिय मानते
श्रद्धालु मानते,
समाज और राष्ट्र प्रिय मानते.
ईमानदार मानते,
ईश्वरप्रिय भक्त मानते.
पंचेंद्रिय काबू में रखो,
सिवा पत्नी- पति के
बाकी सबको सहोदर सहोदरा मानो.
आज उच्च अदालत की निंदनीय
भारतीय संस्कृति और चरित्र गठन की उल्टी बातें
समाज को बेचैनी करने की बातें
सब से मनमाना शारीरिक संबंध रखो
वह कानूनी विरुद्ध नहीं,
सनातन धर्म का परंपरागत
प्रथा तोड मंदिर में महिला प्रवेश
अब तलाक मुकद्दमा बढ रहा है,
बलातकार बढ रहा है,
भ्रष्टाचार बढ रहा है
न भय ईश्वर का
न कानून का
यथा राजा तथा प्रजा
नियम का सरकारी अधिकारी
न्यायाधीश, पुलिस, शिक्षक, चिकित्सक सब
अक्षरशः पालन कर रहे हैं
रिश्वत भ्रष्टाचार के गुलाम नहीं बेगार बन रहे हैं
पूर्वजों का धर्मासन, राजशासन का भय
भाग गया है. मंदिर की संपत्ति लूटी जा रही है
पूर्वजों का सत्य, ईमानदारी, दान धर्म
कर्तव्य परायण सब नदारद.
भारतीय भाषाएँ, भोजन व्यवस्था, धार्मिक नियम शनैः शनैः नदारद.
स्वरचितःयस. अनंतकृष्णन, चेननै,

भारत है महान, 
कई बातों में. 
कमी कई बातों में 
प्रधान कमी सहनशीलता. 
दूसरी कमी अंग्रेज़ों की माया में, 
पैसे के लोभ में,
उनके दास बन
भारतीय ही भारतीय भाषाओं का अपमान.
शांति प्रिय जनता यहाँ क्यों?
यहाँ पेट भरना आसान.
विदेश गया, वहाँ मौसम पाँच महीने सुहावना.
पतझड में पत्ते रहित पेड.
हमारे देश के समान न आम का पेड.
न अमरूद, न कटहल, न जटी बूटियाँ.
न तपस्या, न अनुशासन,
आज के वकील, न्यायाधीश, नेहरु सब
भारतीयता के विरुद्ध,
संयम के विरुद्ध,
अपराध, पतिव्रता के विरूद्ध,
भारतीय सनातन धर्म के विरुद्ध
फैसला सकते हैं हम यही है
हमारी कमी.
हम गाये हैं हिंदु मुसलिम सीख ईसाई,
पर वे कभी न दुहराते ऐसे भजन.
मुसलमान केवल अल्ला के बंदी,
न करते राष्ट्र गीत और न करते तिरंगा झंडे का वंदन.
बहुमत हिंदु की सबेरा
बेगार बने जाने का संकेत.
कमी देश की नहीं, मानसिक दुर्बलता की.
रचयिता :यस. अनंत कृष्णन.

काव्योदय स्वीकृत कविता

(हंसाती है रुलाती है हमेशा आजमाती है)
पौराणिक कहानियाँ ,
हँसाती है , रुलाती है ,आ जमाती है ,
अनुशासित करती हैं , संस्कार देती हैं ,
भाग्य पर जीना सिखाती है,
त्याग पर जीना सिखाती है,
पर लौकिकता सुन्दर-और सुंदरियों
के प्यार के चक्र में , हंसाती है ,
आँख मारना, ओढ़नी का स्पर्श ,
पौरुष -स्त्रीत्व की कोमलांगन
आनंद या दुःख का पागलपन
दमयंती को रुलाया ,
रूप बदला नल का
हंसाती रुलाती आ जमाती
ईश्वर ध्यान ही अंतिम किनारा।
रचयिता ----यस। अनंत कृष्णन

Friday, September 28, 2018

स्वर्ग भोग

प्रातः कालीन प्राणाम।
आज के उदित विचार
स्वरचित से। अनंतकृष्णन द्वारा
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धन जोड़ ,धन जोड़ ,
मान छोड़  ,मन छोड़ ,
धन  जोड़ , धन जोड़
न  डर   ईश्वर से ,
प्रधान मान  धन  ही  जीवन।
दुर्बलों को सता ,
बेगार  को सता ,
आनंद सदा  पाओ ,
जोड़ते अधिक , पर
समाज  का शाप भी ,
ईश्वर  का   कोप भी ,
अपने पाप जुड़ जाता।
बढ़ती उम्र रोक नहीं सकते।
जोड़े धन ,पर  शिथिलता  तन
बुढ़ापा ,सफेद बाल
वापस  न दे सकता।
धन जोड़ धन जोड़
मान  छोड़ ,मन छोड़ ,
मनमाना करके
धन जोड़ धन जोड़।
लौकिक सुखों  को खूब भोग।
यम  धर्म राज ,
ईश्वर का क़ानून
लेगा  तेरी जान।
सोच समझ पुण्य काम कर.
धन जोड़ ,पर
तन छोड़ते समय
न विज्ञान ,न चिकित्सक
कोई  भी साथ न देगा।
सोच -समझ  आगे बढ़.
पुण्य जोड़ ,पुण्य जोड़ ,
भूलोक में स्वर्ग भोग।
धन जोड़ने से न होता संतान
धन से न होता आत्म शान्ति
धन से न मिलता कला की पटुता।
रोया कृष्ण भी  राम भी रोया ,
मार नबी को पत्थर का 
ईसा को शूली का कष्ट ,
सत्यवान हरिश्चंद्र दुखी
पर उन्हीं के नाम  लेकर
सदाचार शान्ति का प्रचार।
दान -धर्म मानवता अनुशासन
सुशासन  का प्रोत्साहन -प्रेरणा।
सोच समझकर इंसानियत का  पालन कर.

Thursday, September 27, 2018

शासन व्यवस्था

शासक और दंड पर
विचार करूँ  तो
हमेशा गरीबों को ही तुरत दंड.
हलमेट नहीं तो तुरंत जुर्माना।
अमीर पीकर गाड़ी चलाने  पर
अमीर  के   बदले एक गरीब कार चालाक।
अमीर भ्रष्टाचार करें , रिश्वत लें तो
खासकर अभिनेता, राजनैतिक नेता ,
तो मुकद्दमा खारिज या स्थगित।
समाज भी सहता ही रहता हैं ,
अपराध स्थापित मुख्य मंत्री ,
मृत्यु के बाद  फैंसला।
अब भी है वह उसके अनुयायियों से सम्मानित।
अवैध या वैध राजा को अनेक पत्नी रखैल।
आज कल का नया फैंसला अपराधी भी
चुनाव लड़ सकता है;
अपराधी भी डरा-धमकाकर
चुनाव जीत सकता  है
भ्रष्टाचारी रिश्वत खोरी एक ओट को
बीस हज़ार देकर जीतकर
सीना ताने चल सकता है,
बलात्कारी का अपराध नहीं ,
बलात्कार की प्रेरित पोशाक
वातावरण में आयी लड़की अपराधिन।
समलिंग सम्भोग अपराध नहीं
पशु-सा सार्वजनिक स्थान पर चूमना अपराध नहीं ,
दो  सौ  रूपये या पचास रूपये लिए
चपरासी दण्डनीय ,वही दलाल बन
लाखों लेकर उच्च अधिकारी को भी
संतुष्ट करता तो अपराधी नहीं।
पहले चुनाव लड़ने के उम्मीदवार को
डिपाजिट रूपये के सिवा  एक
रूपये भी  खर्च न करने की अनुमति न देना।
एक करोड़ खर्च कर जीतना
आम जनता और देश की सेवा नहीं
एक करोड़ को कई करोड़ कमाना।
मनमाना अधिकारी को डराना  धमकाना।
मनमाना गैर कानूनी काम करना।
ईमानदारी अधिकारी को
भ्रष्टाचार सहना न तो पद तजकर जीना
यह राष्ट्र जब तक अपराधी के पक्ष में
ऐसे न्याय दे सकता है , अपराधी अपने बल -आर्थिक ,दाल,और
अन्य कार्यों से बच सकता है ,
तब तक न होगा देश का सर्वांगीण विकास।
क़ानून के सामने सब बराबर नहीं ,
भगवान के मंदिर में सब बराबर नहीं
न्यायव्यवस्था अमीरों और शासकों के पक्ष में तो
देश का सर्वांगीण विकास कभी नहीं।

Wednesday, September 26, 2018

तेरी मर्जी

प्रातःकाल प्रणाम।
--___ आज मेरे मन में उठे विचार।-
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प्रार्थना है परमेश्वर से
वह है तो
पौराणिक कथाओं -सा
असुरों को वर देकर
देवों को भगाने की कथाएँ
न दोहरावे।
यह कलियुग ऐसा ही रहेगा ---
समाज की गलत धारणा बदलकर
संताप देनेवाले , कर्तव्य छोड़नेवाले ,
सत्य को छिपानेवाले
गलत न्याय देने वाले
सब की आँखे खोल देना।
पौराणिक वेद मन्त्र के लोग
समाज को एक होने न दिया।
सबको सामान शिक्षा न दी.
परिणाम अब तूने दिखा दिया
आरक्षण नीति की बुद्धि दी ,
अब विप्रों को सरकारी सहूलियतें नहीं ,
भारतीय भाषाओं का कोई महत्त्व नहीं ,
खासकर दक्षिण में देव विरोधी की
मूर्तियां चौराहे पर ही नहीं
मंदिरों के आगे ,पास या सामने खडी हैं ,
तुझ पर का भय मिट गया.
भ्रष्टाचार की कमाई से
चांदी -सोने -हीरे - से सजाओ,
लोग तो भ्रष्टाचार भूल
तेरे चरण वंदना करेंगे ,
यह अंध भक्ति द्वारा
स्वार्थियों को लूटना आसान।
जगाओ, जगाओ,
तेरे चुप रहने से तेरा बदनाम होगा।
धूल में मिलेगा तुझपर का विशवास।
स्वार्थियों को लूटना बढ़ जाएगा।
तुम ऐसे भ्रष्टाचारियों से , स्वार्थों से
जग मिटाना चाहते हो तो तेरी मर्जी।
अशाश्वत संसार को स्वार्थ रोग से मुक्ति करो.
महानों के विचार जो अनुकरणीय हैं
उन महानों की समाधियों के साथ ही
गाड़ देते उनके शिष्य।