Thursday, September 27, 2018

शासन व्यवस्था

शासक और दंड पर
विचार करूँ  तो
हमेशा गरीबों को ही तुरत दंड.
हलमेट नहीं तो तुरंत जुर्माना।
अमीर पीकर गाड़ी चलाने  पर
अमीर  के   बदले एक गरीब कार चालाक।
अमीर भ्रष्टाचार करें , रिश्वत लें तो
खासकर अभिनेता, राजनैतिक नेता ,
तो मुकद्दमा खारिज या स्थगित।
समाज भी सहता ही रहता हैं ,
अपराध स्थापित मुख्य मंत्री ,
मृत्यु के बाद  फैंसला।
अब भी है वह उसके अनुयायियों से सम्मानित।
अवैध या वैध राजा को अनेक पत्नी रखैल।
आज कल का नया फैंसला अपराधी भी
चुनाव लड़ सकता है;
अपराधी भी डरा-धमकाकर
चुनाव जीत सकता  है
भ्रष्टाचारी रिश्वत खोरी एक ओट को
बीस हज़ार देकर जीतकर
सीना ताने चल सकता है,
बलात्कारी का अपराध नहीं ,
बलात्कार की प्रेरित पोशाक
वातावरण में आयी लड़की अपराधिन।
समलिंग सम्भोग अपराध नहीं
पशु-सा सार्वजनिक स्थान पर चूमना अपराध नहीं ,
दो  सौ  रूपये या पचास रूपये लिए
चपरासी दण्डनीय ,वही दलाल बन
लाखों लेकर उच्च अधिकारी को भी
संतुष्ट करता तो अपराधी नहीं।
पहले चुनाव लड़ने के उम्मीदवार को
डिपाजिट रूपये के सिवा  एक
रूपये भी  खर्च न करने की अनुमति न देना।
एक करोड़ खर्च कर जीतना
आम जनता और देश की सेवा नहीं
एक करोड़ को कई करोड़ कमाना।
मनमाना अधिकारी को डराना  धमकाना।
मनमाना गैर कानूनी काम करना।
ईमानदारी अधिकारी को
भ्रष्टाचार सहना न तो पद तजकर जीना
यह राष्ट्र जब तक अपराधी के पक्ष में
ऐसे न्याय दे सकता है , अपराधी अपने बल -आर्थिक ,दाल,और
अन्य कार्यों से बच सकता है ,
तब तक न होगा देश का सर्वांगीण विकास।
क़ानून के सामने सब बराबर नहीं ,
भगवान के मंदिर में सब बराबर नहीं
न्यायव्यवस्था अमीरों और शासकों के पक्ष में तो
देश का सर्वांगीण विकास कभी नहीं।

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