तिरुप्पावै --२१
आण्डाल रचित
-- श्री कृष्ण को जगाती हुई आण्डाल गाती है -
नन्द महाराज के यहाँ गो धन असंख्य हैं ;
गायें दानी हैं।
स्वतः बर्तन भर दूध देती हैं।
ऐसे गोधनी नन्द के पुत्र
श्री कृष्ण!
नींद से जागो।
वेदों ने तुम्हारे यशोगान गाये हैं।
तुम परमेश्वर हो ;
हमारी पहुँच तुम तक नहीं हो सकती ।
जग को दर्शन देने तुम्हारा अवतार हुआ है।
तुम ज्योति स्वरुप हो ;जागो ;
जैसे शत्रु अहंकार छोड़कर ,
तेरे चरण में शरणार्थी बनते हैं ,
वैसे ही हम तेरे शरणार्थी बनेंगे।
हम भी तेरे यशोगान करने आयी हैं।
जागो ;दर्शन दो।
श्री विप्रनारायण जी के तमिल व्याख्या का हिंदी अनुवाद ;
धन्यवाद महोदय !
आण्डाल रचित
-- श्री कृष्ण को जगाती हुई आण्डाल गाती है -
नन्द महाराज के यहाँ गो धन असंख्य हैं ;
गायें दानी हैं।
स्वतः बर्तन भर दूध देती हैं।
ऐसे गोधनी नन्द के पुत्र
श्री कृष्ण!
नींद से जागो।
वेदों ने तुम्हारे यशोगान गाये हैं।
तुम परमेश्वर हो ;
हमारी पहुँच तुम तक नहीं हो सकती ।
जग को दर्शन देने तुम्हारा अवतार हुआ है।
तुम ज्योति स्वरुप हो ;जागो ;
जैसे शत्रु अहंकार छोड़कर ,
तेरे चरण में शरणार्थी बनते हैं ,
वैसे ही हम तेरे शरणार्थी बनेंगे।
हम भी तेरे यशोगान करने आयी हैं।
जागो ;दर्शन दो।
श्री विप्रनारायण जी के तमिल व्याख्या का हिंदी अनुवाद ;
धन्यवाद महोदय !