Saturday, August 10, 2019

गड्ढे

नमस्ते।
 वणक्कम्।
   कोई  भी गड्ढे  में  गिरें तो
 हँसी  आती है।
बरसात  के गड्ढे
 अधिक  खतरनाक।
यह तो ठेकेदार का दोष।
स्थानीय  नगर पालिका का दोष।
विधायक  का लोटभ।
अधिकारी  का स्वार्थ।
वर्षा के गड्ढे में  कीचड़
कइयों को चोट मिली।
एकाध के प्राण पखेरू उड़ने लगा तो   सरकार  अपने मगरमच्छ
आँसू बहाने लगी।मंत्री  आये।
घायलों के नाते रिश्तेदारों से मिले।
बूढियों से  गले मिले।
पत्रिकाओं  में फोटो छपे।
मौसम समाप्त।
गड्ढे  ज्यों के त्यों  रहे।
चुनाव  वही  वही मंत्री।
उनको पता नहीं  वहाँ गड्ढे  हैं।
मतदाता भी भूल गये।
मंत्री  गड्ढे  भरने पक्की वादा।
कौन सी राजनीति  पता नहीं।
स्वरचित स्वचिंतक
 यस ।अनंतकृष्णन

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